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संसार पूजता जिन्हें तिलक

संसार पूजता जिन्हें तिलक

Rupa Oos ki ek Boond

"छोटी सोच शंकाओ को जन्म देती है, 
जबकि बड़ी सोच समाधान को..❤"

संसार पूजता जिन्हें तिलक,

रोली, फूलों के हारों से ,

मैं उन्हें पूजता आया हूँ

बापू ! अब तक अंगारों से


अंगार,विभूषण यह उनका

विद्युत पीकर जो आते हैं

ऊँघती शिखाओं की लौ में

चेतना नई भर जाते हैं .


उनका किरीट जो भंग हुआ

करते प्रचंड हुंकारों से

रोशनी छिटकती है जग में

जिनके शोणित के धारों से .


झेलते वह्नि के वारों को

जो तेजस्वी बन वह्नि प्रखर

सहते हीं नहीं दिया करते

विष का प्रचंड विष से उत्तर .


अंगार हार उनका, जिनकी

सुन हाँक समय रुक जाता है

आदेश जिधर, का देते हैं

इतिहास उधर झुक जाता है


अंगार हार उनका की मृत्यु ही

जिनकी आग उगलती है

सदियों तक जिनकी सही

हवा के वक्षस्थल पर जलती है .


पर तू इन सबसे परे ; देख

तुझको अंगार लजाते हैं,

मेरे उद्वेलित-जलित गीत

सामने नहीं हों पाते हैं .

-रामधारी सिंह "दिनकर"

Rupa Oos ki ek Boond
"ज़िद्दी बनना सीखो, 
क्योकि कोई भी इंसान एक रात में सफल नहीं होता..❤"

19 comments:

  1. रविवार को और भी अधिक खूबसूरत बनाती राष्ट्र कवि दिनकर जी की पंक्तियां।

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  2. राष्ट्र कवि रामधारीसिंह दिनकर की
    कविताओं को जितनी बार पढ़ते है
    दिल आनंदित हो जाती है मन मे एक
    अजीब सी चाहत पैदा हो जाती है।

    है बहुत बरसी धरित्री पर अमृत की धार;
    पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार।
    भोग लिप्सा आज भी लहरा रही उद्दाम;
    बह रही असहाय नर कि भावना निष्काम|
    लक्ष्य क्या? उद्देश्य क्या? क्या अर्थ?
    यह नहीं यदि ज्ञात तो विज्ञानं का श्रम व्यर्थ।
    यह मनुज, जो ज्ञान का आगार;
    यह मनुज, जो सृष्टि का श्रृंगार।
    छद्म इसकी कल्पना, पाखण्ड इसका ज्ञान;
    यह मनुष्य, मनुष्यता का घोरतम अपमान।

    इनकी कविताओं को हमलोगों के बीच आज
    लाने के लिए हृदय से आपका आभार🙏🙏

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    1. सुंदर शब्दों से हौसला अफजाई के लिए हार्दिक आभार 🌷🌷

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  3. वाह वाह रूपा जी क्या बात है 😊😊

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  4. लाजवाब पोस्ट👌👌

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  5. रूपा जी, अब और कितना जिद्दी होना है आपको। बस कीजिए ज्यादा जिद्दी होना भी ठीक नहीं।

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  6. राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की राष्ट्र भक्तिपूर्ण कविता।

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  7. बेहद सुंदर 👍🏻 दिनकर जी पर चुनाव भी अति उतम

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  8. छोटी सोच शंका को जन्म देती है और बड़ी सोच समाधान को
    सुनना सीख लो तो सहना सीख जाओगे और सहना सीख लिया तो रहना सीख जाओगे तुलना के खेल में मत उलझो क्योंकि इस खेल का कहीं कोई अंत नही जहाँ तुलना की शुरुआत होती है वही से आनँद और अपनापन खत्म होता है deepak

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