ऊँची उड़ान
आज जनवरी का अंतिम इतवार। खुशनुमा मौसम है, ना बहुत ज्यादा सर्दी का कहर है ना कहीं गर्मी का कोई एहसास। सामान्यतया फरवरी माह में पड़ने वाला बसंत पंचमी का त्यौहार भी इस साल जनवरी में ही हो गया। पतझड़ के बाद बसंत ने भी दस्तक दे दी। तो प्रस्तुत है मौसम और दिल के जज्बातों के बीच तालमेल बैठाती कुछ पंक्तियाँ !!
माह जनवरी, मौसम शांत और
सर्द है,
सुबह और शाम यहां धुंध भी
बहुत है..
सफर जिंदगी का भाग रहा है
अपने वेग से,
चेहरे पर इस हँसी के पीछे दर्द
बहुत है..
यहां हौसलों ने जिद की है
ऊंची उड़ानों की,
ऊंचे नीचे रास्तों में फिसलन
बहुत है..
बढ़ाये हैं कदम मैंने इस सफर में
तन्हा ही,
जमाने को मेरी हार की तलब
बहुत है..
भरोसे का थामा है मैंने हाथ
इस सफर में,
मंजिलों तक पहुँचने की जिद
बहुत है..
बढ़ते कदमों से चल रहा इक द्वंद
का है ज्वार,
डगर पर सपनो की मीनार बुलंद
बहुत है..
न रुकूँगी, थकूंगी न देखूंगी गुज़रा
लम्हा ऐ जिंदगी,
गुजरे लम्हों ने दिया दर्द
बहुत है..
अब तो जिद है
आगे ही आगे बढ़ने की,
हाथों की लकीरों में कामयाबियां
बहुत हैं..
मंदिर में जाते सुकून की तलाश में,
ReplyDeleteउन्हें ईश्वर पर भरोसा बहुत है।
Waah!! Badhaye hai jo kadam aapne
ReplyDeleteIsko rukne Na Dena
Aapke pankho me jaan bahut hai..
Have a wonderful Sunday
रूपा सिंह !लेखनी में तुम्हारी हाथों की लकीरों में तुम्हारे पुरुषार्थ (प्रयत्न )में संभावनाएं बहुत है तुम उड़ो पंख खोल के ऊंचे और ऊंचे साझा कर रहा हूँ तुहारी ये अप्रतिम रचना अपने ब्लॉग पर जहां बस अब मैं ही अकेला रह गया हूँ सब छोड़के चले गए मैं ब्रांड एम्बेस्डर खुद को समझने का भरम पाले हुए हूँ ये ब्लॉग मेरा नहीं है मैं यहां निमंत्रित की हैसियत से ही आया था :
ReplyDeleteऊंची उड़ान ,अतिथि रचना :रूपा सिंह
रूपा सिंह !लेखनी में तुम्हारी हाथों की लकीरों में तुम्हारे पुरुषार्थ (प्रयत्न )में संभावनाएं बहुत है तुम उड़ो पंख खोल के ऊंचे और ऊंचे साझा कर रहा हूँ तुहारी ये अप्रतिम रचना अपने ब्लॉग पर जहां बस अब मैं ही अकेला रह गया हूँ सब छोड़के चले गए मैं ब्रांड एम्बेस्डर खुद को समझने का भरम पाले हुए हूँ ये ब्लॉग मेरा नहीं है मैं यहां निमंत्रित की हैसियत से ही आया था :
ReplyDeleteऊंची उड़ान ,अतिथि रचना :रूपा सिंह
kabirakhadabazarmein.blogspot.com
जिंदगी के प्रति उत्साह और जोश को प्रदर्शित करती बेजोड़ रचना।
ReplyDeleteशुभ रविवार।
लाजबाब 👌👌
ReplyDeleteHappy Sunday
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना सोमवार 30 ,जनवरी 2023 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
संगीता जी,
Deleteहार्दिक अभिवादन।
पांच लिंकों के आनंद पर इस रचना को साझा करने के लिए आभार।
जिंदगी में उत्साह भरने वाली खूबसूरत कविता।
ReplyDeleteज़िंदा रहना है तो हालात से डरना कैसा,
ReplyDeleteजंग लाज़िम हो तो लश्कर नहीं देखे जाते।
वैसे ही न जाने अब मेरे को क्यों ऐसा लग रहा है कि अब आसमान में चांद निकलेगा नहीं रूपा जी
क्योंकि आजकल धरती पर नजर आ रहा है 😄😄😄
Happy Sunday
ReplyDeleteमहक उठती है हवाएं भी, सिर्फ उनकी यादों से,
ReplyDeleteबता, इस जमीन को गुलाबों की जरूरत क्या है
Happy sunday
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता
ReplyDeleteभरोसे का थामा है मैंने हाथ
ReplyDeleteइस सफर में,
मंजिलों तक पहुँचने की जिद
बहुत है..
कुछ कर गुजरने की प्रेरणा देती सुंदर रचना.. सरसों के फूल जैसी हंसती मुस्कुराती बहुत अच्छी लग रही हैं आप।
Wah Wah kya baat hai
ReplyDeleteवाह…बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteअति सुंदर
ReplyDeleteबढ़ाये हैं कदम मैंने इस सफर में
ReplyDeleteतन्हा ही,
जमाने को मेरी हार की तलब
बहुत है..
वाह!!!
क्या बात...
बहुत सुंदर सृजन।
Very nice...
ReplyDeleteआदरणीया जिज्ञासा सिंह जी ! प्रणाम !
ReplyDeleteयहां हौसलों ने जिद की है .... भरोसे का थामा है मैंने हाथ
सभी के हौसलों को हाथ देती ऐसी हर सदा का बहुत बहुत अभिनन्दन , उत्तम भाव लिए सुन्दर सृजन
भारत माता की जय !
सकारात्मक ऊर्जा में गूँथे शब्द मन में नवीन उत्साह का संचार कर रहे हैं।
ReplyDeleteप्रेरक संदेशयुक्त सुंदर रचना रूपा जी।
सस्नेह।
आत्म विश्वास जगाती कविता।
ReplyDeleteWaah!! Bahut khub 👌👌🏻
ReplyDeleteबाते आप ने बहुत ही हृदय को छू लेने वाली लिखी है आपने आप ऐसे ही सदैव लिखती हरे और दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करती रहे ईश्वर से बस यही कामना है
ReplyDeleteWow❣️
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