सुंदरकांड
रामचन्द्रजी और हनुमान का संवाद
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना।
भरि आए जल राजिव नयना॥
बचन कायँ मन मम गति जाही।
सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही॥
भरि आए जल राजिव नयना॥
बचन कायँ मन मम गति जाही।
सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही॥
सुखके धाम श्रीरामचन्द्रजी सीताजीके दुःखके समाचार सुन अति खिन्न हुए और उनके कमलसे दोनों नेत्रोंमें जल भर आया॥ रामचन्द्रजीने कहा कि जिसने मन, वचन व कर्मसे मेरा शरण लिया है क्या स्वप्नमें भी उसको विपत्ति होनी चाहिये? कदापि नहीं॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई।
जब तव सुमिरन भजन न होई॥
केतिक बात प्रभु जातुधान की।
रिपुहि जीति आनिबी जानकी॥
जब तव सुमिरन भजन न होई॥
केतिक बात प्रभु जातुधान की।
रिपुहि जीति आनिबी जानकी॥
हनुमानजीने कहा कि हे प्रभु! मनुष्यकी यह विपत्ति तो वही (तभी) है जब यह मनुष्य आपका भजन स्मरण नही करता॥ हे प्रभु इस राक्षसकी कितनीसी बात है। आप शत्रुको जीतकर सीताजीको ले आइये॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
सुनु कपि तोहि समान उपकारी।
नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी॥
प्रति उपकार करौं का तोरा।
सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥
नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी॥
प्रति उपकार करौं का तोरा।
सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥
रामचन्द्रजीने कहा कि हे हनुमान! सुन, तेरे बराबर मेरे उपकार करनेवाला देवता, मनुष्य और मुनि कोइ भी देहधारी नहीं है॥
हे हनुमान! में तेरा क्या प्रत्युपकार (बदले में उपकार) करूं; क्योंकि मेरा मन बदला देनेके वास्ते सन्मुखही (मेरा मन भी तेरे सामने) नहीं हो सकता॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
हे हनुमान! में तेरा क्या प्रत्युपकार (बदले में उपकार) करूं; क्योंकि मेरा मन बदला देनेके वास्ते सन्मुखही (मेरा मन भी तेरे सामने) नहीं हो सकता॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं।
देखेउँ करि बिचार मन माहीं॥
पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता।
लोचन नीर पुलक अति गाता॥
देखेउँ करि बिचार मन माहीं॥
पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता।
लोचन नीर पुलक अति गाता॥
हे हतुमान! सुन, मेंने अपने मनमें विचार करके देख लिया है कि मैं तुमसे उऋण नहीं हो सकता॥
रामचन्द्रजी ज्यों ज्यों वारंवार हनुमानजीकी ओर देखते है; त्यों त्यों उनके नेत्रोंमें जल भर आता है और शरीर पुलकित हो जाता है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
रामचन्द्रजी ज्यों ज्यों वारंवार हनुमानजीकी ओर देखते है; त्यों त्यों उनके नेत्रोंमें जल भर आता है और शरीर पुलकित हो जाता है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत।
चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत ॥32॥
चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत ॥32॥
हनुमानजी प्रभुके वचन सुनकर और प्रभुके मुखकी ओर देखकर मनमें परम हर्षित हो गए॥
और बहुत व्याकुल होकर कहा ‘हे भगवान्! रक्षा करो’ ऐसे कहता हुए चरणोंमे गिर पड़े ॥32॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
और बहुत व्याकुल होकर कहा ‘हे भगवान्! रक्षा करो’ ऐसे कहता हुए चरणोंमे गिर पड़े ॥32॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
श्री राम हनुमान संवाद
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
बार बार प्रभु चहइ उठावा।
प्रेम मगन तेहि उठब न भावा॥
प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा।
सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा॥
प्रेम मगन तेहि उठब न भावा॥
प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा।
सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा॥
यद्यपि प्रभु उनको चरणोंमेंसे बार-बार उठाना चाहते हैं, परंतु हनुमान् प्रेममें ऐसे मग्न हो गए थे कि वह उठना नहीं चाहते थे॥
कवि कहते है कि रामचन्द्रजीके चरणकमलोंके बीच हनुमानजी सिर धरे है इस बातको स्मरण करके महादेवकी भी वही दशा होगयी और प्रेममें मग्न हो गये; क्योंकि हनुमान् रुद्रका अंशावतार है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
कवि कहते है कि रामचन्द्रजीके चरणकमलोंके बीच हनुमानजी सिर धरे है इस बातको स्मरण करके महादेवकी भी वही दशा होगयी और प्रेममें मग्न हो गये; क्योंकि हनुमान् रुद्रका अंशावतार है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
सावधान मन करि पुनि संकर।
लागे कहन कथा अति सुंदर॥
कपि उठाई प्रभु हृदयँ लगावा।
कर गहि परम निकट बैठावा॥
लागे कहन कथा अति सुंदर॥
कपि उठाई प्रभु हृदयँ लगावा।
कर गहि परम निकट बैठावा॥
फिर महादेव अपने मनको सावधान करके अति मनोहर कथा कहने लगे॥
महादेवजी कहते है कि हे पार्वती! प्रभुने हनमान्कों उठाकर छातीसे लगाया और हाथ पकड कर अपने बहुत नजदीक बिठाया॥जय सियाराम जय जय सियाराम
महादेवजी कहते है कि हे पार्वती! प्रभुने हनमान्कों उठाकर छातीसे लगाया और हाथ पकड कर अपने बहुत नजदीक बिठाया॥जय सियाराम जय जय सियाराम
कहु कपि रावन पालित लंका।
केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका॥
प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना।
बोला बचन बिगत अभिमाना॥
केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका॥
प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना।
बोला बचन बिगत अभिमाना॥
और हनुमानसे कहा कि हे हनुमान! कहो, वह रावणकी पाली हुई लंकापुरी, कि जो बड़ा बंका किला है, उसको तुमने कैसे जलाया?॥
रामचन्द्रजीकी यह बात सुन उनको प्रसन्न जानकर हनुमानजीने अभिमानरहित होकर यह वचन कहे कि॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
रामचन्द्रजीकी यह बात सुन उनको प्रसन्न जानकर हनुमानजीने अभिमानरहित होकर यह वचन कहे कि॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
साखामग कै बड़ि मनुसाई।
साखा तें साखा पर जाई॥
नाघि सिंधु हाटकपुर जारा।
निसिचर गन बधि बिपिन उजारा॥
साखा तें साखा पर जाई॥
नाघि सिंधु हाटकपुर जारा।
निसिचर गन बधि बिपिन उजारा॥
हे प्रभु! बानरका तो अत्यंत पराक्रम यही है कि वृक्षकी एक डालसे दूसरी डालपर कूद जाय॥
परंतु जो मै समुद्रको लांघकर लंका में चला गया और वहा जाकर मैंने लंका को जला दिया और बहुतसे राक्षसोंको मारकर अशोक वनको उजाड़ दिया॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
परंतु जो मै समुद्रको लांघकर लंका में चला गया और वहा जाकर मैंने लंका को जला दिया और बहुतसे राक्षसोंको मारकर अशोक वनको उजाड़ दिया॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
सो सब तव प्रताप रघुराई।
नाथ न कछू मोरि प्रभुताई॥
नाथ न कछू मोरि प्रभुताई॥
हे प्रभु! यह सब आपका प्रताप है। हे नाथ! इसमें मेरी प्रभुता कुछ नहीं है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकूल।
तव प्रभावँ बड़वानलहि जारि सकइ खलु तूल ॥33॥
तव प्रभावँ बड़वानलहि जारि सकइ खलु तूल ॥33॥
हे प्रभु! आप जिस पर प्रसन्न हों, उसके लिए कुछ भी असाध्य (कठिन) नहीं है।
आपके प्रतापसे निश्चय रूई बड़वानलको जला सकती है (असंभव भी संभव हो सकता है) ॥33॥
आपके प्रतापसे निश्चय रूई बड़वानलको जला सकती है (असंभव भी संभव हो सकता है) ॥33॥
श्री राम और हनुमानजी का संवाद
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
नाथ भगति अति सुखदायनी।
देहु कृपा करि अनपायनी॥
सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी।
एवमस्तु तब कहेउ भवानी॥
देहु कृपा करि अनपायनी॥
सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी।
एवमस्तु तब कहेउ भवानी॥
रामचन्द्रजीके ये वचन सुनकर हनुमानजीने कहा कि हे नाथ! मुझे तो कृपा करके आपकी अनपायिनी (जिसमें कभी विच्छेद नहीं पडे ऐसी, निश्चल) कल्याणकारी और सुखदायी भक्ति दो॥
महादेवजीने कहा कि हे पार्वती! हनुमानकी ऐसी परम सरल वाणी सुनकर प्रभुने कहा कि हे हनुमान्! ‘एवमस्तु’ (ऐसाही हो) अर्थात् तुमको हमारी भक्ति प्राप्त हो॥
महादेवजीने कहा कि हे पार्वती! हनुमानकी ऐसी परम सरल वाणी सुनकर प्रभुने कहा कि हे हनुमान्! ‘एवमस्तु’ (ऐसाही हो) अर्थात् तुमको हमारी भक्ति प्राप्त हो॥
जय सियाराम जय जय सियाराम
उमा राम सुभाउ जेहिं जाना।
ताहि भजनु तजि भाव न आना॥
यह संबाद जासु उर आवा।
रघुपति चरन भगति सोइ पावा॥
ताहि भजनु तजि भाव न आना॥
यह संबाद जासु उर आवा।
रघुपति चरन भगति सोइ पावा॥
हे पार्वती! जिन्होंने रामचन्द्रजीके परम दयालु स्वभावको जान लिया है, उनको रामचन्द्रजीकी भक्तिको छोंड़कर दूसरा कुछ भी अच्छा नहीं लगता॥
यह हनुमान् और रामचन्द्रजीका संवाद जिसके हृदयमें दृढ़ रीतिसे आ जाता है, वह श्री रामचन्द्रजीकी भक्तिको अवश्य पा लेता है॥
यह हनुमान् और रामचन्द्रजीका संवाद जिसके हृदयमें दृढ़ रीतिसे आ जाता है, वह श्री रामचन्द्रजीकी भक्तिको अवश्य पा लेता है॥
सुनि प्रभु बचन कहहिं कपिबृंदा।
जय जय जय कृपाल सुखकंदा॥
तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा।
कहा चलैं कर करहु बनावा॥
जय जय जय कृपाल सुखकंदा॥
तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा।
कहा चलैं कर करहु बनावा॥
प्रभुके ऐसे वचन सुनकर तमाम वानरवृन्दने पुकार कर कहा कि हे दयालू! हे सुखके मूलकारण प्रभु! आपकी
जय हो, जय हो, जय हो॥
उस समय प्रभुने सुग्रीवको बुलाकर कहा कि हे सुग्रीव! अब चलनेकी तैयारी करो॥
उस समय प्रभुने सुग्रीवको बुलाकर कहा कि हे सुग्रीव! अब चलनेकी तैयारी करो॥
अब बिलंबु केह कारन कीजे।
तुरंत कपिन्ह कहँ आयसु दीजे॥
कौतुक देखि सुमन बहु बरषी।
नभ तें भवन चले सुर हरषी॥
तुरंत कपिन्ह कहँ आयसु दीजे॥
कौतुक देखि सुमन बहु बरषी।
नभ तें भवन चले सुर हरषी॥
अब विलम्ब क्यों किया जाता है। अब तुम वानरोंको तुरंत आज्ञा
क्यो नहीं देते हो॥
इस कौतुकको देखकर (भगवान की यह लीला) देवताओंने आकाशसे बहुतसे फूल बरसाये और फिर वे आनंदित होकर अपने अपने लोक को चल दिये॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
इस कौतुकको देखकर (भगवान की यह लीला) देवताओंने आकाशसे बहुतसे फूल बरसाये और फिर वे आनंदित होकर अपने अपने लोक को चल दिये॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha –
Sunderkand)
कपिपति बेगि बोलाए आए जूथप जूथ।
नाना बरन अतुल बल बानर भालु बरूथ ॥34॥
नाना बरन अतुल बल बानर भालु बरूथ ॥34॥
रामचन्द्रजीकी आज्ञा होते ही सुग्रीवने वानरोंके सेनापतियोंको बुलाया और सुग्रीवकी आज्ञाके साथही वानर और रीछोके झुंड कि जिनके अनके प्रकारके वर्ण हैं और अतूलित बल हैं वे वहां आये॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
Jai Bajrang Bali
Jai Shri Ram.. 🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteJai jai Hanuman 🙏🙏🙏🙏
जय श्री राम, जय बजरंग बली
ReplyDeleteश्रीराम जय राम जय जय राम 🙏🙏
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ReplyDeleteShri ram jai ram..jai jai ram
ReplyDeleteJai Bajrang Bali
ReplyDeleteShri ram....jai ram
ReplyDeleteJai shri hanuman
ReplyDeleteजय हनुमान जी
ReplyDeleteJai shri Ram ji jai shri hanuman ji,🙏🙏
ReplyDeleteJai Hanuman..
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