श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)
इस ब्लॉग के माध्यम से हम सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता प्रकाशित कर रहे हैं, इसके तहत हम सभी 18 अध्यायों और उनके सभी श्लोकों का सरल अनुवाद हिंदी में प्रकाशित करेंगे।
श्रीमद्भगवद्गीता के 18 अध्यायों में से अध्याय 1,2,3,4,5, 6, 7, 8,9, 10,11,12 और 13 के पूरे होने के बाद आज प्रस्तुत है, अध्याय 14 के सभी अनुच्छेद।
अथ चतुर्दशोऽध्यायः- गुणत्रयविभागयोग
ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत् की उत्पत्ति
श्रीभगवानुवाच
भावार्थ :
श्री भगवान ने कहा - हे अर्जुन! समस्त ज्ञानों में भी सर्वश्रेष्ठ इस परम-ज्ञान को मैं तेरे लिये फिर से कहता हूँ, जिसे जानकर सभी संत-मुनियों ने इस संसार से मुक्त होकर परम-सिद्धि को प्राप्त किया हैं।
भावार्थ :
इस ज्ञान में स्थिर होकर वह मनुष्य मेरे जैसे स्वभाव को ही प्राप्त होता है, वह जीव न तो सृष्टि के प्रारम्भ में फिर से उत्पन्न ही होता हैं और न ही प्रलय के समय कभी व्याकुल होता हैं।
भावार्थ :
हे भरतवंशी! मेरी यह आठ तत्वों वाली जड़ प्रकृति (जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार) ही समस्त वस्तुओं को उत्पन्न करने वाली योनि (माता) है और मैं ही ब्रह्म (आत्मा) रूप में चेतन-रूपी बीज को स्थापित करता हूँ, इस जड़-चेतन के संयोग से ही सभी चर-अचर प्राणीयों का जन्म सम्भव होता है।
भावार्थ :
हे कुन्तीपुत्र! समस्त योनियों जो भी शरीर धारण करने वाले प्राणी उत्पन्न होते हैं, उन सभी को धारण करने वाली ही जड़ प्रकृति ही माता है और मैं ही ब्रह्म (आत्मा) रूपी बीज को स्थापित करने वाला पिता हूँ।
🙏🙏
ReplyDelete🌹🙏 गोविंद 🙏🌹
ReplyDeleteजय श्री राधे गोविंद 🙏🚩
ReplyDeleteJai shri krishna
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण
ReplyDeleteJai Shri Krishna
ReplyDeleteJai shree Hari 🙏
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा 🙏🙏
ReplyDelete🙏🙏💐💐सुप्रभात 🕉️
ReplyDelete🙏जय श्री कृष्णा 🚩🚩🚩
🙏आप का दिन मंगलमय हो 🙏
🙏राधे राधे 🚩🚩🚩
👌👌बहुत खूब,
आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐
जय श्री कृष्ण 🙏🚩🙌❣️🍃🐅
ReplyDeleteJai shree krishna
ReplyDeleteJai shree krishna 🙏🙏
ReplyDeleteJai shree krishna 🙏
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