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सदा सच बोलो / साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप

सदा सच बोलो

झूठ बोलने का तात्पर्य कुछ ऐसा कहने से होता है, जो व्यक्ति जानता है कि गलत है या जिसकी सत्यता पर व्यक्ति ईमानदारी से विश्वास नहीं करता और यह इस इरादे से कहा जाता है कि व्यक्ति उसे सत्य मानेगा। 

सदा सच बोलो / साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप

सदा सच बोलने का पाठ हमें बचपन से पढाया जाता है, पर हमें सबसे बडा झटका उस वक्त लगता है, जब सच बोलने पर हमें पहली बार डांट पडती है और यहीं से हमारे सामाजिक जीवन में झूठ की एंट्री होती है। छोटी उम्र में ही हमें किताबी उपदेशों और व्यावहारिक जीवन का फर्क बखूबी समझ आने लगता है।

सच बोलना सचमुच बहुत अच्छी बात है, लेकिन ऐसा सच किस काम का जिससे किसी मासूम बच्चे का दिल टूट जाए, किसी के रिश्ते में दरार पड जाए..। ऐसा सच, सच तो जरूर है, पर प्रिय नहीं। तभी तो कहा गया है-

सदा सच बोलो / साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप
सत्यम् प्रियम् ब्रूयात्,
न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम्।
प्रियंच नानृतम् ब्रूयात्
एष धर्म: सनातना।।

मानव-स्वभाव को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि अपनी सुविधाओं के अनुसार मनुष्य झूठ बोलने से बाज नहीं आता, जिससे उसे तो राहत मिल जाती है, लेकिन व्यापक स्तर पर अन्य सदस्यों को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है, इसलिए लोगों के बीच यह सूक्ति प्रचलित एवं प्रचारित है कि ‘सच बोलने से बड़ा दूसरा कोई तप (तपस्या) नहीं और झूठ बोलने से बड़ा कोई पाप नहीं’ ।

कहा जा सकता है कि सत्य बोलना बहुत हद तक सामाजिक मूल्यों की कुंजी है, जिससे सभी सामाजिक मूल्य सम्बन्धित हैं । इसके ठीक विपरीत झूठ बोलना सबसे बढ़ा व्यक्तिगत एवं सामाजिक दुर्गुण है ।

सदा सच बोलो / साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के दर्शन के दो ही मूल आधार हैं- सत्य एवं अहिंसा । गाँधीजी ने इस तथ्य को पहचाना कि यदि लोगों में सत्य के प्रति आस्था जगा दी जाए, तो समाज की नैतिकता का स्तर स्वतः ही अत्यधिक ऊँचा उठ जाएगा ।

सभी नैतिकताओं की जड़ यही है, इसलिए उन्होंने सत्य बोलने पर इतना अधिक जोर दिया । वस्तुतः सत्य के मार्ग पर चलने वाले साहसी एवं वीर, जबकि सत्य से दूर भागने वाले भीरु एवं कायर कहलाते हैं ।

सत्य आत्मसम्मान का प्रतीक है और यह मनुष्य को स्वाभिमानी बनाता है, जबकि असत्य आत्मग्लानि को विकसित करता है । ‘सत्य’ को ‘ईश्वर’ का पर्याय मानते हुए ‘कबीरदास’ ने कहा है-

सदा सच बोलो / साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
जाके हिरदै साँच है, ताके हिरदै आप ।।”

आज के उत्तर-आधुनिक समाज में जहाँ उपभोक्तावादी संस्कृति की प्रधानता के कारण भौतिक सुख-सुविधाओं की उपलब्धि ही एकमात्र अन्तिम लक्ष्य बन गया है, वहाँ भौतिक सफलताओं की प्राप्ति के लिए झूठ बोलना एक सामान्य प्रचलन है ।

ऐसी स्थिति में समाज के सदस्यों की नैतिकता का पतन अपरिहार्य है। आज सामाजिक मूल्यों का ह्रास स्पष्टतः परिलक्षित है। सामाजिक मूल्यों को क्षयशील होने से बचाने के लिए ‘सत्यता’ का पालन करना अनिवार्य है, हालाँकि सत्य कथन का पालन करना सबसे कठिन ‘तप’ है ।

English Translate

always speak the truth

Lying refers to saying something that a person knows is wrong or the truth of which the person does not sincerely believe and it is said with the intention that the person will believe it to be true.

The lesson of always telling the truth is taught to us from childhood, but we get the biggest shock when we get scolded for the first time for speaking the truth and from here the entry of lies in our social life. At an early age, we begin to understand the difference between book teachings and practical life.

Telling the truth is really a good thing, but what is the use of such a truth that breaks the heart of an innocent child, breaks someone's relationship... Such is the truth, of course it is true, but not dear. That's why it is said-

सदा सच बोलो / साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप

Satyam Priyam Bruyat,
Na bruyat satyam apriyam.
Priyancha Nanritham Bruyat
Ash Dharma: Sanatana.

Keeping in mind the human nature, it can be said that according to his convenience, a man does not desist from lying, which gives him relief, but on a large scale other members have to pay the price, so there is a difference between the people. This proverb is popular and propagated that 'there is no greater austerity (penance) than telling the truth and there is no greater sin than telling a lie'.

It can be said that speaking the truth is to a large extent the key to social values, to which all social values ​​are related. On the contrary, lying is the biggest personal and social evil.

The philosophy of the Father of the Nation Mahatma Gandhi has only two basic foundations - truth and non-violence. Gandhiji recognized the fact that if the faith in the truth is instilled in the people, the morality level of the society would automatically rise to a very high level.

This is the root of all morality, which is why he laid so much emphasis on speaking the truth. In fact, those who walk on the path of truth are called courageous and brave, while those who run away from truth are called fearful and cowardly.

Truth is a sign of self-respect and makes a man self-respecting, whereas falsehood develops self-contempt. Considering 'Truth' as ​​synonymous with 'God', 'Kabir Das' has said-

सदा सच बोलो / साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप
Mold does not equal penance, lie equals sin.
Jake hirdai saanch hai, ke hirdai you aap.

In today's post-modern society, where the achievement of material comforts has become the only ultimate goal due to the predominance of consumerist culture, there is a common practice to lie for the attainment of material successes.

In such a situation the degradation of morality of the members of the society is inevitable. Today the decline of social values ​​is clearly reflected. To save social values ​​from decaying, it is necessary to follow 'truthfulness', although the most difficult to follow truth statement is 'tapas'.

18 comments:

  1. वस्तुतः सच और झूठ के बीच मे एक बारीक लकीर होती है। झूठ बोलना जितना सरल लगता है दीर्घ अवधि में उसके उतने ही अधिक दुष्परिणाम होते हैं। कभी भी सच बोलने पर आत्मा में एक खुशी की अनुभूति होती है।

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    1. सही बात है सर, झूठ बोलना सरल है। पर सच बोलने बाद दिल पर कोई बोझ नहीं होता।

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  2. सच जी बोलना चाहिए

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  3. जरूरत के हिसाब से कभी कभी झूठ बोलना पड़ता है।

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  4. झूठ का भी अपना भी महत्व होता है सभी लोग इसके महत्व के बारे में नहीं जानते हैं,कभी कभी झूठ बोल कर बङे बङे काम हो जाते हैं।

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  5. सांच को आंच नहीं..
    अच्छा लेख 👌👌

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  6. आज के समय में सच की राह पर चलना बहुत कठिन है। अगर किसी दूसरे का नुकसान न हो तो वैसा झूठ भी गलत नहीं है, बोलना पड़ता है। यथा संभव सच ही बोलना चाहिए।

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  7. A very good topic. Lie. We say: "if you don't know what to say, tell the truth". Unfortunately, all social values - what is the most valuable ... we lose along the way.

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  8. झूठ नही बोलना चाहिए, ये बात तो बिल्कुल सही है। पर किसी की भलाई के लिए बोले गए झूठ में कोई दिक्कत नहीं है। अब हरिश्चंद्र वाला समय नहीं।

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