हिंगलाज माता मंदिर, पाकिस्तान || Hinglaj Mata Temple, Pakistan ||

हिंगलाज माता मंदिर, पाकिस्तान

हिंगलाज माता मंदिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान  प्रान्त के हिंगलाज में हिंगोल नदी के तट पर स्थित एक हिन्दू मंदिर  है। यह हिन्दू देवी सती को समर्पित 51 शक्ति पीठ में से एक है। यहाँ इस देवी को हिंगलाज देवी या हिंगुला देवी भी कहते हैं।भारत की तरह पाकिस्तान में यह शक्तिपीठ वैष्णो देवी के नाम से प्रसिद्ध है। इस मन्दिर को नानी मंदिर के नामों से भी जाना जाता । पिछले तीन दशकों में इस जगह ने काफी लोकप्रियता पाई है, और यह पाकिस्तान के कई हिंदू समुदायों के बीच आस्था का केन्द्र बन गया है।धर्म शास्त्रों के अनुसार यहां पर देवी सती का ब्रह्मरंध्र (मस्तिष्क) गिरा था। इस शक्तिपीठ को हिंदुओं के साथ-साथ मुसलमान भी इसकी देखरेख करते हैं और इस स्थान को चमत्कारिक मानते हैं। हिंगलाज माता के बारे में इतिहास में 2000 साल से भी पुराना उल्लेख है।

हिंगलाज माता मंदिर, पाकिस्तान || Hinglaj Mata Temple, Pakistan ||

स्थान

 हिंगलाज माता का गुफा मंदिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में लारी तहसील के दूरस्थ पहाड़ी इलाके में एक संकीर्ण घाटी में स्थित है।यह हिंगोल नदी के पश्चिमी तट पर मकरान रेगिस्तान के खेरथार पहाड़ियों की एक श्रृंखला के अंत में बना हुआ है। यह क्षेत्र हिंगोल राष्ट्रीय उद्यान के अंतर्गत आता है।

मंदिर एक छोटी प्राकृतिक गुफा में बना हुआ है, जहां एक मिट्टी की वेदी बनी हुई है। देवी की कोई मानव निर्मित छवि नहीं है, बल्कि एक छोटे आकार के शिला की हिंगलाज माता के प्रति रूप के रूप में पूजा की जाती है। शिला सिंदूर (वर्मी मिलियन) जिसे संस्कृत में हिंगुला कहते हैं, से पुता हुआ है, जो संभवतया इसके नाम हिंगलाज का स्रोत हो सकता है।

हिंगलाज माता मंदिर, पाकिस्तान || Hinglaj Mata Temple, Pakistan ||

हिंगलाज के आस-पास, गणेश देव, माता काली, गुरुगोरख नाथ दूनी, ब्रह्म कुण्ड, तिर कुण्ड, गुरुनानक खाराओ, रामझरोखा बेठक, चोरसी पर्वत पर अनिल कुंड, चंद्र गोप, खारिवर और अघोर पूजा जैसे कई अन्य पूज्य स्थल हैं।

नवरात्रि के 9 दिनों में माता के दरबार में पाकिस्तान के साथ-साथ भारत से भी कई भक्तों पहुंचते हैं और मनोरथ सिद्ध के लिए माथा टेकते हैं । मनोरथ सिद्धि के लिए गुरु नानक देव,दादा मकान और गुरु गोरखनाथ जैसे आध्यात्मिक संघ यहां आ चुके हैं और मां के दर्शन किए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी विवाह मां के दरबार में माथा टेक चुके हैं।

हिंगलाज माता मंदिर, पाकिस्तान || Hinglaj Mata Temple, Pakistan ||

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Hinglaj Mata Temple, Pakistan

Hinglaj Mata Temple is a Hindu temple located on the banks of the Hingol River in Hinglaj, Balochistan province of Pakistan. It is one of the 51 Shakti Peethas dedicated to the Hindu goddess Sati. Here this goddess is also called Hinglaj Devi or Hingula Devi. Like India, this Shaktipeeth is famous in Pakistan as Vaishno Devi. This temple is also known by the names of Nani Mandir. The place has gained immense popularity over the past three decades, and has become a center of faith among many Hindu communities in Pakistan. According to religious scriptures, the Brahmarandhra (brain) of Goddess Sati fell here. This Shaktipeeth is looked after by Hindus as well as Muslims and consider this place to be miraculous. There is a mention about Hinglaj Mata in history for more than 2000 years.

हिंगलाज माता मंदिर, पाकिस्तान || Hinglaj Mata Temple, Pakistan ||

place

 The cave temple of Hinglaj Mata is located in a narrow valley in the remote mountainous area of ​​Lari tehsil in Balochistan province of Pakistan. It is built at the end of a range of Kherthar hills of Makran desert on the western bank of Hingol river. This area comes under Hingol National Park.

The temple is built in a small natural cave, where an earthen altar remains. There is no man-made image of the goddess, but a small rock is worshiped as a representation of Hinglaj Mata. The rock is painted with vermilion (Vermi Million) which is called Hingula in Sanskrit, which may possibly be the source of its name Hinglaj.

Around Hinglaj, there are many other places of worship like Ganesh Dev, Mata Kali, Gurugorakh Nath Dooni, Brahma Kund, Tir Kund, Guru Nanak Kharao, Ramjharokha Bethak, Anil Kund on Chorsi Parvat, Chandra Gopa, Kharivar and Aghor Puja.

हिंगलाज माता मंदिर, पाकिस्तान || Hinglaj Mata Temple, Pakistan ||

During the 9 days of Navratri, many devotees from Pakistan as well as India reach the court of the mother and bow their heads for the accomplishment of the desire. Spiritual associations like Guru Nanak Dev, Dada Makan and Guru Gorakhnath have come here for the purpose of fulfillment and have seen the mother. Former Prime Minister Rajiv Gandhi has bowed his head in the court of the marriage mother.

योग प्राणायाम - कपालभाती || YOGA - Kapalbhati Pranayama {Breathing Exercise} ||

कपालभाती

कपालभाती यह केवल एक प्राणायाम ही नही, बल्कि एक शुद्धी क्रिया भी है, डॉ घोसालकर MBBS ने कपालभाती के विषय में अच्छी जानकारी दी है।

योग प्राणायाम - कपालभाती ||  YOGA - Kapalbhati Pranayama {Breathing Exercise} ||

कपालभाती को बीमारी दूर करनेवाले प्राणायाम के रूप में देखा जाता है। कुछ मरीज ऐसे भी देखे गए हैं, जो बिना बैसाखी के चल नहीं पाते थे, लेकिन नियमित कपालभाती करने के बाद उनकी बैसाखी छूट गई और वे ना सिर्फ चलने, बल्कि दौड़ने भी लगे। 

कपालभाती प्राणायाम के कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं :- 

  1. कपालभाती करने वाला साधक आत्मनिर्भर और स्वयंपूर्ण हो जाता है, कपालभाती से हार्ट के ब्लॉकेजेस् पहले ही दिन से खुलने लगते हैं और 15 दिन में बिना किसी दवाई के वे पूरी तरह खुल जाते हैं। 
  2. कपालभाती करने वालों के हृदय की कार्यक्षमता बढ़ती है, जबकि हृदय की कार्यक्षमता बढ़ाने वाली कोई भी दवा उपलब्ध नही है। 
  3. कपालभाती करने वालों का हृदय कभी भी अचानक काम करना बंद नहीं करता, जबकि आजकल बड़ी संख्या में लोगों की मौत अचानक हृदयाघात से हो रही है। 
  4. कपालभाती करने से शरीरांतर्गत और शरीर के ऊपर की किसी भी तरह की गाँठ गल जाती है, क्योंकि कपालभाती से शरीर में जबर्दस्त उर्जा निर्माण होती है, जो गाँठ को गला देती है, फिर वह गाँठ चाहे ब्रेस्ट की हो अथवा अन्य कही की। ब्रेन ट्यूमर हो अथवा ओव्हरी की सिस्ट हो या यूटेरस के अंदर फाइब्रॉईड हो, क्योंकि सबके नाम भले ही अलग हों, लेकिन गाँठ बनने की प्रक्रिया एक ही होती है। 
  5. कपालभाती से बढा हुआ कोलेस्टेरोल कम होता है। खास बात यह है कि मैं कपालभाती शुरू करने के प्रथम दिन से ही मरीज की कोलेस्टेरॉल की गोली बंद कर दी जाती है। 
  6. कपालभाती से बढा हुआ इएसआर, युरिक एसिड, एसजीओ, एसजीपीटी, क्रिएटिनाईन, टीएसएच, हार्मोन्स, प्रोलेक्टीन आदि सामान्य स्तर पर आ जाते हैं। 
  7. कपालभाती करने से हिमोग्लोबिन एक महीने में 12 तक पहुँच जाता है, जबकि हिमोग्लोबिन की एलोपॅथीक गोलियाँ खाकर कभी भी किसी का हिमोग्लोबिन इतना बढ़ नहीं पाता है। नियमित रूप से किसी प्रशिक्षक की निगरानी में कपालभाती से हीमोग्लोबिन एक वर्ष में 16 से 18 तक हो जाता है। महिलाओं में हिमोग्लोबिन 16 और पुरुषों में 18 होना उत्तम माना जाता है। 
  8. कपालभाती से महिलाओं के मासिक धर्म की सभी शिकायतें एक महीने में सामान्य हो जाती हैं। 
  9. कपालभाती से थायरॉईड की बीमारी एक महीने में ठीक हो जाती है, इसकी गोलियाँ भी पहले दिन से बंद की जा सकती है। 
  10. इतना ही नहीं, बल्कि कपालभाती करने वाला साधक 5 मिनिट में मन के परे पहुँच जाता है। गुड़ हार्मोन्स का सीक्रेशन होने लगता है। स्ट्रेस हार्मोन्स गायब हो जाते है, मानसिक व शारीरिक थकान नष्ट हो जाती है। इससे मन की एकाग्रता भी आती है। 

योग प्राणायाम - कपालभाती ||  YOGA - Kapalbhati Pranayama {Breathing Exercise} ||

कपालभाति के कई विशेष लाभ भी हैं :-

  • कपालभाती से खून में प्लेटलेट्स बढ़ते हैं। व्हाइट ब्लड सेल्स या रेड ब्लड सेल्स यदि कम या अधिक हुए हो तो वे निर्धारित मात्रा में आकर संतुलित हो जाते हैं। कपालभाती से सभी कुछ संतुलित हो जाता है, ना तो कोई अंडरवेट रहता है, ना ही कोई ओव्हरवेट रहता है। अंडरवेट या ओव्हरवेट होना दोनों ही बीमारियाँ है। 
  • कपालभाती से कोलायटीस, अल्सरीटिव्ह कोलायटीस, अपच, मंदाग्नी, संग्रहणी, जीर्ण संग्रहणी, आँव जैसी बीमारियाँ ठीक होती है। काँस्टीपेशन, गैसेस, एसिडिटी भी ठीक हो जाती है। पेट की समस्त बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं। 
  • कपालभाती से सफेद दाग, सोरायसिस, एक्झिमा, ल्युकोडर्मा, स्कियोडर्मा जैसे त्वचारोग ठीक होते हैं। स्कियोडर्मा पर कोई दवाई उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह कपालभाती से ठीक हो जाता है। अधिकतर त्वचा रोग पेट की खराबी से होते है, जैसे जैसे पेट ठीक होता है ये रोग भी ठीक होने लगते हैं। 
  • कपालभाती से छोटी आँत को शक्ति प्राप्त होती है, जिससे पाचन क्रिया सुधर जाती है। पाचन ठीक होने से शरीर को कैल्शियम, मैग्नेशियम, फॉस्फरस, प्रोटीन्स इत्यादि उपलब्ध होने से कुशन्स, लिगैमेंट्स, हड्डियाँ ठीक होने लगती हैं और 3 से 9 महिनों में अर्थ्राइटीस, एस्ट्रो अर्थ्राइटीस, एस्ट्रो पोरोसिस जैसे हड्डियों के रोग हमेशा के लिए ठीक हो जाते हैं। 

योग प्राणायाम - कपालभाती ||  YOGA - Kapalbhati Pranayama {Breathing Exercise} ||

ध्यान रखिये की कैल्शियम, प्रोटीन्स, हिमोग्लोबिन, व्हिटैमिन्स आदि को शरीर बिना पचाए बाहर निकाल देता है क्योंकि केमिकल्स से बनाई हुई इस प्रकार की औषधियों को शरीर द्वारा सोखे जाने की प्रक्रिया हमारे शरीर के प्रकृति में ही नही है। 

हमारे शरीर में रोज 10 % बोनमास चेंज होता रहता है, यह प्रक्रिया जन्म से मृत्यु तक निरंतर चलती रहती है अगर किसी कारणवश यह बंद हुई, तो हड्डियों के विकार हो जाते हैं। कपालभाती इस प्रक्रिया को निरंतर चालू रखती है इसीलिए कपालभाती नियमित रूप से करना आवश्यक है। 

सोचिए, यह सिर्फ एक क्रिया कितनी लाभकारी है, इसीलिए नियमित रूप से कपालभाति करना एक उत्तम व्यायाम प्रक्रिया है। 


एक भी आँसू न कर बेकार (Ek Bhi Aanshu Na Kar Bekar) || Sunday.. इतवार ..रविवार ||

इतवार (Sunday)

Rupa Os ki ek Boond
हर वक़्त जीतने का जज्बा होना चाहिए, 
क्यूंकि किस्मत बदले न बदले पर समय ज़रूर बदलता है..❤

एक भी आँसू न कर बेकार

एक भी आँसू न कर बेकार
जाने कब समंदर मांगने आ जाए!

पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है
यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है,
और जिस के पास देने को न कुछ भी
एक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है!

कर स्वयं हर गीत का श्रृंगार
जाने देवता को कौनसा भा जाय!

चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण
किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं,
आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ
पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैं,       
हर छलकते अश्रु को कर प्यार
जाने आत्मा को कौन सा नहला जाय!

व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की
काम अपने पाँव ही आते सफर में,
वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा
जो स्वयं गिर जाय अपनी ही नज़र में!

हर लहर का कर प्रणय स्वीकार
जाने कौन तट के पास पहुँचा जाए!

- रामावतार त्यागी (Ram Avtar Tyagi)

Rupa Os ki ek Boond
मोती कभी भी किनारे पे खुद नहीं आते, 
उन्हें पाने के लिए समुन्दर में उतरना ही पड़ता है..❤

धन सब क्लेशों की जड़ है : पंचतंत्र

धन सब क्लेशों की जड़ है 

धन सब क्लेशों की जड़ है

दक्षिण देश के एक प्रांत में महिलारोप्य नामक नगर से थोड़ी दूर महादेव जी का एक मंदिर था। वहां ताम्रचूड़ नाम का भिक्षु रहता था। वह नगर में से भिक्षा मांग कर भोजन कर लेता था और भिक्षा शेष को भिक्षा पात्र में रखकर खूटों पर टांग देता था। सुबह उसी भिक्षा शेष में से थोड़ा-थोड़ा अन्य वह अपने नौकरों को बांट देता था और उन नौकरों से मंदिर की लिपाई - पुताई और सफाई कराता था। 

एक दिन मेरे कई जाती भाई चूहों ने मेरे पास आकर कहा - स्वामी! वह ब्राह्मण खूंटी पर भिक्षा शेष वाला पात्र टांग देता है, जिससे हम उस पात्र तक नहीं पहुंच सकते। आप चाहे तो खूंटी पर टंगे पात्र तक पहुंच सकते हैं। आपकी कृपा से हमें भी प्रतिदिन उसमें से अन्न - भोजन मिल सकता है। 

उनकी प्रार्थना सुनकर मैं उन्हें साथ लेकर उसी रात वहां पहुंच गया। उछलकर मैं खूंटी पर टंगे पात्र तक पहुंच गया। वहां से अपने साथियों को भी मैंने भरपेट अन्न दिया और स्वयं भी खूब खाया। प्रतिदिन उसी तरह से मैं अपना और अपने साथियों का पेट पालता रहा। 

धन सब क्लेशों की जड़ है

ताम्रचूड़ ब्राह्मण ने इस चोरी से बचने का एक उपाय किया। वह कहीं से बांस का डंडा ले आया और रात भर खूंटी पर टंगी पात्र को खटखटाता रहता है। मैं भी बांस से पिटने के डर से पात्र में नहीं जाता था। सारी रात यही संघर्ष चलता रहता। 

कुछ दिन बाद उस मंदिर में बृहत्सिफक नाम का एक सन्यासी अतिथि बनकर आया। ताम्रचूड़ ने उसका बहुत सत्कार किया। रात के समय दोनों में देर तक धर्म चर्चा भी होती रही, किंतु ताम्रचूड़ ने उस चर्चा के बीच भी फटे बांस से भिक्षा पात्र को खटखटाने का कार्यक्रम चालू रखा। आगंतुक सन्यासी को यह बात बहुत बुरी लगी। उसने समझा कि ताम्रचूड़ उनकी बात को पूरे ध्यान से नहीं सुन रहा। इसे उसने अपमान समझा। इसीलिए अत्यंत क्रोधाविष्ट होकर उसने कहा - ताम्रचूड़! तू मेरे साथ मैत्री नहीं निभा रहा। मुझसे पूरे मन से बात भी नहीं करता। मैं भी इसी समय तेरा मंदिर छोड़कर दूसरी जगह चला जाता हूं। 

धन सब क्लेशों की जड़ है

ताम्रचूड़ ने डरते हुए उत्तर दिया - मित्र! तू मेरा अनन्य मित्र है। मेरी व्यग्रता का कारण दूसरा है; वह यह है कि वह दुष्ट चूहा खूंटी पर टंगे भिक्षा पात्र में से वस्तुओं को चुरा कर खा जाता है। चूहे को डराने के लिए ही मैं भिक्षा पात्र को खटका रहा हूं। इस चूहे ने तो उछलने में बिल्ली और बंदर को भी मात दे दिया है। 

बृहत्सिफक - चूहे का बिल तुझे मालूम है?

ताम्रचूड़ - नहीं, मैं नहीं जानता। 

बृहत्सिफक - हो ना हो उसका बिल भूमि में गड़े किसी खजाने के ऊपर है। तभी उसकी गर्मी से वह इतना उछलता है। कोई भी काम अकारण नहीं होता। कूटे हुए तिलों को यदि कोई बिना कुटे तिलों के भाव बेचने लगे तो भी उसका कारण होता है। 

ताम्रचूड़ - कूटे हुए तिलों का उदाहरण आपने कैसा दिया?

बृहत्सिफक ने तब कूटे हुए तिलों की बिक्री की यह कहानी सुनाई। 

बिना कारण कार्य नहीं

To be continued ...

तोते के बारे में 23 रोचक तथ्य || 23 Interesting facts about Parrot ||

तोते के बारे में 23 रोचक तथ्य (23 Interesting facts about Parrot)

तोते के बारे में 23 रोचक तथ्य || 23 Interesting facts about Parrot ||
तोता विश्व के सुंदर पक्षियों में से एक है। यह एक बहुत समझदार पक्षी है जिसको प्यार से लोग मिट्ठू भी कहते हैं।  पालतू पक्षी के रूप में तोता दुनियाभर में प्रसिद्ध है। तोता हरे रंग का 10 से 12 इंच लंबा पक्षी है, जिसके गले पर लाल कंठ होता है। तोता की लगभग 398 प्रजातियां पाई जाती हैं। तोता मनुष्यों की बोली की नकल बखूबी करता है। आज यहाँ तोते से जुड़े कुछ रोचक विषय की चर्चा करेंगे।
तोते के बारे में 23 रोचक तथ्य || 23 Interesting facts about Parrot ||
  1. तोते अपने बच्चों का नाम रख लेते हैं और यह नाम उम्र भर चलता है।
  2. तोता एक समझदार पक्षी है, जिसे पालतू बनाकर पाला जाता है, परंतु भारत में तोते को पिंजरे में पालना गैरकानूनी है।
  3. 'ऑस्ट्रेलियन नाइट' तोते को दुनिया का सबसे मायावी और रहस्यमय पक्षी माना गया है। इस प्रजाति के पक्षी को इस सदी में केवल 3 लोगों के द्वारा देखे जाने की पुष्टि हुई है।
  4. तोते के पंख में प्राकृतिक रूप से एंटीबैक्टीरियल तत्व पाए जाते हैं।
  5. तोता ही एकमात्र ऐसा पक्षी है, जो अपने पैरों से खाना पकड़कर ठीक उसी तरह खा सकता है, जैसे हम इंसान अपने हाथों से खाते हैं।
  6. तोते को पढ़ना, गिनना, रंगों और आकृतियों को पहचानना सिखाया जा सकता है।
  7. 1728 शब्द याद करने के लिए, "puck" नामक तोते का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है।
  8. तोते पराबैगनीक प्रकाश को भी देख सकते हैं।
  9. तोते अलग-अलग आकार और वजन के होते हैं। औसतन एक तोता 3.5 से 40 इंच लम्बा और वजन 64 ग्राम से 1.6 किलोग्राम तक हो सकता है। काकापो (Kakapo) तोता दुनिया का सबसे भारी तोता है, इसका औसत वजन 4 किलोग्राम होता है।
  10. दुनिया के सबसे छोटे और हल्के तोते का नाम पिग्मी (Pygmy) है, जिसका औसत वजन 10 ग्राम है।
  11. तोते का जीवनकाल अन्य पक्षियों की तुलना में अधिक होता है। यह 30 से 70 साल तक जीवित रह सकते हैं।तोते के बारे में 23 रोचक तथ्य || 23 Interesting facts about Parrot ||
  12. सबसे अधिक उम्र तक जीवित रहने वाले तोते का नाम कुकी (Cookie) है, जिसकी सन 2016 में 83 वर्ष की आयु में मौत हो गई। इसने अपना लगभग पूरा जीवनकाल ब्रुकफील्ड जू (Brookfield Zoo) में बिताया।
  13. तोते शाकाहारी के साथ-साथ मांसाहारी भी होते हैं। अधिकांशतः तोते भोजन के रूप में बीजों का प्रयोग करते हैं। इसके साथ ही यह फल - फूल और छोटे कीड़े भी खाते हैं। तोते को हरी मिर्ची ज्यादा पसंद होती है। तोते को कभी भी चॉकलेट नहीं खिलाना चाहिए क्योंकि वह उसके लिए जहर का काम करती है। 
  14. तोते की एक प्रजाति ऐसी भी है, जिनमें इनकी चोंच इतनी मजबूत होती है कि यह कठोर नारियल को भी तोड़ सकती हैं। 
  15. अधिकांशतः तोते एक पैर पर खड़े होकर सोते हैं। 
  16. एक तोता एक समय में 2 से 8 अंडे देते हैं, जिन्हें 18 से 30 दिनों तक सेने की आवश्यकता होती है। माता और पिता दोनों मिलकर अंडे को सेते हैं।
  17. तोते के बच्चे पहले दो हफ्तों के लिए अंधे होते हैं। तीसरे सप्ताह में वे अपने पंख विकसित करना शुरू कर देते हैं। 1 से 4 साल बाद ही यह चूजे पूरी तरह परिपक्व हो पाते हैं।
  18. तोते की कई प्रजातियां ऐसी भी हैं, जिनमें नर और मादा एक समान होते हैं। लिंग भेद के लिए रक्त परीक्षण करना पड़ता है।
  19. तोते मिलनसार और सामाजिक पक्षी हैं और इन्हें झुंड में रहना पसंद होता है।तोते के बारे में 23 रोचक तथ्य || 23 Interesting facts about Parrot ||
  20. तोते को अगर लंबे समय तक अकेला छोड़ दिया जाए, तो वह पागल हो सकते हैं। इन्हें प्यार और दुलार की आवश्यकता होती है और यह किसी ना किसी के संपर्क में रहना पसंद करते हैं। इसलिए इन्हें कभी भी लंबे समय तक के लिए अकेले पिंजर में नहीं छोड़ना चाहिए। 
  21. तोते को संगीत सुनना पसंद होता है। वह संगीत की ताल को महसूस कर सकते हैं और समझ भी सकते हैं। 
  22. तोता इतनी गति से उड़ सकता है कि दिल्ली को इधर से उधर 50 मिनट में पार कर सकता है। तोता, चीता (cheetah) जिस गति से दौड़ता है, उस गति से उड़ सकता है। 
  23. एक मजेदार बात यह है कि सन 1800 के अंत में एक स्कॉच व्हिस्की कंपनी ने मार्केटिंग के लिए 500 तोते का इस्तेमाल किया था। उन्होंने अपने प्रचार के लिए कुछ स्लोगन बना कर तोतों को रटवा दिया था और फिर उन्हें अलग-अलग पबों को दे दिया गया था।
तोते के बारे में 23 रोचक तथ्य || 23 Interesting facts about Parrot ||
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23 Interesting facts about Parrot


Parrot is one of the beautiful bird of the world. This is a very intelligent bird, which is affectionately called by people as Mittu. The parrot is famous all over the world as a pet bird. The parrot is a green bird 10 to 12 inches long, with a red throat on its neck. There are about 398 species of parrot. The parrot imitates the speech of humans very well. Today we will discuss some interesting topics related to parrots here.
तोते के बारे में 23 रोचक तथ्य || 23 Interesting facts about Parrot ||
  1. Parrots name their babies and this name lasts for a lifetime.
  2. Parrot is a sensible bird, which is domesticated, but it is illegal to keep a parrot in a cage in India.
  3. The 'Australian Night' parrot is considered the most elusive and mysterious bird in the world. The bird of this species has been confirmed to have been sighted by only 3 people in this century.
  4. Antibacterial ingredients are found naturally in parrot feathers.
  5. The parrot is the only bird that can hold food with its feet and eat it in the same way that we humans eat with our hands.
  6. Parrots can be taught to read, count, recognize colors and shapes.
  7. The name of a parrot named "puck" is recorded in the Guinness Book of World Records, to remember the word 1728.
  8. Parrots can also see ultraviolet light.
  9. Parrots come in different sizes and weights. On average, a parrot can measure between 3.5 and 40 inches long and weigh from 64 grams to 1.6 kilograms. The Kakapo parrot is the heaviest parrot in the world, with an average weight of 4 kg.
  10. The world's smallest and lightest parrot is named Pygmy, whose average weight is 10 grams.
  11. Parrots have longer life span than other birds. It can live for 30 to 70 years.
  12. The name of the longest-living parrot is Cookie, who died in 2016 at the age of 83. It spent almost its entire life at the Brookfield Zoo.
  13. Parrots are herbivores as well as carnivores. Mostly parrots use seeds as food. Along with this, it also eats fruits and flowers and small insects. Parrots like green chillies more. Chocolate should never be fed to a parrot as it acts as a poison for it.
  14. There is also a species of parrot, in which their beak is so strong that it can break even a hard coconut.
  15. Mostly parrots sleep standing on one leg.
  16. A parrot lays 2 to 8 eggs at a time, which require 18 to 30 days to hatch. Both mother and father incubate the egg together.
  17. Parrot babies are blind for the first two weeks. In the third week they start developing their feathers. These chicks are fully mature only after 1 to 4 years.
  18. There are many species of parrots in which the male and female are the same. A blood test has to be done for gender discrimination.
  19. Parrots are friendly and social birds and like to live in flocks.
  20. If a parrot is left alone for a long time, it can go crazy. They need love and affection and like to be in contact with someone or the other. Therefore, they should never be left alone in a cage for long periods of time.
  21. Parrots like to listen to music. He can feel and understand the beat of the music.
  22. A parrot can fly at such a speed that it can cross Delhi here and there in 50 minutes. A parrot can fly at the same speed a Panther runs.
  23. A funny thing is that in the late 1800s, a Scotch whiskey company used 500 parrots for marketing. They made some slogans for their promotion and had parrots rote and then they were given to different pubs.
तोते के बारे में 23 रोचक तथ्य || 23 Interesting facts about Parrot ||

तेनालीराम - जादुई कुएं || Tenali Raman - Jadui kuwen ||

जादुई कुएं

गर्मियों का मौसम शुरू होने वाला था। राजा कृष्णदेव राय ने अपने मंत्री को राज्य में अनेक कुएं बनाने का आदेश दिया। राजा चाहते थे कि गर्मी शुरू होने से पूर्व ही कुएं खुदकर तैयार हो जाएं ताकि लोगों को गर्मियों में पानी की समस्या ना हो।

जादुई कुएं || Jadui kuwen ||

मंत्री ने इस कार्य के लिए शाही कोष से बहुत-सा धन लिया। शीघ्र ही राजा के आदेशानुसार नगर में अनेक कुएं खुदवाए गए। कार्य पूरा होने पर एक दिन राजा ने नगर भ्रमण किया और कुछ कुओं का स्वयं निरीक्षण किया।       

अपने आदेश को पूरा होते देख वे संतुष्ट हो गए। गर्मियों में एक दिन नगर के बाहर से कुछ गांव वाले तेनालीराम के पास पहुंचे, वे सभी मंत्री के विरुद्ध शिकायत लेकर आए थे। तेनालीराम ने उनकी शिकायत सुनी और उन्हें न्याय दिलाने का रास्ता बताया। 

तेनालीराम अगले दिन राजा से मिले और बोले - "महाराज! मुझे विजयनगर में कुछ चोरों के होने की सूचना मिली है। वे हमारे कुएं चुरा रहे हैं। 

इस पर राजा बोले - "क्या बात करते हो, तेनाली! कोई चोर कुएं को कैसे चुरा सकता है?" 

तेनालीराम बोले - "महाराज! यह बात आश्चर्यजनक जरूर है, परंतु सच है। वे चोर अब तक कई कुएं चुरा चुके हैं। तेनालीराम ने बहुत ही भोलेपन से कहा।" 

तेनालीराम की बात को सुनकर दरबार में उपस्थित सभी दरबारी हंसने लगे। महाराज ने कहा -"तेनालीराम! तुम्हारी तबीयत तो ठीक है। आज कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो? तुम्हारी बातों पर कोई भी व्यक्ति विश्वास नहीं कर सकता।"

तेनालीराम बोले - "महाराज! मैं जानता था कि आप मेरी बात पर विश्वास नहीं करंगे, इसलिए मैं कुछ गांव वालों को साथ - साथ लाया हूं। वे सभी बाहर खड़े हैं। यदि आपको मुझ पर विश्वास नहीं है, तो आप उन्हें दरबार में बुलाकर पूछ लीजिए। वे आपको सारी बात विस्तारपूर्वक बता दंगे।" 

राजा ने बाहर खड़े गांव वालों को दरबार में बुलवाया। एक गांव वाला बोला - "महाराज! मंत्री द्वारा बनाए गए सभी कुएं समाप्त हो गए हैं, आप स्वयं देख सकते हैं।" 

राजा ने उनकी बात मान ली और मंत्री, तेनालीराम, कुछ दरबारियों तथा गांव वालों के साथ कुओं का निरीक्षण करने के लिए चल दिए। पूरे नगर का निरीक्षण करने के पश्चात उन्होंने पाया कि राजधानी के आस-पास के अन्य स्थानों तथा गांवों में कोई कुआं नहीं है।

राजा को यह पता लगते देख मंत्री घबरा गया। वास्तव में उसने कुछ कुओं को ही बनाने का आदेश दिया था। बचा हुआ धन उसने अपनी सुख-सुविधाओं पर व्यय कर दिया। अब तक राजा भी तेनालीराम की बात का अर्थ समझ चुके थे। वे मंत्री पर क्रोधित होने लगे, तभी तेनालीराम बीच में बोल पड़े - महाराज! इसमें इनका कोई दोष नहीं है। वास्तव में वे जादुई कुएं थे, जो बनने के कुछ दिन बाद ही हवा में समाप्त हो गए। अपनी बात समाप्त कर तेनालीराम मंत्री की ओर देखने लगे। 

मंत्री ने अपना सिर शर्म से झुका लिया। राजा ने मंत्री को बहुत डांटा तथा उसे सौ और कुएं बनवाने का आदेश दिया। इस कार्य की सारी जिम्मेदारी तेनालीराम को सौंपी गई।

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Jadui kuwen (magic well)

The summer season was about to start. King Krishnadeva Raya ordered his minister to build several wells in the state. The king wanted the wells to be ready by themselves before the onset of summer so that people do not face the problem of water in summer.

जादुई कुएं || Jadui kuwen ||

The minister took a lot of money from the royal treasury for this work. Soon many wells were dug in the city as per the orders of the king. After the completion of the work, one day the king visited the city and inspected some wells himself.

He was satisfied to see his order being fulfilled. One day in the summer, some villagers from outside the city approached Tenaliram, all of them with complaints against the minister. Tenaliram listened to his complaint and told him the way to get justice.

Tenaliram met the king the next day and said - "Maharaj! I have received information about the presence of some thieves in Vijayanagara. They are stealing our wells.

To this the king said - "What are you talking about, Tenali! How can a thief steal a well?"

Tenaliram said - "Your Majesty! This thing is definitely surprising, but it is true. Those thieves have stolen many wells so far. Tenaliram said very naively."

Hearing Tenaliram's words, all the courtiers present in the court started laughing. Maharaj said - "Tenaliram! You are fine. What kind of deceitful talk are you talking about today? No one can believe your words."

Tenaliram said - "Maharaj! I knew that you would not believe me, so I have brought some villagers together. They are all standing outside. If you do not believe in me, you can invite them to the court." Ask. They will tell you everything in detail."

The king called the villagers standing outside to the court. A villager said - "Maharaj! All the wells made by the minister are exhausted, you can see for yourself."

The king agreed to them and the minister, Tenaliram, accompanied by some courtiers and villagers went to inspect the wells. After inspecting the whole city, he found that there is no well in other places and villages around the capital.

Seeing the king knowing this, the minister was terrified. In fact, he had ordered only a few wells to be built. He spent the remaining money on his comforts. By now even the king had understood the meaning of Tenaliram's words. He started getting angry at the minister, when Tenaliram interrupted and said - Maharaj! It's not their fault in this. In fact they were magic wells, which ended up in the air only a few days after they were built. Ending his talk, Tenaliram started looking at the minister.

The minister bowed his head in shame. The king scolded the minister a lot and ordered him to build a hundred more wells. All the responsibility of this work was entrusted to Tenaliram.

जेबुन्निसा, बेहतरीन शायरा जो औरंगजेब की सगी बेटी थी || Zeb-un-Nissa, The best poetry that is Aurangzeb's daughter ||

जेबुन्निसा, औरंगजेब की सगी बेटी

जेबुन्निसा (15 फरवरी 1638 – 26 मई 1702)
औरंगज़ेब (3 नवंबर, 1618 – 3 मार्च 1707)

जेबुन्निसा भारतीय इतिहास के सबसे क्रूर शासक औरंगज़ेब की सगी बेटी थी। मुस्लिम संप्रदाय की होने के बावजूद जेबुन्निसा कृष्ण भक्त थीं और कृष्ण भक्ति में डूबकर काफी सारी रचनाएं भी लिखीं हैं। औरंगजेब पर तो ढेरों किताबों-कहानियां लिखी गईं, लेकिन उनकी बेटी जेबुन्निसा लगभग गुमनामी में रहीं। लोककथाओं में कहीं कहीं जरूर इस राजकुमारी के किस्से दर्ज हैं, जो बेहतरीन शायरा भी थीं। पिता के डर से महफिलों और मुशायरों में छिपकर जाती थीं। 

जेबुन्निसा, बेहतरीन शायरा जो औरंगजेब की सगी बेटी थी

जेबुन्निसा मुगल शासक औरंगजेब और बेगम दिलरस बानो की सबसे बड़ी संतान थीं। जेबुन्निसा के बचपन के बारे में खास जिक्र नहीं मिलता, सिवाय इसके कि उनकी मंगनी अपने चचेरे भाई सुलेमान शिकोह से हुई, लेकिन सुलेमान की कम उम्र में मौत के कारण शादी नहीं हो सकी। 

जेबुन्निसा एक दयालु महिला थी और हमेशा लोगों की ज़रूरत के समय मदद करती थीं। वह संगीत में रुचि लेती थी और कहा जाता है कि वह अपने समय की महिलाओं में सबसे अच्छी गायक थीं। वह हथियारों के इस्तेमाल में भी कुशल थी और उसने युद्ध में कई बार भाग लिया था।

जेबुन्निसा, बेहतरीन शायरा जो औरंगजेब की सगी बेटी थी

जेबुन्निसा का पढ़ने से बहुत लगाव था। दर्शन, भूगोल, इतिहास जैसे विषयों में उन्हें महारत हासिल था। बहुत कम उम्र में ही जेबुन्निसा ने महल की विशाल लाइब्रेरी खंगाल दी थीं और फिर उनके लिए बाहर से भी किताबें मंगवाई जाने लगीं। औरंगजेब को अपनी बुद्धिमती बेटी के खासा लगाव था। वे उसे 4 लाख सोने की अशर्फियां ऊपरी खर्च के लिए दिया करते थे। इन्हीं पैसों से जेबुन्निसा ने ग्रंथों का आम भाषा में अनुवाद भी शुरू करवा दिया। 

वक्त के साथ जेबुन्निसा एक बेहतरीन शायरा के तौर पर उभरीं। यहां तक कि उन्हें मुशायरों में बुलाया जाने लगा, परन्तु  उनके कट्टर पिता को ये बिल्कुल भी मंजूर नहीं था। इसलिए जेबुन्निसा छिपकर महफिलों में शिरकत करने लगी। यहाँ तक कि खुद औरंगजेब के दरबारी कवि जेबुन्निसा को महफिलों में बुलाया करते थे। जेबुन्निसा फारसी में कविताएं लिखतीं थीं और  नाम छिपाने के लिए "मख़फ़ी" नाम से कविताएं लिखा करती थीं। 

कहा जाता है कि जेबुन्निसा ने ऐसे ही किसी कार्यक्रम में बुंदेल महाराजा छत्रसाल को देखा था, तभी से जेबुन्निसा उनसे प्रेम करने लगी। तब जेबुन्निसा ने अपनी एक दासी के हाथों छत्रसाल तक प्रेमपत्र पहुंचाने की कोशिश की, परन्तु वह प्रेम पत्र औरंगज़ेब के हाथों लग गया। तब महाराजा छत्रसाल से अपनी शत्रुता के कारण औरंगज़ेब ने जेबुन्निसा को चुप करवा दिया। 

जेबुन्निसा को छत्रपति शिवाजी महाराज से भी प्रेम हुआ था। जेबुन्निसा ने शिवाजी महाराज की वीरगाथाएं सुनी थी। जब उसने छत्रपति शिवाजी महाराज को आगरा के किले में देखा, तब वह छत्रपति की दीवानी हो गयी। इस बार जेबुन्निसा अपना प्रेम सन्देश छत्रपति तक पहुंचाने में सफल हो गयी, परन्तु छत्रपति शिवाजी महाराज ने उनके प्रेम प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इस बारे में पता चलने पर क्रूर औरंगज़ेब ने अपनी ही बेटी को 1691 में दिल्ली के सलीमगढ़ किले में कैद करवा दिया। 

महलों से सीधे कैद में आई राजकुमारी की हिम्मत तब भी कम नहीं हुई। वे किले में कैद होकर भी गजलें, शेर और रुबाइयां लिखती रहीं. 20 सालों की कैद के दौरान उन्होंने लगभग 5000 रचनाएं कीं, जिसका संकलन उनकी मौत के बाद "दीवान-ए-मख्फी" के नाम से छपा। आज भी ब्रिटिश लाइब्रेरी और नेशनल लाइब्रेरी ऑफ पेरिस में राजकुमारी के लिखी पांडुलिपियां सहेजी हुई हैं। जैबुन्निसा की शख्सियत का अंजादा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि मुगल खानदान में उसके आखिरी शासक बहादुर शाह ज़फर के अलावा जेबुन्निसा की शायरी को ही दुनिया सराहती है। मिर्जा गालिब के पहले वह अकेली शायरा थी जिनकी रुबाइयों, गज़लों और शेरों के अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच, अरबी सहित कई विदेशी भाषाओं में हुए हैं।

20 वर्षों तक किले की दीवारों में सिसकती रही एक खूबसूरत शहजादी

बताया जाता है कि कैद में रहने के दौरान भी जैबुन्निसा को चार लाख रुपये का सालाना शाही भत्ता मिलता था, जिसे वह विद्वानों को प्रोत्साहन देने और प्रतिवर्ष ‘मक्का मदीना’ जाने वालों पर खर्च करती थी।

20 साल तक कैद में रहने के बाद कैद में ही जेबुन्निसा की मृत्यु हो गयी। 

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Zeb-un-Nissa, real daughter of Aurangzeb

Zeb-un-Nissa (15 February 1638 – 26 May 1702)
Aurangzeb (November 3, 1618 – March 3, 1707)

Zebunnisa was the real daughter of Aurangzeb, the most brutal ruler of Indian history. Despite being a Muslim sect, Zebunnisa was a devotee of Krishna and has written many works immersed in Krishna devotion. Many books and stories were written on Aurangzeb, but his daughter Zebunnisa remained almost in oblivion. Somewhere in the folklore, there are definitely tales of this princess, who was also a great poet. Fearing her father, she used to hide in gatherings and mushairas.

Zeb-un-Nissa, The best poetry that is Aurangzeb's daughter

Zebunnisa was the eldest child of the Mughal ruler Aurangzeb and Begum Dilras Bano. There is no specific mention of Zebunnisa's childhood, except that she was engaged to her cousin Suleiman Shikoh, but the marriage could not take place due to Suleiman's early death.

Zebunnisa was a kind woman and always helped people in their times of need. She took interest in music and is said to be the best singer among women of her time. She was also proficient in the use of weapons and participated in the war several times.

Zebunnisa was very fond of reading. He had mastery in subjects like philosophy, geography, history. At a very young age, Zebunnisa had explored the vast library of the palace, and then books were imported for her from outside. Aurangzeb was very fond of his intelligent daughter. They used to give him 4 lakh gold asharfis for overhead expenses. With this money, Zebunnisa also started the translation of texts into common language.

With time, Zebunnisa emerged as a great poet. Even he started being called in Mushairas, but his fanatical father did not approve of it at all. So Zebunnisa started attending the gatherings secretly. Even the court poets of Aurangzeb himself used to invite Zebunnisa to the gatherings. Zebunnisa used to write poems in Persian and used to write poems under the name "Makhfi" to hide her name.

It is said that Zebunnisa had seen Bundela Maharaja Chhatrasal in one such program, since then Zebunnisa fell in love with him. Then Zebunnisa tried to deliver the love letter to Chhatrasal at the hands of one of her maidservants, but that love letter got in the hands of Aurangzeb. Then due to his enmity with Maharaja Chhatrasal, Aurangzeb silenced Zebunnisa.

Zeb-un-Nissa, The best poetry that is Aurangzeb's daughter

Jebunnisa was also in love with Chhatrapati Shivaji Maharaj. Zebunnisa had heard the heroic stories of Shivaji Maharaj. When she saw Chhatrapati Shivaji Maharaj in the fort of Agra, she became crazy about Chhatrapati. This time Zebunnisa was successful in conveying her love message to Chhatrapati, but Chhatrapati Shivaji Maharaj rejected his love proposal. On coming to know about this, the cruel Aurangzeb imprisoned his own daughter in the Salimgarh Fort of Delhi in 1691.

The courage of the princess, who was imprisoned directly from the palaces, did not diminish even then. Even after being imprisoned in the fort, she continued to write Ghazals, Sher and Rubaiyan. During his imprisonment of 20 years, he composed about 5000 works, the compilation of which was published after his death as "Diwan-e-Makhfi". Even today, manuscripts written by the princess are preserved in the British Library and the National Library of Paris.The personality of Zaibunnisa can also be gauged from the fact that apart from her last ruler Bahadur Shah Zafar in the Mughal family, the world appreciates the poetry of Zebunnisa. Before Mirza Ghalib, she was the only poet whose Rubais, Ghazals and Shers have been translated into many foreign languages including English, French, Arabic.

It is said that even while in captivity, Zaibunnisa received an annual royal allowance of four lakh rupees, which she used to encourage scholars and go to Mecca Medina every year.

After being in captivity for 20 years, Zebunnisa died in captivity.

कालीघाट काली मंदिर, कोलकाता || Kalighat Kali Mandir, Kolkata ||

कालीघाट काली मंदिर, कोलकाता

कालीघाट शक्तिपीठ या कालीघाट काली मंदिर पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में स्थित काली देवी का मंदिर है। यह भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है। कोलकाता में देवी शक्ति के कई प्रसिद्ध स्थल हैं, लेकिन कालीघाट में स्थित इस काली मंदिर की महिमा बहुत बड़ी है। इस शक्तिपीठ में स्थित प्रतिमा की प्रतिष्ठा कामदेव ब्रह्मचारी (सन्यास पूर्व नाम जिया गंगोपाध्याय) ने की थी।

कालीघाट काली मंदिर, कोलकाता || Kalighat Kali Mandir, Kolkata ||

कालीघाट काली मंदिर में देवी की प्रतिमा में काली का मस्तक और चार हाथ नजर आते हैं। यह प्रतिमा एक काले पत्थर को तराश कर तैयार की गई है।यहां मां काली की जीभ काफी लंबी है, जो सोने की बनी हुई है, और बाहर निकली हुई है। यहां मां के दांत सोने के हैं। आंखें और सिर गेरुआ रंग के सिंदूर से बने हैं, और माथे पर तिलक भी गेरुआ है। प्रतिमा के हाथ स्वर्ण आभूषणों और गला लाल पुष्प की माला से सुसज्जित है।

इसके अलावा कालीघाट काली मंदिर में कुंडूपुकर नामक एक पवित्र तालाब है, जो मंदिर परिसर के दक्षिण-पूर्व कोने में स्थित है। इस तालाब के पानी को गंगा के समान पवित्र माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पानी में स्नान मात्र से हर मन्नत पूरी हो जाती है।

कालीघाट काली मंदिर, कोलकाता || Kalighat Kali Mandir, Kolkata ||

यह मंदिर काली भक्तों के लिए सबसे बड़ा मंदिर है। यहां की शक्ति 'कालिका' और भैरव 'नकुलेश' हैं। इस मंदिर में देवी काली की प्रचंड रूप की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा में देवी काली भगवान शिव की छाती पर पैर रखी हुई हैं। उनके गले में नर मुंडो की माला है, हाथ में कुल्हाड़ी और कुछ नरमुंड हैं, तथा कमर में भी कुछ नरमुंड बंधे हुए हैं। उनकी जिह्वा (जीभ) निकली हुई है, और जीभ में से कुछ रक्त की बूंदे भी टपक रही हैं। प्रतिमा में जीह्वा स्वर्ण से बनी हुई है।मंदिर में त्रिनैना माता रक्तांबरा, मुंडमालिनी, मुक्तकेशी भी विराजमान हैं। पास ही में नकुलेश का भी मंदिर है।

कुछ अनुश्रुतियों के अनुसार देवी किसी बात पर क्रोधित हो गईं थीं, जिसके बाद उन्होंने नरसंहार करना शुरू कर दिया। उनके मार्ग में जो भी आता वह मारा जाता। उनके क्रोध को शांत करने के लिए स्वयं भगवान शिव उनके मार्ग में लेट गए। देवी ने गुस्से में उनकी छाती पर भी पैर रख दिया, उसी समय उन्होंने भगवान शिव को पहचान लिया और फिर नरसंहार बंद कर दिया।

कालीघाट काली मंदिर, कोलकाता || Kalighat Kali Mandir, Kolkata ||

पौराणिक कथाओं के अनुसार सती के शरीर के अंग प्रत्यंग जहां भी गिरे वहां शक्तिपीठ बन गए। यह बेहद पावन तीर्थ स्थान माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि मां सती के दाएं पैर की कुछ अंगलिया इस जगह पर गिरी थीं।

English Translate

Kalighat Kali Mandir, Kolkata

Kalighat Shaktipeeth or Kalighat Kali Temple is a temple of Goddess Kali located in Kolkata, the capital of West Bengal. It is one of the 51 Shaktipeeths of India. There are many famous places of Goddess Shakti in Kolkata, but the glory of this Kali temple located in Kalighat is huge. The statue located in this Shaktipeeth was consecrated by Kamadeva Brahmachari (formerly known as Jiya Gangopadhyay).

कालीघाट काली मंदिर, कोलकाता || Kalighat Kali Mandir, Kolkata ||

Kali's head and four hands are seen in the idol of the goddess in Kalighat Kali temple. This idol is carved out of a black stone. Here the tongue of Maa Kali is very long, which is made of gold, and is protruding. Here mother's teeth are of gold. The eyes and head are made of ocher colored vermilion, and the tilak on the forehead is also ocher. The hand of the statue is adorned with gold ornaments and the neck is adorned with a garland of red flowers.

Apart from this, Kalighat Kali Temple has a sacred tank called Kundupukar, which is located in the south-east corner of the temple complex. The water of this pond is considered as holy as the Ganges. It is believed that just by bathing in the water, every wish is fulfilled.

कालीघाट काली मंदिर, कोलकाता || Kalighat Kali Mandir, Kolkata ||

This temple is the biggest temple for Kali devotees. The power here is 'Kalika' and Bhairav ​​is 'Nakulesh'. The idol of Goddess Kali in a fierce form is installed in this temple. In this statue, Goddess Kali is placed on the chest of Lord Shiva. He has a garland of male hairs around his neck, an ax in his hand and some narcissus, and some narwhals are tied around his waist. His jihwa (tongue) is protruding, and some drops of blood are also dripping from the tongue. The tongue in the statue is made of gold. Trinaina Mata Raktambara, Mundamalini, Muktkeshi are also seated in the temple. There is also a temple of Nakulesh nearby.


According to some legends, the goddess got angry over something, after which she started massacre. Whoever came in his way would be killed. To pacify his anger, Lord Shiva himself lay down on his path. The goddess angrily even put a foot on his chest, at the same time she recognized Lord Shiva and then stopped the massacre.

कालीघाट काली मंदिर, कोलकाता || Kalighat Kali Mandir, Kolkata ||

According to mythology, wherever the parts of Sati's body fell, it became a Shaktipeeth. It is considered a very sacred pilgrimage place. It is believed that some toes on the right leg of Mother Sati fell at this place.

योग प्राणायाम - भस्त्रिका || YOGA - Bhastrika Pranayama {Breathing Exercise} ||

 भस्त्रिका

योग प्राणायाम के मुख्य प्रकारों में से एक है - भस्त्रिका प्राणायाम। संस्कृत में, भस्त्रिका का मतलब है 'धौंकनी'। जिस तरह लोहार हवा के तेज़ झोको से गर्मी पैदा करता है और लोहे को शुद्ध करता है, भस्त्रिका प्राणायाम उस ही तरह मन को साफ और शुद्ध करता है और प्राणिक बाधाओं को समाप्त करता है। भस्त्रिका प्राणायाम इतना ख़ास है कि योग के ग्रंथों में भी इसका उल्लेख किया गया है। हठ योग प्रदीपिका में भस्त्रिका प्राणायाम के बारे में विस्तार से बताया गया है। भस्त्रिका प्राणायाम के फायदे तो इतने हैं कि इन्हें चंद शब्दों में लिखना मुश्किल है। 

योग प्राणायाम - भस्त्रिका  ||  YOGA - Bhastrika Pranayama {Breathing Exercise}  ||

भस्त्रिका प्राणायाम के कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं :- 

  1. भस्त्रिका प्राणायाम के नियमित अभ्यास से हमारे शरीर के विषाक्त पदार्थों का नाश हो जाता है और तीनों दोष (कफ, पित्त और वात) संतुलित हो जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यदि मनुष्य के शरीर मे बात,पित्त और कफ संतुलित हो जाएं तो मनष्य का शरीर निरोगी हो जाता है।
  2. इस प्राणायाम को करने से फेफड़ों में हवा के तेजी से अंदर-बाहर होने की वजह से रक्त से ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड की अदला-बदली ज़्यादा जल्दी होती है। इस वजह से चयापचय का दर बढ़ जाता है। शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है और विषाक्त पदार्थ शरीर से बाहर निकल जाते है। इस प्रकार यह शरीर को डिटॉक्स करने में सहायक है।
  3. डायाफ्राम के तेजी से और लयबद्ध तरीके से काम करने से शरीर के अंदरूनी अंगों की हल्की मालिश होती है और वह उत्तेजित होते है। इस से पाचन तंत्र टोन हो जाता है।
  4. लेबर और डिलीवरी के दौरान महिलाओं के लिए यह एक उपयोगी अभ्यास है। 
  5. भस्त्रिका प्राणायाम फेफड़ों में कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को कम करता है। यह अस्थमा अन्य फेफड़ों के विकारों के लिए एक उत्कृष्ट अभ्यास है।
  6. यह गले में सूजन और कफ के संचय को कम करता है। 
  7. यह प्राणायाम तंत्रिका तंत्र को संतुलित करता है।

योग प्राणायाम - भस्त्रिका  ||  YOGA - Bhastrika Pranayama {Breathing Exercise}  ||

भस्त्रिका प्राणायाम करने का तरीका - 

इस प्राणायाम को करने का तरीका भी बहुत सरल है। सबसे पहले किसी भी शांत वातावरण में बैठ जाएँ। सिद्धासन, वज्रासन या पद्मासन जैसे किसी भी सुविधाजनक आसन में बैठें। आखें बंद करें और थोड़ी देर के लिए शरीर को शिथिल कर लें। मूह बंद रखें। हाथों को चिन या ज्ञान मुद्रा में रखें। 10 बार दोनों नथनों से तेज़ गति से श्वास लें और छोड़ें। मन में गिनती अवश्य रखे। दोनों नाक के माध्यम से धीमी और गहराई से श्वास लें। दोनों नथ्नो को बंद कर लें और कुछ सेकंड के लिए सांस रोक कर रखें। धीरे-धीरे दोनों नथ्नो से श्वास छोड़ें। ऊपर बताए गये तरीके से बाएं, दाएं और दोनों नथनों के माध्यम से श्वास लेना एक भास्त्रिका प्राणायाम का पूरा चक्र होता है।

इस प्रक्रिया को 5 बार दोहराएँ।

भस्मिका का अभ्यास तीन अलग सांस दरों से किया जा सकता है: धीमी (2 सेकेंड में 1 श्वास), मध्यम (1 सेकेंड में 1 श्वास) और तेज (1 सेकेंड में 2 श्वास),। यहआपके शरीर की क्षमता के आधार पर निर्भर करता है। मध्यम और तेज गति का भस्त्रिका प्राणायाम केवल काफ़ी अभ्यास होने के बाद ही करें; शुरुआत में केवल धीमी गति से ही करें।

आज पहली बार (Aaj Paheli Baar) || Sunday.. इतवार ..रविवार ||

 इतवार (Sunday)

Rupa Os ki Boond
"सपना एक देखोगे
मुश्किलें हजार आयेंगी,
लेकिन वो मंजर बड़ा खूबसूरत होगा,
जब कामयाबी शोर मचाएगी..❤"

आज पहली बार 

आज पहली बार
थकी शीतल हवा ने
शीश मेरा उठा कर
चुपचाप अपनी गोद में रक्खा
और जलते हुए मस्तक पर
काँपता सा हाथ रख कर कहा
"सुनो, मैं भी पराजित हूँ
सुनो, मैं भी बहुत भटकी हूँ
सुनो, मेरा भी नहीं कोई
सुनो, मैं भी कहीं अटकी हूँ
पर न जाने क्यों
पराजय नें मुझे शीतल किया
और हर भटकाव ने गति दी
नहीं कोई था
इसी से सब हो गए मेरे
मैं स्वयं को बाँटती ही फिरी
किसी ने मुझको नहीं यति दी"
लगा मुझको उठा कर कोई खडा कर गया
और मेरे दर्द को मुझसे बड़ा कर गया
आज पहली बार

- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (Sarveshwar Dayal Saxena)
Rupa Os ki Boond

"उड़ान तो भरना है, चाहे कई बार गिरना पड़े.
सपनो को पूरा करना है, चाहे खुद से भी लड़ना पड़े..❤"

द्वितीय तंत्र: मित्र संप्राप्ति

द्वितीय तंत्र: मित्र संप्राप्ति

द्वितीय तंत्र: मित्र संप्राप्ति

दक्षिण देश के एक प्रांत में महिलारोप्य नाम का एक नगर था। वहां एक विशाल वटवृक्ष की शाखाओं पर लघुपतनक नाम का कौवा रहता था। एक दिन वह अपने आहार की चिंता में शहर की ओर चला ही था कि उसने देखा कि एक काले रंग, फटे पांव और बिखरे बालों वाला यमदूत की तरह भयंकर व्याध उधर ही चला आ रहा है। कौवे को वृक्ष पर रहने वाले अन्य पक्षियों की भी चिंता थी। उन्हें व्याध के चंगुल से बचाने के लिए वह पीछे लौट पड़ा और वहां सब पक्षियों को सावधान कर दिया कि जब यह व्याघ वृक्ष के पास भूमि पर अनाज के दाने बिखेरे तब कोई भी पक्षी उन्हें चुगने के लालच से ना जाए। उन दानों को कालकूट की तरह जहरीला समझे। 

कौवा अभी यह कह ही रहा था कि व्याध ने वटवृक्ष के नीचे आकर दाने विखेर दिए और स्वयं दूर जाकर झाड़ी के पीछे छुप गया। पक्षियों ने भी लघुपतनक का उपदेश मानकर दाने नहीं चुगे। वे इन दानों को हलाहल विष की तरह मानते रहे। 

किंतु इस बीच में व्याध के सौभाग्य से कबूतरों का एक दल परदेश से उड़ता हुआ वहां आया। उनका मुखिया चित्रग्रीव नाम का कबूतर था। लघुपतनक के बहुत समझाने पर भी वह भूमि पर बिखरे हुए उन दानों को चुगने के लालच को ना रोक सका। परिणाम यह हुआ कि वह अपने परिवार के साथियों समेत जाल में फंस गया। लोभ का यही परिणाम होता है। लोभ से विवेकशक्ति नष्ट हो जाती है। स्वर्णमय हिरण के लोभ से श्री राम यह ना सोच सके कि कोई हिरण सोने का नहीं हो सकता। 


जाल में फंसने के बाद चित्रग्रीव ने अपने साथी कबूतरों को समझा दिया कि वे अब अधिक फड़फड़ाये नहीं या उड़ने की कोशिश ना करें, नहीं तो व्याध उन्हें मार देगा। इसीलिए वह अब अधमरे से हुए जाल में बैठ गए। व्याध ने भी उन्हें शांत देखकर मारा नहीं। जाल समेटकर वह आगे चल पड़ा। चित्रग्रीव ने जब देखा कि अब व्याध निश्चिंत हो गया है और उसका ध्यान दूसरी ओर गया है, तभी उसने अपने साथियों को जाल समेत उड़ जाने का संकेत किया। संकेत पाते ही सब कबूतर जाल लेकर उड़ गए। व्याध को बहुत दुख हुआ। पक्षियों के साथ उसका जाल भी हाथ से निकल गया था। लघुपतनक भी उन उड़ते हुए कबूतरों के साथ उड़ने लगा। 

चित्रग्रीव ने जब देखा कि अब व्याध का डर नहीं है, तो उसने अपने साथियों को कहा - व्याध तो लौट गया। अब चिंता की कोई बात नहीं। चलो, हम महिलारोप्य शहर के पूर्वोत्तर भाग की ओर चलें। वहां मेरा घनिष्ट मित्र हिरण्यक नाम का चूहा रहता है। उससे हम अपने जाल को कटवा लेंगे। तभी हम आकाश में स्वच्छंद घूम सकेंगे। 

वहां हिरण एक नाम का चूहा अपने 100 बिलों वाले दुर्ग में रहता था। इसीलिए उसे डर नहीं लगता था। चित्रग्रीव ने उसके द्वार पर पहुंचकर आवाज लगाई। वह बोला - मित्र हिरण्यक! शीघ्र आओ। मुझ पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा है। 

उसकी आवाज सुनकर हिरण्यक अपने ही बिल में छुपे छुपे प्रश्न किया? तुम कौन हो? कहां से आए हो? क्या प्रयोजन है? 

चित्रग्रीव ने कहा - मैं चित्रग्रीव नाम का कपोतराज हूं। तुम्हारा मित्र हूं। तुम जल्दी बाहर आओ: मुझे तुमसे विशेष काम है। 

यह सुनकर हिरण्यक चूहा अपने बिल से बाहर आया। वहां अपने परम मित्र चित्रग्रीव को देखकर वह बड़ा प्रसन्न हुआ, किंतु चित्रग्रीव को अपने साथियों समेत जाल में फंसा देखकर वह चिंतित भी हो गया। उसने कहा - मित्र! यह क्या हो गया तुम्हें? 

चित्रग्रीव ने कहा - जीभ के लालच में हम जाल में फंस गए। तुम हमें जाल से मुक्त कर दो। 

हिरण्यक जब चित्रग्रीव के जाल का धागा काटने लगा, तब उसने कहा - पहले मेरे साथियों के बंधन काट दो। बाद में मेरे काटना। 

चित्रग्रीव - यह मेरे आश्रित हैं, अपने घर बार को छोड़कर मेरे साथ आए हैं। मेरा धर्म है कि पहले इनकी सुख सुविधा को दृष्टि में रखूँ। अपने अनुचरों  में किया हुआ विश्वास बड़े से बड़े संकट से रक्षा करता है।

हिरण्यक चित्रग्रीव की यह बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने सब के बंधन काटकर चित्रग्रीव से कहा मित्र! अब अपने घर जाओ। विपत्ति के समय फिर मुझे याद करना। उन्हें भेज कर हिरण्यक चूहा अपने बिल में घुस गया। चित्रग्रीव भी परिवार सहित अपने घर चला गया। 

लघुपतनक कौवा यह सब दूर से देख रहा था। वह हिरण्यक के कौशल और उसकी सज्जनता पर मुग्ध हो गया। उसने मन ही मन सोचा यद्यपि मेरा स्वभाव है कि मैं किसी का विश्वास नहीं करता, किसी को अपना हितैषी नहीं मानता, तथापि इस चूहे के गुणों से प्रभावित होकर मैं इसे अपना मित्र बनाना चाहता हूं। 

यह सोचकर वह हिरण्यक के दरवाजे पर जाकर चित्रग्रीव के समान ही आवाज बनाकर हिरण्यक को पुकारने लगा। उसकी आवाज सुनकर हिरण्यक ने सोचा यह कौन सा कबूतर है? क्या इसके बंधन कटने से रह गए हैं? 

हिरण ने पूछा - तुम कौन हो? 

लघुपतनक - मैं लघुपतनक नाम का एक कौवा हूं। 

हिरण्यक - मैं तुम्हें नहीं जानता, तुम अपने घर चले जाओ।

लघुपतक - मुझे तुमसे बहुत जरूरी काम है। एक बार दर्शन तो दे दो। 

हिरण्यक - मुझे तुम्हें दर्शन देने का कोई प्रयोजन दिखाई नहीं देता। 

लघुपतनक - चित्रग्रीव के बंधन काटते देखकर मुझे तुमसे बहुत प्रेम हो गया है। कभी मैं बंधन में पड़ जाऊंगा तो तुम्हारी सेवा में आना पड़ेगा। 

हिरण्यक - तुम भोक्ता हो मैं तुम्हारा भोजन हूं। हम में प्रेम कैसा? जाओ दो प्रकृति के विरोधी जीवों में मैत्री नहीं हो सकती। 

लघुपतनक - मैं तुम्हारे द्वार पर मित्रता की भीख लेकर आया हूं। तुम मैत्री नहीं करोगे तो मैं यही प्राण दे दूंगा। 

हिरण्यक - हम सहज बैरी हैं। हमसे मैत्री नहीं हो सकती। 

लघुपतक - मैंने तो कभी तुम्हारे दर्शन भी नहीं किए। हम से बैर कैसा? 

हिरण्यक - वैर दो तरह का होता है - सहज और कृत्रिम। तुम मेरे सहज बैरी हो। 

लघुपतक - मैं दो तरह के वैरों का लक्षण सुनना चाहता हूं। 

हिरण्यक - जो वैर कारण से हो वह कृत्रिम होता है। कारणों से ही उस वैर का अंत भी हो सकता है। स्वभाविक वैर निष्कारण होता है, उसका अंत हो ही नहीं सकता है। 

लघुपतनक में बहुत विरोध किया, किंतु हिरण्यक ने मैत्री के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। तब लघुपतनक ने कहा - यदि तुम्हें मुझ पर विश्वास ना हो तो तुम अपने दिल में छुपे रहो। मैं बिल के बाहर बैठा बैठा ही तुमसे बातें कर लिया करूंगा। 

हिरण्यक ने लघुपतनक की यह बात मान ली। किंतु लघुपतनक को सावधान करते हुए कहा - कभी मेरे दिल में प्रवेश करने की चेष्टा मत करना।  कौवा इस बात को मान गया। उसने शपथ ली कि कभी वह ऐसा नहीं करेगा। 

तब से दोनों मित्र बन गए। ये नित्य प्रति परस्पर बातचीत करते थे। दोनों के दिन बड़े सुख से कटते थे। कौवा कभी इधर उधर से अन्य संग्रह करके चूहे को भेंट भी देता था। मित्रता में आदान-प्रदान स्वभाविक था। धीरे-धीरे दोनों की मैत्री घनिष्ट होती गई। दोनों एक क्षण भी एक दूसरे से अलग नहीं रह सकते थे। 

बहुत दिन बाद एक दिन आंखों में आंसू भरकर लघुपतनक ने हिरण्यक से कहा - मित्र! अब मुझे इस देश से विरक्ति हो गई है, इसलिए दूसरे देश में चला जाऊंगा। 

कारण पूछने पर उसने कहा - इस देश में अनावृष्टि के कारण दुर्भिक्ष पड़ गया है। लोग स्वयं भूखे मर रहे हैं। एक दाना भी नहीं रहा। घर - घर में पक्षियों के पकड़ने के लिए जाल बिछ गए हैं। मैं तो भाग्य से ही बच गया। ऐसे देश में रहना ठीक नहीं। 

हिरण्यक - कहां जाओगे? लघुपतनक दक्षिण दिशा की ओर एक तालाब है। वहां मंथरक नाम का एक कछुआ रहता है। वह भी मेरा वैसा ही घनिष्ट मित्र है, जैसे तुम हो। उसकी सहायता से मुझे पेट भरने योग्य अन्न, मांस आदि अवश्य मिल जाएगा। 

हिरण्यक - यही बात है, तो मैं भी तुम्हारे साथ जाऊंगा। मुझे भी यहां बड़ा दुख है। 

लघुपतनक - अब तुम्हें किस बात का दुख है? 

हिरण्यक - यह मैं वहीं पहुंचकर तुम्हें बताऊंगा। 

लघुपतनक - किंतु मैं तो आकाश में उड़ने वाला हूं, मेरे साथ तुम कैसे जाओगे? 

द्वितीय तंत्र: मित्र संप्राप्ति

हिरण्यक - मुझे अपने पंखों पर बिठाकर वहां ले चलो। 

लघुपतनक यह बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कहा कि वह सपात आदि आठों प्रकार की उड़ने की गतियों से परिचित है। वह उसे सुरक्षित निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचा देगा। यह सुनकर हिरण्यक चूहा लघुपतनक कौवे की पीठ पर बैठ गया। दोनों आकाश में उड़ते हुए तालाब के किनारे पहुंचे। 

मंथरक ने जब देखा कि कोई कौवा चूहे को पीठ पर बिठाकर आ रहा है, तो वह डर के मारे पानी में घुस गया। लघुपतनक को उसने पहचाना नहीं। 

तब लघुपतनक हिरण्यक को थोड़ी दूर छोड़ कर पानी में लटकती हुई शाखा पर बैठकर जोर जोर से पुकारने लगा - मंथरक - मंथरक, मैं तेरा मित्र लघुपतनक आया हूं। आकर मुझसे मिल। 

लघुपतनक की आवाज सुनकर मंथरक खुशी से नाचता हुआ बाहर आया। दोनों ने एक दूसरे का आलिंगन किया।  हिरण्यक भी तब वहां आ गया और मंथरक को प्रणाम कर के वहां बैठ गया। 

द्वितीय तंत्र: मित्र संप्राप्ति

मंथरक ने लघुपतनक से पूछा - यह चूहा कौन है? भक्छय होते हुए भी इसे अपनी पीठ पर कैसे लाया? 

लघुपतनक - एक हिरण्यक नाम का चूहा मेरा अभिन्न मित्र है। बड़ा गुनी है। फिर भी किसी दुख से दुखी होकर मेरे साथ यहां आ गया है। इसे अपने देश से वैराग्य हो गया है। 

मंथरक - वैराग्य का कारण! 

लघुपतनक - यह बात मैंने भी पूछी थी। इसने कहा था, वही चल कर बताऊंगा। मित्र हिरण्यक! अब तुम अपने वैराग्य का कारण बतलाओ। हिरण अपने तब यह कहानी सुनाई।

धन सब क्लेशों की जड़ है

To be continued ...

मोर के बारे में 21 रोचक तथ्य || 21 Interesting facts about Peacocks ||

मोर के बारे में 20 रोचक तथ्य (20 Interesting facts about Peacocks)

मोर के बारे में 21 रोचक तथ्य || 21 Interesting facts about Peacocks ||

अपनी विशाल पूंछ और इंद्रधनुषी रंगों के साथ, इस पक्षी ने लंबे समय से अपने मानव पर्यवेक्षकों को आकर्षित किया है - और हम अभी भी इसके रहस्यों को सीख रहे हैं। मोर धरती के सबके सुंदर पक्षियों में से एक है। यह एशिया का मूल निवासी है और मुख्यतः भारत, श्रीलंका और बर्मा में पाया जाता है और यह तो हम सभी जानते हैं  कि मोर भारत का "राष्ट्रीय पक्षी" है। बारिश के मौसम में मोर को पंख फैलाकर नाचते हुए भी आपने देखा होगा। मैं जहाँ पर रहती हूँ वहां बहुत पेड़ पौधे हैं और यहाँ मोर भी बहुत हैं, जो हमेशा घूमते फिरते या पेड़ की चोटियों पर बैठे बड़े आराम से दिख जाते हैं। बरसात के मौसम में यह छत पर या बीएसएनएल कैंपस में नाचते हुए भी आराम से दिख जाते हैं। वैसे तो कहा जाता है कि जहाँ मोर होते वहाँ साँप नहीं होते, परन्तु यहाँ सांप और मोर दोनों ही बहुत हैं। खैर आज यहाँ मोर से जुड़े कुछ रोचक विषय की चर्चा करेंगे।

मोर के बारे में 21 रोचक तथ्य || 21 Interesting facts about Peacocks ||

 इन प्रभावशाली पक्षियों के बारे में कुछ रोचक तथ्य इस प्रकार हैं:

  1.  इन पक्षियों के लिए सामूहिक शब्द "मोर (Peafowl)" है। नर पक्षी को "मोर (Peacock)" और मादा पक्षी को "मोरनी (Peahen)" कहते हैं और इनके बच्चे ‘Peachicks’ कहे जाते हैं। मोरनी की तुलना में मोर ज्यादा खूबसूरत होते हैं। 
  2.  मोर को अपनी पूंछ विकसित करने में तीन साल लगते हैं।
  3.  मोरों की तीन प्रमुख प्रजातियाँ हैं, जिनमें से दो एशियाई मूल की है और एक अफ्रीकी मूल की। नीला भारतीय मोर  और हरा मोर एशियन प्रजाति हैं। कांगो मोर अफ्रीकी प्रजाति के हैं। मोर मुख्यतः भारत, श्रीलंका और बर्मा में पाए जाते हैं। 
  4. भारतीय मोर एकमात्र ऐसी प्रजाति है, जिसके पास पंखों का इतना शानदार संग्रह है, जिसे वह अभिमान के साथ प्रदर्शित करता है और एक भव्य पैटर्न बनाता है।
  5. एक मोर की पूंछ के पंख 6 फीट तक लंबे हो सकते हैं और उसके शरीर की लंबाई का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा बना सकते हैं। इन विषम अनुपातों के बावजूद, मोर उड़ सकते हैं, लेकिन केवल सीमित दूरी तक। शिकारी से बचने की कोशिश में या रात में पेड़ की ऊँचाई पर सोने के लिए, ये मुख्यतः उड़ान भरते हैं। मोर के बारे में 21 रोचक तथ्य || 21 Interesting facts about Peacocks ||
  6. अन्य पक्षियों और जीवों के विपरीत, नर मोर अधिक आकर्षक लगते हैं।  इसके लंबे और रंगीन पंख होते हैं।  मादाएं भी सुंदर होती हैं, लेकिन उनमें सूक्ष्म रंग होते हैं, जैसे ग्रे और भूरा, नीला नहीं।
  7. जब बच्चे अंडे से बाहर निकलते हैं तो महीनों बाद तक, नर और मादा एक समान दिखते हैं।
  8.  ये भारत के राष्ट्रीय पक्षी हैं। भारत के अलावा म्यांमार का भी राष्ट्रीय पक्षी मोर ही है।
  9.  मोर पूरी तरह से सफेद रंग के भी होते हैं।
  10.  यद्यपि कि मोर गर्मी के लिए बने हैं, पर मोर ठंडे तापमान के अनुकूल भी हो सकते हैं, जब तक कि उनके पास आश्रय हो।
  11. भारतीय नीले मोर जंगलों में 10 से 25 साल तक जीवित रहते हैं।
  12. एक मोर हर साल अपना पंख गिरा देता है, इसलिए कोई पक्षी को नुकसान पहुंचाए बिना भी मोर पंख इकट्ठाकर बेच सकता है।
  13. मोर सर्वाहारी पक्षियों में से है, ये मुख्य रूप से अनाज, घास, फल-पत्ते, बीज, फूलों की पंखुड़ियाँ, चीटियाँ, कीड़े, दीमक, टिड्डियों, चूहे,  छिपकली, साँप आदि खाते हैं।
  14. संयुक्त राज्य अमेरिका में एनबीसी टेलीविजन नेटवर्क के लोगो ने 1956 में अपनी कंपनी का लोगो (Logo)एक रंगीन मोर जैसा बनाया।
  15. वे जिस बड़ी रंगीन "पूंछ" के लिए जाने जाते हैं, उसे "ट्रेन" कहा जाता है।
  16. मोर की औसत दौड़ने की गति 10 मील प्रति घंटा (16 किलोमीटर प्रति घंटा) होती है।
  17. जब सांपों से लड़ने की बात आती है तो मोर सबसे अच्छे लड़ाकू होते हैं।  वे न केवल जहरीले सांपों सहित युवा सांपों का शिकार कर सकते हैं, बल्कि सांपों को अपने क्षेत्र में प्रवेश नहीं करने देते हैं।
  18. मोर धरती के सबसे बड़े उड़ने वाले पक्षियों में से एक हैं. इनके पंखों का फैलाव 1.5 m के आसपास होता है। 
  19. जंगल में पाए जाने वाले मोरों का जीवनकाल शिकारियों और कठोर मौसम के कारण लगभग 20 वर्ष तक की आयु तक सीमित हो जाता है, जबकि चिड़ियाघर या अन्य सुरक्षित स्थानों में रहने वाले मोरों का जीवन काल लगभग 50 वर्ष तक का होता है। 
  20. नर मोर आकार में मादा से दुगुना होता है। मोर का वजन 4 से 6 किलोग्राम तक हो सकता है, जबकि मोरनी का वजन लगभग 2.75 to 4 किलोग्राम तक हो सकता है। 
  21. मोर की लंबाई लगभग 6 से 7 फीट तक हो सकती है, जबकि मोरनी की लंबाई लगभग 3 से 3.5  फीट तक होती है। 
मोर के बारे में 21 रोचक तथ्य || 21 Interesting facts about Peacocks ||

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20 Interesting facts about Peacocks

मोर के बारे में 21 रोचक तथ्य || 21 Interesting facts about Peacocks ||

With its massive tail and iridescent colors, this bird has long captivated its human observers—and we're still learning its secrets. Peacock is one of the most beautiful birds of the earth. It is native to Asia and is found mainly in India, Sri Lanka and Burma and we all know that peacock is the national bird of India. You must have also seen a peacock dancing with its wings spread during the rainy season. Where I live, there are many trees and plants and there are also many peacocks, which are always seen roaming or sitting on the tops of trees. In the rainy season, they can be seen comfortably even while dancing on the terrace or in the BSNL campus. Well today we will discuss some interesting topics related to peacocks here.

मोर के बारे में 21 रोचक तथ्य || 21 Interesting facts about Peacocks ||

Here are a few interesting facts about these impressive birds: 

  1. The collective term for these birds is “peafowl.” The males are “peacocks” and the females are “peahens.” The babies are called “peachicks.” Peacocks are more beautiful than peahens.
  2. Peacocks take three years to develop their tail plumage.
  3. Peacocks have a number of variants in them but not all of them have as beautiful a plumage as the Indian peacock.
  4. The Indian peacock is one of the only species that has such a spectacular collection of feathers, which it displays with aplomb and creates a gorgeous pattern.
  5. A peacock’s tail feathers can reach up to six feet long and make up about 60 percent of its body length. Despite these odd proportions, the bird flies, just not very far.
  6. Unlike other birds and creatures, male peacocks look more attractive. It has long and colourful feathers. The females are also beautiful but feature subtler colors like gray and brown, no blue.
  7. When they hatch and for months afterward, male and female peachicks look identical. 
  8. They're the National Bird of India.
  9. Peacocks Can Be Fully White.
  10. Although they're made for warmth, peacocks can adapt to chilly temperatures so long as they have shelter.मोर के बारे में 21 रोचक तथ्य || 21 Interesting facts about Peacocks ||
  11. Indian blue peafowl live for 10 to 25 years in the wild and in captivity.
  12. Luckily, a peacock sheds its feather every year, so one can collect and sell the plumage without causing harm to the bird. 
  13. As omnivorous birds, peacocks fed on various edible items regardless of being a plant or animal source.
  14. The logo of the NBC television network in the USA has taken the form of a colorful peacock since 1956.
  15. If the feathers of a peacock still weren’t impressive enough, they are covered in tiny crystals.
  16. The large colorful “tail” they have become known for is called a “train.”
  17. The Indian peacock is thought to be endangered now in Bangladesh, although it remains popular around areas of Pakistan, India, and Sri Lanka.
  18. The average running speed for peacocks is 10 miles per hour (16 kph).
  19. Peacocks are the best fighter when it comes to fighting with snakes. They can not only prey on young snakes, including the poisonous ones, but they also do not let snakes enter their territory.
  20. The male peacock is twice the size of the female. The weight of peacock can range from 4 to 6 kg, while the weight of peacock can range from around 2.75 to 4 kg.
  21. The length of a peacock can range from about 6 to 7 feet, while the length of the peacock ranges from about 3 to 3.5 feet.
मोर के बारे में 21 रोचक तथ्य || 21 Interesting facts about Peacocks ||

तेनालीराम - खूंखार घोड़ा और तेनालीराम || Tenali Raman - Khunkhar Ghoda Aur Tenaliram ||

खूंखार घोड़ा 

राजा कृष्णदेव राय के शासन काल में एक दिन एक अरबी व्यापारी बहुत सारे घोड़े लेकर कृष्णदेव राय के दरबार में आते हैं और महाराजा से सिफारिश करते हैं कि मुझे यह सारे घोड़े बेचने हैं कृपा करके आप इन घोड़ों को खरीद लें। राजा ने उस अरबी व्यापारी से पूछा इन घोड़ा में ऐसा क्या खास है, जिसकी वजह से हम इन्हें खरीदें। 

खूंखार घोड़ा और तेनालीराम || Khunkhar Ghoda Aur Tenaliram ||

वह अरबी व्यापारी वाक पटुता में माहिर था, उसने राजा के सामने अपने घोड़ों की इतनी तारीफ की कि राजा उन सारे घोड़ों को खरीदने के लिए तैयार हो गए। 

महाराजा उस अरबी व्यापारी से उसके सारे घोड़े खरीद लिए। अरबी व्यापारी बहुत खुश हुए और सारे घोड़ों का मोल लेकर दरबार से चले गए। व्यापारी के जाते ही दरबारियों ने राजा से प्रश्न किया कि इन घोड़ों को आप कहां रखेंगे? हमारे पास उन सारे घोड़ों को रखने के लिए इतनी जगह नहीं है। इन घोड़ों को रखने के लिए हमें ‌एक बड़े घुड़साल की आवश्यकता होगी। राजा के सामने एक बहुत बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। 

इस समस्या से निपटने के लिए राजा ने अपने दरबार में मंत्रियों की सभा रखी। अगले दिन सभी मंत्री राजा के कहने पर राज्य की सभा पर इकट्ठे हो गए। राजा ने अपनी समस्या मंत्रियों के सामने रखी और मंत्रियों से इस समस्या का हल ढूंढने के लिए कहा गया। सभी मंत्रियों ने उचित से उचित योजना बनाकर राजा के सामने पेश किया। 

अगले दिन राजा ने अपनी प्रजा को इकट्ठा होने के लिए आदेश दे दिया। सभी प्रजा राजा के कहने पर एक जगह इकट्ठी हो गई। राजा वहां पहुंचकर अपनी सारी प्रजा से कहते हैं कि - "मैंने आप सभी को एक जरूरी काम सौंपने के लिए बुलाया है। हमने बहुत सारे अरबी नस्ल के घोड़े खरीदे हैं और यह सभी घोड़े बेशकीमती, लाजवाब और समझदार हैं। लेकिन अफसोस इस बात है कि इन सभी घोड़ों को रखने के लिए पर्याप्त जगह राजमहल में नहीं है। इसके लिए एक बहुत बड़े घुड़साल की आवश्यकता है, जिसको तैयार होने में कम से कम तीन महीने लग जायेंगे। इसीलिए तीन महीने तक आप सभी को एक-एक घोड़ा दिया जाएगा, जिसकी देखभाल आपको करनी होगी। इसके लिए आप सभी को हर महीने एक सोने का सिक्का भी दिया जाएगा।" 

सभी प्रजा का चेहरा उतर गया। भला एक सोने के सिक्के से क्या होता है? इससे तो एक दिन का चारा पानी भी नहीं आएगा। अब राजा का आदेश था तो सबको मानना पड़ा। राजा ने सभी को एक-एक घोड़ा दे दिया और सभी एक एक घोड़ा लेकर अपनी अपनी घर की तरफ चले गए। 

प्रजा के साथ साथ तेनालीरमन को भी एक घोड़ा दिया गया। तेनालीरमन घोड़े को घर लेजाकर घर के पीछे घास फूस की छोटी-सी घुड़साल बना देते हैं और उसके साथ ही तेनालीरमन घोड़े को थोड़ा-सा चारा भी डाल देते हैं। तेनालीरमन हमेशा घोड़े को थोड़ा थोड़ा सा ही चारा और पानी देते रहे।                

बाकी प्रजा घोड़े की अच्छी तरीके से सेवा करती रही, क्योंकि प्रजा राजा के क्रोध से डरती थी कि कहीं घोड़ा मर गया तो राजा उन्हें मृत्युदंड ना दे दे। इसीलिए प्रजा ने अपनी आधी से अधिक कमाई घोड़े पर लगा दी। प्रजा खुद भूखी सोती थी लेकिन घोड़े को भरपेट चारा पानी देकर सोती थी। 

दो महीने बीत गए थे। तेनालीरमन का घोड़ा बिल्कुल सूख गया। तेनालीराम का घोड़ा चिड़चिड़ा होने लगा। कोई भी उसके सामने आता तो वह अपने मुंह से सामने वाले को घात पहुंचाने की कोशिश करता। तेनालीराम घुड़साल की खिड़की से ही उस घोड़े की देखभाल करते थे। वहीं से वह थोड़ा बहुत चारा पानी डाल देते थे।      तीन महीने बीत गए। 

महाराजा ने सभी को अपने घोड़े के साथ एकत्रित होने के लिए आदेश दे दिए। सभी अपने अपने घोड़े लेकर राजमहल के आगे पहुंच गए। लेकिन तेनालीराम अपना घोड़ा अपने साथ में नहीं लेकर आए। तेनालीराम से इसका कारण पूछा गया तो तेनालीराम बोले कि महाराज घोड़ा काफी खूंखार और बिगडैल है। वह किसी को अपने पास नहीं आने देता। 

महाराज आप घोड़े को लाने की बात कर रहे हैं, मैं तो घुड़साल में जाने की भी हिम्मत नहीं कर सकता, लाने की दूर की बात है। मैं खुद घोड़े की घुड़साल की खिड़की से उसको चारा पानी देता हूं। तभी राजगुरु महाराज से बोले कि महाराज हमें तेनालीराम की बातों का विश्वास नहीं करना चाहिए। हमें खुद वहां जाकर देखना चाहिए। सभी लोग तेनालीराम के घर पर जाते हैं और छोटी सी घुड़साल को राजगुरु देखते हैं।           

राजगुरु तेनालीराम से कहते है मूर्ख तेनाली यह क्या घुड़साल बनाई है तूने। इस छोटी सी कुटिया को तुमने घुड़साल नाम दिया है, बड़े शर्म की बात है। राजगुरु की बात पर तेनालीराम बोले की आप बहुत विद्वान हैं, इसीलिए मुझसे ज्यादा आपको पता है। लेकिन घोड़ा खूंखार हो चुका है, इसलिए आप अंदर मत जाइएगा। घुड़साल में मैंने एक खिड़की बनाई है, जहां से मैं घोड़े की देखरेख करता हूं। 

आप भी वही से झांक कर देख लीजिए। तेनालीराम के कहने पर राजगुरु घोड़े को देखने के लिए खिड़की तक जाते हैं। खिड़की से झांकते ही वह घोड़ा राजगुरु की दाढ़ी अपने मुंह से पकड़ लिया। राजगुरु दर्द से चीखने लगे। राजगुरु व अन्य सभी साथियों ने दाढ़ी छुड़वाने का बहुत प्रयास किया लेकिन घोड़े ने दाढ़ी नहीं छोड़ी। 

तभी एक दरबारी तलवार निकाला और एक ही झटके में राजगुरु की दाढ़ी काट दिया। महाराजा के आदेश से दस सेवक मिलकर जैसे-तैसे घोड़े को दरबार तक लेकर गए। घोड़े को देखते ही महाराजा तेनालीराम से पूछते हैं कि घोड़ा इतना दुबला पतला क्यों है? 

तेनालीराम बोले - "मैंने घोड़े को कम से कम चारा और पानी दिया है। जैसे प्रजा थोड़े से ही अपना गुजारा कर लेती है। इस वजह से घोड़ा इतना दुबला पतला है। तेनालीराम ने कहा कि प्रजा आपका सम्मान करती है, इसलिए वह आपकी कोई बात नहीं टाल सकती। सारी प्रजा एक सोने के सिक्के से ही घोड़े को पालने के लिए मान गई। 

सारी प्रजा अपनी आधी कमाई उस घोड़े पर लगा दी, जो आपने उन्हें दिया था। घोड़ों को तो भर पेट भोजन मिलता था, लेकिन आधी जनता को बिना खाए पिए ही सोना पड़ता था। इससे आपके घोड़े तो हष्ट पुष्ट हो गए लेकिन आपकी सारी प्रजा दुर्बल हो गई। 

आप का कर्म है कि आप प्रजा के हित के लिए काम करें ना कि उन पर अधिक से अधिक बोझ डालें। तेनालीराम अपने सारे वाक्यांशों पर माफी मांगते हुए पीछे हट गए। 

महाराजा को तेनालीराम की सारी बातें समझ में आ गई। महाराज ने अपनी गलती पर क्षमा मांगते हुए पूरी प्रजा में महीने भर का राशन मुफ्त में बंटवाया।


Khunkhar Ghoda (the dreaded horse)

One day during the reign of King Krishnadeva Raya an Arabian merchant comes to Krishnadev Raya's court with a lot of horses and recommends to the Maharaja that I have to sell all these horses, please buy these horses. The king asked that Arabian merchant, what is so special about these horses, because of which we should buy them.

खूंखार घोड़ा और तेनालीराम || Khunkhar Ghoda Aur Tenaliram ||

That Arabic merchant was a master of speech, he praised his horses in front of the king so much that the king agreed to buy all those horses.

The Maharaja bought all his horses from that Arabian merchant. The Arabian merchants were very happy and left the court after buying all the horses. As soon as the merchant left, the courtiers asked the king that where will you keep these horses? We don't have enough space to keep all those horses. To keep these horses we will need a big stall. A great difficulty arose in front of the king.

To deal with this problem, the king kept a meeting of ministers in his court. The next day all the ministers gathered at the state assembly at the behest of the king. The king put his problem in front of the ministers and the ministers were asked to find a solution to this problem. All the ministers made a proper plan and presented it to the king.

The next day the king ordered his subjects to gather. All the subjects gathered at one place at the behest of the king. The king reaches there and says to all his subjects that - "I have called all of you to entrust an important task. We have bought many horses of Arabian breed and all these horses are valuable, wonderful and intelligent. But the regret is this. That there is not enough space in the palace to keep all these horses. For this a very big stall is needed, which will take at least three months to prepare. That's why for three months each of you will be given one horse. , which you will have to take care of. For this you all will also be given a gold coin every month.

The faces of all the people fell. What's wrong with a gold coin? Due to this, even a day's fodder and water will not come. Now there was the order of the king, so everyone had to obey. The king gave each horse a horse and they all went towards their home with one horse.

Along with the subjects, Tenaliraman was also given a horse. Tenaliraman takes the horse home and makes a small hay of hay behind the house and with it Tenaliraman also puts some fodder for the horse. Tenaliraman always gave little fodder and water to the horse.

The rest of the subjects continued to serve the horse well, because the subjects were afraid of the king's anger that if the horse died, the king should not give them the death penalty. That is why the subjects put more than half their earnings on the horse. The subjects themselves slept hungry but slept after giving enough fodder and water to the horse.

Two months had passed. Tenaliraman's horse dried up completely. Tenaliram's horse started getting irritable. If anyone came in front of him, he would try to ambush the person in front of him with his mouth. Tenaliram used to take care of that horse from the window of the stall. From there he used to pour some fodder water. Three months passed.

The Maharaja ordered everyone to assemble with his horse. Everyone took their horses and reached in front of the palace. But Tenaliram did not bring his horse with him. When Tenaliram was asked the reason for this, Tenaliram said that Maharaj's horse is very dangerous and bad-tempered. He does not allow anyone to come near him.

Sir, you are talking about bringing a horse, I can't even dare to go to the horse, it is a distant thing to bring. I myself give him fodder and water from the window of the horse's stud. Then Rajguru said to Maharaj that Maharaj should not believe the words of Tenaliram. We should go there and see for ourselves. Everyone goes to Tenaliram's house and sees Rajguru, a small horse.

Rajguru says to Tenali Ram, what a fool Tenali, what a stud have you made. It is a matter of great shame that you have given this small hut the name Ghursal. On Rajguru's talk, Tenaliram said that you are very learned, that is why you know more than me. But the horse is dreaded, so don't go inside. In the stall I have made a window, from where I look after the horse.

Take a look from the same side and see. At the behest of Tenaliram, Rajguru goes to the window to see the horse. As soon as he peeped through the window, the horse grabbed Rajguru's beard from his mouth. Rajguru started screaming in pain. Rajguru and all the other companions tried hard to get rid of the beard but the horse did not give up the beard.

Then a courtier took out the sword and in one stroke cut off the beard of Rajguru. On the orders of the Maharaja, ten servants together took the horse to the court. On seeing the horse, Maharaja asks Tenaliram why the horse is so lean and thin.

Tenaliram said - "I have given at least fodder and water to the horse. Just like the people make a little living for themselves. Because of this the horse is so thin. Tenaliram said that the people respect you, that's why they don't want any of yours." The matter cannot be avoided.All the people agreed to keep the horse with only one gold coin.

All the people put half their earnings on the horse that you gave them. The horses were fed enough food, but half the population had to sleep without eating and drinking. This made your horses strong, but your All the people became weak.

It is your duty to work for the benefit of the people and not put more and more burden on them. Tenaliram backed away apologizing for all his words.

The Maharaja understood everything about Tenaliram. The Maharaj, apologizing for his mistake, distributed free ration for a month among the entire subjects.