जेबुन्निसा, औरंगजेब की सगी बेटी
औरंगज़ेब (3 नवंबर, 1618 – 3 मार्च 1707)
जेबुन्निसा भारतीय इतिहास के सबसे क्रूर शासक औरंगज़ेब की सगी बेटी थी। मुस्लिम संप्रदाय की होने के बावजूद जेबुन्निसा कृष्ण भक्त थीं और कृष्ण भक्ति में डूबकर काफी सारी रचनाएं भी लिखीं हैं। औरंगजेब पर तो ढेरों किताबों-कहानियां लिखी गईं, लेकिन उनकी बेटी जेबुन्निसा लगभग गुमनामी में रहीं। लोककथाओं में कहीं कहीं जरूर इस राजकुमारी के किस्से दर्ज हैं, जो बेहतरीन शायरा भी थीं। पिता के डर से महफिलों और मुशायरों में छिपकर जाती थीं।
जेबुन्निसा मुगल शासक औरंगजेब और बेगम दिलरस बानो की सबसे बड़ी संतान थीं। जेबुन्निसा के बचपन के बारे में खास जिक्र नहीं मिलता, सिवाय इसके कि उनकी मंगनी अपने चचेरे भाई सुलेमान शिकोह से हुई, लेकिन सुलेमान की कम उम्र में मौत के कारण शादी नहीं हो सकी।
जेबुन्निसा एक दयालु महिला थी और हमेशा लोगों की ज़रूरत के समय मदद करती थीं। वह संगीत में रुचि लेती थी और कहा जाता है कि वह अपने समय की महिलाओं में सबसे अच्छी गायक थीं। वह हथियारों के इस्तेमाल में भी कुशल थी और उसने युद्ध में कई बार भाग लिया था।
जेबुन्निसा का पढ़ने से बहुत लगाव था। दर्शन, भूगोल, इतिहास जैसे विषयों में उन्हें महारत हासिल था। बहुत कम उम्र में ही जेबुन्निसा ने महल की विशाल लाइब्रेरी खंगाल दी थीं और फिर उनके लिए बाहर से भी किताबें मंगवाई जाने लगीं। औरंगजेब को अपनी बुद्धिमती बेटी के खासा लगाव था। वे उसे 4 लाख सोने की अशर्फियां ऊपरी खर्च के लिए दिया करते थे। इन्हीं पैसों से जेबुन्निसा ने ग्रंथों का आम भाषा में अनुवाद भी शुरू करवा दिया।
वक्त के साथ जेबुन्निसा एक बेहतरीन शायरा के तौर पर उभरीं। यहां तक कि उन्हें मुशायरों में बुलाया जाने लगा, परन्तु उनके कट्टर पिता को ये बिल्कुल भी मंजूर नहीं था। इसलिए जेबुन्निसा छिपकर महफिलों में शिरकत करने लगी। यहाँ तक कि खुद औरंगजेब के दरबारी कवि जेबुन्निसा को महफिलों में बुलाया करते थे। जेबुन्निसा फारसी में कविताएं लिखतीं थीं और नाम छिपाने के लिए "मख़फ़ी" नाम से कविताएं लिखा करती थीं।
कहा जाता है कि जेबुन्निसा ने ऐसे ही किसी कार्यक्रम में बुंदेल महाराजा छत्रसाल को देखा था, तभी से जेबुन्निसा उनसे प्रेम करने लगी। तब जेबुन्निसा ने अपनी एक दासी के हाथों छत्रसाल तक प्रेमपत्र पहुंचाने की कोशिश की, परन्तु वह प्रेम पत्र औरंगज़ेब के हाथों लग गया। तब महाराजा छत्रसाल से अपनी शत्रुता के कारण औरंगज़ेब ने जेबुन्निसा को चुप करवा दिया।
जेबुन्निसा को छत्रपति शिवाजी महाराज से भी प्रेम हुआ था। जेबुन्निसा ने शिवाजी महाराज की वीरगाथाएं सुनी थी। जब उसने छत्रपति शिवाजी महाराज को आगरा के किले में देखा, तब वह छत्रपति की दीवानी हो गयी। इस बार जेबुन्निसा अपना प्रेम सन्देश छत्रपति तक पहुंचाने में सफल हो गयी, परन्तु छत्रपति शिवाजी महाराज ने उनके प्रेम प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इस बारे में पता चलने पर क्रूर औरंगज़ेब ने अपनी ही बेटी को 1691 में दिल्ली के सलीमगढ़ किले में कैद करवा दिया।
महलों से सीधे कैद में आई राजकुमारी की हिम्मत तब भी कम नहीं हुई। वे किले में कैद होकर भी गजलें, शेर और रुबाइयां लिखती रहीं. 20 सालों की कैद के दौरान उन्होंने लगभग 5000 रचनाएं कीं, जिसका संकलन उनकी मौत के बाद "दीवान-ए-मख्फी" के नाम से छपा। आज भी ब्रिटिश लाइब्रेरी और नेशनल लाइब्रेरी ऑफ पेरिस में राजकुमारी के लिखी पांडुलिपियां सहेजी हुई हैं। जैबुन्निसा की शख्सियत का अंजादा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि मुगल खानदान में उसके आखिरी शासक बहादुर शाह ज़फर के अलावा जेबुन्निसा की शायरी को ही दुनिया सराहती है। मिर्जा गालिब के पहले वह अकेली शायरा थी जिनकी रुबाइयों, गज़लों और शेरों के अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच, अरबी सहित कई विदेशी भाषाओं में हुए हैं।
बताया जाता है कि कैद में रहने के दौरान भी जैबुन्निसा को चार लाख रुपये का सालाना शाही भत्ता मिलता था, जिसे वह विद्वानों को प्रोत्साहन देने और प्रतिवर्ष ‘मक्का मदीना’ जाने वालों पर खर्च करती थी।
20 साल तक कैद में रहने के बाद कैद में ही जेबुन्निसा की मृत्यु हो गयी।
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Zeb-un-Nissa, real daughter of Aurangzeb
Aurangzeb (November 3, 1618 – March 3, 1707)
Zebunnisa was the real daughter of Aurangzeb, the most brutal ruler of Indian history. Despite being a Muslim sect, Zebunnisa was a devotee of Krishna and has written many works immersed in Krishna devotion. Many books and stories were written on Aurangzeb, but his daughter Zebunnisa remained almost in oblivion. Somewhere in the folklore, there are definitely tales of this princess, who was also a great poet. Fearing her father, she used to hide in gatherings and mushairas.
Zebunnisa was the eldest child of the Mughal ruler Aurangzeb and Begum Dilras Bano. There is no specific mention of Zebunnisa's childhood, except that she was engaged to her cousin Suleiman Shikoh, but the marriage could not take place due to Suleiman's early death.
Zebunnisa was a kind woman and always helped people in their times of need. She took interest in music and is said to be the best singer among women of her time. She was also proficient in the use of weapons and participated in the war several times.
Zebunnisa was very fond of reading. He had mastery in subjects like philosophy, geography, history. At a very young age, Zebunnisa had explored the vast library of the palace, and then books were imported for her from outside. Aurangzeb was very fond of his intelligent daughter. They used to give him 4 lakh gold asharfis for overhead expenses. With this money, Zebunnisa also started the translation of texts into common language.
With time, Zebunnisa emerged as a great poet. Even he started being called in Mushairas, but his fanatical father did not approve of it at all. So Zebunnisa started attending the gatherings secretly. Even the court poets of Aurangzeb himself used to invite Zebunnisa to the gatherings. Zebunnisa used to write poems in Persian and used to write poems under the name "Makhfi" to hide her name.
It is said that Zebunnisa had seen Bundela Maharaja Chhatrasal in one such program, since then Zebunnisa fell in love with him. Then Zebunnisa tried to deliver the love letter to Chhatrasal at the hands of one of her maidservants, but that love letter got in the hands of Aurangzeb. Then due to his enmity with Maharaja Chhatrasal, Aurangzeb silenced Zebunnisa.
Jebunnisa was also in love with Chhatrapati Shivaji Maharaj. Zebunnisa had heard the heroic stories of Shivaji Maharaj. When she saw Chhatrapati Shivaji Maharaj in the fort of Agra, she became crazy about Chhatrapati. This time Zebunnisa was successful in conveying her love message to Chhatrapati, but Chhatrapati Shivaji Maharaj rejected his love proposal. On coming to know about this, the cruel Aurangzeb imprisoned his own daughter in the Salimgarh Fort of Delhi in 1691.
The courage of the princess, who was imprisoned directly from the palaces, did not diminish even then. Even after being imprisoned in the fort, she continued to write Ghazals, Sher and Rubaiyan. During his imprisonment of 20 years, he composed about 5000 works, the compilation of which was published after his death as "Diwan-e-Makhfi". Even today, manuscripts written by the princess are preserved in the British Library and the National Library of Paris.The personality of Zaibunnisa can also be gauged from the fact that apart from her last ruler Bahadur Shah Zafar in the Mughal family, the world appreciates the poetry of Zebunnisa. Before Mirza Ghalib, she was the only poet whose Rubais, Ghazals and Shers have been translated into many foreign languages including English, French, Arabic.
It is said that even while in captivity, Zaibunnisa received an annual royal allowance of four lakh rupees, which she used to encourage scholars and go to Mecca Medina every year.
After being in captivity for 20 years, Zebunnisa died in captivity.
superb information great job mem
ReplyDeleteGreat story. Regards.
ReplyDeleteजय श्री राधे कृष्णा रूपा जी 👍👌🏻👌🏻
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा 🙏
Deleteबहुत बढिया जानकारी 🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteमेरे लिए सर्वथा नई जानकारी।
ReplyDeleteक्रूर शासक औरंगजेब की
ReplyDeleteसगी बिटिया थी जैबुन्निसा
बड़ा ही नायाब था उसकी
जिंदगी का हरेक किस्सा
महफिले-शिरकत करती
लिखने-गाने की शौकीन
औरंगजेब को बेटी की
दीवानगी लगती तौहीन
बेहतरीन शायरा थी वो
श्रीकृष्ण की थी दीवानी
कैद करके औरंगजेब ने
नहीं करने दी मनमानी
महाराजा छत्रसाल और
शिवाजी पर हुई फिदा
गुमनामी में ही दुनिया से
वो तो हो गई थी विदा
उसकी लिखी रचनाएँ
दीवाने-मख्फी मौजूद है
उसकी सारी खासियत
सब उसमें ही मौजूद है
लोक कथाओं में कहीं
तो इसके किस्से दर्ज है
खुलकर जीने ना दिया
जमाना तो खुदगर्ज है
🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏
बहुत खूब 👌👌
Deleteबिल्कुल नई जानकारी👌👌👍
ReplyDeleteरोचक जानकारी 👍
ReplyDeleteइस type की और भी जानकारी दिया करो.. Means जो बाते किसी को पता ना हो..
ReplyDeleteजी बिल्कुल, प्रयास जारी है..
Deleteअद्भुत
ReplyDeleteक्या बात है रूपा जी 🥰🥰😍😍👍
ReplyDeleteएक खूबसूरत शायला का दुखद अंत,कभी भी हार न मानने बाली ,शायला को बहादुरी का सलाम।।
ReplyDeleteMem sunder jankari itihas ki
ReplyDeleteअच्छी जानकारी
ReplyDeleteGood one
ReplyDeleteBahut khoob
ReplyDeleteजेबुन्निसा का तो कभी नाम तक नहीं सुना, इनके जैसे कितने होंगे जिनकी कोई जानकारी ही नहीं है। औरंजेब की पुत्री का कृष्ण भक्त और दयालु होने के कारण ही शायद इतिहास से गायब हैं।
ReplyDeleteजेबुन्निसा का तो कभी नाम भी नहीं सुना था
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteShe was a very intellectual.
ReplyDeleteShe was very intellectual.
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