किसी के दिल में ही सही..
सुबह कुछ टक-टक की
आवाज़ आ रही थी
दरवाज़ा खोलकर देखा
कोई दिखाई नहीं दिया...
आवाज़ की दिशा में देखा
खिड़की पर एक पक्षी दिखाई दिया
अपनी चोंच से खिड़की पर
उकेर रहा था नक्काशी...
मैंने पूछा -
"भई क्या बात है"
बोला- क्या किराये पर मिलेगा
कोई पेड़, घोंसला बनाने के लिए?
अकेला तो कहीं भी रह लेता,
परन्तु घर चाहिए, चूज़ों के लिए
तुम्हारे ही बंधुओं ने उजाड़ दिया है,
पूरा का पूरा जंगल,
नहीं छोड़ा है, हमारे लिए कोई बसेरा,
बेघर तो कर ही दिया है,
दाने-पानी के लिए भी तरसा दिया है..
पुण्य कमाने के लिए रख देते हैं ,
छत पर थोड़ा दाना, थोड़ा पानी,
पर सिर ढकने के लिए,
छत भी तो चाहिए
यह तो कोई सोचता ही नहीं..
पेट तो भरना ही है,
भीख ही सही, थोड़ा खा-पी लेते हैं
थोड़ा बच्चों के लिए भी ले जाते हैं
भले ही सिर पर छत न हो,
पेट में भूख तो लगती है ना?
कभी-कभी सोचता हूँ
आत्मघात कर लूँ ,
बिजली के तारों पर बैठ जाऊँ,
या पटक दूँ सिर,
मोबाइल के ऊँचे टावर पर..
जैसे सरकार दे देती है मकान,
फाँसी लगाने वाले इंसान को,
वैसे ही मिल जाएगा कोई पेड़
मेरे चूज़ों के घोंसले के लिए..
सुनकर मैं सुन्न हो गया,
इतना कुछ तो सोचा भी न था?
जंगल काटकर, घर उजाड़ दिये
इन बेचारों के, बिना विचारे..
मैंने हाथ जोड़कर उससे कहा
सबकी ओर से, मैं माफी माँगता हूँ,
आत्मघात का विचार त्याग दो
यह दिल से विनय है मेरा आपसे..
अभी तो इस गमले के पौधे पर,
अपना वन रूम का घर बसा लो,
थोड़ी अड़चन तो होगी, परंतु
अभी इसी से काम चला लो..
उसने कहा -
"बड़ा उपकार होगा,
परंतु किराया क्या होगा?
और कैसे चुकाऊँगा "
मैंने कहा-
"तीनों पहर मंगल कलरव सुनुँगा,
और कुछ नही माँगूँगा..
वह बोला "मुझे तो आप मिल गए,
पर मेरे भाई बंधुओ का क्या?
उन्हें भी तो घर चाहिए,
कहाँ रहेंगे वो सब?"
मैंने कहा "अरे! अब लोग जाग रहे हैं,
बड़, पीपल, नीम, गूलर लगा रहे हैं
कोरोना ने झटका देकर,
सबको डराया है,
आपको आत्मघात करने की,
अब आवश्यकता नहीं पड़ेगी"
सुनकर पक्षी उड़ गया,
घोंसले का सामान लाने के लिए
और मैंने मोबाइल उठाया
आपको यह बताने के लिए!
पक्षी की टक-टक से,
मेरे मन का द्वार खुल गया
आप भी एक पेड़ तो लगाओगे
अपने लिए या अपनों के लिए
कहीं सार्वजनिक स्थानों
या फिर आंगन में या फिर
किसी के दिल में ही सही..
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 01 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDelete👌👌
ReplyDeleteBeautiful ❤️❤️
ReplyDeleteVery nice....
ReplyDelete🪷 मनमोहक ।
ReplyDelete💐 🙏🏻
Acha sandesh de sunder kavita...sunder tasveer ke saath ..
ReplyDeleteDeti
ReplyDeleteHappy Sunday
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
ReplyDeleteInsaan sochta hi nahi itna jyada
ReplyDeleteसुन्दर संदेशप्रद लाजवाब रचना
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत खूब लिखा है
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteuff shirshak he itni gehari ki dil ko lagi! bahut sundar rachana, kaash hum insaan sochte pehale!
ReplyDeleteWaah very Nice 👌🏻👌🏻☺️
ReplyDeleteVery nice
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