रावण और मंदोदरी का संवाद
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
श्रवन सुनी सठ ता करि बानी।
बिहसा जगत बिदित अभिमानी॥
सभय सुभाउ नारि कर साचा।
मंगल महुँ भय मन अति काचा॥
कवि कहता है कि वो शठ मन्दोदरीकी यह वाणी सुनकर हँसा, क्योंकि उसके अभिमानकौ तमाम संसार जानता है॥
और बोला कि जगत्में जो यह बात कही जाती है कि स्त्रीका स्वभाव डरपोक होता है सो यह बात सच्ची है। और इसीसे तेरा मन मंगलकी बातमें अमंगल समझता है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
जौं आवइ मर्कट कटकाई।
जिअहिं बिचारे निसिचर खाई॥
कंपहिं लोकप जाकीं त्रासा।
तासु नारि सभीत बड़ि हासा॥
रावण बोला, अब वानरोकी सेना यहां आवेगी तो क्या बिचारी वह जीती रह सकेगी, क्योंकि राक्षस उसको आते ही खा जायेंगे॥
जिसकी त्रासके मारे लोकपाल कांपते है उसकी स्त्रीका भय होना यह तो एक बड़ी हँसीकी बात है॥जय सियाराम जय जय सियाराम
अस कहि बिहसि ताहि उर लाई।
चलेउ सभाँ ममता अधिकाई॥
मंदोदरी हृदयँ कर चिंता।
भयउ कंत पर बिधि बिपरीता॥
वह दुष्ट मंदोदारीको ऐसे कह, उसको छातीमें लगाकर मनमें बड़ी ममता रखता हुआ सभामें गया॥
परन्नु मन्दोदरीने उस वक़्त समझ लिया कि अब इस कान्तपर दैव प्रतिकूल होगया है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
बैठेउ सभाँ खबरि असि पाई।
सिंधु पार सेना सब आई॥
बूझेसि सचिव उचित मत कहहू।
ते सब हँसे मष्ट करि रहहू॥
रावण सभामे जाकर बैठा। वहां ऐसी खबर आयी कि सब सेना समुद्र के उस पार आ गयी है॥
तब रावणने सब मंत्रियोंसे पूँछा की तुम अपना अपना जो योग्य मत हो वह कहो। तब वे सब मंत्री हँसे और चुप लगा कर रह गए (इसमें सलाह की कौन-सी बात है?)॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
जितेहु सुरासुर तब श्रम नाहीं।
नर बानर केहि लेखे माहीं॥
फिर बोले की हे नाथ! जब आपने देवता और दैत्योंको जीता उसमें भी आपको श्रम नही हुआ तो मनुष्य और वानर तो कौन गिनती है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ॥37॥
जो मंत्री भय वा लोभसे राजाको सुहाती बात कहता है, तो उसके राजका तुरंत नाश हो जाता है, और जो वैद्य रोगीको सुहाती बात कहता है तो रोगीका वेगही नाश हो जाता है, तथा गुरु जो शिष्यके सुहाती बात कहता है, उसके धर्मका शीघ्रही नाश हो जाता है ॥37॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
विभीषण का रावण को समझाना
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
सोइ रावन कहुँ बनी सहाई।
अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई॥
अवसर जानि बिभीषनु आवा।
भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा॥
सो रावणके यहां वैसीही सहाय बन गयी अर्थात् सब मंत्री सुना सुना कर रावणकी स्तुति करने लगे॥
उस अवसरको जानकर विभीषण वहां आया और बड़े भाईके चरणों में उसने सिर नवाया॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन।
बोला बचन पाइ अनुसासन॥
जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता।
मति अनुरूप कहउँ हित ताता॥
फिर प्रणाम करके वह अपने आसनपर जा बैठा॥ और रावणकी आज्ञा पाकर यह वचन बोला, हे कृपालु! आप मुझसे जो बात पूछते हो सो हे तात! मैं भी मेरी बुद्धिके अनुसार कहूंगा॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
जो आपन चाहै कल्याना।
सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना॥
सो परनारि लिलार गोसाईं।
तजउ चउथि के चंद कि नाईं॥
हे तात! जो आप अपना कल्याण, सुयश, सुमति, शुभ-गति, और नाना प्रकारका सुख चाहते हो॥
तब तो हे स्वामी! परस्त्रीके लिलारका (ललाट को) चौथके चांदकी नाई (तरह) त्याग दो (जैसे लोग चौथ के चंद्रमा को नहीं देखते, उसी प्रकार परस्त्री का मुख ही न देखे)॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
चौदह भुवन एक पति होई।
भूतद्रोह तिष्टइ नहिं सोई॥
गुन सागर नागर नर जोऊ।
अलप लोभ भल कहइ न कोऊ॥
चाहो कोई एकही आदमी चौदहा लोकोंका पति हो जावे परंतु जो प्राणीमात्रसे द्रोह रखता है वह स्थिर नहीं रहता अर्थात् तुरंत नष्ट हो जाता हैँ॥
जो आदमी गुणोंका सागर और चतुर है परंतु वह यदि थोड़ा भी लोभ कर जाय तो उसे कोई भी अच्छा नहीं कहता॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।
सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत ॥38॥
हे नाथ! ये सद्ग्रन्थ अर्थात् वेद आदि शास्त्र ऐसे कहते हैं कि काम, कोध, मद और लोभ ये सब नरक के मार्ग हैं, इस वास्ते इन्हें छोड़कर रामचन्द्रजीके चरणोंकी सेवा करो ॥38॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
रावण को विभीषण का समझाना
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
तात राम नहिं नर भूपाला।
भुवनेस्वर कालहु कर काला॥
ब्रह्म अनामय अज भगवंता।
ब्यापक अजित अनादि अनंता॥
हे तात! राम मनुष्य और राजा नहीं हैं, किंतु वे साक्षात त्रिलोकीनाथ और कालके भी काल है॥
जो साक्षात् परब्रह्म, निर्विकार, अजन्मा, सर्वव्यापक, अजेय, आदि और अनंत ब्रह्म है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
गो द्विज धेनु देव हितकारी।
कृपा सिंधु मानुष तनुधारी॥
जन रंजन भंजन खल ब्राता।
बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता॥
वे कृपासिंधु गौ, ब्राह्मण, देवता और पृथ्वीका हित करनेके लिये, दुष्टोके दलका संहार करनेके लिये, वेद और धर्मकी रक्षा करनेके लिये प्रकट हुए हे॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
ताहि बयरु तजि नाइअ माथा।
प्रनतारति भंजन रघुनाथा॥
देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही।
भजहु राम बिनु हेतु सनेही॥
सो शरणगतोंके संकट मिटानेवाले उन रामचन्द्रजीको वैर छोड़कर प्रणाम करो॥
हे नाथ! रामचन्द्रजी को सीता दे दीजिए और कामना छोडकर स्नेह रखनेवाले रामका भजन करो॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा।
बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा॥
जासु नाम त्रय ताप नसावन।
सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन॥
हे नाथ! वे शरण जानेपर ऐसे अधर्मीको भी नहीं त्यागते कि जिसको विश्वद्रोह करनेका पाप लगा हो॥
हे रावण! आप अपने मनमें निश्चय समझो कि जिनका नाम लेनेसे तीनों प्रकारके ताप निवृत्त हो जाते हैं वेही प्रभु आज पृथ्वीपर प्रकट हुए हैं॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस।
परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस ॥39(क)॥
हे रावण! मैं आपके वारंवार पावों में पड़कर विनती करता हूँ, सो मेरी विनती सुनकर आप मान, मोह, और मदको छोड़ श्री रामचन्द्रजी की सेवा करो ॥39(क)॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
मुनि पुलस्ति निज सिष्य सन कहि पठई यह बात।
तुरत सो मैं प्रभु सन कही पाइ सुअवसरु तात ॥39(ख)॥
पुलस्त्य ऋषी ने अपने शिष्य को भेजकर यह बात कहला भेजी थी सो अवसर पाकर यह बात हे रावण! मैंने आपसे कही है ॥39(ख)॥
को नहि जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो।
ReplyDeleteमंगलवार को श्री हनुमानजी के पावन सुमिरन से मंगलमय बनाने के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteVery 1
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteJai hanuman..
ReplyDeleteJAI ho
ReplyDeleteJai jai sankat mochan 🙏🙏
ReplyDeleteJai sri ram
ReplyDeleteजय श्री राम
ReplyDeleteShri ramchandra ki Jay
ReplyDeleteजय बजरंग बली
ReplyDeleteJai Bajarangabali ji🙏🙏
ReplyDeleteJai Bajarangabali ji🙏🙏
ReplyDelete🙏🙏🙏
ReplyDeleteJai hanumanji
ReplyDeleteJai Hanuman..
ReplyDelete🙏🏻जय बजरंगबली🙏🏻
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