माँ होने का एहसास
माँ होने का एहसास
अनोखा होता है,
अपनी नींद अपने बच्चे को दे के.. उसे अपनी बाहों में ले के... उसे अपने सीने से लगा के..
उसकी सूरत को निहारते
कभी जी नही भरता है.
माँ होने का एहसास
अनोखा होता है..!!
आँखे बंद कर के
तेरी अठखेलियाँ ही दिखे..
तुझमे खुद का बचपन दिखे
अपने चारों ओर,अपने आसपास अपनी धड़कनें हँसती गाती दिखें तेरे लिए ये मेरा मन सदा
ममता के सागर में डूबता है...
माँ होने का एहसास
अनोखा होता है...!!
सारे पल जी लू मैं तेरे साथ.
ऐ खुदा तेरा शुक्रिया
जो तू है मेरे पास...
तुझ में किसी की नज़र न लगे
कयामत के दिन तक तू खुश रहे साथ तेरा दिल खुश करता है...
माँ होने का एहसास
अनोखा होता है...!!
तेरे माँ- माँ कहने पर
मन पंछी बन उड़ता है
तेरे नन्हे हाथों को चूम ये मन भविष्य के सपने संजोता है...
माँ होने का एहसास
अनोखा होता है...!!
समय चक्र के बढ़ने से
तेरी निश्छलता आँखों मे दिखेगी .
पुकारे जब तू मुझे ऐ मां
लिपट के मुझसे छिप जाती है...
देखकर मुझे तेरे मुस्कुराने का पल सबसे हसीन होता है...
माँ होने का एहसास
अनोखा होता है...!!
एक तेरी आह पर मैं भागती हूँ
आती हूँ बिटिया हर लम्हे में
कभी बन के मां कभी होके सखी
.. समय के उड़ते हुए ये पल
कहाँ वापस आ पाएंगे
सोच के इक दिन तेरी विदाई
मेरा दिल रोता है....
माँ होने का एहसास
अनोखा होता है....!!
अपनी ममता की छांव में सदा तुझे रखूंगी
तेरी खुशियो के लिए सदा तेरी परछायीं बन मिलूंगी...
मेरे कष्ट कंटकों से ही
तेरा जीवन सुमन खिलता बै
माँ होने का एहसास
अनोखा होता है....!!
*हर माँ की कलम की*....✍️
🙏🙏
ReplyDeleteमाँ पर लिखी हृदयस्पर्शी कविता।
ReplyDeleteशुभ रविवार
माँ शब्द ही पूर्ण है व्यक्ति के जीवन को सम्पूर्ण बनाने के लिए
ReplyDeleteमां और ममता जैसे दिल और सांस 👌🏼
ReplyDeleteVery nice poem ...
ReplyDeleteHappy Sunday
ReplyDeleteFeeling happy happy.
ReplyDeleteBahut achi kavita
ReplyDeleteमां को ममता अदभुत होती है,एक सजीव चित्रण।
ReplyDeleteपुत्रो कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ।
ReplyDeleteमाँ तो ममता की मूर्ति होती है 🙏🙏🙏🙏🙏
Very Nice Poem very nice Family ☺️👌🏻
ReplyDeleteVery nice poem
ReplyDeleteI send greetings.
ReplyDeleteनिःशब्द
ReplyDeleteBeautiful pic😍😍
माँ जमीं माँ आसमां
ReplyDeleteमाँ से है ये सारा जहाँ
🙏🥰🙌👸🙌🥰🙏
माँ जमीं माँ आसमां
ReplyDeleteमाँ से है ये सारा जहाँ
🙏🥰🙌👸🙌🥰🙏
फूल-पत्ति और पेड़-पौधों पर लिखा
ReplyDeleteलिखा बहुत कुछ धरती-आसमां पर
ममता जिसकी सागर से भी गहरी
क्या लिखूं आज उस 👩माँ👩 पर
🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏
🙏नरेश"राजन"विजयवर्गीय🙏
यह माँ जोर- जोर से रो रही थी.उसके बच्चे गिरे हुए मलबे में फंस गए...उसने मदद की गुहार लगाई!
ReplyDeleteइस भाई ने इसके बच्चे खोजने में मदद की इसके लिए❤️ से धन्यवाद..🙏!!
मां❣️ https://t.co/ZmN6lPU9R2
इंसान हो या जानवर माँ तो माँ होती है ❣️ https://t.co/u1EmYYtOgC
उस फर्श को तो चूम लेना चाहिए जहां मां के पांव के निशान पड़े हों :-
ReplyDeleteकुछ दिन पहले एक परिचित के घर गया था। जिस वक्त घर में मैं बैठा था, उनकी मेड घर की सफाई कर रही थी। मैं ड्राइंग रूम में बैठा था, मेरे परिचित फोन पर किसी से बात कर रहे थे। उनकी पत्नी चाय बना रही थीं। मेरी नज़र सामने वाले कमरे तक गई, जहां मेड फर्श पर पोछा लगा रही थी।
अचानक मेरे कानों में आवाज़ आई।
“बुढ़िया अभी ज़मीन पर पोछा लगा है, नीचे पांव मत उतारना। मैं बार-बार यही नहीं करती रहूंगी।”
मैंने अपने परिचित से पूछा, “मां कमरे में हैं क्या?
“हां।”
“जब तक चाय बन रही है, मैं मां से मिल लेता हूं।”
“हां, हां। लेकिन रुकिए, अभी-अभी शायद पोछा लगा है, सूख जाए फिर जाइएगा।”
"क्यों? गीला है तो मेड दुबारा लगाएगी। नहीं लगाएगी तो थोड़े निशान रह जाएंगे फर्श पर। क्या फर्क पड़ेगा?"
परिचित थोड़ा हैरान हुए । भैया ऐसा क्यों कह रहे हैं?
तब तक मैं कमरे में चला गया था। गीले पर्श पर पांव के खूब निशान उकेरता हुआ।
मैं मां के पास गया। मैंने उनके पांव छुए और फिर उनसे कहा कि चलिए आप भी ड्राइंग रूम में, वहां साथ बैठ कर चाय पीते हैं। चाय बन रही है। भाभी रसोई में चाय बना रही हैं।
मैंने इतना ही कहा था। मां एकदम घबरा गईं।
“अरे नहीं , अभी फर्श पर पांव नहीं रखना है। फर्श गीला है न, मेरे पांव के निशान पड़ जाएंगे।”
“पांव के निशान पड़ जाएंगे? वाह! फिर तो मैं उनकी तस्वीर उतार कर बड़ा करवा कर फ्रेम में लगाऊंगा। आप चलिए तो सही।”
पर मां बिस्तर से नीचे नहीं उतर रही थीं। उन्होंने कहा कि तुम चाय पी लो बेटा।
तब तक मेरे परिचित भी मां के कमरे तक आ गए थे।
उन्होंने मुझसे कहा कि मां सुबह चाय पी चुकी है। आप आइए भैया ।
"नहीं। मां के साथ मैं यहीं कमरे में चाय लूंगा।"
चमकते हुए टाइल्स पर मेरे जूते के निशान बयां कर रहे थे कि मैंने जानबूझ कर कुछ निशान छोड़े हैं। वो समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर मैंने ऐसा किया ही क्यों?
उन्होंने मुझसे तो कुछ नहीं कहा, लेकिन मेड को उन्होंने आवाज़ दी। "बबिता, जरा इधर आना। इधर भैया के पांव के निशान पड़ गए हैं, उन्हें साफ कर देना।"
बबीता ने गीला पोछा फर्श पर लगाया। जैसे ही फर्श की दुबारा सफाई हुई मैं फिर खड़ा होकर उस पर चल पड़ा। दुबारा निशान पड़ गए।
अब बबिता हैरान थी। मेरे परिचित भी। तब तक उनकी पत्नी भी कमरे में आ चुकी थीं।
उन्होंने कहा, " भैया, आइए चाय रखी है।"
मैंने परिचित की पत्नी से कहा कि ‘बुढ़िया’ के लिए चाय यहीं दे दीजिए।
मेरे परिचित ने मेरी ओर देखा।
मैंने कहा कि हैरान मत होइए।
वो चुप थे।
मैंने कहा कि मुझे ऐसा लगता है कि आप लोग मां को प्यार से बुढ़िया बुलाते हैं।
मेड वहीं खड़ी थी। सन्न। परिचित की पत्नी वहीं खड़ी थी, सन्न।
परिचित ने पूछा, "क्या हुआ भैया ?"
हुआ कुछ नहीं। मैंने खुद सुना है कि आपकी बबिता मां को बुढ़िया कह कर बुला रही थी। उसने मां को बिस्तर से उतरने से धमकाया भी था। यकीनन काम वाली ने मां को बुढ़िया पहली बार नहीं कहा होगा। बल्कि वो कह भी नहीं सकती उन्हें बुढ़िया। उसने सुना होगा। बेटे के मुंह से। बहू के मुंह से। बिना सुने वो नहीं कह सकती थी।
जाहिर है आप लोग प्यार से मां को इसी नाम से बुलाते होगे, तभी तो उनसे कहा।
पल भर के लिए धरती हिलने लगी थी। गीले फर्श पर हज़ारों निशान उभर आए थे।
मेरे परिचित के छोटे-छोटे पांव के निशान वहां उभरे हुए हैं। बच्चा भाग रहा है। मां खेल रही है बच्चे के साथ-साथ। एक निशान, दो निशान, निशान ही निशान। मां खुश रही है। बेटे के पांव देख कर कह रही है, देखो तो इसके पांव के निशान। बेटा इधर से उधर दौड़ रहा था। दौड़ता जा रहा था, पूरे घर में।
बुढ़िया रो रही थी। बहू की आंखें झुकी हुई थीं। बबिता चुप थी।
“भैया, गलती हो गई। अब नहीं होगा ऐसा। भैया बहुत बड़ी भूल थी मेरी।”
मेरे परिचित अपनी आंखें पोंछ रहे थे।
मैं चल पड़ा । सिर्फ इतना कह कर कि आखें ही पोंछनी चाहिए। उस फर्श को तो चूम लेना चाहिए जहां मां के पांव के निशान पड़े हों।
सादर/साभार
सुधांशु
(संजय जी भाईसाहब की आपबीती)
#जीवन #फलसफा #माँ #मां #प्रेरक #नौकरानी #बुढिया #कदम #निशान
🙏अनमोल रत्न🙏
ReplyDelete💜
🎄आजादी🎄
💜
*मैं तुम्हारी माँ के बंधन मे और नहीं रह सकती, मुझे अलग घर चाहिए जहाँ मैं खुल के साँस ले सकूँ।पलक रवि को देखते ही ज़ोर से चिल्ला उठी।बात बस इतनी थी कि सुलभा जी ने रवि और पलक को पार्टी मे जाता देख कर इतना भर कहा था कि वो रात दस बजे तक घर वापस आ जाए।बस पलक ने इसी बात को तूल दे दिया और दो दिन बाद ही उसने किरण के घर किटी मे उसे मकान ढूंढने की बात भी कह दी।*
*मुझे मम्मी जी की गुलामी मे रहना पसंद नहीं है ।*
*पलक, तुम्हारी तरह एक दिन मैं भी यही सोच कर अपनी सास से अलग हो गई थी। किटी ख़तम होते ही किरण पलक से मुख़ातिब थी।तभी तो आप आज़ाद हो। पलक ने चहक कर कहा तो किरण का स्वर उदासी से भर गया, किरण पलक से दस वर्ष बड़ी थी।नहीं,बल्कि तभी से मैं गुलाम हो गई,जिसको मैं गुलामी समझ रही थी वास्तव मे आज़ादी तो वही थी।*
वो कैसे,
*पलक.. जब मैं ससुराल मे थी दरवाज़े पर कौन आया, मुझे मतलब नहीं था क्योंकि मैं वहाँ की बहू थी। घर मे क्या चीज़ है क्या नहीं इससे भी मैं आज़ाद थी, दोनों बच्चे दादा-दादी से हिले थे। मुझे कहीं आने-जाने पर पाबंदी नहीं थी, पर कुछ नियमों के साथ, जो सही भी थे, पर जवानी के जोश मे मैं अपने आगे कोई सीमा रेखा नहीं चाहती थी। मुझे ये भी नहीं पसंद था कि मेरा पति आफिस से आकर सीधा पहले माँ के पास जाए।*
*तो!! फिर पलक की उत्सुकता बढ़ गई।*
*मैंने दिनेश को हर तरह से मना कर अलग घर ले लिया और फिर मैं दरवाज़े की घंटीं, महरी, बच्चों, धोबी, दिनेश सबके वक्त की गुलाम हो गई।अपनी मरज़ी से मेरे आने-जाने पर भी रोक लग गई क्योंकि कभी बच्चों का होमवर्क कराना है,तो कभी उनकी तबीयत खराब है।हर जगह बच्चों को ले नहीं जा सकते।अकेले भी नहीं छोड़ सकते। तो मजबूरन पार्टियां भी छोड़नी पड़ती जबकि ससुराल मे रहने पर ये सब बंदिश नहीं थीं।ऊपर से मकान का किराया और फालतू के खर्चे अलग, फिर दिनेश भी अब उतने खुश नहीं रहते।किरण की आँखें नम हो उठीं।*
*"फिर आप वापस क्यों नहीं चली गयीं,किस मुँह से वापस लौटती,"*
*"इन्होंने एक बार मम्मी से कहा भी था, पर पापा ने ये कह कर साफ़ मना कर दिया कि, एक बार हम लोगों ने बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला है अब दूसरा झटका खाने की हिम्मत नहीं है, बेहतर है अब तुम वहीं रहो।"*
ओह!
*"पलक घर से बाहर क़दम रखना बहुत आसान है पर जब तक आप माँ-बाप के आश्रय मे रहते हैं आपको बाहर के थपेड़ों का तनिक भी अहसास नहीं होता, माँ-बाप के साथ बंदिश से ज़्यादा आज़ादी होती है पर हमें वो पसंद नहीं होती। एक बार बाहर निकलने के बाद आपको पता चलता है कि आज़ादी के नाम पर ख़ुद अपने पाँव मे जंज़ीरें डाल लीं। बड़ी होने के नाते तुमसे यही कहूंगी सोच-समझ कर ही ये क़दम उठाना।"*
*मन ही मन ये गणित दोहराते हुए पलक एक क्षण मे निर्णय ले चुकी थी-उसे किरण जैसी गुलामी नहीं चाहिए। घर की ओर चलते बढ़ते कदमों के साथ साथ ही वो मन ही मन बुदबुदा रही थी, की घर पहुंचते ही सासू मां के पैर छूकर क्षमा मांग लूंगी और सदा उनके साथ ही रहूँगी।*
*मां बाप को साथ नही रखा जाता, मां बाप के साथ रहना होता है...*
इस मसले पर विचार अवश्य करें
सर्वे भवनतु: सुखिना:
🙏जय श्री कृष्ण🙏
माँ के रूप में है ममतामयी रूपा
ReplyDeleteबेटीयाँ प्यारी जयनी और ईशिता
गंगा-जमुना-सरस्वती के संगम-सी
पावन मिलकर बहती तीनों सरिता
जैसे माँ के मन मंदिर में ग्रंथ-सी
रहती रामायण और भगवत गीता
समझदार-सयानी हो जो बेटीयाँ
तो माँ का हर दिन सुखमय बीता
उम्रभर सुख-दुःख में साथ निभाती
बेटीयाँ ही तो होती है अपराजिता
जिस घर में बेटीयाँ ना जनम ले
वो घर पतझड़ सा रहे सुना-रिता
🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏