संसार पूजता जिन्हें तिलक
जबकि बड़ी सोच समाधान को..❤"
संसार पूजता जिन्हें तिलक,
रोली, फूलों के हारों से ,
मैं उन्हें पूजता आया हूँ
बापू ! अब तक अंगारों से
अंगार,विभूषण यह उनका
विद्युत पीकर जो आते हैं
ऊँघती शिखाओं की लौ में
चेतना नई भर जाते हैं .
उनका किरीट जो भंग हुआ
करते प्रचंड हुंकारों से
रोशनी छिटकती है जग में
जिनके शोणित के धारों से .
झेलते वह्नि के वारों को
जो तेजस्वी बन वह्नि प्रखर
सहते हीं नहीं दिया करते
विष का प्रचंड विष से उत्तर .
अंगार हार उनका, जिनकी
सुन हाँक समय रुक जाता है
आदेश जिधर, का देते हैं
इतिहास उधर झुक जाता है
अंगार हार उनका की मृत्यु ही
जिनकी आग उगलती है
सदियों तक जिनकी सही
हवा के वक्षस्थल पर जलती है .
पर तू इन सबसे परे ; देख
तुझको अंगार लजाते हैं,
मेरे उद्वेलित-जलित गीत
सामने नहीं हों पाते हैं .
-रामधारी सिंह "दिनकर"
क्योकि कोई भी इंसान एक रात में सफल नहीं होता..❤"
रविवार को और भी अधिक खूबसूरत बनाती राष्ट्र कवि दिनकर जी की पंक्तियां।
ReplyDeleteबहुत खूब 👍
ReplyDeleteराष्ट्र कवि रामधारीसिंह दिनकर की
ReplyDeleteकविताओं को जितनी बार पढ़ते है
दिल आनंदित हो जाती है मन मे एक
अजीब सी चाहत पैदा हो जाती है।
है बहुत बरसी धरित्री पर अमृत की धार;
पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार।
भोग लिप्सा आज भी लहरा रही उद्दाम;
बह रही असहाय नर कि भावना निष्काम|
लक्ष्य क्या? उद्देश्य क्या? क्या अर्थ?
यह नहीं यदि ज्ञात तो विज्ञानं का श्रम व्यर्थ।
यह मनुज, जो ज्ञान का आगार;
यह मनुज, जो सृष्टि का श्रृंगार।
छद्म इसकी कल्पना, पाखण्ड इसका ज्ञान;
यह मनुष्य, मनुष्यता का घोरतम अपमान।
इनकी कविताओं को हमलोगों के बीच आज
लाने के लिए हृदय से आपका आभार🙏🙏
सुंदर शब्दों से हौसला अफजाई के लिए हार्दिक आभार 🌷🌷
DeleteNice lines ❤️
ReplyDeleteवाह वाह रूपा जी क्या बात है 😊😊
ReplyDeleteV nice
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteलाजवाब पोस्ट👌👌
ReplyDeleteसही बात है
ReplyDeleteरूपा जी, अब और कितना जिद्दी होना है आपको। बस कीजिए ज्यादा जिद्दी होना भी ठीक नहीं।
ReplyDeleteHappy sundya
ReplyDeleteNice poem....
ReplyDeleteराष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की राष्ट्र भक्तिपूर्ण कविता।
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteबेहद सुंदर 👍🏻 दिनकर जी पर चुनाव भी अति उतम
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteछोटी सोच शंका को जन्म देती है और बड़ी सोच समाधान को
ReplyDeleteसुनना सीख लो तो सहना सीख जाओगे और सहना सीख लिया तो रहना सीख जाओगे तुलना के खेल में मत उलझो क्योंकि इस खेल का कहीं कोई अंत नही जहाँ तुलना की शुरुआत होती है वही से आनँद और अपनापन खत्म होता है deepak