बेट द्वारका - दंडी हनुमान
बेट द्वारका द्वीप पर द्वारकाधीश मंदिर से करीब तीन किलोमीटर दूर भगवान हनुमान का एक भव्य और अनोखा मंदिर है, जिसे हनुमानदंडी के नाम से जाना जाता है। इस स्थान पर तीर्थयात्री अखरोट की पूजा करते हैं। हनुमानदंडी के बारे में प्राचीन मान्यता है कि यह वह स्थान है, जहां भगवान हनुमान ने भगवान राम और भगवान लक्ष्मण को रसातल में पहुंचाया था और ऐसी मान्यता है कि यह वही स्थान है जहां पहली बार हनुमानजी अपने पुत्र मकरध्वज से मिले थे।
यह मंदिर किस तरह अनोखा है, यह जानना अधिक दिलचस्प है। इस स्थान पर मकर ध्वज के साथ में हनुमानजी की मूर्ति स्थापित है। कहते हैं कि पहले मकरध्वज की मूर्ति छोटी थी परंतु अब दोनों मूर्तियां एक सी ऊंची हो गई हैं।
मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही सामने हनुमान पुत्र मकरध्वज की प्रतिमा है, वहीं पास में हनुमानजी की प्रतिमा भी स्थापित है। इन दोनों प्रतिमाओं की विशेषता यह है कि इन दोनों के हाथों कोई भी शस्त्र नहीं है और ये आनंदित मुद्रा में हैं। यह मंदिर 500 वर्ष पुराना है। भारत में यह पहला मंदिर जहाँ हनुमानजी और मकरध्वज (पिता -पुत्र) का मिलन दिखाया गया है।
जब हनुमानजी श्रीराम-लक्ष्मण को लेने के लिए आए, तब उनका मकरध्वज के साथ घोर युद्ध हुआ। कुछ धर्म ग्रंथों में मकरध्वज को हनुमानजी का पुत्र बताया गया है, जिसका जन्म हनुमानजी के पसीने द्वारा एक मछली से हुआ था। कहते हैं कि पहले हिंदू धर्म को मानने वाले ये बात बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि भगवान श्रीराम के परमभक्त व भगवान शंकर के ग्यारवें रुद्र अवतार श्रीहनुमानजी बालब्रह्मचारी थे, लेकिन बहुत ही कम लोग ये बात जानते हैं कि धर्म शास्त्रों में हनुमानजी के एक पुत्र का वर्णन भी मिलता है। शास्त्रों में हनुमानजी के इस पुत्र का नाम मकरध्वज बताया गया है। भारत में दो ऐसे मंदिर भी है जहां हनुमानजी की पूजा उनके पुत्र मकरध्वज के साथ की जाती है। इन मंदिरों की कई विशेषताएं हैं जो इसे खास बनाती हैं।
हनुमानजी के पुत्र मकरध्वज की उत्पत्ति की कथा-
धर्म शास्त्रों के अनुसार जिस समय हनुमानजी सीता की खोज में लंका पहुंचे और मेघनाद द्वारा पकड़े जाने पर उन्हें रावण के दरबार में प्रस्तुत किया गया। तब रावण ने उनकी पूंछ में आग लगवा दी और हनुमान ने जलती हुई पूंछ से पूरी लंका जला दी। जलती हुई पूंछ की वजह से हनुमानजी को तीव्र वेदना हो रही थी जिसे शांत करने के लिए वे समुद्र के जल से अपनी पूंछ की अग्नि को शांत करने पहुंचे।
उस समय उनके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी जिसे एक मछली ने पी लिया था। उसी पसीने की बूंद से वह मछली गर्भवती हो गई और उससे उसे एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम पड़ा “मकरध्वज”। मकरध्वज भी हनुमानजी के समान ही महान पराक्रमी और तेजस्वी था। मकरध्वज को अहिरावण द्वारा पाताल लोक का द्वारपाल नियुक्त किया गया था। जब अहिरावण श्रीराम और लक्ष्मण को देवी के समक्ष बलि चढ़ाने के लिए अपनी माया के बल पर पाताल ले आया था तब श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराने के लिए हनुमान पाताल लोक पहुंचे और वहां उनकी भेंट मकरध्वज से हुई। तत्पश्चात हनुमानजी और मकरध्वज के में घोर युद्ध हुआ। अंत में हनुमानजी ने उसे परास्त कर उसी की पूंछ से उसे बांध दिया।
मकरध्वज ने अपनी उत्पत्ति की कथा हनुमान को सुनाई। हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया और श्रीराम ने मकरध्वज को पाताल लोक का अधिपति नियुक्त करते हुए उसे धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उनकी स्मृति में यह मूर्ति स्थापित है।मकरध्वज व हनुमानजी का यह पहला मंदिर गुजरात के भेंटद्वारिका में स्थित है। यह स्थान मुख्य द्वारिका से दो किलो मीटर अंदर की ओर है।
बढ़िया जानकारी
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteअच्छी जानकारी
ReplyDeleteअच्छी जानकारी
ReplyDeleteजय बजरंगबली
ReplyDeleteVery Nice Information
ReplyDeleteजय बजरंगबली 🙏🏻🙏🏻
जय श्री हनुमान 🙏🏻
ReplyDelete🙏🙏💐💐शुभदोपहर 🕉️
ReplyDelete🚩🚩जय जय सियाराम 🚩🚩
🙏आप का दिन मंगलमय हो 🙏
🚩🚩जय जय श्री हनुमान जी 🚩🚩
👍👍👍बहुत बढ़िया जानकारी शेयर करने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐
Jai shree Ram
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