बुद्धिमान नंदीविशाल बैल की कथा
दान में प्राप्त बछड़े को एक ब्राह्मण ने बड़े ही महत्त्व के साथ पाला पोसा और उसका नाम नंदीविशाल रखा। कुछ ही दिनों में वह बछड़ा एक बलिष्ट बैल बन गया।
नंदीविशाल बलिष्ठ ही नहीं एक बुद्धिमान और स्वामीभक्त बैल था। उसने एक दिन ब्राह्मण के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए कहा, "हे ब्राह्मण! आपने बरसो मेरा पालन पोषण किया है। मैं आपका ऋणी हूं। अतः आपके उपकार के बदले में आपके प्रचुर धन लाभ के लिए सहायता करना चाहता हूं, और एक युक्ति सुझाता हूं। क्योंकि मेरे जैसा बैल इस संसार में अन्यत्र कहीं नहीं है, इसलिए हाट जाकर आप 1000 स्वर्ण मुद्राओं की सट्टा लगाएं कि आपका बैल 100 बड़ी-बड़ी गाड़ियों का बोझ इकट्ठा खींच सकता है।"
ब्राह्मण को वह युक्ति पसंद आई और बड़े साहूकारों के साथ उसने बाजी लगा ली। पूरी तैयारी के साथ जैसे ही नंदीविशाल ने 100 भरी गाड़ियों को खींचने की भंगिमा बनाई, ब्राह्मण ने तभी नन्दीविसाल को गाली देते हुए कहा, " दुष्ट ! खींच-खींच इन गाड़ियों को फटाफट।" नन्दी को ब्राह्मण की भाषा पसन्द नहीं आई। वह रुष्ट होकर वहीं जमीन पर बैठ गया। फिर ब्राह्मण ने हज़ारों युक्तियाँ उसे उठाने के लिए लगाई। मगर वह टस से मस न हुआ। साहूकारों ने ब्राह्मण का अच्छा मज़ाक बनाया और उससे उसकी हज़ार स्वर्ण-मुद्राएँ भी ले गये। दु:ख और अपमान से प्रताड़ित वह हारा जुआरी अपने घर पर पड़ी एक खाट पर लेटकर विलाप करने लगा।
तब नन्दीविसाल को उस ब्राह्मण पर दया आ गयी। वह उसके पास गया और पूछा, " हे ब्राह्मण क्या मैं ने आपके घर पर कभी भी किसी चीज का कोई भी नुकसान कराया है या कोई दुष्टता या धृष्टता की है?" ब्राह्मण ने जब "नहीं" में सिर हिलाया तो उसने पूछा, " क्यों आपने मुझे सभी के सामने भरे बाजार में 'दुष्ट' कह कर पुकारा था।" ब्राह्मण को तब अपनी मूर्खता का ज्ञान हो गया। उसने बैल से क्षमा मांगी। तब नन्दी ने ब्राह्मण को दो हज़ार स्वर्ण-मुद्राओं का सट्टा लगाने को कहा।
दूसरे दिन ब्राह्मण ने एक बार फिर भीड़ जुटाई और दो हजार स्वर्ण मुद्राओं के दाँव के साथ नन्दीविसाल को बोझ से लदे सौ गाड़ियों को खींचने का आग्रह किया। बलिष्ठ नन्दीविसाल ने तब पलक झपकते ही उन सारी गाड़ियों को बड़ी आसानी से खींच कर दूर ले गया।
ब्राह्मण ने तब दो हज़ार स्वर्ण मुद्राओं को सहज ही प्राप्त कर लिया।
English Translate
The Story of Nandivisala Bull
The donated calf was raised by a Brahmin with great importance and named it Nandivishal. In a few days the calf became a bull.
Nandivishal Balishta was not only a wise and devout bull. He offered his gratitude to the Brahmin one day and said, "O Brahmin! You have nurtured me for years. I owe you. So I want to help you in return for your benevolence, and suggest a tip." I am. Because a bull like me is nowhere else in this world, go to the haat and bet 1000 gold currencies that your bull can pull the load of 100 big cars. "
The Brahmin liked that tactic and he betted with big moneylenders. With full preparation, as Nandivishal made a gesture of pulling 100 full trains, the Brahmin then abused Nandivisal, saying, "Wicked! Pull and pull these trains quickly." Nandi did not like the language of Brahmin. He sat on the ground, angry. Then the Brahmin employed thousands of tips to raise him. But he did not bother The moneylenders made a good joke of the Brahmin and took away his thousand gold coins from him. The gambler, who was tortured by grief and humiliation, started mourning by lying on a cot lying at his house.
Then Nandivisal took pity on that Brahmin. He went to her and asked, "O Brahmin, have I ever done anything to your house or done any wickedness or indignity?" When the Brahmin nodded "No", he asked, "Why did you call me as 'rogue' in the market full of everyone." The Brahmin then realized his foolishness. He apologized to the bull. Then Nandi asked the Brahmin to bet two thousand gold-coins.
On the second day, the Brahmin once again mobilized and urged Nandivisal to pull a hundred vehicles loaded with the burden of two thousand gold coins. Balishtha Nandivisal then, in a blink of an eye, pulled all those trains away with great ease.
The Brahmin then readily acquired two thousand gold currencies.
Pashu v prem ki bhasa samajhte
ReplyDeleteNice one👍👍👌👌
प्रेम की भाषा बोलकर असंभव से लगने वाले कार्य भी कराए जा सकते है।प्रेरक कथा।
ReplyDeleteइस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें अपनी भाषा और वाणी को हमेशा मधुर रखना चाहिए... चाहे वह इंसान हो या जानवर हर किसी को प्रेम की भाषा अच्छी लगती है... मृदुभाषी बने 🙏🙏🙏
ReplyDeleteप्रेरणादायक बहुत अच्छी कथा 👏👏👏👏
Prem hi wo astra hai jo hriday ko bhed deta hai 👌👌👌👌👌
ReplyDeleteब्लॉग तो आपने अब डाला है, पर इसकी शिक्षा तो लगता है आपने बहुत पहले ही ले रखी है। आपकी वाणी आपकी भाषा सब लाजवाब है...आपकी वाणी में हमेशा मुस्कुराहट ही होती...ये आपकी बहुत बड़ी क्वालिटी है
ReplyDeleteसंदेश देता अच्छा ब्लॉग..
nice
ReplyDeleteVery nice👍🏻👍🏻
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteजानवर भी प्रेम की भाषा समझते हैं
ReplyDeleteजानवर भी प्रेम की भाषा समझते हैं
ReplyDeleteब्लॉग के सन्देश को यदि आज का इंसान अपने जीवन में अपना ले तो मानव जीवन सार्थक हो जायेगा क्योंकि पशु पक्षी तो प्रेम की भाषा बखूबी समझते हैं, बस इंसानों में आज विरले ही बचे हैं जो प्रेम के महत्व को समझते हैं और तुम्हारी गिनती उन्हीं विरलों में होती है
ReplyDeleteWe should try to respect everybody
ReplyDeleteVery nice 👍👍
ReplyDeleteजानवर भी प्रेम की भाषा समझते हैं, इंसान को मृदुभाषी होना चाहिए, एक और प्रेरणादायक कहानी
ReplyDeleteSabdo ka mahatva ..ati sundar
ReplyDeleteVery nice story ������
ReplyDeletenice
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी कहानी, धन्यवाद
ReplyDeleteBahut achii kahani.... pren se asambhav kaam b sambhav ho jate... 👍👍👍👍
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteNice story..Bhasha me bahut takat hoti ha ...Mridubhashi bane..
ReplyDeleteNice Story...
ReplyDeleteGreat Story��
ReplyDeleteNice story..
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteNice one..
ReplyDelete