अथैकादशोऽध्यायः- विश्वरूपदर्शनयोग
अथैकादशोऽध्यायः- विश्वरूपदर्शनयोग
अध्याय ग्यारह के अनुच्छेद 32 - 34
भगवान द्वारा अपने प्रभाव का वर्णन और अर्जुन को युद्ध के लिए उत्साहित करना
श्रीभगवानुवाच
भावार्थ :
श्री भगवान बोले- मैं लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ महाकाल हूँ। इस समय इन लोकों को नष्ट करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूँ। इसलिए जो प्रतिपक्षियों की सेना में स्थित योद्धा लोग हैं, वे सब तेरे बिना भी नहीं रहेंगे अर्थात तेरे युद्ध न करने पर भी इन सबका नाश हो जाएगा॥32॥
भावार्थ :
अतएव तू उठ! यश प्राप्त कर और शत्रुओं को जीतकर धन-धान्य से सम्पन्न राज्य को भोग। ये सब शूरवीर पहले ही से मेरे ही द्वारा मारे हुए हैं। हे सव्यसाचिन! (बाएँ हाथ से भी बाण चलाने का अभ्यास होने से अर्जुन का नाम 'सव्यसाची' हुआ था) तू तो केवल निमित्तमात्र बन जा॥33॥
भावार्थ :
द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह तथा जयद्रथ और कर्ण तथा और भी बहुत से मेरे द्वारा मारे हुए शूरवीर योद्धाओं को तू मार। भय मत कर। निःसंदेह तू युद्ध में वैरियों को जीतेगा। इसलिए युद्ध कर॥34॥
जय श्री राधे कृष्णा 🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteजय श्रीकृष्णा
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण
ReplyDeleteराधे राधे
ReplyDeleteॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा हरे कृष्णा 🙏🏻
ReplyDelete🌹🙏गोविंद🙏🌹हमलोग तो निमित मात्र हैं
ReplyDeleteसब तो गोविंद आपही करते हैं।
🙏🙏
ReplyDeleteJai shree krishna 🙏
ReplyDeleteJai Shree Krishna
ReplyDeleteओम नमो भगवते वासुदेवाय।
ReplyDelete🕉️ नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा 🪔🌷🐾🙏🚩🏹⚔️📙⚔️🔱🙌
ReplyDelete🕉️ नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा 🪔🌷🐾🙏🚩🏹⚔️📙⚔️🔱🙌
ReplyDeletejai shree hari
ReplyDeleteJai shree krishna
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