तिमूर या टिमरू (Winged prickly)
उत्तराखंड को देव भूमि का दर्जा प्राप्त है। इस देवभूमि को प्रकृति ने भी कई चमत्कारिक औषधियों से नवाजा है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में ऐसी ढेरों महत्वपूर्ण वनस्पतियां मौजूद है जो औषधीय गुणों से युक्त हैं। उत्तराखंड के दूरदराज इलाकों में रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल की जाने वाली इन वनस्पतियों के इस्तेमाल के बारे में लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी से अवगत हैं। तिमुर को यहां के स्थानीय लोग पहाड़ी नीम कहते हैं।
जिस तरह मैदानी इलाकों के लोग नीम की दातून प्रयोग में लाते हैं उसी तरह उत्तराखण्ड के पहाड़ों में तिमूर/टिमरू या अखरोट के दातुन इस्तेमाल किए जाते थे। पहाड़ों में दूर-दराज इलाकों में लोग रोजमर्रा के जीवन में इन वनस्पतियों का इस्तेमाल कर खुद को सेहतमंद रखते हैं।
तिमुर क्या है?
तिमूर/टिमरू रूटेसी (Rutaceae) फैमिली का काटेंदार पौधा है जिसका वानस्पतिक नाम जेंथेजाइलम अरमेटम (Zanthoxylum armatum) हैं। तिमोर के वृक्ष की लंबाई 10 से 12 मीटर होती है, जिसका हर हिस्सा औषधीय गुणों से युक्त है। तना, लकड़ी, छाल, फूल, पत्ती से लेकर बीज तक दिव्य गुणों से भरपूर है। घने और अधिक ऊँचाइयों पर, अक्सर खुली ढलानों और चट्टान के मैदानों पर, 2,400 मीटर तक की ऊँचाई पर विस्तृत पर्यावरणीय सहिष्णुता वाला पौधा, जो समशीतोष्ण से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों तक पाया जाता है। पुरानी लकड़ी पर फूल बनते हैं। तिमूर/टिमरू भारत, नेपाल, भूटान व उत्तरी अमेरिका व अन्य देशों में पाया जाता है।
जानते हैं तिमुर के फायदे नुकसान उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में
बुखार, अपच और हैजा के उपचार में इनका उपयोग एक खुशबूदार टॉनिक के रूप में किया जाता है। 7 - 14 बीजों का काढ़ा फोड़े-फुंसियों, गठिया, घाव, जठरशोथ, सूजन आदि के उपचार में प्रयोग किया जाता है। दांत दर्द से राहत पाने के लिए बीजों का पेस्ट दांतों के बीच लगभग 10 मिनट तक लगाया जाता है। पत्तियों को एक मसाला के रूप में उपयोग किया जाता है। पत्तियों का एक पेस्ट घाव के लिए बाहरी रूप से लगाया जाता है। फल, शाखाएँ और काँटे मादक और रूखे माने जाते हैं। वे दांत दर्द के लिए एक उपाय के रूप में उपयोग किए जाते हैं। छाल में निहित राल, और विशेष रूप से जड़ों में, शक्तिशाली रूप से उत्तेजक और टॉनिक है। जड़ को पानी में लगभग 20 मिनट तक उबाला जाता है और छना हुआ पानी एक कृमिनाशक के रूप में पिया जाता है। पेट के दर्द से राहत पाने के लिए पत्तियों का आसव पिया जाता है। पत्तियों के पेस्ट को ल्यूकोडर्मा के इलाज के लिए बाहरी रूप से लगाया जाता है।
दातों और मसूड़ों के लिए
- यह दांतों के लिए विशेष रूप से दंत मंजन, दंत लोशन और और दातुन के तौर पर प्रयोग में लाया जाता है। यह एक कांटेदार पेड़ है जिस पर छोटे-छोटे फल लगते हैं तथा इन फलों को चबाने पर झाग बनता है या दाद की अचूक औषधि है दांत से संबंधित किसी भी प्रकार की समस्या इस की टहनी से दातुन करने से और दानों को चबाने से ठीक होती है।
- पायरिया की समस्या के लिए भी इसे बेहतरीन औषधि के रूप में जाना जाता है।
बुखार होने पर
तिमूर बुखार में उपयोगी है। इसके तेल में ‘लीनानूल’ नाम का कैमिकल होता है, जो ‘एंटीसेप्टिक’ का काम करता है। अस्थमा, ब्रोकाइटिस, बुखार, स्किन डिजीज़, कोलेरा जैसी बीमारियों में ये लाभदायक होता है।
कब्ज की समस्या
तिमुर के बीजों को गर्म कपाने क साथ सेवन करने से कब्ज में लाभ होता है साथ ही यह बीज अपच एसिडिटी और खट्टी डकार ओं के लिए भी फायदेमंद है। इसका उपयोग बीजों की चटनी बनाकर भी किया जा सकता है।
मुंह की बदबू
यदि कोई मुंह से दुर्गंध आने की समस्या से परेशान है तो तिमुर के बीजों को पिपरमिंट की तरह चबाने से लाभ होता है इससे मुंह के बदबू कम होती है तथा प्रतिदिन इसके बीजों का उपयोग करने से मसूड़ों और मुंह से आने वाली दुर्गंध में लाभ होता है।
चोट के निशान तथा घाव पर
चोट के निशान को कम करने के लिए तिमोर के बीजों का प्रयोग किया जाता है इसमें एंटीसेप्टिक गुण होता है जो घाव को बढ़ने से रोकता है तथा इसका प्रयोग करने से घाव जल्दी भर जाता है तथा चोट के निशान कम होते हैं। इसके लिए तिमुर के बीजों को पीसकर इसका पाउडर बनाकर प्रभावित हिस्से पर लेप लगाने से लाभ होता है।
एक्यूप्रेशर के लिए
इसकी सूखी टहनी शरीर में जोड़ों पर अच्छा दबाव बनता है। इस वजह से ये एक्यूप्रेशर के काम में ली जाती है।
अन्य भाषाओँ में तिमूर का नाम
गढ़वाल - टिमरू
कुमाऊँ - तिमुर
हिंदी में तेजबल,
संस्कृत - तुम्वरु, तेजोवटी
जापानी - किनोमे
नेपाली - टिमूर
यूनानी - कबाब.ए.खंडा
नेपाली - धनिया
तिमूर के बारे में कुछ अन्य बातें
उत्तराखंड के गाँव में आज भी कई लोग इसकी शाखाओं से टूथपेस्ट करते हैं। तिमूर/टिमरू औषधीय गुणों से युक्त है, साथ ही साथ इसका धार्मिक और घरेलू महत्व भी है। यही नहीं, गाँव में लोंगो की बुरी नजर से बचने के लिए वे तने को काटकर अपने घरों में रखते हैं। गाँव के लोग इसकी पत्तियाँ गेहूँ के बर्तनों में डालते हैं, जिससे इससे गेहूँ में कीड़े नहीं लगते हैं। गांवों में कोई शादी हों तो दूल्हे को हल्दी लगाने, नहाने और आरती उतारने के बाद उसे पीले कपड़ो में भिक्षा मांगने को भेजा जाता है। एक झोली और एक लकड़ी का डंडा उसके पास होता है, ये तिमूर/टिमरू की लकड़ी का डंडा होता है। इसका उपयोग इतने तक ही सीमित नही होता है, बल्कि यह और भी बहुत से कार्यो में काम आता है। बद्रीनाथ, केदारनाथ मंदिर में प्रसाद के रूप में टिमरू (इसकी टहनी) चढ़ाया जाता है।
तिमूर के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि जौनपुर का लोकप्रिय और परम्परागत त्योहार मौण मेला में मछली पकड़ने के लिए हजारों लोग नदी में जब कूद जाते हैं, तो इसमें तिमूर का पाउडर डालने का सिलसिला है। तिमूर का पाउडर मछलियों को बेहोश कर देता है, जिसके कारण मछलियां आसानी से पकड़ी जा सकती हैं। वहीं बड़ी संख्या में देसी- परदेसी पर्यटक भी इस मेले को देखने पहुंच रहे हैं।
ग्रामीणों की मानें तो इस मेले का उद्देश्य नदी व पर्यावरण को संरक्षित करना है, ताकि नदी की सफाई हो सके व मछलियों के प्रजजन में मदद मिल सके। जल वैज्ञानिकों की राय एवं कहना है कितिमूर/टिमरू का पावडर जल पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता है, मात्र कुछ समय के लिए मछलियां बेहोश हो जाती हैं और इस दौरान ग्रामीण मछलियों को अपने कुण्डियाड़ा, फटियाड़ा, जाल तथा हाथों से पकड़ते हैं। जो मछलियां पकड़ में नहीं आ पाती हैं वह बाद में ताजे पानी में जीवित हो जाती हैं। वहीं हजारों की संख्या में जब लोग नदी की धारा में चलते हैं तो नदी के तल में जमी काई और गंदगी भी साफ होकर पानी में बह जाती है और मौण मेला होने के बाद नदी बिल्कुल साफ नजर आती है।
इसकी सूखी टहनी शरीर में जोड़ों पर अच्छा दबाव बनता है। इस वजह से ये एक्यूप्रेशर के काम में ली जाती है।
तिमूर के बीज अपने बेहतरीन स्वाद और खुशबू की वजह से मसाले के तौर पर भी इस्तेमाल किये जाते हैं। उत्तराखण्ड में भले ही तिमूर से सिर्फ चटनी बनायी जाती हो लेकिन यह चाइनीज, थाई और कोरियन व्यंजन में बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला मसाला है।
शेजवान पेप्पर (Sichuan pepper,) चाइनीज पेप्पर के नाम से जाना जाने वाला यह मसाला चीन के शेजवान प्रान्त की विश्वविख्यात शेजवान डिशेज का जरूरी मसाला है। मिर्च की लाल-काली प्रजातियों से अलग इसका स्वाद अलग ही स्वाद और गंध लिए होता है। इसका ख़ास तरह का खट्टा-मिंट फ्लेवर जुबान को हलकी झनझनाहट के साथ अलग ही जायका देता है।
चीन के अलावा, थाईलेंड, नेपाल, भूटान और तिब्बत में भी तिमूर का इस्तेमाल मसाले और दवा के रूप में किया जाता है. इन देशों में कई व्यंजनों को शेजवान सॉस के साथ परोसा भी जाता है।
उत्तराखण्ड में तिमूर की लकड़ी को अध्यात्मिक कामों में भी बहुत महत्त्व दिया जाता है, तिमूर की लकड़ी को शुभ माना जाता है। जनेऊ के बाद बटुक जब भिक्षा मांगने जाता है तो उसके हाथ में तिमूर का डंडा दिया जाता है। तिमूर की लकड़ी को मंदिरों, देव थानों और धामों में प्रसाद के रूप में भी चढ़ाया जाता है।
बहुत ही सुंदर जानकारी तिमुर के बारे में।
ReplyDeleteतिमूर के बारे में दुर्लभ जानकारी
ReplyDeleteटिमरू के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी। उत्तराखंड के इस विशेष पौधे के औषधीय एवं आध्यात्मिक गुणों को साझा करने हेतु साधुवाद रूपा जी !
ReplyDeleteNice Info
ReplyDeleteइसका जिक्र मेरे ब्लॉग मै भी है 😄 हालंकि काफी कुछ ज्यादा जानकारी दी है
ReplyDeleteदेवभूमि उत्तराखंड देवताओं की भूमि है जहां देवता गण किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं।
ReplyDeleteतिमूर भी उनमें से एक है जिसके बारे में आपने
विस्तृत जानकारी प्रदान की हैं इसके लिये आपको
ह्रदय से आभार🙏🙏🙏🙏🙏
Very nice information...
ReplyDeleteVery nice information
ReplyDeleteNice information
ReplyDeleteनई जानकारी
ReplyDeleteबहु उपयोगी तिमूर का पेड़।
ReplyDeleteUseful post
ReplyDeleteBahut acchi jankari share ki hai...Maine to kabhi naam bhi nahi suna tha..
ReplyDelete