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विधुर (Vidhur)

 विधुर

कुरु जनपद के राजा धनंजय, जिनकी राजधानी इंद्रप्रस्थ थी, पृथ्वी लोक का सबसे पराक्रमी राजा माना जाता था। उसके राज्य में विघुर नाम का एक अत्यंत बुद्धिमान मंत्री था, जिसके विवेक की कहानियां सर्वत्र सुनी सुनाई जाती थी।

उन दिनों राजा धनंजय के समकालीन तीन और अत्यंत पराक्रमी राजा राज किया करते थे, जिनके नाम सक्क, वरुण और वेनतेय्या थे, जो क्रमशः देवों, नागों और सुपण्ण-यक्षों के राजा थे। 

विधुर (Vidhur)

एक बार किसी अवसर पर चारों राजा एक बाग में एकत्रित हुए, जहां उनमें यह विवाद उत्पन्न हो उठा कि उन चारों में सर्वाधिक शीलवान कौन था? विवाद जब बढ़ने लगा तो उन चारों ने सर्वसम्मति से विधुर को बुलाया और उसकी राय जाननी चाही। तब विधुर ने उन राजाओं से यह कहा कि वे चारों ही समान रूप से शीलवान हैं। ठीक किसी रथ के चक्रों की तरह। विधुर की राय से चारों ही राजा अत्यंत प्रसन्न हुए और उसे अनेक पुरस्कार दिए।

उस रात नागराज वरुण जब अपने शयनकक्ष में आराम कर रहे थे, तो उनकी रानी ने उनके गले के हार को लुप्त पाया। कारण पूछने पर जब उसे ज्ञात हुआ कि राजा ने अपना प्रिय हार विधुर को उसकी बुद्धिमानी से प्रसन्न होकर पुरस्कार के तौर पर दिया है, तो उसने राजा से विधुर का हृदय भेंट में मांगा।राजा के मना करने पर अपनी जिद पूरी ना होते देख उसने मूर्छित होने का स्वांग रचा।

एक दिन सुपण्ण-यक्षों का सेनापति पूण्ण्णकराज नागलोक के ऊपर से उड़ता हुआ जा रहा था। तभी उसकी दृष्टि नागराजकुमारी इरन्दती पर पड़ी, जो एक सुंदर झूले पर गाती - झूलती दिखी। इरन्दती की अपूर्व सुंदरता को देख पूण्ण्णकराज तत्काल नीचे उतर आए और इरन्दती से उसी क्षण अपने भाव व्यक्त किए। पूण्ण्णकराज के व्यक्तित्व से इरन्दती भी कम प्रभावित नहींं थी उसने उसी क्षण उसके प्रेम को स्वीकार कर लियाा।

पूण्णकराज तब नागराज वरुण के पास पहुंचे। वहां उसनेेेे इरन्दती का हाथ मांगा। नागों और गरूणों का वैमनस्य बहुत पुराना था, किंतु नागों पर गरुड़ भारी पड़ते थे। इसके अतिरिक्त राजा अपनी पुत्री का दिल भी नहीं तोड़ना चाहते थे और ना ही नाग पुत्री का हाथ किसी गरुड़ को दे समस्त प्रजा का बैर मोल लेना चाहते थे। अतः उसने पूण्णक से कुछ समय की मोहलत मांगी तथा एकांत में अपने मंत्री से सलाह की। नाग मंत्री कुरुराज के मंत्री विधुर का बैरी था। उसे विधुर की प्रतिष्ठा से ईर्ष्या थी। अतः उसने राजा को सलाह दी कि वह पूण्णक को इरन्दती का हाथ तब दिया जाये जब वह विधुर का हृदय लाकर महारानी को दें। इस युक्ति से रानी भी स्वस्थ हो जाएंगी और स्वस्थ रानी को देख प्रजा भी। 

पूण्णकराज ने जब नागराज की शर्त को सुना तो वह तत्काल उड़ता हुआ कुरु देश की राजधानी इंद्रप्रस्थ पहुंचा।  वह कुरुराज धनंजय की कमजोरी जानता था। वह जानता था कि कुरुराज एक महान जुआरी था। अतः राजा धनंजय के पास पहुंचकर उसने उसे एक जुए के लिए ललकारा और दांव पर अपने उड़ने वाले घोड़े तथा अपने उस रत्न को रखा, जिससे विश्व की समस्त वस्तुएं दिखती थी। राजा धनंजय भी जुआ खेलने को तैयार थे और उसने भी अपने अनेक प्रकार के रत्नों को दांव पर लगाना चाहा, किंतु पूण्णक ने तब उससे कहा कि यदि रत्न ही दांव पर लगाना है तो उसे अपने राज्य के सबसे अनमोल रत्न विधुर को लगाना होगा। खेल आरंभ हुआ। धनंजय की हार हुई और पूण्णक जीत गया। 

पूण्णक विधुर को ले उड़ता हुआ काल पर्वत पहुंचा। जहां उसने विधुर पर तलवार से प्रहार किया। मगर विधुर को छूते ही पूण्णक की तलवार टूट गई। विस्मित पूण्णक ने तब विधुर को मुक्त करना चाहा। विधुर ने पूण्णक द्वारा प्रदत्त मुक्ति को अस्वीकार कर दिया क्योंकि वह पूण्णक के साथ नाग लोक जाकर उसकी सहायता करना चाहता था। 

उसने पूण्णक द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर भी टाल दिया। जब पूण्णक और विधुर नाग लोग पहुंचे, तो उनका भव्य स्वागत हुआ। विधुर धुर ने राजा वरुण और रानी विमला को उपदेश और ज्ञान चर्चा से प्रसन्न किया।  तत्पश्चात पूण्णक और इरन्दती का विवाह बड़ी धूमधाम से संपन्न हुआ। विवाह उपरांतपूण्णक ने विधुर को ससम्मान इंद्रप्रस्थ पहुंचाया और उसे अपना वह रत्न भेंट में दिया, जिससे विश्व की कोई भी वस्तु देखी जा सकती थी।


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Vidhur

King Dhananjaya of Kuru district, whose capital was Indraprastha, was considered the most powerful king of the earth. In his kingdom there was a highly intelligent minister named Vighur, whose stories of conscience were heard everywhere.

 In those days, three more highly powerful kings ruled by King Dhananjaya, named Sakka, Varuna and Venateya, who were the kings of the gods, serpents and supra-yakshas respectively.

विधुर (Vidhur)

 Once, on some occasion, the four kings gathered in a garden, where a dispute arose among them as to who was the most aristocratic among them. When the dispute started escalating, the four unanimously called the widower and sought his opinion. Then the widower told those kings that they were equally equal in all four. Just like the chakras of a chariot. The four kings were very pleased with Vidhur's opinion and gave him many prizes.

 That night, while Nagraj Varun was resting in his bedroom, his queen found his necklace lost. When asked for the reason, when he came to know that the king had given his beloved necklace to the widower as a reward, he was pleased with his wisdom, he asked the king for a gift of the widower's heart. Pretended to be unconscious

 One day, Punnakaraja, the commander of the Sudan-Yakshas, ​​was flying over the Nagaloka. At that moment, his eyes fell on Nagarajkumari Erandati, who was seen swinging on a beautiful swing. Seeing the extraordinary beauty of Erandati, Poonakaraj immediately came down and expressed his feelings at the same moment with Erandati. Erandati was no less impressed by Poonakaraj's personality, she accepted his love at that moment.

 Poonakaraj then reached Nagaraja Varuna. There he asked for Erandati's hand. The animosity of serpents and garunas was very old, but the eagles used to dominate the serpents. Apart from this, the king did not even want to break his daughter's heart, nor did he want to give the hand of Naga daughter to any Garuda and hate all the subjects. Therefore, he asked for some time from Poonak and consulted his minister in seclusion. Nag Minister was the enemy of Kuduraj's minister Vidhur. He was jealous of the widower's reputation. Therefore, he advised the king that he should be given the hand of Erandati to Punak when he brought the heart of the widower and gave it to the queen. By this tactic, the queen will also be healthy and the people will also see the healthy queen.

 When Poonakraj heard the condition of Nagaraja, he immediately flew to Indraprastha, the capital of the Kuru country. He knew the weakness of Kururaj Dhananjay. He knew that Kuraraj was a great gambler. So, approaching King Dhananjaya, he challenged him for a gamble and placed his flying horse and his gem at the stake, which showed all the objects of the world. King Dhananjaya was also ready to gamble and he also wanted to put many of his gems at stake, but Poonak then told him that if the gems were to be placed at stake then he would have to apply the most precious gem of his kingdom to the widower. The game started. Dhananjay lost and Poonak won.

 Flying to Kaul mountain, carrying the full widower, reached. Where he attacked the widower with a sword. But Poonak's sword broke as soon as he touched the widower. The amazed Punak then wanted to free the widower. The widower rejected the liberation conferred by Punak because he wanted to go with Naga and assist him.

 He also postponed the answer to the question asked by Poonak. When the Poonak and Vidhur Nag people arrived, they received a grand welcome. The widower Dhur pleased King Varuna and Queen Vimala with sermons and wisdom discussions. After this, Punak and Erandati were married with great pomp. After marriage, the widow brought the widow with respect to Indraprastha and presented her with her gem, which could see any thing in the world.

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