बात सीधी थी पर || Baat Seedhi Thi Par ||
कुँवर नारायण (19 सितम्बर 1927 - 14 नवम्बर 2017) एक हिन्दी साहित्यकार थे। नई कविता आन्दोलन के सशक्त हस्ताक्षर कुँवर नारायण अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्तक (1941) के प्रमुख कवियों में रहे हैं। 2009 में उन्हें वर्ष 2005 के लिए भारत के साहित्य जगत के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
आज कुंवर नारायण जी की सुप्रसिद्ध कविता व्याख्या सहित प्रस्तुत है -
इस कविता में कथ्य के माध्यम से द्वन्द्व को उकेरते हुए भाषा की सहजता की बात की गई है। कवि का कहना है कि हमें सीधी-सरल बात को बिना पेंच फँसाये सीधे-सरल शब्दों में कहने का प्रयास करना चाहिए। भाषा के फेर में पङने से बात स्पष्ट नहीं हो पाती है, कविता में जटिलता बढ़ जाती है तथा अभिव्यक्ति में उलझाव आ जाता है। अतएव अच्छी बात अथवा अच्छी कविता के लिए शब्दों का चयन या भाषागत प्रयोग सहज होना नितान्त अपेक्षित है। तभी हम कविता के द्वारा सीधी बात कह सकते है।
बात सीधी थी पर
व्याख्या-
कवि कहते हैं कि मेरे मेन में एक सीधी सरल सी बात थी, जिसे मैं कहना चाहता था; परन्तु उसे व्यक्त करने के लिए बढ़िया-सी भाषा का प्रयोग करने से अर्थात् भाषायी प्रभाव दिखाने के प्रयास से उसकी सरलता समाप्त हो गई। आशय यह है कि शब्द-जल में सरल बात भी जटिल हो गई। कवि कहता है तब उस बात को कहने के लिए मैनें भाषा को अर्थात् शब्दों को बदलने का प्रयास किया, भाषा को उल्टा-पल्टा, शब्दों को काट-छाँटकर आगे-पीछे किया। मैंने ऐसा प्रयास इसलिए किया कि मूल बात सरलता से व्यक्त हो सके।
मैंने कोशिश की कि या तो मेरे मन की बात सहजता से व्यक्त हो जाए या फिर भाषा के जंजाल से छूटकर बाहर आये; परन्तु ये दोनों बातें नही हो सकी। इस प्रयास में स्थिति खराब होते गई, भाषा अधिक जटिल हो गई और मेरी बात उसके जाल में उलझकर रह गई। इस तरह भाषा का परिष्कार करने के चक्कर में बात और भी जटिल हो गई।
व्याख्या-
कवि कहते हैं कि भाषा के चक्कर में फँसी बात को धैर्यपूर्वक सुलझाने की कोशिश करने पर वह और अधिक उलझ गई। जिस प्रकार पेंच ठीक से न लगे उसे खोलकर बार-बार कसने से उसकी चूङियाँ मर जाती है और तब जबर्दस्ती किया गया प्रयास निष्फल रहता है। इसी प्रकार बेवजह भाषा का पेंच कसने से बात सहज और स्पष्ट होने के स्थान पर और भी क्लिष्ट हो जाती है। कवि कहता है कि ऐसा गलत करने पर वाह-वाह करने वाले और शाबाशी देने वाले लोगों की कमी नहीं थी। उनके प्रोत्साहन में मेरी उलझन और भी बढ़ जाती थी और वे बात बिगङने से खुश होते थे।
भाषा के साथ जबर्दस्ती करने का वही परिणाम हुआ जिसका कवि को डर था। भाषा को तोङने-मरोङने के चक्कर में उसके मूल भाव का प्रभाव ही नष्ट हो गया। पेंच को जबर्दस्ती कसने से उसकी चूङी मर गई और पेंच बेकार ही घूमने लगा, इसी प्रकार भाषा की बनावट के चक्कर में उसका मूल कथ्य नष्ट हो गया और भाषा व्यर्थ में प्रयुक्त होती रही।
उसी जग ठोंक दिया।
ऊपर से ठीक ठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत!
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा-
’’क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा ?
व्याख्या-
कवि कहते हैं कि भाषा की तोङ-मरोङ में, उसमें पेच कसने में लगे रहने में जब मैं असमर्थ रहा, तब अपनी अभिव्यक्ति को चमत्कारी शब्दों में ठूँस-ठाँसकर ऐसे ही छोङ दिया। जिस प्रकार चूङियाँ मर जाने से पेंच को कील की तरह ठोंककर छोङ दिया जाता है, उसी तरह मैंने कथ्य के साथ किया। तब वह कविता ऊपर से तो अच्छी और ठीक-ठाक प्रतीत हुई; परन्तु अन्दर से वह एकदम ढीली एवं प्रभावहीन हो गई। तब उस अभिव्यक्ति में न तो कसावट थी और न प्रभावात्मकता थी अर्थात् उसमें अपेक्षित प्रभाव नहीं रह गया था।
कवि कहते हैं कि तब ’बात’ ने शरारती बच्चे की तरह मुझसे पूछा कि तुम क्यों व्यर्थ की शाब्दी-क्रीङा कर रहे हो ? तुम मुझसे खेलते हुए भी व्यर्थ का परिश्रम क्यों कर रहे हो ? मुझे अपना पसीना पोंछते देखकर बात ने कहा कि तुम व्यर्थ में पसीना बहा रहे हो। क्या तुमने अब तक भाषा को सरलता, सहजता और उपयुक्तता से प्रयोग करना नहीं सीखा ? यह तुम्हारी अक्षमता तथा अयोग्यता है, अप्रभावी अभिव्यक्ति की कमी है।
अज्ञेय जी की सीधी, सरल, मृदुल कविता के साथ-साथ उतनी ही सीधी,सरल और मृदुल तस्वीर...क्या बात है👌😍
ReplyDeleteशुभ रविवार 💐💐
Nice line and you have sweet Smile ☺️😊
ReplyDeleteवाह क्या बात है
ReplyDeleteHappy sunday
ReplyDeleteHappy Sunday 🌹🌹
ReplyDeleteWah kya baat hai 😘😘😘😘mast pic
ReplyDeleteभाषा में विशिष्ट शब्दों का प्रभाव
ReplyDeleteले आता है सोच-समझ में अभाव
सरल-सहज शब्दों का समावेश ही
समझाता उन सब तर्कों का भाव
कठिन शब्दों का उपयोग-प्रयोग
वाह-वाही-शाबाशी दिला देता है
प्रभावशाली बन जाता कथन पर
दिमाग की नसों को हिला देता है
सरल शब्दों का ही इस्तेमाल करो
जो हुआ उसका मत मलाल करो
🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏
Happy Sunday
ReplyDeleteVery good. Happy sunday. A well written article.
ReplyDeleteWhite lilacs. It's beautiful. The same as poetry. Thank you for smiling.
ReplyDelete👌👌 Happy Sunday 😊
ReplyDeleteHappy sunday
ReplyDeleteHappy Sunday
ReplyDeleteइतवार को और अधिक खुशनुमा बनाती कुंवर नारायण जी की बेहतरीन कविता,व्याख्या के साथ।
ReplyDeleteहैप्पी संडे।
शब्दों को लिख़ते लिख़ते
ReplyDeleteन जाने क्यों मेरी क़लम रुक जाती है ,
उनके आहट से क़लम की नौक में जान आ आती है,
उनके लम्बे डग भरने से कविता
लिख़ने की नई ज्योत जग जाता है ,
उल्लास जगने से शब्दों को
पिरो कर नई कविता बनाता हूँ ,
उस कविता में दिल के विचार व्यक्त करता हूँ ,
कविता की रचना उनके चित्रोपाख्यान पे करता हूँ ,
उस सहज ,सुरुचिपूर्ण और सुहावना अनुवाक्य
की दिल-ए -दास्ता की आलोचना उनसे करवाता हूँ,
अपने रूके हुए क़लम को एक नई डगर सिखाता हूँ
अपने रूके हुए शब्दों को नई फ़ासला दिखता हूँ !!
Hpy Sunday ji 🙏🏻
ReplyDeletelajwab..bemishaal. .
ReplyDeleteSansaar..
ReplyDeleteBahut khoob.👌👌
ReplyDeleteकविता तो कविता है अगर सरल भाषा में अनुवाद न हो तो पूरी पल्ले नहीं पड़ती। बहुत क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग से कवि के ज्ञान का तो पता चलता है लेकिन बिना अनुवाद के अधिकांश लोगों को समझ नहीं आता।
ReplyDeleteशुभ रविवार
Baat sidhi par...kahte kahte samjhate samjhate tedhi Medhi ho gyi😉😉😝😝
ReplyDeleteVery nice pic👌👌
ReplyDeleteVery Nice..
ReplyDeleteNice pic
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