बिना विचारे जो करे
अपरीक्ष्य न कर्तव्यं कर्तव्यं सुपरीक्षितम् । पश्चाद्भवति सन्तापो ब्राह्मण्या न कुलाद्य यथा ।
अपरीक्षित काम का परिणाम बुरा होता है
एक बार देवशर्मा नाम के ब्राह्मण के घर जिस दिन पुत्र का जन्म हुआ उसी दिन उसके घर में रहने वाली नकुली ने भी एक नेवले का जन्म दिया । देवशर्मा की पत्नी बहुत दयालु स्वभाव की स्त्री थी। उसने उस छोटे नेवले को भी अपने पुत्र के समान ही पाला-पोसा और बड़ा किया। यह नेवला सदा उसके पुत्र के साथ खेलता था। दोनों में बड़ा प्रेम था। देवशर्मा की पत्नी भी दोनों के प्रेम को देखकर प्रसन्न थी। किन्तु उसके मन में यह शंका हमेशा रहती थी कि कभी यह नेवला उसके पुत्र को न काट खाए। पशु के बुद्धि नहीं होती, मूर्खतावश वह कोई भी अनिष्ट कर सकता है।
एक दिन इस आशंका का बुरा परिणाम निकल आया। उस दिन देवशर्मा की पत्नी अपने पुत्र को एक वृक्ष की छाया में सुलाकर स्वयं पास के जलाशय से पानी भरने गई थी। जाते हुए वह अपने पति देवशर्मा से कह गई थी कि वहीं ठहरकर वह पुत्र की देख-रेख करे, कहीं ऐसा न हो कि नेवला उसे काट खाए। पत्नी के जाने के बाद देवशर्मा ने सोचा कि नेवले और बच्चे में गहरी मैत्री है, नेवला बच्चे को हानि नहीं पहुँचाएगा। यह सोचकर वह अपने सोए हुए बच्चे और नेवले को वृक्ष की छाया में छोड़कर स्वयं भिक्षा के लिए लोभ से कहीं चल पड़ा।
दैववश उसी समय एक काला नाग पास के बिल से बाहर निकला । नेवले ने उसे देख लिया। उसे डर हुआ कि कहीं यह उसके मित्र को न इस ले, इसलिए वह काले नाग पर टूट पड़ा, और स्वयं बहुत क्षत-विक्षत होते हुए भी उसने नाग के खण्ड-खण्ड कर दिए। साँप के मरने के बाद वह उसी दिशा में चल पड़ा, जिधर देवशर्मा की पत्नी पानी भरने गई थी। उसने सोचा कि वह उसकी वीरता की प्रशंसा करेगी, किन्तु हुआ उसके विपरीत । उसकी खून से सनी देह को देखकर ब्राह्मणी-पत्नी का मन उन्हीं पुरानी आशंकाओं से भर गया कि कहीं इसने उसके पुत्र की हत्या न कर दी हो। यह विचार आते ही उसने क्रोध से सिर पर उठाए घड़े को नेवले पर फेंक दिया। छोटा-सा नेवला जल से भरे घड़े की चोट खाकर वहीं मर गया। ब्राह्मण-पत्नी वहाँ से भागती हुई वृक्ष के नीचे पहुँची। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि उसका पुत्र बड़ी शान्ति से सो रहा है और उससे कुछ दूरी पर एक काले साँप का शरीर खण्ड-खण्ड हुआ पड़ा है। तब उसे नेवले की वीरता का ज्ञान हुआ। पश्चात्ताप से उसकी छाती फटने लगी।
इस बीच ब्राह्मण देवशर्मा भी वहाँ आ गया। वहाँ आकर उसने अपनी पत्नी को विलाप करते देखा तो उसका मन भी सशंक्ति हो गया। किन्तु पुत्र को कुशलतापूर्वक सोते देख उसका मन शान्त हुआ। पत्नी ने अपने पति देवशर्मा को रोते-रोते नेवले की मृत्यु का समाचार सुनाया और कहा- मैं तुम्हें यहीं ठहराकर बच्चे की देखभाल के लिए कह गई थी। तुमने भिक्षा के लोभ से मेरा कहना नहीं माना। इसी से यह परिणाम हुआ।
मनुष्य को अतिलोभ नहीं करना चाहिए। अतिलोभ से कई बार मनुष्य के मस्तक पर चक्र लग जाता है?
ब्राह्मण ने पूछा- यह कैसे ? ब्राह्मणी ने तब निम्न कथा सुनाई:
लालच बुरी बला
To be continued...
बचपन से ही हम सुनते आए हैं लालच बुरी बला। हमे अपनी इन्द्रियों को नियंत्रण में रखना चाहिए। इससे हम कभी अति लोभ के शिकार नही होंगे।
ReplyDeleteकिसी भी देश,काल और परिस्थिति में हमे बहुत सोच विचारकर निर्णय लेना चाहिए।
ReplyDeleteसबका दिल जीत लिया.
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteVery nice..
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteAchii kahani
ReplyDeleteबिना विचारे जो करे सो पंजे पछताय।लालच बुरी बला है।
ReplyDeleteबिल्कुल सत्य 👌👌
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteVery nice story 👏🏻👏🏻
ReplyDeleteबुद्धि का सही उपयोग ही सफलता और असफलता के बीच का अंतर है🙏🏻
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