होलिका दहन 2023
ऋतुराज वसंत में मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण पर्व होली का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है। यह उत्तर भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है, जो आज लगभग सम्पूर्ण विश्वभर में मनाया जाने लगा है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। प्रथम दिन होलिका दहन की परंपरा है। इस दिन होलिका जलायी जाती है।
यू तो होलिका दहन की चार अलग अलग कथाओं का पौराणिक महत्व पढ़ने में आता है - जैसे प्रथम होलिका एवम भक्त प्रहलाद की कथा, दूसरी कामदेव और शिव जी से जुड़ी कथा तीसरी राजा पृथु एवम राक्षसी ढूडी, अंतिम श्रीकृष्ण पूतना की कथा परंतु अधिकतर लोग भक्त प्रहलाद और उनकी बुआ पूतना की कथा को जानते हैं और मान्यता देते है।
होलिका एवम भक्त प्रहलाद की कथा
जैसा कि पुराणों में वर्णित है कि एक बार की बात है त्रैलोक्य पर विजय प्राप्ति के लिए हिरण्यकश्यपु ब्रह्मा की तपस्या में लीन था। असुरराज हिरण्यकशिपु की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे वर मांगने को कहा तो उसने कहा कि अमरता का वरदान चाहिए। ब्रह्माजी ने कहा कि यह संभव नहीं कुछ और मांगों, तो उसने कहा कि ‘आपके बनाए किसी प्राणी, मनुष्य, पशु, देवता, दैत्य, नागादि किसी से मेरी मृत्यु न हो। मैं समस्त प्राणियों पर राज्य करूं। मुझे कोई न दिन में मार सके न रात में, न घर के अंदर मार सके न बाहर। यह भी कि कोई न किसी अस्त्र के प्रहार से और न किसी शस्त्र के प्रहार मार सके। न भूमि पर न आकाश में, न पाताल में न स्वर्ग में।' ब्रह्माजी तथास्तु कहकर उसे वर प्रदान करके अंतर्धान हो गए।
हिरण्यकशिपु जब तपस्या में लीन था तब उसी दौरान देवों ने असुरों पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया था और देवराज इन्द्र हिरण्यकशिपु की गर्भिणी पत्नी 'कयाधु' को बंधी बनाकर ले जा रहे थे, परंतु बीच रास्ते में ही उनकी मुलाकात देवऋषि नारद से हुई। नारदजी ने इंद्र को उपदेश दिया कि आप ये पाप कर रहे हैं। उपदेश सुनकर इंद्र हिरण्यकशिपु की पत्नी कयाधु को महर्षि के आश्रम में छोड़कर स्वयं देवलोक चले गए। गर्भवती कयाधु को नारद ने विष्णु भक्ति और भागवत तत्व से अवगत कराया। यह ज्ञान गर्भ में पल रहे पुत्र प्रहलाद ने भी प्राप्त किया।
इधर, हिरण्यकश्यप जब लौटा तो इस वरदान ने उसके भीतर अजर-अमर होने का भाव उत्पन्न हो गया। इसके चलते उसने धरती पर अत्याचार शुरू कर दिया था। उसने देवों को अपना दास बनाया। ऋषि-मुनियों व भगवद भक्तों को तंग करने लगा, यज्ञों को नष्ट-भ्रष्ट करने लगा। उसने आदेश दिया कि उसके राज्य में किसी भी देवता की पूजा नहीं होगी। उसने कहा कि 'हिरण्याय नमः' के अतिरिक्त अन्य किसी भी मंत्र का नहीं किया जाएगा। पूरे राज्य में स्वयं उसी की पूजा की जाए, अन्य किसी की नहीं। जो ऐसा नहीं करे उन्हें वह मार दिया जाए। उचित समय पर बाद में प्रहलाद का जन्म हुआ तो राज्य में खुशियां मनाई गई। हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। प्रहलाद का उपनयन संस्कार करके उसे गुरुकुल भेजा गया। कुछ समय बाद हिरण्यकश्यप को यह जानने की उत्सुकता हुई की गुरुकुल में मेरे पुत्र क्या सीख रहे हैं। उसने प्रहलाद को बुलाकर पूछा तुमने गुरुकुल में क्या सीखा?
प्रहलाद ने कहा कि भगवान विष्णु की नवविध भक्त सीखी। अपने पुत्र के मुख से अपने शत्रु विष्णु का नाम सुनकर हिरण्यकश्यपु क्रोधित हो गया। कई बार समझाने पर भी प्रहलाद ने विष्णु की पूजा पाठ बंद नहीं की तो इससे क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपने गुरु को बुलाकर कहा कि ऐसा कुछ करो कि यह विष्णु का नाम रटना बंद कर दे। गुरु ने बहुत कोशिश की किन्तु वे असफल रहे। तब असुरराज ने अपने पुत्र की हत्या का आदेश दे दिया। सैनिकों द्वारा उसे विष दिया गया, उस पर तलवार से प्रहार किया गया, विषधरों के सामने छोड़ा गया, हाथियों के पैरों तले कुचलवाना चाहा, पर्वत से नीचे फिंकवाया, लेकिन श्रीहरि विष्णु कृपा से प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। उल्लेखनीय है कि फाल्गुन शुक्ल सप्तमी को प्रहलाद को बंदी बनाकर पूरे आठ दिन तक त्रास दिया गया। हर तरह से मारने का प्रयास किया।
हिरण्यकश्यपु को चिंता होने लगी की यह नहीं मरा तो लोग विष्णु की ही भक्ति करने लगेंगे। उसकी चिंता को देखकर उसकी बहन होलिका ने कहा कि आप चिंता ना करें भैया, मुझे ब्रह्मा से वरदान प्राप्त है कि मैं किसी भी प्रकार से अग्नि में जलकर नहीं मर सकती हूं। अग्नि में तो सभी भस्म हो ही जाते हैं। तब हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से कहा कि तुम प्रहलाद को अपनी गोदी में लेकर अग्नि में बैठ जाओ, जिससे वह जलकर भस्म हो जाएगा।
होलिका को वरदान था कि उसे अग्नि तब तक कभी हानि नहीं पहुंचाएगी, जब तक कि वह किसी सद्वृत्ति वाले मानव का अहित करने की न सोचे। होलिका यह बात भूल गई थी। वह अपने भाई की बात को मानकर अपने भतीजे प्रहलाद को गोदी में लेकर अग्नि में बैठ गई। उस दिन फाल्गुन माह की पूर्णिमा थी। सद्वृत्ति वाले प्रहलाद का अहित करने के प्रयास में होलिका तो स्वयं जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद श्रीहरि विष्णु का नाम जपते हुए अग्नि से बाहर आ गया। यह देखकर तो हिरण्यकश्यपु और भी ज्यादा क्रोधित और चिंतित हो गया। इस घटना के बाद हिरण्यकश्यपु ने प्रहलाद को एक खंभे से बांध दिया। फिर भरी सभा में प्रहलाद से पूछा, ‘किसके बलबूते पर तू मेरी आज्ञा के विरुद्ध कार्य करता है?’ प्रहलाद ने कहा, ‘आप अपना असुर स्वभाव छोड़ दें। सबके प्रति समता का भाव लाना ही भगवान की पूजा है।'
हिरण्यकश्यपु ने क्रोध में कहा, ‘तू मेरे सिवा किसी और को जगत का स्वामी बताता है। कहां है वह तेरा जगदीश्वर? क्या इस खंभे में है जिससे तू बंधा है?’ यह कहकर हिरण्यकश्यपु ने खंभे में घूंसा मारा। तभी खंभा भयंकर आवाज करते हुए फट गया और उसमें से एक भयंकर डरावना रूप प्रकट हुआ, जिसका सिर सिंह का और धड़ मनुष्य का था। पीली आंखें, बड़े-बड़े नाखून, विकराल चेहरा और तलवार-सी लपलपाती जीभ। यही ‘नरसिंह अवतार’ थे। उन्होंने तेजी से हिरण्यकश्यप को पकड़ लिया और संध्या की वेला में (न दिन में, न रात में), सभा की देहली पर (न बाहर, न भीतर), अपनी जांघों पर रखकर (न भूमि पर, न आकाश में), अपने नखों से (न अस्त्र से, न शस्त्र से) उसका कलेजा फाड़ डाला। हजारों सैनिक जो प्रहार करने आए, उन्हें भगवान नृसिंह ने हजारों भुजाओं और नखरूपी शस्त्रों से खदेड़कर मार डाला। क्रोध से भरे नृसिंह भगवान सिंहासन पर जा बैठे। तब प्रहलाद ने दंडवत होकर उनकी प्रार्थना-पूजा की। प्रहलाद का राजतिलक करने के बाद नृसिंह भगवान चले गए।
कामदेव और शिव जी की होलिका से जुड़ी कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, देवी पार्वती शिव जी से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन तपस्या में लीन शिव का ध्यान उनकी ओर नहीं गया। पार्वती की इन कोशिशों को देखकर प्रेम के देवता कामदेव आगे आए और उन्होंने शिव पर पुष्प बाण चला दिया, जिसके कारण शिव की तपस्या भंग हो गई। तपस्या भंग होने की वजह से शिव नाराज हो गए और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी और उनके क्रोध की अग्नि से कामदेव भस्म हो गए।
श्रीकृष्ण और पूतना की पौराणिक और प्रामाणिक कथा
वसुदेव का विवाह कंस की बहन देवकी से हुआ। कंस जब देवकी और वसुदेव को रथ पर बैठाकर उनके घर छोड़ने जा रहा था तो रास्ते में आकाशवाणी द्वारा उसे पता चला कि वसुदेव और देवकी का आठवां पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। बस फिर क्या था कंस ने दोनों को मथुरा के कारागार में डाल दिया।
देवकी के छ: पुत्रों को कंस ने मार दिया था और सातवें पुत्र जो कि शेष नाग के अवतार बलराम थे। उनके अंश को योगमाया ने जन्म से पूर्व ही वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया था। फिर श्रीकृष्ण का अवतार आठवें पुत्र के रूप में हुआ। उसी समय वसुदेव ने रात में ही श्रीकृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के यहां पहुंचा दिया और उनकी नवजात कन्या (योगमाया) को अपने साथ ले आए।
परन्तु कंस उस कन्या का वध नहीं कर सका और फिर से आकाशवाणी हुई कि तुझे मारने वाला तो गोकुल मैं पहुंच गया है। इसी कारण कंस ने उस दिन गोकुल में जन्में सभी बच्चों को मारने के आदेश दे दिया। परंतु कोई भी श्रीकृष्ण के पास तक नहीं पहुंच सका। तब बालकृष्ण की हत्या करने का काम राक्षसी पूतना को सौंपा गया। उल्लेखनीय है कि पूर्व जन्म में पूतना राजा बलि की पुत्री रत्नबाला थी। वह राजकन्या थी। राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगने के लिए भगवान वामन आए तो उनका रूप सौन्दर्य देखकर उस राजकन्या को हुआ कि 'मेरी सगाई हो गई है। काश, मुझे ऐसा ही बेटा हो तो मैं गले लगाऊं और उसको अपना खूब दूध पिलाऊं।' परंतु जब नन्हा मुन्ना वामन विराट हो गया और उसने बलि राजा का सर्वस्व छीन लिया तो वह क्रोधित हो गई "मैं इसको दूध पिलाऊं? नहीं इसको तो मैं जहर पिलाऊं, जहर!'... भगवान ने उसकी मंशा जान ली और कहा तथास्तु।
बाद में वही राजकन्या पूतना बनी। पूतना सुंदर नारी का रूप बनाकर बालकृष्ण को विष का स्तनपान कराने गई लेकिन बालकृष्ण के द्वार उसका स्तनपान करने से उसको भयंकर पीड़ा उत्पन्न हुई और वह बालकृष्ण को अपने स्तन से छुड़ाने लगी परंतु यह संभव नहीं हो पाया। कराहते हुए उसने अपना असली रूप धारण किया और चीखती हुई श्रीकृष्ण को लेकर आकाश में पहुंच गई। यह दृश्य देखकर माता यशोदा और माता रोहिणी सहित नगर के सभी लोग घबरा गए और उसके पीछे दौड़े। पूतना कराहते हुए चीखती रहती है। अंतत: वह भूमि पर गिरकर मर जाती है। दूध पीने के बाद बालकृष्ण उसकी छाती पर बैठ जाते हैं। सभी लोग वहां पहुंचते हैं। यशोदा और रोहिणी कहती हैं कोई बचाओ मेरे लल्ला को। तब एक ग्रामीण पूतना की छाती पर चढ़कर जैसे-तैसे लल्ला को नीचे उतार लाता है। यशोदा लल्ला को गले लगा लेती है।
बाद में नंद आते हैं तो उनको इस घटना का पता चलता है। फिर एक बूढ़ी महिला कहती है कि ऐसी राक्षसी के हाथों बच जाना तो कोई दैवीय चमत्कार है। ऋषि शांडिल्य से कहकर पूजा और दान करवाओ और उत्सव मनाओ।
जिस दिन राक्षसी पूतना का वध हुआ था उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी। अत: बुराई का अंत हुआ और इस खुशी में समूचे नंदगांववासियो ने खूब जमकर रंग खेला, नृत्य किया और जमकर उत्सव मनाया। तभी से होली में रंग और भंग का समावेश होने लगा।
होलिका दहन का यह महत्व है कि यदि इंसान के अंदर मजबूत इच्छा शक्ति हो तो वह अपने अंदर की किसी भी बुराई को समाप्त कर सकता है। तो हम सब भी आज की होलिका दहन में अपने अपने अंदर की बुराइयों को जला दें। होलिका दहन के साथ ही सभी के दुखों, कष्टों और गमों दहन हो जाये।
सभी को होलिका दहन की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
Happy Holi
ReplyDelete*बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक होलिका दहन की हार्दिक शुभकामनाएं।*
ReplyDeleteआपको भी रंगों के त्योहार रंगोत्सव की अनंत शुभकामनाएं आपके समस्त परिवार के जीवन मे खुशियो के कामयाबी के रंग सदैव सरोवर बने रहे 🙏
ReplyDeleteHpy holi ji
ReplyDeleteHappy holi
ReplyDeleteHappy Holi
ReplyDeleteअंदर की बुराइयों को होली की आग में जलाकर भस्म कर दें,होली की हार्दिक शुभ कामनाएं।
ReplyDeleteHappy Holika Dahan
ReplyDeleteHappy Holi..
ReplyDeleteशुभ होली।
ReplyDelete1. इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि हमें प्रभु की भक्ति को समझना चाहिए। प्रभु के अलावा किसी को ईश्वर नहीं मानना चाहिए। जिस तरह की प्रहलाद ने ईश्वर की भक्ति को ही सर्वोपरि माना।
ReplyDelete2. हमें कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए। खुद को ही सबकुछ मानकर नहीं चलना चाहिए। नास्तिकता के विचार त्याग देना चाहिए। जिस तरह की हिरण्यश्यप ने घमंड किया तो उसका नाश हो गया।
3. ईश्वर की भक्ति में ही शक्ति है उससे जीवन की सभी समस्याओं का हल हो जाता है। यदि आपमें दृढ़ समर्पण भाव है तो ईश्वर जरूर आपकी रक्षा करेगा। जिस तरह की भक्त प्रहलाद पर इतने संकट आए फिर भी वे अपनी भक्ति में दृढ़ थे।
4. अपनी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए जिस तरह की होलिका ने किया। अपनी शक्तियों को सर्वहित में लगाएं।
5. इसके अलावा अगर आप चाहे तो विगत वर्षों के बुरे अनुभवों और असफलताओं को एक कागज पर लिखकर अग्नि को समर्पित कर दें। अपने मन में चल रहे नकारात्मक भावों को होली दहन में डाल दें। तभी आप भी सकारात्मकता सोच से आगे बढ़ते हुए प्रहलाद की तरह ईश कृपा के पात्र बन जाएंगे।
होलिका दहन की बहुत बहुत बधाई🙏
ReplyDeleteHappy Holi
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