राजारानी मंदिर, भुवनेश्वर
आज इस ब्लॉग में एक ऐसे मंदिर की चर्चा करते हैं, जहां किसी भी भगवान की पूजा नहीं होती है। मंदिर के गर्भ गृह में किसी देवी देवता की प्रतिमा स्थापित नहीं है अर्थात इस मंदिर में कोई पीठासीन देवता नहीं हैं। जी हाँ, ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में प्रसिद्ध राजारानी मंदिर काफी लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यहां हजारों की संख्या में लोग हर साल घूमने के लिए आते हैं। 11वीं शताब्दी में बने इस मंदिर को स्थानीय लोग 'प्रेम मंदिर' के रूप में जानते हैं। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां किसी भगवान की पूजा नहीं की जाती है क्योंकि मंदिर के गर्भ-गृह में कोई प्रतिमा नहीं है।
मंदिर में महिलाओं और जोड़ों के नक्काशी की वजह से स्थानीय रूप से प्रेम मंदिर के रूप में जाना जाता है। मंदिर के अंदर कोई मुर्ति, विग्रह या छवि नहीं है, इसलिए यह हिंदू धर्म के एक विशिष्ट संप्रदाय के साथ नहीं जुड़ा है, लेकिन मंदिर की दीवारों पर हुई चित्रकारी के आधार पर शैव मत के रूप में वर्गीकृत किया गया है। मंदिर की दीवारों पर भगवान शिव और देवी पार्वती के चित्र अंकित हैं। यह भी माना जाता है कि पूर्व में यह इंद्रेश्वर के रूप में जाना जाता था, भगवान शिव का एक रूप है। विभिन्न इतिहासकारों ने यह पाया है कि 11 वीं और 12 वीं शताब्दी के बीच बना है, यानी लगभग उसी समय में जब पुरी के जगन्नाथ मंदिर बना था।
मंदिर के निर्माण के लिए लाल और पीले रंग के बलुआ पत्थर के इस्तेमाल किया गया है, जिसको स्थानीय भाषा में राजारानी कहा जाता है, इसलिए इस मंदिर का नाम राजारानी मंदिर पड़ा। इस मंदिर की देख-रेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण करता है और यहां जाने के लिए टिकट लेना पड़ता है।
मंदिर में महिलाओं के लुभावने जटिल और विस्तृत नक्काशी वाली मूर्तियां बनाई गई हैं। जैसे एक बच्चे को प्रेम करती महिला, दर्पण देखती महिला, पायल निकालती हुई महिला, वाद्य यंत्र बजाती और नाचती हुई महिलाओं की मूर्तियां यहां बनी हैं। इसके अलावा नटराज की मूर्ति, शिव के विवाह की मूर्ति भी यहां बनी हुई है।
यह मंदिर प्रचीन समय की उत्कृष्ट वास्तुशिल्प का बेहतरीन उदाहरण है, जहां दीवारों पर स्त्री और पुरुषों की कुछ कामोत्तेजक मूर्तियों की सुंदर नक्काशी की गई है। इसके अलावा मंदिर में शेर, हाथी, बैल की मूर्तियां हैं। ये कलाकृतियां मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिर की कलाकृतियों की याद दिलाती हैं।
राजारानी मंदिर का निर्माण पंचराठ शैली में किया गया है। इस मंदिर में किसी देवता की अनुपस्थिति और इसका अनोखा नाम, इसके वास्तुशिल्प वैभव के साथ मिलकर, इसे भारतीय मंदिर वास्तुकला के इतिहास में एक विशिष्ट स्मारक बनाता है। यह ओडिशा की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का प्रमाण बना हुआ है।हर साल 18 से 20 जनवरी तक ओडिशा सरकार का पर्यटन विभाग मंदिर में राजारानी संगीत समारोह का आयोजन करती है। मंदिर शास्त्रीय संगीत पर केंद्रित है, और शास्त्रीय संगीत की तीनों शैलियों - हिंदुस्तानी, कर्नाटक और ओडिसी को समान महत्व दिया जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों के संगीतकार तीन दिवसीय महोत्सव के दौरान प्रदर्शन करते हैं।
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Rajarani Temple, Bhubaneswar
Today in this blog we will discuss a temple where no god is worshiped. The idol of any deity is not installed in the sanctum sanctorum of the temple, that is, there is no presiding deity in this temple. Yes, the famous Rajarani Temple in Bhubaneswar, the capital of Odisha, is a very popular tourist destination. Thousands of people come here to visit every year. Built in the 11th century, this temple is known by the local people as 'Prem Mandir'. The specialty of this temple is that no god is worshiped here as there is no idol in the sanctum sanctorum of the temple.
The temple is locally known as Prem Mandir because of the carvings of women and couples. There is no idol, idol or image inside the temple, so it is not associated with a specific sect of Hinduism, but is classified as Shaivism based on the paintings on the walls of the temple. Pictures of Lord Shiva and Goddess Parvati are inscribed on the walls of the temple. It is also believed that it was formerly known as Indreshwar, a form of Lord Shiva. Various historians have found that it was built between the 11th and 12th centuries, i.e. around the same time as the Jagannath temple of Puri.
The red and yellow sandstone used for the construction of the temple is called Rajarani in the local language, hence the name Rajarani temple. This temple is maintained by the Archaeological Survey of India and one has to buy a ticket to visit here.
The temple has breathtaking intricate and detailed carvings of women. Such as a woman loving a child, a woman looking in the mirror, a woman removing anklets, women playing musical instruments and dancing, there are statues of women here. Apart from this, the statue of Nataraja, the statue of Shiva's marriage is also built here.
This temple is a great example of excellent architecture of ancient times, where some erotic statues of men and women have been beautifully carved on the walls. Apart from this, the temple has sculptures of lions, elephants, bulls. These artifacts are reminiscent of the artifacts of Khajuraho temple in Madhya Pradesh.
Rajarani temple is built in Pancharath style. The absence of any deity in this temple and its unique name, combined with its architectural splendor, makes it a unique monument in the history of Indian temple architecture. It remains a testimony to the rich cultural and historical heritage of Odisha. Every year from 18 to 20 January, the Tourism Department of the Government of Odisha organizes the Rajarani Music Festival in the temple. The temple focuses on classical music, and all three styles of classical music - Hindustani, Carnatic and Odissi are given equal importance. Musicians from different parts of the country perform during the three-day festival.
Very interesting news.
ReplyDeleteWah 👌🏻
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी जानकारी साझा करने के लिए धन्यवाद
ReplyDelete🙏🙏💐💐शुभरात्रि 🕉️
ReplyDelete🚩🚩ॐ नमः शिवाय 🚩🚩
🚩🚩जय जय भोलेनाथ 🚩🚩
👍👍👍अद्धभुत... बहुत सुन्दर जानकारी शेयर करने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐
Very nice
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