शाकंभरी देवी मां (Maa Shakambhari devi)
शाकंभरी देवी मां का अति प्राचीन पावन सिद्ध पीठ उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के शिवालिक पर्वतमाला के जंगलों में एक बरसाती नदी के किनारे हैं। शाकंभरी देवी का वर्णन स्कंद पुराण मार्कंडेय पुराण भागवत आदि पुराणों में मिलता है मां का यही शक्तिपीठ देवी का नित्य स्थान है। कहा जाता है कि माता यहां स्वयंभू स्वरूप मेंप्रकट हुई थी जनश्रुति के अनुसार जगदंबा के स्थान के प्रथम दर्शन एक चरवाहे ने किए थे जिस की समाधि आज भी मंदिर परिसर में बनी हुई है।मां के दर्शन के पूर्व यहां देवी के अनन्य भक्त बाबा भूरा देव के दर्शन करने का विधान है,जिन्होंने देवासुर संग्राम में शामिल होकर अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था।माता जगदंबा ने प्रसन्न होकर भूरा देव को यह वरदान दिया था कि जो भी प्राणी मेरे दर्शनार्थ आएगा वह प्रथम भूरादेव के ही दर्शन करेगा।
शाकंभरी देवी मां के वैसे तो अनेक धाम है लेकिन सहारनपुर की जंगली पहाड़ियों में विराजमान सिद्ध भवन की छटा ही कुछ निराली है। यह स्थान समुद्र तल से लगभग 448 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, और पहाड़ी की तलहटी में मां का मंदिर है। 15 -16 सीढ़ियां चढ़ने के पश्चात मां के अद्भुत स्वरूप के दर्शन होते हैं। संगमरमर के चबूतरे पर जिस पर चांदी मढ़ी हुई है, माता अपने चारों स्वरूपों और बाल गणेश के साथ विराजमान हैं। माता के चारों स्वरूप सुंदर पोशाकों और सोने व चांदी के आभूषणों से अलंकृत हैं। मां के दाईं ओर भीमा एवं भ्रामरी देवी तथा बायीं और शताक्षी देवी प्रतिष्ठित हैं।देश में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां दुर्गा के 4 रूपों के दर्शन एक साथ होते हैं।
मां से शाकंभरी देवी जी साक्षात लक्ष्मी स्वरूपा है शाकंभरी देवी जी भगवान विष्णु के ही आग्रह करने पर शिवालिक की दिव्य पहाड़ियों पर स्वयं स्वरूप में प्रकट हुई थीं। माता शाकंभरी के स्वरूप का विस्तृत वर्णन दुर्गा सप्तशती के मूर्ति रहस्य अध्याय में मिलता है।
प्राचीन सिद्ध 108 महाशक्तिपीठ शाकम्भरी देवी सिद्धपीठ, पौराणिक कथा
महाभारत के वनपर्व के अनुसार शाकम्भरी देवी ने शिवालिक पहाड़ियों मे सौं वर्ष तक तप किया था। महीने के अंतराल मे एक बार शाकाहारी भोजन का आहार करती थीं। उनकी कीर्ति सुनकर ऋषि- मुनि उनके दर्शन को आये। देवी ने उनका स्वागत भी शाक से ही किया तभी वह शाकंभरी के नाम से जाने जाने लगी । इसका अर्थ यह है की देवी केवल शाकाहारी भोजन का भोग ही ग्रहण करती है।
मां शाकंभरी की पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, एक समय जब पृथ्वी पर दुर्गम नामक दैत्य ने आतंक का माहौल पैदा किया। इस तरह करीब सौ वर्ष तक वर्षा न होने के कारण अन्न-जल के अभाव में भयंकर सूखा पड़ा, जिससे लोग मर रहे थे। जीवन खत्म हो रहा था। उस दैत्य ने ब्रह्माजी से चारों वेद चुरा लिए थे।तब आदिशक्ति मां दुर्गा का रूप मां शाकंभरी देवी में अवतरित हुई, जिनके सौ नेत्र थे। उन्होंने रोना शुरू किया, रोने पर आंसू निकले और इस तरह पूरी धरती में जल का प्रवाह हो गया। अंत में मां शाकंभरी दुर्गम दैत्य का अंत कर दिया।
सर्वव्यापी और सर्वविदित है पुरातन काल मे माँ शाकम्भरी देवी ही हिमालय की पर्वत शृंखलाओं मे प्रकट हुई थी अतः माँ का सर्वाधिक प्राचीनतम तीर्थ यही है और सतयुग मे देवी सती का शीश भी यहाँ गिरा जो इसकी प्राचीनता की पुष्टि करता है।
माँ शाकम्भरी चौहान सहित अनेक राजपूतो, कश्यपों, ब्राह्मणों, वैश्यों और अनेकों जातियों की कुलदेवी हैं, तथा हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड,दक्षिणी हिमाचल प्रदेश, पंजाब क्षेत्र में भक्तिभाव से कुलदेवी के रूप मे पूजी जाती है। 6वीं से 8वीं शताब्दी के काल मे अनेकों राजपूत अपने राज्य का विस्तार करते हुए राजस्थान पहुंच गए वहाँ जाकर भी उन्होंने अपनी कुलदेवी माँ शाकम्भरी के भव्य मंदिर बनवाये जिनमे साम्भर स्थित शाकम्भरी माता, सकराय माता प्रमुख है और आशाएं पूरी करने वाली माँ शाकम्भरी 'आशापुरा' नाम से भी विख्यात हुईं।
Shakambhari Devi Maa
The very ancient Siddha Peeth of Shakambhari Devi Maa is situated on the banks of a rainy river in the forests of Shivalik ranges of Saharanpur district of Uttar Pradesh. The description of Shakambhari Devi is found in the Skanda Purana, Markandeya Purana, Bhagwat etc. Puranas, this Shaktipeeth of the mother is the regular place of the Goddess. It is said that the mother had appeared here in a self-styled form. According to folklore, a cowherd had the first sight of the place of Jagdamba, whose tomb still remains in the temple premises. There is a law to have darshan of those who had sacrificed their lives by participating in the Devasura war. Mother Jagdamba was pleased and gave this boon to Bhura Dev that whoever comes to see me will first see Bhuradev only.
Although there are many dhams of Shakambhari Devi Maa, but the shade of Siddha Bhavan, which is situated in the wild hills of Saharanpur, is something unique. This place is situated at an altitude of about 448 meters above sea level, and at the foot of the hill is the temple of the mother. After climbing 15 -16 steps, the wonderful form of the mother is seen. On a marble platform covered with silver, the mother is seated with her four forms and child Ganesha. The four forms of the mother are adorned with beautiful dresses and ornaments of gold and silver. Bhima and Bhramari Devi are placed on the right side of the mother and Shatakshi Devi on the left. This is the only temple in the country where four forms of Durga are seen simultaneously.
Shakambhari Devi ji is the true form of Lakshmi from the mother, Shakambhari Devi ji appeared in her own form on the divine hills of Shivalik on the request of Lord Vishnu. A detailed description of the form of Mata Shakambhari is found in the Murti Rahasya chapter of Durga Saptashati.
Ancient Siddha 108 Mahashaktipeeth Shakambhari Devi Siddhapeeth, Mythology
According to the Vanparva of Mahabharata, Shakambhari Devi meditated for a hundred years in the Shivalik hills. She used to eat vegetarian food once in a month. Hearing his fame, sages and sages came to see him. The goddess also welcomed him with Shaka, only then she came to be known as Shakambhari. This means that the goddess enjoys only vegetarian food.
According to the story described in the mythological texts of Maa Shakambhari, at a time when a demon named Durgam created an atmosphere of terror on the earth. In this way, due to lack of rain for about a hundred years, there was a severe drought due to lack of food and water, due to which people were dying. Life was coming to an end. That demon had stolen all the four Vedas from Brahmaji. Then the form of Adishakti Maa Durga incarnated in Maa Shakambhari Devi, who had a hundred eyes. They started crying, tears came out on crying and thus water flowed in the whole earth. In the end, Maa Shakambhari put an end to the insurmountable demon.
It is omnipresent and well known that in ancient times, Goddess Shakambhari had appeared in the mountain ranges of the Himalayas, so this is the oldest pilgrimage of the mother and the head of Goddess Sati also fell here in Satyuga, which confirms its antiquity.
Maa Shakambhari is the Kuldevi of many Rajputs, Kashyaps, Brahmins, Vaishyas and many castes including Chauhan, and is worshiped as Kuldevi with devotion in Haryana, Western Uttar Pradesh, Uttarakhand, Southern Himachal Pradesh, Punjab region. During the period of 6th to 8th century, many Rajputs expanded their kingdom and reached Rajasthan, even after going there they built grand temples of their Kuldevi Maa Shakambhari, in which Shakambhari Mata, Sakrai Mata is prominent in Sambhar and the hope fulfilling mother Shakambhari 'Ashapura'. Also known by name.
माँ शाकम्भरी की जय।
ReplyDeleteसुंदर लेखन, सुंदर व्यवस्थापन शब्दों का।
ReplyDeleteJai maata Di.
ReplyDeleteJai MAA Shakambhari Devi 🙏🙏👣
ReplyDeleteJai mata di👏👏
ReplyDeleteJai mata di 🙏
ReplyDeleteजय माता दी
ReplyDeleteजय मां भवानी की
ReplyDeleteजय माता की🙏
ReplyDelete🙏🏻 जय माता दी 🙏🏻
ReplyDeleteमाता रानी आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करें 🙏🏻
Nice
ReplyDeleteकुछ मंदिर ऐसे होते हैं जिसमे मुख्य मंदिर के पहले या बाद में किसी दूसरे मंदिर के दर्शन की मान्यता होती है तभी दर्शन पूरा माना जाता है। शाकंभरी देवी मंदिर के साथ ऐसी ही मान्यता है आज जानकारी मिली।
ReplyDeleteजय माता दी
जय माता शाकंभरी देवी।
ReplyDelete🕉️💐🚩🙏
Nice
ReplyDeleteजय मां शाकंभरी देवी🙏🙏
ReplyDeleteJai Mata di 🙏
ReplyDeleteJai mata di
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