सुतसोम
किसी राज्य में सुतसोम नाम का एक दानशील संपन्न राजकुमार का जन्म हुआ। बड़ा होने पर वह राजकुमार एक दिन अपनी राजकुमारी और अनुचरों के साथ एक बाग में बैठा संगीत का आनंद ले रहा था। तभी नंद नामक एक बौद्ध संन्यासी उसके पास पहुंचे। बौद्ध संन्यासी को आदर के साथ बैठाकर वह उनसे उपदेश ग्रहण करने लगा। तभी वहां कलमसपदास नामक एक वहशी व्यक्ति पहुंचा। वह एक युद्ध खोर राजा का पुत्र था और मानव हत्या उसे बेहद प्रिय था। वह सुतसोम को भी पकड़ कर ले गया।
सुतसोम को उसने ले जाकर कारागार में डाल दिया। जब सुतसोम को उसने कारागार में रोते देखा तो उसने उसका मजाक उड़ाते हुए कहा - मृत्यु से सभी भयभीत हो जाते हैं। प्रत्युत्तर में सुतसोम ने उससे कहा कि वह मृत्यु से भयभीत नहीं था, बल्कि एक श्रेष्ठ बौद्ध सन्यासी के वचनों से वंचित रहने के कारण दुखी था। सुतसोम ने तब कलमसपदास से 2 दिनों की मोहलत मांगी ताकि वह बौद्ध संन्यासी नंद के पूर्ण उपदेश ग्रहण कर सकें। कलमसपदास ने तब उसे 2 दिन का समय दे दिया।
बौद्ध संन्यासी के उपदेश सुनने के बाद जब सुतसोम जब स्वयं ही कलमसपदास के पास वापस लौट आया, तो कलमसपदास चकित रह गया और उस पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए कलमसपदास उसे वर मांगने को कहा। तब सुतसोम ने उससे कहा कि जो व्यक्ति स्वयं अपनी आकांक्षाओं और तृष्णा का दास हो वह दूसरों को कैसे मुक्ति और कैसा वरदान दे सकता है?
सुतसोम के वचन सुनकर कलमसपदास की आंखें खुल गई और उसका सोया हुआ मनुष्यत्व भी जाग गया। उसने सुतसोम को छोड़ दिया और उसके साथ मिलकर अपने पिता सुदास का राज्य भी फिर से वापस प्राप्त कर लिया उसने फिर कभी मानव हत्या नहीं की।
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Sutsom
A benevolent prince named Sutasom was born in a kingdom. When he grew up, the prince was sitting in a garden with his princess and retainers one day enjoying music. Then a Buddhist monk named Nanda reached him. Sitting with the Buddhist monk with respect, he began to preach to them. Then a gothic man named Kalmasapadas arrived there. He was the son of a warrior Khor king and he was greatly loved by human killing. He also took Sutsom.
He took Sutsom and put him in prison. When he saw Sutsoom crying in the prison, he made fun of him and said - death makes everyone afraid. In response, Sutasom told him that he was not afraid of death, but was saddened by being deprived of the words of a superior Buddhist monk. Sutasom then asked Kalamaspadas for 2 days of deferment so that he could receive the full sermon of the Buddhist monk Nanda. Kalmasapadas then gave him 2 days.
After hearing the sermons of the Buddhist monk, when Sutasom himself returned to Kalamaspadas, Kalamaspadas was amazed and, pleasing at him, Kalamaspadas asked him to ask for the bride. Then Sutasom told him that how can a person who is a slave to his own aspirations and craving give liberation and blessings to others?
Hearing the words of Sutasom, Kalmaspadas' eyes opened and his sleeping man also woke up. He left Sutasom and together with him regained the kingdom of his father Sudas, he never committed human murder again.
Nice Story
ReplyDeleteVery nice 👍
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ReplyDeleteVery Nice
ReplyDeleteअच्छी कहानी
ReplyDeleteमनुष्य को तृष्णा का दास नहीं होना चाहिए। प्रेरनप्रद एवं शिक्षाप्रद कहानी।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी और प्रेरणाप्रद कथा।
ReplyDeleteशिक्षाप्रद कहानी 👌👍
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteअच्छी कथा
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteNice story
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ReplyDeletenice story
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteAapki post kaafi motivational aur janhit ki hoti hai..aapka prayas bahut hi sarahniya hai..itni vyastata ke bavjud itne matters collect karna ek badi baat hai..keep it up...ye hitkar hai ham sabhi ke liye...very nice
ReplyDeleteNice story..
ReplyDeleteNice story
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