देखो बसन्त आ गया
पीत पीत हुए पात
सिकुड़ी-सिकुड़ी-सी रात
ठिठुरन का अन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया।
मादक सुगन्ध से भरी
पन्थ पन्थ आम्र मंजरी
कोयलिया कूक कूक कर
इतराती फिरै बावरी
जाती है जहाँ दृष्टि
मनहारी सकल स्रष्टि
लास्य दिग्दिगन्त छा गया
देखो बसन्त आ गया।
शीशम के तारुण्य का
आलिंगन करती लता
रस का अनुरागी भ्रमर
कलियों का पूछता पता
सिमटी-सी खड़ी भला
सकुचायी शकुन्तला
मानो दुष्यन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया।
पर्वत का ऊँचा शिखर
ओढ़े है किंशुकी सुमन
सरसों के फूलों भरा
बासन्ती मादक उपवन
करने कामाग्नि दहन
केशरिया वस्त्र पहन
मानों कोई सन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया।
कहानी तो एक दिन सबको होना है....❣️❣️"
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 02 फरवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
ReplyDeleteपांच लिंकों के आनन्द में इस रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार 💐
Deleteबसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🏻
ReplyDeleteGood morning.
ReplyDeleteHappy Sunday
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteVery nice..
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteWah kya bat h....
ReplyDeleteVery nice
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