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कर दें न क़त्ल ख़ुद ही ख़्वाबों का ख़ंजरों से

कर दें न क़त्ल ख़ुद ही ख़्वाबों का ख़ंजरों से

Rupa Oos ki ek Boond

कर दें न क़त्ल ख़ुद ही ख़्वाबों का ख़ंजरों से

डरने लगे हैं हम तो अपने ही बाज़ुओं से..


ये शक्ल भी किसी दिन हो जाएगी मुकम्मल

ख़ुद को तराशते हैं हम रोज छेनियों से..


ग़मगीन रास्तों पर कैसे ये चल रही हैं

हम रोज पूछते हैं ये राज़ धड़कनों से..


फूलों की डोलियाँ जब रुख़्सत हुई चमन से

बेकाबू होके काँटे जा उलझे क़ातिलों से..


ख़त इश्क़ के जले हैं या ख़्वाब ज़िंदगी के

लपटें सी उठ रहीं हैं आँखों की चिमनियों से..


आया है अश्क़ पीने का हल्क़ को हुनर जब

आँखों ने बहने का हक़ छीना है आँसुओं से..


धोखे फ़रेब की हैं दीवार बीच में जब

हो दोस्ती भी कैसे पत्थर की आइनों से..


- Amit verma

Rupa Oos ki ek Boond

17 comments:

  1. वाह वाह क्या बात है

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  2. बेहतरीन
    शुभ रविवार

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  3. ✍🏻वो लौटकर आया है मनाने को.
    शायद
    आज़मा कर आया है ज़माने को.💕

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  4. Happy Sunday🌹🌹🌹🌹🌹

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  5. Very Nice Happy Sunday 🌻👌🏻👍

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  6. भावपूर्ण अभिव्यक्ति
    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 6 मार्च 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. "पांच लिंकों का आनन्द" पर इस रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार।

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  7. वाह वाह वाह.... बेहतरीन रचना

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  8. वाह्ह क्या खूब लिखा है आपने।
    हर इक शेर बहुत अच्छा है।
    सादर।

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  9. ख़त इश्क़ के जले हैं या ख़्वाब ज़िंदगी के

    लपटें सी उठ रहीं हैं आँखों की चिमनियों से..
    बहुत सुंदर । सादर ।

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