अध्याय ग्यारह के अनुच्छेद 05 - 08 में भगवान द्वारा अपने विश्व रूप का वर्णन है।
श्रीभगवानुवाच
भावार्थ :
श्री भगवान बोले- हे पार्थ! अब तू मेरे सैकड़ों-हजारों नाना प्रकार के और नाना वर्ण तथा नाना आकृतिवाले अलौकिक रूपों को देख॥5॥
भावार्थ :
हे भरतवंशी अर्जुन! तू मुझमें आदित्यों को अर्थात अदिति के द्वादश पुत्रों को, आठ वसुओं को, एकादश रुद्रों को, दोनों अश्विनीकुमारों को और उनचास मरुद्गणों को देख तथा और भी बहुत से पहले न देखे हुए आश्चर्यमय रूपों को देख॥6॥
भावार्थ :
हे अर्जुन! अब इस मेरे शरीर में एक जगह स्थित चराचर सहित सम्पूर्ण जगत को देख तथा और भी जो कुछ देखना चाहता हो सो देख॥7॥ (गुडाकेश- निद्रा को जीतने वाला होने से अर्जुन का नाम 'गुडाकेश' हुआ था)
भावार्थ :
परन्तु मुझको तू इन अपने प्राकृत नेत्रों द्वारा देखने में निःसंदेह समर्थ नहीं है, इसी से मैं तुझे दिव्य अर्थात अलौकिक चक्षु देता हूँ, इससे तू मेरी ईश्वरीय योग शक्ति को देख॥8॥
🙏🙏
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteॐ श्री पथ प्रदर्शकाय नमः
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण
ReplyDeleteJay shri Krishna
ReplyDeleteJai shri krishna
ReplyDelete🌹🙏गोविंद🙏🌹
ReplyDeleteJai shree krishna
ReplyDeleteकर्म करना आप का अधिकार है,फल इच्छा में नहीं।
ReplyDeleteॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
ReplyDeleteJai shree hari 🙏🏻
ReplyDeleteराधे राधे
ReplyDeleteJai shree krishna 🙏
ReplyDeleteJai Krishna
ReplyDeleteजय हो
ReplyDeleteमैं जसवंत निराला यहा लॉगिन नही हो रहे है
ReplyDelete