इसी बारिश में
"इस नदी का है कोई तीर नहीं,
ख़त्म हो जाये वो जागीर नहीं..
दौलते-दर्द से भरा दिल है-
मेरे जैसा कोई अमीर नहीं..❣️"
कल हम भी
बारिश में छपाके
लगाया करते थे...
आज इसी बारिश में
कीटाणु देखना सीख गये!!
कल बेफिक्र थे कि
माँ क्या कहेगी
आज बारिश से
मोबाइल बचाना सीख गये!!
कल कहा करते थे कि
बरसे बेहिसाब
तो छुट्टी हो जाए...
अब डरते हैं कि रुके ये बारिश
कहीं दफ़्तर ना छूट जाये!!
किसने कहा कि
नहीं आती वो
बचपन वाली बारिश...
हम ख़ुद अब काग़ज़ की
नाव बनाना भूल गए!!
बारिश तो अब भी बारिश ही है
बस हम अपना ज़माना भूल गये...
"बांध ले मन को ऐसी कोई जंजीर नहीं,
तेरे सिवा मेरे दिल में कोई तश्वीर नहीं..
छटपटाता न हो मुहब्बत में-
कौन सा दिल है जिसमें पीर नहीं..❣️"
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 12 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteपांच लिंकों के आनन्द में इस रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteअनुपम
ReplyDelete🪷 अतुलनीय ।
ReplyDelete💐 🙏🏻
Happy Sunday
ReplyDeleteवो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी..…
ReplyDeleteवाह क्या बात है रूपा जी 👌🏻👌🏻
ReplyDeleteHappy Sunday
ReplyDelete🙏🙏💐💐शुभरात्रि 🕉
ReplyDelete🚩🚩जय जय श्री राधे कृष्ण🚩🚩
👌👌👌👌वाह, बहुत खूब 🙏
🙏🙏आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐
सुन्दर
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब। वर्तमान की कशमकश के साथ कुछ पुरानी यादें ताजा हो गयी।
ReplyDeleteबहुत खूब 👌👌
ReplyDeleteबचपन की यादों से बुनी सुंदर रचना
ReplyDeleteExcellent
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