श्रीमद्भगवद्गीता || अध्याय दो ~ सांख्ययोग ||
अथ द्वितीयोऽध्यायः ~ सांख्ययोग
अध्याय दो के अनुच्छेद 31 - 38
अध्याय दो के अनुच्छेद 31-38 में क्षत्रिय धर्म और युद्ध करने की आवश्यकता का वर्णन है।
भावार्थ :
तथा अपने धर्म को देखकर भी तू भय करने योग्य नहीं है अर्थात् तुझे भय नहीं करना चाहिए क्योंकि क्षत्रिय के लिए धर्मयुक्त युद्ध से बढ़कर दूसरा कोई कल्याणकारी कर्तव्य नहीं है॥31॥
भावार्थ :
हे पार्थ! अपने-आप प्राप्त हुए और खुले हुए स्वर्ग के द्वार रूप इस प्रकार के युद्ध को भाग्यवान क्षत्रिय लोग ही पाते हैं॥32॥
भावार्थ :
किन्तु यदि तू इस धर्मयुक्त युद्ध को नहीं करेगा तो स्वधर्म और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त होगा ॥33॥
भावार्थ :
तथा सब लोग तेरी बहुत काल तक रहने वाली अपकीर्ति का भी कथन करेंगे और माननीय पुरुष के लिए अपकीर्ति मरण से भी बढ़कर है॥34॥
भावार्थ :
इऔर जिनकी दृष्टि में तू पहले बहुत सम्मानित होकर अब लघुता को प्राप्त होगा, वे महारथी लोग तुझे भय के कारण युद्ध से हटा हुआ मानेंगे॥35॥
भावार्थ : तेरे वैरी लोग तेरे सामर्थ्य की निंदा करते हुए तुझे बहुत से न कहने योग्य वचन भी कहेंगे, उससे अधिक दुःख और क्या होगा?॥36॥
भावार्थ :
या तो तू युद्ध में मारा जाकर स्वर्ग को प्राप्त होगा अथवा संग्राम में जीतकर पृथ्वी का राज्य भोगेगा। इस कारण हे अर्जुन! तू युद्ध के लिए निश्चय करके खड़ा हो जा॥37॥
भावार्थ :
जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुख को समान समझकर, उसके बाद युद्ध के लिए तैयार हो जा, इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को नहीं प्राप्त होगा॥38॥
श्रीमद्भगवद्गीता के सभी अध्यायों को यहाँ क्लिक करके सिलसिलेवार रूप से पढ़ें
Om namo bhagwate vasudeway
ReplyDeleteजय हो 🙏
ReplyDeleteराधे राधे
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteJai shri krishna 🙏🏻 ज्ञान सागर
ReplyDeleteजय हो
ReplyDeleteअति सुंदर।
ReplyDeleteJAI SHREE RADHE KRISHNA
ReplyDeleteJai Shree Krishna 🙏
ReplyDeleteVery Nice.👌👌
ReplyDeleteJai shree Krishna 🙏🙏
ReplyDeleteॐ विष्णु नमः
ReplyDeleteसनातन संस्कृति और उनके धर्मग्रंथ मानव सभ्यता की नींव है।
ReplyDeleteश्री कृष्ण का अर्जुन से संवाद ही गीता की मुख्य विशेषता है।
ReplyDeleteJai ho
ReplyDeleteJai ho.
ReplyDelete