धन सब क्लेशों की जड़ है
दक्षिण देश के एक प्रांत में महिलारोप्य नामक नगर से थोड़ी दूर महादेव जी का एक मंदिर था। वहां ताम्रचूड़ नाम का भिक्षु रहता था। वह नगर में से भिक्षा मांग कर भोजन कर लेता था और भिक्षा शेष को भिक्षा पात्र में रखकर खूटों पर टांग देता था। सुबह उसी भिक्षा शेष में से थोड़ा-थोड़ा अन्य वह अपने नौकरों को बांट देता था और उन नौकरों से मंदिर की लिपाई - पुताई और सफाई कराता था।
एक दिन मेरे कई जाती भाई चूहों ने मेरे पास आकर कहा - स्वामी! वह ब्राह्मण खूंटी पर भिक्षा शेष वाला पात्र टांग देता है, जिससे हम उस पात्र तक नहीं पहुंच सकते। आप चाहे तो खूंटी पर टंगे पात्र तक पहुंच सकते हैं। आपकी कृपा से हमें भी प्रतिदिन उसमें से अन्न - भोजन मिल सकता है।
उनकी प्रार्थना सुनकर मैं उन्हें साथ लेकर उसी रात वहां पहुंच गया। उछलकर मैं खूंटी पर टंगे पात्र तक पहुंच गया। वहां से अपने साथियों को भी मैंने भरपेट अन्न दिया और स्वयं भी खूब खाया। प्रतिदिन उसी तरह से मैं अपना और अपने साथियों का पेट पालता रहा।
ताम्रचूड़ ब्राह्मण ने इस चोरी से बचने का एक उपाय किया। वह कहीं से बांस का डंडा ले आया और रात भर खूंटी पर टंगी पात्र को खटखटाता रहता है। मैं भी बांस से पिटने के डर से पात्र में नहीं जाता था। सारी रात यही संघर्ष चलता रहता।
कुछ दिन बाद उस मंदिर में बृहत्सिफक नाम का एक सन्यासी अतिथि बनकर आया। ताम्रचूड़ ने उसका बहुत सत्कार किया। रात के समय दोनों में देर तक धर्म चर्चा भी होती रही, किंतु ताम्रचूड़ ने उस चर्चा के बीच भी फटे बांस से भिक्षा पात्र को खटखटाने का कार्यक्रम चालू रखा। आगंतुक सन्यासी को यह बात बहुत बुरी लगी। उसने समझा कि ताम्रचूड़ उनकी बात को पूरे ध्यान से नहीं सुन रहा। इसे उसने अपमान समझा। इसीलिए अत्यंत क्रोधाविष्ट होकर उसने कहा - ताम्रचूड़! तू मेरे साथ मैत्री नहीं निभा रहा। मुझसे पूरे मन से बात भी नहीं करता। मैं भी इसी समय तेरा मंदिर छोड़कर दूसरी जगह चला जाता हूं।
ताम्रचूड़ ने डरते हुए उत्तर दिया - मित्र! तू मेरा अनन्य मित्र है। मेरी व्यग्रता का कारण दूसरा है; वह यह है कि वह दुष्ट चूहा खूंटी पर टंगे भिक्षा पात्र में से वस्तुओं को चुरा कर खा जाता है। चूहे को डराने के लिए ही मैं भिक्षा पात्र को खटका रहा हूं। इस चूहे ने तो उछलने में बिल्ली और बंदर को भी मात दे दिया है।
बृहत्सिफक - चूहे का बिल तुझे मालूम है?
ताम्रचूड़ - नहीं, मैं नहीं जानता।
बृहत्सिफक - हो ना हो उसका बिल भूमि में गड़े किसी खजाने के ऊपर है। तभी उसकी गर्मी से वह इतना उछलता है। कोई भी काम अकारण नहीं होता। कूटे हुए तिलों को यदि कोई बिना कुटे तिलों के भाव बेचने लगे तो भी उसका कारण होता है।
ताम्रचूड़ - कूटे हुए तिलों का उदाहरण आपने कैसा दिया?
बृहत्सिफक ने तब कूटे हुए तिलों की बिक्री की यह कहानी सुनाई।
बिना कारण कार्य नहीं
To be continued ...
खजाने में बड़ी ताकत होती
ReplyDeleteक्या बात गजब की इनफार्मेशन है 🥰👍
ReplyDeleteबचपन की यादे ताजा हो जाती है
ReplyDelete,,,,🙏
ReplyDeleteBahut acha
ReplyDeleteअच्छी कहानी
ReplyDeleteGood story
ReplyDeleteVery Nice 👌🏻👍
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteअच्छी कहानी
ReplyDeleteBilkul sahi.
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