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आनंदीबाई जोशी (31 मार्च 1865-01 फ़रवरी 1887)

आनंदीबाई जोशी

Born: 31 March 1865, Kalyan
Died: 01 February 1887 (age 21 years), Pune

आनंदीबाई जोशी (31 मार्च 1865 - 01 फ़रवरी 1887) पहली भारतीय महिला थी, जिन्होंने डॉक्टरी की डिग्री ली थी। 31 मार्च 1865 में जन्मी आनंदीबाई जोशी उस दौर में विदेश जाकर डॉक्टरी की डिग्री हासिल कीं। जिस समय में महिलाओं की प्रारंभिक शिक्षा ही बहुत मुश्किल थी, उस समय में आनंदीबाई डॉक्टर की पढ़ाई कीं और प्रथम भारतीय महिला डॉक्टर बनीं। उनकी यह उपलब्धि उस समय महिलाओं के लिए एक मिसाल थी।

आनंदीबाई जोशी || Anandibai Joshi ||

आनंदीबाई जोशी का विवाह 9 साल की उम्र में उनसे करीब 20 साल बड़े गोपालराव से कर दी गई। 14 साल की उम्र में वह मां बन गई और उनकी एकमात्र संतान की मृत्यु 10 दिनों बाद ही जरुरी स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के कारण हो गई। इस बात से उन्हें बहुत आघात लगा और तभी उन्होंने प्रण लिया कि वह एक दिन डॉक्टर बनेंगी और जरुरी स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराएंगी। इस कार्य में उनके पति गोपाल राव ने भी उनका भरपूर सहयोग दिया और उनका हौसला बढ़ाया।

आनंदीबाई जोशी || Anandibai Joshi ||

आनंदीबाई जोशी की 21 वर्षीय जीवन यात्रा

आनंदीबाई जोशी का जन्म पुणे के एक जमींदार परिवार में 31 मार्च 1865 को हुआ। बचपन में उनके माता-पिता ने उनका नाम यमुना रखा था। शादी के बाद ससुराल वाले उन्हें आनंदी बुलाने लगे। ब्रिटिश शासकों ने महाराष्ट्र में जमींदारी प्रथा को खत्म कर दिया था, जिसके बाद आनंदी के परिवार की वित्तीय स्थिति खराब हो गई। ऐसे में उनके पिता ने आनंदी की शादी मात्र 9 साल की उम्र में उनसे उम्र में 20 साल बड़े गोपालराव से कर दी, जिनके पहले पत्नी की मौत हो चुकी थी। 14 वर्ष की आयु में मां बनकर बच्चे को खो देने का दर्द आनंदीबाई ने सहा परंतु इसी घटना के बाद उन्होंने डॉक्टर बनने का दृढ़ निश्चय किया। 

1880 में गोपाल राव ने एक मशहूर अमेरिकी मिशनरी को पत्र लिखकर अमेरिका में चिकित्सा की पढ़ाई करने की पूरी जानकारी एकत्र की। उस वक्त पर उनके पति के अलावा घरवाले और समाज उनके इस निर्णय से सहमत नहीं थे। लोगों ने उन पर अवांछित टिप्पणियां की, उनके घर पर पत्थर और गोबर फेंके। यहां तक ​​कि उस डाकघर पर भी हंगामा किया, जहां गोपालराव काम करते थे, लेकिन वह अपने निर्णय पर दृढ़ता के साथ खड़ी रहीं। आनंदीबाई की जिद और पति के साथ ने उनको लक्ष्य तक पहुंचने में मदद की। 

आनंदीबाई जोशी || Anandibai Joshi ||

परंतु आनंदीबाई के इस कदम के प्रति हिंदू समाज में बहुत विरोध की भावना थी। वे नहीं चाहतें थे कि उनके देश का कोई व्यक्ति विदेश जाकर पढ़े, कुछ इसाई समाज ने उनका समर्थन किया परंतु उनकी इच्छा इनका धर्म परिवर्तित करवाने की थी। अपने फैसले को लेकर हिंदू समाज में विरोध को देखते हुए आनंदीबाई ने श्रीरामपुर कॉलेज में अपना पक्ष अन्य लोगों के समक्ष रखा। उन्होंने कहा - "मैं अमेरिका जा रही हूं, क्योंकि मैं चिकित्सा की पढ़ाई करना चाहती हूं। स्थानीय और यूरोपीय महिलाएं, पुरुष डॉक्टर से आपात स्थिति में भी इलाज कराने में झिझकती हैं। मेरा विनम्र विचार यही है कि मैं भारत में महिला डॉक्टर की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए, खुद को इस क्षेत्र के योग्य बनाकर उनकी सेवा करूं।"

उन्होनें अपने अमेरिका जाने और मेडिकल की डिग्री प्राप्त करने के संकल्प को लोगो के मध्य खुलकर रखा और लोगो को महिला डॉक्टर की जरुरत के बारे में समझाया। अपने इस संबोधन में उन्होंने यह भी पक्ष रखा कि वे और उनका परिवार भविष्य में कभी भी इसाई धर्म स्वीकार नहीं करेगा और वापस आकर भारत में भी महिलाओं के लिए मेडिकल कॉलेज खोलेंगी। 

उनके इस प्रयास से लोग प्रभावित हुए और देश भर से लोग उनके समर्थन में आगे आये। इस कार्य के लिए उन्होंने अपने सारे गहने बेच दिए। कुछ लोगों ने आनंदीबाई के इस कदम में उनका साथ देते हुए सहायता के लिए 200 रुपये की मदद की। 1883 में पेंसिल्वेनिया के महिला मेडिकल कॉलेज में आनंदी ने दाखिला लिया। उन्होनें मात्र 18 वर्ष की उम्र में मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया और 11 मार्च 1886 में अपनी शिक्षा पूर्ण कर एम डी (डॉक्टर ऑफ़ मेडिसिन) की उपाधि हासिल की। वह पहली भारतीय महिला थीं, जिसे यह उपाधि मिली। उनकी इस सफलता पर क्वीन विक्टोरिया ने भी उन्हें बधाई दी। 

डिग्री पूरी होने के बाद अपने लक्ष्य अनुसार आनंदीबाई भारत वापस आईं और सर्वप्रथम कोल्हापुर में अपनी सेवाएं दी। वहां उन्होंने अल्बर्ट एडवर्ड हॉस्पिटल में महिला विभाग का काम संभाला। यह भारत में महिलाओं के लिए पहला अवसर था, जब उनके इलाज के लिए कोई महिला चिकित्सक उपलब्ध थी, परंतु यहां उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती चली गई। डाॅक्टरी की प्रैक्टिस के दौरान वह टीबी की बीमारी की शिकार हो गईं। 26 फरवरी 1887 में महज 22 साल की उम्र में ट्यूबरकुलोसिस की चपेट में आने के कारण आनंदीबाई का निधन हो गया।

आनंदीबाई के जीवन पर आधारित किताबें 

इनकी मृत्यु के तुरंत बाद अमेरिका के राइटर कैरलाइन वेल्स हेअले डाल ने इनके जीवन पर एक किताब लिखी और इनके जीवन और उपलब्धियों से अन्य लोगों को परिचित करवाया। 

इसके बाद मराठी लेखक डॉ अंजली कीर्तने ने डॉ आनंदिबाई जोशी के जीवन पर रिसर्च की और डॉ  आनंदीबाई जोशी काल अणि कर्तुत्व (डॉ आनंदीबाई जोशी, उनके समय और उपलब्धियां) नामक एक मराठी पुस्तक लिखी।  इस पुस्तक में डॉ आनंदिबाई जोशी की दुर्लभ तस्वीरों को शामिल किया गया। 

English Translate 

Anandibai Joshi

Anandibai Joshi was the first Indian woman to obtain a doctorate degree. Born on March 31, 1865, Anandibai Joshi went abroad to obtain a doctorate degree. At a time when women's primary education was very difficult, Anandibai studied for a doctor and became the first Indian woman doctor. Her achievement was an example for women at that time.

आनंदीबाई जोशी || Anandibai Joshi ||

Anandibai Joshi was married at the age of 9 to Gopalrao, about 20 years older than her. She became a mother at the age of 14 and her only child died after 10 days due to lack of necessary health facilities. She was very shocked by this and only then she took a vow that she would one day become a doctor and provide necessary health facilities. In this work, her husband Gopal Rao also gave her full support and encouraged her.

Anandibai Joshi's 21 year life journey

Anandibai Joshi was born on 31 March 1865 in a zamindar family in Pune. In childhood, her parents named her Yamuna. After marriage, the in-laws started calling her Anandi. The British rulers had abolished the zamindari system in Maharashtra, after which the financial condition of Anandi's family worsened. In such a situation, her father got Anandi married at the age of 9 only to Gopalrao, 20 years older than her, whose first wife had died. Anandibai suffered the pain of losing her child as a mother at the age of 14, but after this incident, she determined to become a doctor.

आनंदीबाई जोशी || Anandibai Joshi ||

In 1880, Gopal Rao wrote a letter to a famous American missionary and collected complete information about studying medicine in America. At that time, apart from her husband, the family members and the society did not agree with her decision. People made unwanted comments on him, threw stones and cow dung at his house. There was even a ruckus at the post office where Gopalrao worked, but she stood firm on her decision. Anandibai's persistence and her husband's support helped her reach her goal.

But there was a lot of opposition in the Hindu society towards this step of Anandibai. They did not want any person from their country to study abroad, some Christian community supported them but their wish was to convert them. Seeing the opposition in the Hindu society regarding her decision, Anandibai presented her side in front of others in Shrirampur College. She said - "I am going to America because I want to study medicine. Local and European women are hesitant to seek treatment from male doctors even in emergencies. My humble opinion is that I am happy to see the growing number of female doctors in India. Looking at the needs, make myself fit for this area and serve them."

He openly kept his resolution to go to America and get a medical degree among the people and explained to the people about the need of female doctors. In this address, she also stated that she and her family will never accept Christianity in future and will come back and open a medical college for women in India as well.

People were impressed by his effort and people from all over the country came forward in his support. For this work, he sold all his jewelry. Some people supported Anandibai in this step and helped her with 200 rupees. In 1883, Anandi enrolled in the Women's Medical College of Pennsylvania. He enrolled in the Medical College at the age of just 18 and completed his education on 11 March 1886 and obtained the title of MD (Doctor of Medicine). She was the first Indian woman to receive this title. Queen Victoria also congratulated him on his success.

After completing her degree, Anandibai came back to India according to her goal and first served in Kolhapur. There she took charge of the Women's Department at Albert Edward Hospital. This was the first opportunity for women in India, when a female doctor was available for their treatment, but here their health continued to deteriorate. During the practice of medicine, she became a victim of TB disease. Anandibai died on 26 February 1887 at the age of just 22 due to tuberculosis.

Books based on the life of Anandibai

Soon after his death, American writer Caroline Wells Healey Dahl wrote a book on his life and introduced others to his life and achievements.

After this Marathi writer Dr. Anjali Kirtane researched the life of Dr. Anandibai Joshi and wrote a Marathi book titled Dr. Anandibai Joshi Kaal Ani Kartutva (Dr. Anandibai Joshi, her times and achievements). Rare photographs of Dr. Anandibai Joshi were included in this book.


14 comments:

  1. पवन कुमारFebruary 1, 2024 at 11:45 AM

    विलक्षण प्रतिभा के धनी आनंदीबाई जोशी ने समाज में एक ऐसा मिसाल कायम की जिससे बहुत बड़ा बदलाव आया । ऐसे महान विभूति को शत शत नमन है 🙏🙏🙏

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  2. नई जानकारी। उस जमाने मे डॉक्टरी की पढ़ाई करना महिला सशक्तीकरण की मिसाल है।

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  3. धन्य हैं प्रथम भारतीय महिला डॉक्टर आनंदी बाई,उन्हें शत शत श्रद्धांजलि।

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