" काम करना भी एक नशा है "
हम लोगों ने शायद कभी इस बात पर ध्यान न दिया हो परन्तु अक्सर ऐसा होता है कि जब तक कोई व्यक्ति किसी बड़े पद पर या राजनीतिज्ञ पदों पर होता है, तब तक बिलकुल स्वस्थ मालूम होता है। जैसे ही पदों से हटता है, कि बीमार होना शुरू हो जाता है। बड़े पदों पर आशीन व्यक्ति या राजनीतिज्ञ पदों से हटकर ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहते। पदों पर जिंदा रहते हैं। और न केवल जिंदा रहते हैं, बडे स्वस्थ रहते हैं। और कई दफे चकित होना पड़ता है, क्योंकि इतने व्यस्त रहकर भी उनका स्वास्थ्य अनूठा मालूम पड़ता है।
लेकिन इसका मनोवैज्ञानिक कारण है कि उन्हें कभी अपना खयाल ही नहीं आता। काम में इस तरह डूबे हैं कि काम एक नशा है, एक शराब है। हम लोग भी जब तक काम में लगे हैं, तब तक सोचते हैं कि कब विश्राम मिल जाए। लेकिन जिस दिन रिटायर हो जाएंगे, उस दिन अचानक पाएंगे कि दस साल उम्र हमारी कम हो गई।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जो आदमी अस्सी साल जीता, वह रिटायर होने के बाद सत्तर साल में मर जाएगा। दरसल, रिटायरमेंट जिस दिन होता है, उसी दिन उम्र से कम हो जाते हैं। क्योंकि नशा छिन जाता है। और जिंदगी भर का नशा था, काम—काम, सुबह से सांझ तक काम। अचानक एक दिन आप पाते हैं कि कोई काम नहीं बचा। नशा टूट जाता है।
काम भी एक नशा है। बहुत—से लोग इसीलिए काम में लगे रहते हैं कि काम में न लगें, तो वे बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे। खाली नहीं बैठ सकते। जो काम में लगा हुआ आदमी है, वह रात में सो भी नहीं सकता। रात में भी उसका मन काम करता है। उसको नींद मुश्किल है। उसका काम ही उसका नशा हो गया है।
English Translate
"Doing work is also an addiction"
We may have never paid attention to this, but it often happens that as long as a person is in a big post or in a political position, then it seems completely healthy. As soon as he leaves his position, he starts getting sick. Persons or politicians holding high positions do not live long apart from their posts. Live in positions. And not only stay alive, the elders stay healthy. And sometimes one has to be surprised, because even after being so busy, his health seems to be unique.
But the psychological reason for this is that they never take care of themselves. They are so engrossed in work that sex is an intoxicant, an alcohol. As long as we are engaged in work, till then we think that when we will get rest. But the day we retire, suddenly we will find that our age has reduced by ten years.
Psychologists say that a man who lives for eighty years will die in seventy years after he retires. Ten years become less than the age on the day of retirement. Because the intoxication is taken away. And there was the intoxication of life, work-work, work from morning till evening. Suddenly one day you find that there is no work left. The addiction breaks.
Work is also an addiction. Many people are engaged in work because they are not engaged in work, then they will be in great trouble. Can't sit still. A man who is engaged in work, he cannot even sleep at night. His mind works even at night. He has trouble sleeping. His work has become his addiction.
वैसे तो कर्म ही जीवन है लेकिन काम के साथ साथ शरीर को आराम की भी आवश्यकता होती है और कुछ समय अपने शरीर और दिमांग को भी शांति रखने के लिए आराम की आवश्यकता होती हैं जहां तक बात है काम करते रहो तो बिमारी नही होती है ये सरासर गलत है बिमारी का काम करने या न करने से कोई लेना देना नहीं, आज बहुत से अधिकारी और नेता है जो कुछ नहीं तो कम से कम हाई बी पी.और सुगर से परेशान हैं..डॉक्टर भी आराम करने की सलाह देते हैं ये तो कुछ और ही हैं।
ReplyDeleteइस लेख में यह कहीं नहीं लिखा है कि सिर्फ काम करो, आराम नहीं करो। बल्कि काम के साथ साथ आराम, व्यायाम और भी बातें साथ के साथ होती जाती है। कोई भी बात कुछ लोगों के लिए नहीं कही जाती, बल्कि ज्यादातर क्या होता है वह कही जाती हैं। ऐसे देखा जाए तो काम न करने वाले स्वस्थ और व्यस्त रहने वाले बीमार हो सकते हैं। एक मनोवैज्ञानिक सर्वे में जो बात कही गई है, इस आर्टिकल में उसकी चर्चा की गई है।
Deleteसाधारण बोल चाल की भाषा में भी कहा गया है खाली दिमाग शैतान का घर।
रही बात हाई बी पी और शुगर की तो आपको पता होना चाहिए के आजकल ये समस्या बच्चों तक में आम हो गई है।
शारीरिक और मानसिक बीमारियां अलग अलग होती। मानसिक बीमारी में मनोचिकित्सक हमेशा खुद को व्यस्त रखने की सलाह देते हैं।
सिर्फ विरोध करना ही अगर मकसद हो तो उसकी कोई बात नहीं। परंतु यदि वास्तविकता देखी जाए तो शुगर और बीपी से कहीं ज्यादा खतरनाक मानसिक रोगी की स्थिति होती है।
Deleteविरोध करना मेरा मकसद नही है कुछ सच्चाई नाम की भी चीज होती है जिससे रूबरू कराना भी आवश्यक होता है
Deleteअच्छा मंत्र है आपका
ReplyDeleteकरो योग
रहो निरोग
कर्म के बिना जिंदगी अंधूरी होती है।
ReplyDelete"व्यस्त रहो मस्त रहो" जो लोग व्यस्त होते उनके दिमाग में बेकार की बातें नहीं आती। यह भी एक वजह होता स्वस्थ होने का।
ReplyDeleteमैं इस पोस्ट से पूरी तरीके से सहमत हूं। मुझे इसके लिए किसी वैज्ञानिक सर्वे की भी आवश्यकता नहीं। मेरे घर में ही उदाहरण है।
हमारे चाचाजी एक सरकारी कर्मचारी थे। 60 साल तक उन्होंने आराम से नौकरी की। उन 60 वर्षों में उन्होंने अपनी नौकरी, बच्चे, परिवार की सारी जिम्मेदारियां बहुत अच्छे से निभाई। उस दौरान उनको शुगर, बी पी की समस्या थी, पर आराम से दावा खाते थे। रिटायरमेंट के बाद उनके साथ के सभी सहकर्मी खुद को किसी न किसी काम में व्यस्त कर लिए...कोई किराना की दुकान खोल दिया तो कोई बच्चों को पढ़ाने लगा। पर चाचाजी कहा करते थे 60 साल तक काम किया है अब तो आराम करने की बारी है। राइटरमेंट के कुछ सालों के बाद ही उन्हें ओवरथिंकिंग की समस्या शुरू हो गई। सभी समझने लगे कि बिजी करो खुद को। उन्होंने किसी की न सुनी। थोड़े ही दिनों में वो डिप्रेशन के शिकार हो गए। मैने आंखों के सामने सब कुछ देखा है, किसी वैज्ञानिक सर्वे की जरूरत ही नहीं।
Nice topic
ReplyDeleteवाह बहुत बढ़िया लिखा 👍
ReplyDeleteVery good, Excellent
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा टॉपिक। व्यस्त रहना जिंदगी में बहुत ज्यादा जरूरी है। इसके मनोवैज्ञानिक पहलू तो है ही परंतु हम इसका असर अपने रोजमर्रा की जिंदगी में भी देख सकते हैं। यह शरीर भगवान की ऐसी संरचना है जिसको जिस सांचे में डाला जाए वह उसी में ढल जाती है। अगर इसको आराम की आदत डाल दी जाए तो यह आराम तलबी हो जाता है फिर मनुष्य थोड़ा सा भी परिश्रम करने में थक जाता है। उसी तरह अगर इस दिमाग को भी आराम तलबी रख दें तो इसमें कचरा भरने लगता है अर्थात बेफिजूल की बातें। खुद को व्यस्त रखना और काम करते रहना शारीरिक और मानसिक दोनों ही स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। यहां पर रिटायरमेंट के बाद की चर्चा की गई है परंतु कुछ संदर्भ में ज्यादातर महिलाओं में जो कामकाजी नहीं हैं, उनके साथ यह समस्या आ रही है। मैं यहां ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहूंगी शिवाय इतना के कि व्यस्तता बहुत जरूरी है।
ReplyDeleteस्वस्थ रहो,व्यस्त रहो,मस्त रहो।प्रत्येक व्यक्ति को इसका पालन करना चाहिए।
ReplyDelete@RupaSin44202771
ReplyDeleteरात में अच्छी नींद लो
दिन भर तो करो काम
करोगे अगर काम तो
फिर मिलेंगे उसके दाम
जब मिलेंगे कुछ दाम तो
फिर थोड़ी-बहुत जायदाद
तो होगी ना अपने ही नाम
बुढ़ापे में भी ना करना कभी
इतना आराम कि अपने ही
शरीर हो जाए बिल्कुल जाम
🙏🤔👣👁👇👁👣🤔🙏
https://twitter.com/RupaSin44202771/status/1450766377053163529
रिटायरमेंट के पहले ही कुछ शौक पाल लेने चाहिए और धीरे धीरे उसकी शुरूवात भी कर देनी चाहिए ताकि रिटायरमेंट पर आप बिल्कुल ही खाली ना हो जाए। बहुत सारे उदाहरण हैं जो रिटायरमेंट के बाद जल्दी ही चले गए और बहुत ऐसे भी हैं जिनके पास रिटायरमेंट के बाद भी फुरसत नहीं है। अपनी अपनी प्लानिंग और ध्यान देने की बात है।
ReplyDeleteअच्छा लेख
सही बात
ReplyDeleteअब ज्यादातर लोग रिटायरमेंट की प्लानिंग करने लगे हैं, यूं कहो कि लोग अब अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो रहे हैं.. कुछ नहीं तो अपनी टेरिस गार्डन ही शुरू कर दिए हैं जिसमें तरह तरह के फूल फल और सब्जियां ऑर्गेनिक तरीके से उगा रहे हैं..योगा, मेडिटेशन से भी अपने आप को फिट रख रहे हैं..एक क्लास वन अधिकारी थे जो रिटायरमेंट के बाद अपने गांव चले गए और वहां वह साइकिल से अपने खेत जाते थे और तमाम तरह के कार्यक्रम, बच्चों को पढ़ाना गौ पालन शुरू कर दिए.
ReplyDeleteव्यस्त रहो मस्त रहो इसका कोई तोड़ नहीं
Nice article
Nice
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लेख। व्यस्त रहना मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी कुछ हद तक आवश्यक है।
ReplyDeleteVyast raho...nirogi raho
ReplyDelete💯% to nahi kah sakte, per vyast rahne ke kuch fayde to jarur hain..