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श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta) अध्याय - 18 (41 - 48 )

 श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)

अथाष्टादशोऽध्यायः- मोक्षसंन्यासयोग

फल सहित वर्ण धर्म का विषय

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)

ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परन्तप।
कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः|| 18.41 ||

भावार्थ : 

हे परंतप! ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के तथा शूद्रों के कर्म स्वभाव से उत्पन्न गुणों द्वारा विभक्त किए गए हैं৷

शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च।
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम्‌ || 18.42 ||

भावार्थ : 

अंतःकरण का निग्रह करना, इंद्रियों का दमन करना, धर्मपालन के लिए कष्ट सहना, बाहर-भीतर से शुद्ध (गीता अध्याय 13 श्लोक 7 की टिप्पणी में देखना चाहिए) रहना, दूसरों के अपराधों को क्षमा करना, मन, इंद्रिय और शरीर को सरल रखना, वेद, शास्त्र, ईश्वर और परलोक आदि में श्रद्धा रखना, वेद-शास्त्रों का अध्ययन-अध्यापन करना और परमात्मा के तत्त्व का अनुभव करना- ये सब-के-सब ही ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म हैं ৷৷18.42॥

शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम्‌।
दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्‌|| 18.43 ||

भावार्थ : 

शूरवीरता, तेज, धैर्य, चतुरता और युद्ध में न भागना, दान देना और स्वामिभाव- ये सब-के-सब ही क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म हैं৷

कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम्‌।
परिचर्यात्मकं कर्म शूद्रस्यापि स्वभावजम्‌ || 18.44 ||

भावार्थ : 

खेती, गोपालन और क्रय-विक्रय रूप सत्य व्यवहार (वस्तुओं के खरीदने और बेचने में तौल, नाप और गिनती आदि से कम देना अथवा अधिक लेना एवं वस्तु को बदलकर या एक वस्तु में दूसरी या खराब वस्तु मिलाकर दे देना अथवा अच्छी ले लेना तथा नफा, आढ़त और दलाली ठहराकर उससे अधिक दाम लेना या कम देना तथा झूठ, कपट, चोरी और जबरदस्ती से अथवा अन्य किसी प्रकार से दूसरों के हक को ग्रहण कर लेना इत्यादि दोषों से रहित जो सत्यतापूर्वक पवित्र वस्तुओं का व्यापार है उसका नाम 'सत्य व्यवहार' है।) ये वैश्य के स्वाभाविक कर्म हैं तथा सब वर्णों की सेवा करना शूद्र का भी स्वाभाविक कर्म है৷

स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः।
स्वकर्मनिरतः सिद्धिं यथा विन्दति तच्छृणु || 18.45 ||

भावार्थ : 

अपने-अपने स्वाभाविक कर्मों में तत्परता से लगा हुआ मनुष्य भगवत्प्राप्ति रूप परमसिद्धि को प्राप्त हो जाता है। अपने स्वाभाविक कर्म में लगा हुआ मनुष्य जिस प्रकार से कर्म करके परमसिद्धि को प्राप्त होता है, उस विधि को तू सुन৷

यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्‌।
स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः|| 18.46 ||

भावार्थ : 

जिस परमेश्वर से संपूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति हुई है और जिससे यह समस्त जगत्‌ व्याप्त है (जैसे बर्फ जल से व्याप्त है, वैसे ही संपूर्ण संसार सच्चिदानंदघन परमात्मा से व्याप्त है), उस परमेश्वर की अपने स्वाभाविक कर्मों द्वारा पूजा करके (जैसे पतिव्रता स्त्री पति को सर्वस्व समझकर पति का चिंतन करती हुई पति के आज्ञानुसार पति के ही लिए मन, वाणी, शरीर से कर्म करती है, वैसे ही परमेश्वर को ही सर्वस्व समझकर परमेश्वर का चिंतन करते हुए परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार मन, वाणी और शरीर से परमेश्वर के ही लिए स्वाभाविक कर्तव्य कर्म का आचरण करना 'कर्म द्वारा परमेश्वर को पूजना' है) मनुष्य परमसिद्धि को प्राप्त हो जाता है ৷৷18.46॥

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्‌।
स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्‌ || 18.47 ||

भावार्थ : 

अच्छी प्रकार आचरण किए हुए दूसरे के धर्म से गुणरहित भी अपना धर्म श्रेष्ठ है, क्योंकि स्वभाव से नियत किए हुए स्वधर्मरूप कर्म को करता हुआ मनुष्य पाप को नहीं प्राप्त होता৷

सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्‌।
सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः || 18.48 ||

भावार्थ : 

अतएव हे कुन्तीपुत्र! दोषयुक्त होने पर भी सहज कर्म (प्रकृति के अनुसार शास्त्र विधि से नियत किए हुए वर्णाश्रम के धर्म और सामान्य धर्मरूप स्वाभाविक कर्म हैं उनको ही यहाँ स्वधर्म, सहज कर्म, स्वकर्म, नियत कर्म, स्वभावज कर्म, स्वभावनियत कर्म इत्यादि नामों से कहा है) को नहीं त्यागना चाहिए, क्योंकि धूएँ से अग्नि की भाँति सभी कर्म किसी-न-किसी दोष से युक्त हैं ৷৷18.48॥

13 comments:

  1. जय जय श्री कृष्णा 🙏🏻

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  2. 🙏🙏💐💐
    🕉️सुप्रभात..... वंदन 🕉️
    🚩जय श्री कृष्णा 🚩
    🚩जय श्री कृष्णा 🚩
    🚩जय श्री कृष्णा 🚩
    🙏आप का दिन मंगलमय हो 🙏
    🚩🚩राधे राधे 🚩🚩
    👌👌👌बहुत बढ़िया, आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐

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  3. जय श्री कृष्ण

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  4. वाह रूपा जीृ अद्भुत ...गीता का सार हमें समाज और र‍िश्तों के बीच त्र‍िशंकु बनने से बचाता है...राधे राधे

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  5. जय श्री कृष्णा

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  6. Jai shree krishna

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  7. पवन कुमारDecember 8, 2023 at 8:24 AM

    🌹🙏गोविंद🙏🌹

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