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दूरदर्शी बनो : पंचतंत्र

दूरदर्शी बनो

यद्भ भविष्यो विनश्यति

"जो होगा देखा जाएगा" कहने वाले नष्ट हो जाते हैं। 

दूरदर्शी बनो : पंचतंत्र

एक तालाब में तीन मछलियां थीं: अनागतविधाता, प्रत्युत्पन्नमति और यद्भविष्य। एक दिन मछियारों ने उन्हें देख लिया और सोचा इस तालाब में खूब मछलियां हैं। आज तक कभी इसमें जाल भी नहीं डाला है। इसलिए यहां खूब मछलियां हाथ लगेगी। उस दिन शाम अधिक हो गई थी। खाने के लिए मछलियां भी पर्याप्त मिल चुकी थीं। अतः अगले दिन सुबह ही वहां आने का निश्चय करके वे चले गए। 

दूरदर्शी बनो : पंचतंत्र

अनागतविधाता नाम की मछली ने उनकी बात सुनकर सब मछलियों को बुलाया और कहा मैने उन मछुआरों की बात सुन ली है। रातों-रात ही हमें यह तालाब छोड़कर दूसरे तालाब में चले जाना चाहिए। एक क्षण की भी देर करना उचित नहीं। 

प्रत्युत्पन्नमति ने भी उसकी बात का समर्थन किया। उसने कहा - परदेश में जाने का डर प्रायः सबको नपुंसक बना देता है। 'अपने ही कुएं का जल पिएंगे'- यह कहकर लोग जन्म भर खारा पानी पीते हैं, वह कायर होते हैं। स्वदेश का यह राग वही गाते हैं, जिनकी कोई और गति नहीं होती। 

दूरदर्शी बनो : पंचतंत्र

उन दोनों की बातें सुनकर यद्भवति नाम की मछली हंस पड़ी। उसने कहा - किसी राह जाते आदमी के वचन मात्र से डरकर हम अपने पूर्वजों के देश को नहीं छोड़ सकते। दैव अनुकूल होगा तो हम यहां भी सुरक्षित रहेंगे। प्रतिकूल होगा तो अन्यत्र जाकर भी किसी के जाल में फंस जाएंगे। मैं तो नहीं जाती, तुम्हें जाना हो तो जाओ।

उसका आग्रह देखकर अनागतविधाता और प्रत्युत्पन्नमति दोनों सपरिवार पास के तालाब में चली गईं। यदभविष्य अपने परिवार के साथ उसी तालाब में रही। अगले दिन सुबह मछुआरों ने उस तालाब में जाल फैलाकर सब मछलियों को पकड़ लिया। 

इसीलिए मैं कहती हूं कि 'जो होगा देखा जाएगा' कि नीति विनाश की ओर ले जाती है। हमें प्रत्येक विपत्ति का उचित उपाय करना चाहिए। 

दूरदर्शी बनो : पंचतंत्र

यह बात सुनकर टिटिहरे ने टिटिहरी से कहा - मैं यद्भविष्य जैसा मूर्ख और निष्कर्ष नहीं हूं। मेरी बुद्धि का चमत्कार देखती जा। मैं अभी अपनी चोंच से पानी बाहर निकाल कर समुद्र को सुखा देता हूं। 

टिटिहरी - समुंद्र के साथ तेरा बैर तुझे शोभा नहीं देता। इस पर क्रोध करने से क्या लाभ? अपनी शक्ति देखकर हमें किसी से बैर करना चाहिए, नहीं तो आग में जलने वाले पतंगे जैसी गति होगी।

टिटिहरा फिर भी अपनी चोंच से समुद्र को सुखा डालने की डींगे मरता रहा। तब टिटिहरी ने फिर उसे मना करते हुए कहा कि जिस समुंद्र को गंगा - यमुना जैसी सैकड़ों नदियां निरंतर पानी से भर रही हैं, उसे तू अपनी बूंद भर उठाने वाली चोंच से कैसे खाली कर देगा?

 टिटिहरा तब भी अपने हठ पर तुला रहा। तब टिटिहरी ने कहा - यदि तूने समुंद्र को सुखाने का हठ ही कर लिया है, तो अन्य पक्षियों की भी सलाह लेकर काम कर। कई बार छोटे-छोटे प्राणी मिलकर अपने से बहुत बड़े जीव को भी हरा देते हैं। जैसे चिड़िया, कठफोड़े और मेंढक ने मिलकर हाथी को मार दिया था।

टिटिहरे ने पूछा - कैसे? 

टिटिहरी ने तब चिड़िया और हाथी की यह कहानी सुनाई। 

एक और एक ग्यारह

To be continued ...

18 comments:

  1. Good story...ye to ekta Kapoor ke serial jaisa ha.. next episode ke intzaar me😝😝

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  2. Bahut hi shikshaprad kahani hai.

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  3. पंचतंत्र की कहानियां रोचक होने के साथ शिक्षाप्रद भी होती हैं।
    इस दुर्लभ संग्रह को हम सभी तक पहुँचाने के लिए आपका हृदय से आभार।

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  4. अच्छी कहानी

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  5. प्रेरणादायक और शिक्षाप्रद कहानी, सबके अपने अपने तर्क हैं लेकिन कर्म हमेशा से प्रधान है। उचित समय पर उचित निर्णय और उस निर्णय के अनुसार कर्म ही सफलता की कुंजी है।

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  6. दूरदर्शी सोच हमेशा सफलता की तरफ ले जाती है.. अच्छी कहानी 👌👌

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  7. दूरदर्शी सोच हमेशा सफलता की तरफ ले जाती है.. अच्छी कहानी 👌👌

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  8. कितना आसान है कहना
    कि जो होगा देखा जाएगा
    विपदा आने पर क्या होगा
    फिर वो केवल पछताएगा
    दूरदर्शी सोच रखोगे फिर
    सब ही अच्छा हो जाएगा
    डरकर जिओगे ये जिंदगी
    सब-कुछ खत्म हो जाएगा
    हौसला रखना मजबूत सदा
    हर विपदा से तु पार पाएगा
    🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏

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