क्रोध विजयी -चुल्लबोधि
एक बार चुल्लबोधि नामक एक शिक्षित व कुलीन व्यक्ति ने सांसारिकता का त्याग कर सन्यास मार्ग का वरण किया। उसकी पत्नी भी उसके साथ सन्यासिनी बन उसकी अनुगामिनी बनी रही। अतः दोनों ही एकांत प्रदेश में प्रसन्नता पूर्वक सन्यास साधना में लीन हो जीवन यापन करने लगे।
एक बार वसंत ऋतु में दोनों एक घने जंगल में विहार कर रहे थे। चुल्लबोधि अपने फटे कपड़ों को सील रहा था। उसकी पत्नी वही एक वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ थी। तभी उस वन में शिकार खेलता हुआ एक राजा प्रकट हुआ। चिथड़ो में लिपटी एक अद्वितीय सुंदरी को ध्यान मग्न देखकर उसके मन में कुभाव उत्पन्न हुआ। किंतु सन्यासी की उपस्थिति देख वह ठिठका तथा पास आकर उसने उस सन्यासी की शक्ति परीक्षण हेतु यह पूछा कि - "क्या होगा यदि कोई नृशंस पशु तुम लोगों पर आक्रमण कर दे?" चुल्लबोधि ने तब सौम्यता से सिर्फ इतना कहा "मैं उसे मुक्त नहीं होने दूंगा।"
राजा को ऐसा प्रतीत हुआ कि वह सन्यासी कोई तेजस्वी या सिद्ध पुरुष नहीं था। अतः राजा ने अपने आदमियों को चुल्लबोधि की पत्नी को रथ पर बिठाने का संकेत दिया। राजा के आदमियों ने तत्काल राजा की आज्ञा का पालन करते हुए चुल्लबोधि की पत्नी को रथ पर बिठा दिया। चुल्लबोधि के शांत भाव में तब भी कोई परिवर्तन नहीं आया।
जब राजा का रथ सन्यासिनी को लेकर प्रस्थान करने को तैयार हुआ तो राजा ने अचानक चुल्लबोधि से उसके कथन का आशय पूछा। वह जानना चाहता था कि चुल्लबोधि ने किस संदर्भ में "उसे मुक्त नहीं होने दूंगा" कहा था। चुल्लबोधि ने तब राजा को बताया कि उसका वाक्य क्रोध के संदर्भ में था, क्योंकि क्रोध ही मानव का सबसे बड़ा शत्रु होता है। क्योंकि -
"करता हो जो क्रोध को शांत
जीत लेता है वह शत्रु को
करता हो जो मुक्त क्रोध को
जल जाता है वह स्वयं ही
उसकी आग में।"
राजा चुल्लबोधि की सन्यास साधना की पराकाष्ठा से अत्यंत प्रभावित हुआ। उसने उसकी पत्नी को आदर सम्मान के साथ वही रथ से उतारा और पुनः अपने मार्ग को प्रस्थान कर गया।
English Translate
Anger Victorious - Chulbodhi
Once an educated and aristocratic man named Chullabodhi renounced the worldly path and renounced the renunciation path. His wife also remained a sanyasini with him and remained his follower. Therefore, both of them began to live happily in solitude and became engaged in ascetic practice.
Once in the spring, the two were traveling in a dense forest. Chullabodhi was sealing his torn clothes. He was his wife meditating under a tree. Then a king appeared hunting in that forest. Seeing a unique beauty draped in rag, meditated in her mind, she developed a sense of mind. But seeing the presence of the monk, he was stunned and came near and asked him to test the strength of the monk, that "What if a dastardly animal attacks you?" Chulbodhi then softly said "I will not let him be free."
The king felt that the monk was not a brilliant or perfect man. So the king indicated to his men to place Chullabodhi's wife on the chariot. The king's men immediately obeyed the king's order and placed Chullabodhi's wife on the chariot. There was no change even in the quiet sense of Chullabodhi.
When the king's chariot was ready to depart with Sanyasini, the king suddenly asked Chullabodhi the intention of his statement. He wanted to know in what context Chullabodhi said "he will not let him be free". Chullabodhi then told the king that his sentence was in reference to anger, because anger is the greatest enemy of man. Because -
"Who Calm the Anger
He wins the enemy
Who does free anger
It burns itself
In his fire. "
King Chullabodhi was extremely impressed with the culmination of his sannyasha sadhana. He alighted his wife with the same chariot with respect and departed her path again.
Manushya ko apne krodh per hi to niyantran nahi hota...Prernaday Story...
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteMnushy ko krodh par vijay prapt karni chahiye.
ReplyDeleteमनुष्य को क्रोध पर विजय प्राप्त करना चाहिए।तभी उसका जीवन सफल हो सकता है।
ReplyDeleteक्रोध पर नियंत्रण कर पाना ही मुश्किल कार्य है... इस कहानी से अच्छी शिक्षा मिलती है... हमें अपने क्रोध पर नियंत्रण पाना चाहिए....
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteअच्छी और शिक्षाप्रद कथा, इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन उसका क्रोध ही है। क्रोध पर काबू करने का प्रयास करना चाहिए
ReplyDeleteadbhut
ReplyDeleteजिसने क्रोध पर नियंत्रण मतलब योगी हो गया
ReplyDeleteक्रोध को वश में रखने वाला ही सफल इंसान है।
ReplyDeleteKrodh pr hi to niyantran nhi h🙂
ReplyDeleteBuddha ka Sandesh deti Kahani....apne krodh par niyantran karna sikhe....
ReplyDeleteshikshaprad....
ReplyDeletenice article
ReplyDeleteKrodh hi to sare kand krata ha...ispr hi to control nahi ha..
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