श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)
इस ब्लॉग के माध्यम से हम सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता प्रकाशित कर रहे हैं, इसके तहत हम सभी 18 अध्यायों और उनके सभी श्लोकों का सरल अनुवाद हिंदी में प्रकाशित करेंगे।
श्रीमद्भगवद्गीता के 18 अध्यायों में से अध्याय 1,2,3,4,5, 6 और 7 के पूरे होने के बाद आज प्रस्तुत है, अध्याय 8 के सभी अनुच्छेद।
श्रीमद्भगवद्गीता ||अध्याय आठ - अक्षरब्रह्मयोग योग ||
अथाष्टमोऽध्यायः- अक्षरब्रह्मयोग
अध्याय आठ के अनुच्छेद 01 - 07
आठवाँ अध्याय - अक्षरब्रह्मयोग
01-07 ब्रह्म, अध्यात्म औरकर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर08-22 भगवानका परम धाम और भक्ति के सोलह प्रकार23-28 शुक्ल और कृष्ण मार्ग का वर्णन
अध्याय आठ के अनुच्छेद 01-07 में ब्रह्म, अध्यात्म औरकर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर बताया गया है।
अर्जुन उवाच
भावार्थ :
अर्जुन ने कहा- हे पुरुषोत्तम! वह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत नाम से क्या कहा गया है और अधिदैव किसको कहते हैं॥8.1॥
भावार्थ :
हे मधुसूदन! यहाँ अधियज्ञ कौन है? और वह इस शरीर में कैसे है? तथा युक्त चित्त वाले पुरुषों द्वारा अंत समय में आप किस प्रकार जानने में आते हैं॥8.2॥
श्रीभगवानुवाच
भावार्थ :
श्री भगवान ने कहा- परम अक्षर 'ब्रह्म' है, अपना स्वरूप अर्थात जीवात्मा 'अध्यात्म' नाम से कहा जाता है तथा भूतों के भाव को उत्पन्न करने वाला जो त्याग है, वह 'कर्म' नाम से कहा गया है॥8.3॥
भावार्थ :
उत्पत्ति-विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत हैं, हिरण्यमय पुरुष (जिसको शास्त्रों में सूत्रात्मा, हिरण्यगर्भ, प्रजापति, ब्रह्मा इत्यादि नामों से कहा गया है) अधिदैव है और हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन! इस शरीर में मैं वासुदेव ही अन्तर्यामी रूप से अधियज्ञ हूँ॥8.4॥
भावार्थ :
जो पुरुष अंतकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त होता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है॥8.5॥
भावार्थ :
हे कुन्ती पुत्र अर्जुन! यह मनुष्य अंतकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करता है, उस-उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है॥8.6॥
भावार्थ :
इसलिए हे अर्जुन! तू सब समय में निरंतर मेरा स्मरण कर और युद्ध भी कर। इस प्रकार मुझमें अर्पण किए हुए मन-बुद्धि से युक्त होकर तू निःसंदेह मुझको ही प्राप्त होगा॥8.7॥
जय श्री कृष्ण
ReplyDeleteJai shri shri krishna
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा
ReplyDeleteजय श्रीकृष्ण
ReplyDeleteJai shree krishna.
ReplyDeleteजय जय श्री कृष्णा 🙏🏻
ReplyDeletejai govinda
ReplyDeleteहरे कृष्णा 😊🙏🏻
ReplyDelete🌹🙏गोविंद🙏🌹
ReplyDeleteअपने आप को गोविंद को समर्पण करना ही
गोविंद को पाना है । समर्पण के लिये शक्ति
गोविंद ही प्रदान करेंगें🌹🙏हे गोविंद🙏🌹
Jai shree krishna
ReplyDelete