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मोबाइल के इर्द गिर्द घूमती जिंदगी

मोबाइल के इर्द गिर्द घूमती जिंदगी

मोबाइल फोन या सेल फोन आज हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया है। बिना मोबाइल के जीवन जीने की कल्पना भी अब हमें व्यर्थ लगती है। कभी-कभी मोबाइल से हम सभी को परेशानी होने लगती है और यह लगने लगता है कि काश! यह मोबाइल ना होता तो कितना अच्छा होता! जिंदगी कितनी हसीन होती ! हम कितने स्वच्छंद होते ! परंतु वास्तविकता के धरातल पर आने पर हमें प्रतीत होता है कि यदि मोबाइल हमसे दूर हो जाए तो कदाचित जीवन दूभर लगने लगता है मोबाइल के बिना कहीं कुछ खोया हुआ सा लगता है और जिंदगी अधूरी हो जाती है।

मोबाइल के इर्द गिर्द घूमती जिंदगी

            आज आप लोगों से कुछ आप बीती शेयर करते हैं। मेरे साथ भी पिछले दिनों ऐसा ही एक वाकया हुआ जिसको मैं आप लोगों के साथ साझा कर रही हूँ। करीब एक सप्ताह पूर्व  रात के लगभग दस बजे जब मैं रोज की तरह व्हाट्सएप के तिलस्मी मायाजाल पर संदेशों को पढ़ने में तल्लीन थी तभी अचानक मोबाइल की स्क्रीन का प्रकाश समाप्त होने लगा। मोबाइल की स्क्रीन पर अंधेरा छाते ही मुझे भी कुछ अजीब सा महसूस हुआ और मैं कुछ असहज सा महसूस करने लगी। प्रथम दृष्टया मुझे यह महसूस हुआ कि कहीं कोई महत्वपूर्ण संदेश बिना पढ़े हुए तो नहीं रह गयाअगले ही पल मैंने अपनेआप को इस दुश्चिंता से मुक्त किया और विचार किया कि चलो, अब सोया जाए आज  मोबाइल के बिना कुछ सुख-चैन की नींद ली जाए, जो होगा सुबह देखी जाएगी। मैं सोने का उपक्रम करने लगी।

सुबह उठकर मोबाइल की याद आयी तो  मेरे मन ने मुझसे कहा कि आज मोबाइल के बिना कोई चिंता, कोई फिक्र,किसी बात का डर,भय अथवा हताशा या निराशा, कुछ भी नहीं सताने वाला है। और मैं प्रसन्न हो गई। मुझे आज  ना किसी को मैसेज करना था, ना किसी को कॉल करना था और ना ही गूगल बाबा से कुछ पूछना था। सब कुछ बंद। बहुत समय बाद मुझे सुकून मिलने वाला था। सुकून ,सुकून और सिर्फ सुकून मुझे आनंद रहा था। थोड़ी चिंता मोबाइल के रिपेयर की भी थी, लेकिन मैंने उसे सिरे से झटक दिया।

मोबाइल के इर्द गिर्द घूमती जिंदगी

11:00 बजे मोबाइल को रिपेयर करने के लिए सर्विस सेंटर पर देकर मैं ऑफिस पहुंची। ऑफिस का समय बहुत शांति के साथ गुज़रा। कोई टन टन, कोई संदेश। मेरे अगल-बगल मोबाइल का रेडिएशन नही था। शाम 5:00 बजे तक का समय बहुत शांति से गुजरा। लेकिन यह क्या, सुकून भरा एक दिन अभी पूरा गुजरा भी नहीं था की घर वापस आते ही  बेटी के मोबाइल  पर फोन आया "कहां गायब है? मोबाइल क्यों स्विच ऑफ कर दिया? ट्रांसफर का डर है क्या? ट्रांसफर आर्डर गए?"

लीजिए साहब शांति भंग हो गई। तीन महीने से जिस ट्रांसफर आर्डर का इंतजार करते-करते अधीर हो रही थी, उस ट्रांसफर आर्डर को आज ही आना था! और उससे बड़ी अब समस्या यह थी कि ट्रांसफर आर्डर को कैसे देखा जाय, WA तो बंद था  ?

मोबाइल के इर्द गिर्द घूमती जिंदगी

                शाम तक मुझे जिंदगी में मोबाइल की अहमियत कुछ कुछ समझ आने लगी थी। फिलहाल ट्रांसफर आर्डर के लिए  बिटिया के मोबाइल पर एक नंबर एक्टिवेट करवाया और  उसी के व्हाट्सएप पर ट्रांसफर आर्डर मंगवाया। मैंने सोचा चलो दो-तीन दिन इसी नंबर से (बिटिया के सेट के साथ) काम चला लेंगे लेकिन अगले ही पल में ख्याल आया कि मोबाइल को लेकर कहीं नहीं जा सकते क्योंकि उसी मोबाइल से बिटिया के ऑनलाइन क्लासेज संचालित हो रहे थे और इस समय पढ़ाई भी पूरे जोर-शोर के साथ हो रही थी। किसी भी परिस्थिति में अपने लिए बेटी का ऑनलाइन क्लास छुड़वाना बुद्धिमत्तापूर्ण  निर्णय नहीं कहा जा सकता। अब मैं अपनी जिंदगी को मोबाइल के इर्द-गिर्द घूमते हुए पूरी शिद्दत से देख रही थी।

                मोबाइल ठीक कराने लिए भी मोबाइल चाहिए था। मैंने सर्विस सेंटर वाले को बोला, मोबाइल तो खराब है नंबर कहां से दूंइसके लिए आपको मोबाइल प्रोवाइड कराना चाहिए। सर्विस सेंटर वाले ने इससे मना कर दिया खैर उसको भी बिटिया का मोबाइल नंबर दे आए। 

इसी दौरान मेरा सिलेंडर खत्म हुआ तो मैंने सोचा चलो कोई नहीं यह तो जब मोबाइल आ जाएगा तब बुक कर लूंगी। तभी ख्याल आया ओह गैलरी, व्हाट्सअप और नोट पैड के कितने डॉक्यूमेंट्स, पिक्स और ब्लॉग के लिए लिखे आर्टिकल भी मैंने खो दिया है, जिनमें से कुछ का बैकअप तो है, पर कुछ का नहीं भी। 

                मोबाइल को बंद हुए तीन दिन हो गए थे।  इससे मेरा ब्लॉग कैसे अछूता रह सकता था! डेढ़ साल से लगातार बिना नागा मेरे ब्लॉग के लिंक जिन लोगों को मिल रहे थे वह सभी एक झटके में बंद हो गए। उनमें से जो ज्यादा करीबी थे, वो  इधर-उधर पता करने लगे। दूसरे तीसरे से होते हुए कॉल आने लगी। ब्लॉग कंप्यूटर से डलता रहा। तीन दिन बीतने के बाद भी मोबाइल रिपेयर नहीं हो पाया था और मुझे यह लगने लगा था कि मेरी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मोबाइल के बिना मुझसे कटता जा रहा है।

अंततः अपने कुछ बड़ों और परिवारी जनों के प्यार भरे फटकार और सलाह से मैंने एक क्रांतिकारी निर्णय लेते हुए एक नया स्मार्टफोन खरीद लिया। इन तीन दिनों में ही जिंदगी ने बहुत नए अनुभव मुझे सिखाए। सबसे चिंताजनक बात मुझे यह लगी कि देखते ही देखते कैसे विज्ञान ने मनुष्य को अपना गुलाम बना लिया और अब चाहकर भी मनुष्य विज्ञान के इस मकड़जाल से नही छूट पा रहा। समय के साथ हम सभी मोबाइल फोन के इस कदर आदी हो चुके हैं कि उसके बिना हम अपनी जिंदगीचाहकर भी स्वाभाविक रूप से नहीं जी सकते। ऐसा ही मेरे साथ हुआ।

मोबाइल के इर्द गिर्द घूमती जिंदगी

 वास्तव में यह परिस्थिति एक कठिन परिस्थिति है और हम सबको इससे पार पाने के लिए कुछ अलग सोचना होगा आज से 20- 25 वर्ष पहले जब मोबाइल नहीं था तो क्या हम सुखी नही  थे? क्या हम सामान्य जीवन नहीं जीते थे? क्या रिश्ते- नातों के महत्व को, हम नहीं समझते थेफिर आज मोबाइल फोन के हमारे जीवन में दस्तक देते ही हम क्यों मोबाइल पर ही इतना निर्भर हो गए?

सूरज की पहली किरण के साथ शुरू हुआ यह मोबाइल का साथ देर रात सोने पर ही छूट पता है। हमने अपनी सुविधा के लिए मोबाइल का ईजाद किया था, लेकिन देखते देखते हम उसके गुलाम बनते जा रहे हैं। आप सभी के साथ भी कभी ना कभी कुछ ऐसा हुआ होगा। अपनी बात यहां जरूर शेयर करें। मैंने अपना 3 दिनों का अनुभव यहां शेयर किया है। इन 3 दिनों का एक नया अनुभव हुआ। कुछ अपने परेशान हो गए। कुछ पराए अपनेपन की छाप छोड़ गए और कुछ ऐसे भी थे जिन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ा। आगे फिर कभी....

मोबाइल के इर्द गिर्द घूमती जिंदगी

47 comments:

  1. मोबाइल फोन की जरूरतों और इस पर अति निर्भरता को रेखांकित करता एक भावपूर्ण और विचारोत्तेजक आलेख। आपके साथ घटी इस सत्य घटना ने हमे सोचने पर विवश कर दिया है कि क्यों हम विज्ञान और तकनीक के ग़ुलाम बनते जा रहे हैं? मोबाइल के बिना जीवन अब शायद नही जिया जा सकता लेकिन इसका उपयोग क्या बातचीत तक सीमित नही कर सकते? किताबें पढ़ना हम भूलते जा रहे और किताबों का डिजिटलिकरण करके हम मोबाइल की स्क्रीन पर ही क्यों पढ़ना चाहते हैं? सामान्य ज्ञान के लिए सिर्फ गूगल बाबा पर ही क्यों भरोसा करते हैं? ऐसे बहुत से अनुत्तरित प्रश्न हैं जिसका जवाब हमसभी को मिलकर खोजना हीहोगा वरना वह दिन दूर नही जब मोबाइल की वरचुल दुनिया मे रहते रहते हम स्वयं भी रियल नही रहेंगे।

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    1. विज्ञान और तकनीक के गुलाम तो होते ही जा रहे। मोबाइल हमारी जरूरत बन चुकी है। अब इससे बाहर निकलना नामुमकिन सा लगता है। इसको बातचीत तक तो नहीं परंतु कुछ चीजों तक सीमित किया जा सकता है। किताब पढ़ना तो दूर की बात है आजकल बच्चे डिक्शनरी तक तो उठाते नहीं, फटाक से गूगल करते हैं या फिर मोबाइल डिक्शनरी का उपयोग करते हैं। यह एक बहुत बड़ी समस्या है जो हमारी अगली पीढ़ी को और ज्यादा क्षति पहुंचा रही है। बच्चे क्लास भी ऑनलाइन मोबाइल पर करते हैं उसके बाद इंटरटेनमेंट भी मोबाइल पर ही करते हैं। इसका असर उनके स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है।

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  2. तीन दिन तो बहुत होते है, यहां तो एक दिन,एक दिन भी नहीं शायद कुछ घंटे मोबाईल के बिना नहीं सोंच नहीं सकते। ऑफिशियल से लेकर पर्सनल लाइफ सब की कल्पना भी नहीं कर सकते। ना ऑफिस में सीनियर मजबूरी समझेगा न घरवाले। सबको बस अपने काम से मतलब है। बाकी रही सही कसर इस कोरोना ने पूरी कर दी है, सब कुछ तो मोबाइल पर डिपेंड हो गया है... ऑनलाइन पेमेंट, ऑनलाइन क्लासेज...

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    1. हां आपकी बात सही है 3 दिन तो बहुत होते हैं यहां एक एक घंटा मोबाइल के बगैर लोगों को मुश्किल हो रही है। शायद खाना एक टाइम ना खाएं परंतु मोबाइल के बिना नहीं रह सकते। ऑफिस और पर्सनल लाइफ तो मोबाइल के पहले भी थी परंतु तब सारी चीजें उसी तरह मैंनेज हो जाया करती थी।

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  3. मुद्दा तो जबरदस्त उठाया है, पर इसका कोई समाधान निकलता हुआ तो दिखाई नही देता

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    1. समाधान तो नहीं दिख रहा परंतु कुछ हद तक कंट्रोल किया जा सकता है।

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  4. मोबाईल से बहुत समय खोया मगर बहुत कुछ पाया
    मैने रेलमार्ग की माँग करते करते सारे मित्र खो दिये या यू कहे उनके जल्द पहचान लिया
    मुझ संगीत मै बहुत लांभ हुआ गीता डाउनलोड करके अपने फोन मै सुन लेते है
    मोबाईल से बहुत अच्छे लोग मिले जैसे ???

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    1. मोबाइल के कुछ फायदे भी हैं तो कुछ नुकसान भी।

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  5. यह तथ्य बिल्कुल सच है कि मोबाइल आज के जीवन का एक उपयोगी हिस्सा बन गया है हमने अपनी सुविधा के लिए इसे ईजाद किया पर आज हमारा जीवन इसपर निर्भर हो गया है..पहले किसी टॉपिक पर लिखना होता था तो हम 10 किताबें खोलकर लिखते थे नहीं मिला तो पड़ोस से ले आते थे.. इसका फायदा होता था कि एक टॉपिक के साथ कई सारी चीजें पढ़ने को मिल जाती थी आज के डेट में मोबाइल में सीमित टॉपिक के साथ-साथ कुछ गलत चीजें भी जुड़ी रहती हैं जो बच्चों को गलत दिशा में ले जा रही है.आज अगर ₹20000 किसी को देना हो तो 10 बार सोचेंगे पर उससे अधिक की मोबाइल बड़े गर्व से खरीदेंगे.. ऑफिशियल, बैंकिंग और स्कूल वर्क के लिए जरूरी है ही मोबाइल..हम गृहणी भी बिना मोबाइल के एक दिन भी सहज नहीं महसूस करते.. बचा हुआ समय पहले घर के सिलाई कढ़ाई बुनाई में जाता था आज वह समय मोबाइल ले जाता है..

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    1. बच्चे इससे कुछ ज्यादा ही प्रभावित हैं। वह किताबों से दूर होते जा रहे हैं और मोबाइल से जुड़ते जा रहा है। पैसे की बात तो यह है कि यह लोगों की प्राथमिकता पर निर्भर करता है। दूसरों को पैसे देने से ज्यादा मोबाइल की प्राथमिकता होती है। यह ऑफिशियल लोगों के साथ-साथ घरेलू महिलाओं के लिए भी आवश्यक बन गया है। घरेलू महिलाएं भी ज्यादातर सोशल साइट्स पर और अनेक ऐप के थ्रू सीरियल मूवी और सीरीज के चक्कर में मोबाइल का ज्यादा उपयोग कर रही हैं। किताब पढ़ना भी मोबाइल पर ही होता है। ज्यादातर शहर की महिलाएं सिलाई कढ़ाई बुनाई आदि से दूर हो चुकी हैं।

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  6. बहुत ही ज्वलंत और महत्वपूर्ण विषय। ऑनलाइन क्लासेज की वजह से आज बच्चे बच्चे के हाथ में मोबाइल है, पेरेंट्स की मजबूरी भी है बच्चों को मोबाइल देना। लेकिन हम बड़े लोग इसके प्रयोग को सीमित कर सकते हैं जैसे की मैं आजकल फेसबुक को बहुत ही कम समय देता हूं, मैसेंजर देखता ही नहीं इंस्टाग्राम अनइंस्टॉल कर चुका हूं, ट्वीटर काम भर का ही इस्तेमाल करता हूं आदि कुल मिलाकर मोबाइल का जरूरी प्रयोग करना शुरू कर चुका हूं। आज के जीवन में मोबाइल तो बहुत जरूरी है और हमारे जीवन को सरल बनाने में भी इसका योगदान बहुत ज्यादा है पर उसका प्रयोग हमपर निर्भर करता है कि कैसे करते हैं। कोई भी अविष्कार हमारी सुविधा के लिए होना चाहिए उसका गुलाम बनने के लिए नहीं।

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    1. कोरोना में ऑनलाइन क्लासेज ने बच्चों बच्चों के हाथ में मोबाइल पकड़ा दी। हम जैसे बहुत लोग जो मोबाइल से बच्चों को दूर रखे हुए थे या फिर सिर्फ बातचीत के लिए मोबाइल दी गई थी आज ऑनलाइन क्लासेज के लिए डाटा के साथ मोबाइल दे दिया गया। यह बच्चों की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं। इसका यही उपाय है कि मोबाइल को जरूरी कामों तक सीमित रखा जाए। अगर यह सुविधा के लिए है तब तो बहुत अच्छा और अगर हम उसके गुलाम हो गए हैं तो बहुत बुरा है।

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  7. Very nice blog....100% hm addict ho gye h phone 😶

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    1. एडिक्शन तो बहुत गलत बात है। आगे बच्चों को कैसे समझा पाएंगे कि इसका सीमित उपयोग करें, जब खुद ही एडिक्टेड हैं।

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  8. 💯 ✔️ ✔️ Filhaal ke time to
    Mobile ke bina jindgi adhuri hai..
    Ya to shuru se hi 📱 ko hath mat lagao.. ek bar pakad liya to ab marne ke baad hi chutega.. 😂😂

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    1. आप तो आर पार वाली बात कर रहे हैं मनीष जी। पर यहां आर और पार दोनों ही खतरनाक है बीच का रास्ता निकालना ही सही है।

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  9. बीच का रास्ता यही है कि इस ब्लॉग को ही हटा दो,और कुछ दूसरा डालो। ओके

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    1. हमेशा तो दूसरा ही रहता है सर। इस टॉपिक से भागने से थोड़ी रास्ता मिलेगा। और हमें आपका भी पता है, एक मिनट मोबाइल के बिना नहीं रहते।

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    2. बङा ही रोचक विषय है ये मैंने कुछ विद्वान लोगों के विचार भी पढे एक महानुभाव ने तो इस लेखन को हटाने तक की बात कह डाली, हजारों बार पढा होगा बुजुर्गों से सुना होगा एक बहुत ही खुबसूरत शब्द है 'अति' सिर्फ मोबाईल से ही नहीं किसी भी वस्तु से या व्यक्ति से अत्यधिक दिललगी करना नुकसान दायक होता है,और बात करें इसके उपयोग की तो इस आधुनिक दुनिया मे बने रहने के लिए तो इस का उपयोग तो करना ही पङेगा कोई कम करता है तो कोई ज्यादा जिस का जैसा उपयोग इस ने कुछ दुरिया कम की है तो कुछ अपनों से दुरिया बढीं है हर चीज के कुछ फायदे नुकसान तो होते ही है जब फायदा हम लेंगे तो नुकसान भी तो हम को ही सहना पङेगा।।

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    3. जी बिलकुल, "अति सर्वत्र वर्जयेत" ये बात हर चीज पर लागू होती है। किसी भी चीज की अति नही करनी चाहिए। आपकी बात से मैं सहमत हूं। आधुनिक युग में इससे किनारा नहीं किया जा सकता। समय के साथ तो चलना ही पड़ेगा। पर यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस तरह इसका फायदा ज्यादा उठाऐं और उसके नुकसान से बचें।

      आज ही ऑफिस में एक सज्जन ने कहा के मोबाइल इस कदर उलझा देती है कि कब 2-3 घंटा निकल जाता पता ही नहीं लगता। यह स्थिति ठीक नहीं।

      मजे की बात यह है कि यह चर्चा भी मोबाइल पर मोबाइल के लिए ही हो रही है..

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  10. Nice Article, thoda sa sabko aware hona padega.

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    1. Ji sir, awareness jaruri hai,ager awareness ha to vigyan vardan hai. Ye maine aapse bakhubi sikha hai..🙏

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  11. तुम्हारा तो ऑफिस लाइफ है और भी बहुत सारी चीजें मैनेज करनी होती है, पर हम घरेलू महिलाएं भी मोबाइल के बिना कुछ घंटे नहीं बिता पाती। जब मोबाइल डिस्चार्ज होता है या खराब होता है तो लगता है कि सारी जरूरी चीजें छूट रही हैं। पहले एक मोबाइल था जिस पर बच्चे की ऑनलाइन क्लास होती थी, जिससे मोबाइल ज्यादातर बच्चे के पास होता था और मुझे कुछ सूझता ही नहीं था, फिर दूसरा मोबाइल लेना पड़ा। हम महिलाएं भी मोबाइल की आदि हो गई हैं, सबसे ज्यादा फेसबुक व्हाट्सएप की। जिस पर काम की चीजें बहुत कम ही होती पर स्क्रोल अप करते जाओ और टाइम बर्बाद करते जाओ। पता भी है कि या पूरी तरीके से समय की बर्बादी है पर फिर भी छूटता नहीं शायद एडिक्शन ही है।

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    1. फेसबुक व्हाट्सएप पर कुछ अच्छी चीजें भी है यह तो तुम पर निर्भर करता है कि किस जगह कितना समय देना है।

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  12. महोदय जी आप को अपने विचारों को शुध्द करने की आवश्यकता है आप पूरी महिला समाज पर ऊंगली उठा रहे है,और इस देश के किसी भी व्यक्ति को किसी के बारे में ये निर्णय लेने का अधिकार नहीं है कि वो किससे बात करेगा या करेंगी ।

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  13. श्री मान जी सिर्फ महिलाएं ही नहीं कोई भी व्यक्ति ऐसा करता है तो उसका दुष्प्रभाव हमें भुगतान पङता है,लेकिन महिला ऐसा करती है ये कहना उचित नहीं है।

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  14. मैं आपके इस विचार से सहमत हूं कि मोबाइल के समय में किसी भी बात को एक जगह से दूसरे जगह तक पहुंचने में आसानी हो गई है, बिल्कुल वक्त नहीं लगता परंतु यह सिर्फ महिलाओं पर ही लागू नहीं होता है। यह तो व्यक्ति से व्यक्ति निर्भर करता है कि कौन किस बात को ज्यादा प्रचारित प्रसारित कर रहा है।

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  15. पहले टाक टाइम पर ध्यान रहता था.. 😄इसलिए जरूरी बातें ही हो पाती थी अब टॉकटाइम अनलिमिटेड है तो और बताओ और बताओ के चक्कर में महिलाएं सारी बातें अपने घर की दूसरी जगह शेयर कर ही देती हैं.. जिसका परिणाम कहीं कहीं निसंदेह गलत हो जाता है..

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  16. मोबाइल का एक और दुष्प्रभाव आंशिक रूप से ही यह भी है कि इसने समाज मे झूठ बोलने की प्रवृति भी बढ़ाई है। मोबाइल पर फोन आते ही फोन करने वाला अगले से पहले प्रश्न यही पूछता है कि कहां हो? और ज्यादातर मामलों में दूसरा अपनी लोकेशन को लेकर गलत ही जवाब देता है।

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    1. sorry sir, मुझे तो ऐसा नही लगता। लोग बिना मतलब को झूठ क्यों बोलेंगें! और अगर कोई अपनी लोकेशन गलत बताता भी है, तो उसका कोई खास नुकसान तो समझ नही आता। अतः इसे मोबाइल का दुष्प्रभाव कहना मेरी समझ मे ज्यादती होगी।

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  17. "Komórka के बिना कहीं कुछ खोया हुआ सा लगता है और जिंदगी अधूरी हो जाती है।" आपके शब्द - हाँ, यह सच है। लेकिन मेरे लिए यह डरावना है। यह मुझ पर लागू नहीं होता... मैं स्मार्टफोन पर निर्भर नहीं हूं।

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    1. हां डरावना ही है। हम इसके आदि न होकर सिर्फ आवश्यकतानुसार इसका उपयोग करें तो यह अच्छा है।

      "यह मुझ पर लागू नहीं होता... मैं स्मार्टफोन पर निर्भर नहीं हूं।" यह बहुत अच्छा है 😊😊

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  18. मोबाईल के अनुभव हम सबसे साँझा करने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद

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  19. मोबाइल फोन हमारे जीवन की आवश्यकता है।इसके बिना जीवन अधूरा है।

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  20. समय के साथ सब परिवर्तनशील है आज मोबाइल एक आवश्यक पार्ट बन गया है

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  21. हां जी, अब तो ऐसा ही है। एक दिन नेटवर्क न रहे तो लगता सारे जरुरी काम छूट रहे। घर बैठ के आराम से काम हो जाते, जरूरत बन चुकी है मोबाइल। विकल्प का तो सच में पता नहीं, डिजिटलाइजेशन में इसकी जरूरत बढ़ती जानी है।

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  22. इस बात को अभी अभी 2 3 दिन पहले ही अनुभव किया है

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