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हलधर नाग || Haldhar Nag

हलधर नाग

आज एक ऐसे कवि और लेखक की चर्चा करते हैं, जिन्हें 2016 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था - हलधर नाग

हलधर नाग, जिसके नाम के आगे कभी श्री नहीं लगाया गया, 3 जोड़ी कपड़े, एक टूटी रबड़ की चप्पल, एक बिन कमानी का चश्मा और जमा पूंजी 732/- रुपया। 

ये हैं ओड़िशा के हलधर नाग ।

हलधर नाग || Haldhar Nag ||

अब सोचिए कि अगर कोई तीसरी कक्षा के बाद स्कूल छोड़ दे, लेकिन उसकी कविताएँ पाँच विद्वानों के पीएचडी शोध का विषय बन जाएं, बस यही हैं, हलधर नाग, जिन्हें 'लोक कवि रत्न' कहा जाता है। इन्होंने कोसली भाषा में कविताएँ लिखकर साहित्य की दुनिया में इतिहास रच दिया। उनके पास किताबें नहीं, लेकिन उनकी कविताओं में छिपा ज्ञान किसी ग्रंथ से कम नहीं। 

हलधर नाग की पहली कविता 1990 में प्रकाशित हुई, और तब से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। समाज, प्रकृति, और पौराणिक कथाओं पर लिखने वाले इस अद्भुत कवि ने कोसली भाषा को नई ऊंचाई दी। उनकी कविताएँ न सिर्फ जनता के दिलों को छूती हैं, बल्कि उन्हें साहित्य का एक अनमोल खजाना बना चुकी हैं। उनकी रचनाएँ इतनी प्रभावशाली हैं कि उन्हें 2016 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया। 

उनके शब्दों में, "हर कोई कवि है, पर उसे आकार देना कला है।" यह वाक्य उनकी सरलता और गहराई को बखूबी दर्शाता है। बिना किताबों की मदद के, हलधर नाग ने अपनी कविताओं से समाज को जोड़ने और प्रेरित करने का जो काम किया, वह हर किसी के लिए प्रेरणा है। 

मात्र तीसरी पास, पद्म श्री हलधर नाग की कोसली कविताएँ बनी पीएचडी अनुसंधान का विषय

हलधर का जन्म 1950 में ओडिशा के बरगढ़ में एक गरीब परिवार में हुआ था। जब वे 10 वर्ष के थे तभी उनके पिता की मृत्यु के साथ हलधर का संघर्ष शुरू हो गया। तब उन्हें मजबूरी में तीसरी कक्षा के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा। घर की अत्यन्त विपन्न स्थिति के कारण मिठाई की दुकान में बर्तन धोने पड़े। दो साल बाद गाँव के सरपंच ने हलधर को पास ही के एक स्कूल में खाना पकाने के लिए नियुक्त कर दिया, जहाँ उन्होंने 16 वर्ष तक काम किया। जब उन्हें लगा कि उनके गाँव में बहुत सारे विद्यालय खुल रहे हैं, तो उन्होंने एक बैंक से सम्पर्क किया और स्कूली बच्चों के लिए स्टेशनरी और खाने-पीने की एक छोटी सी दुकान शुरू करने के लिए 1000 रुपये का ऋण लिया। यह दुकान स्कूल के सामने थी, जहाँ वो छुट्टी के समय बैठते थे। 

कुछ समय पश्चात हलधर नाग ने स्थानीय उड़िया भाषा में ''राम-शबरी'' जैसे कुछ धार्मिक प्रसंगों पर लिखकर लोगों को सुनाना शुरू किया। उन्होंने भावनाओं से ओत प्रोत कवितायें लिखी, शुरुवाती दौर में जिन्हें नाग जबरन लोगों के बीच प्रस्तुत करते थे। धीरे - धीरे उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी। 

1990 में हलधर ने पहली कविता "धोधो बारगाजी" (अर्थ : 'पुराना बरगद') नाम से लिखी, जिसे एक स्थानीय पत्रिका ने छापा और उसके बाद हलधर की सभी कविताओं को पत्रिका में जगह मिलती रही और वे आस-पास के गाँवों से भी कविता सुनाने के लिए बुलाए जाने लगे। लोगों को हलधर की कविताएँ इतनी पसन्द आईं कि वे उन्हें "लोक कविरत्न" के नाम से बुलाने लगे।

नाग पर PHD कर रहे रिसर्चर्स

अब उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ चुकी थी कि सन 2016 में हलधर नाग को भारत के राष्ट्रपति के द्वारा साहित्य के लिये पद्मश्री प्रदान किया। इतना ही नहीं अब 5 रिसर्चर्स हलधर नाग के साहित्य पर PHd कर रहे हैं, जबकि हलधर खुद केवल तीसरी कक्षा तक ही पढ़े हैं। हलधर नाग को पदम्श्री से सम्मानित करने और उनपर रिसर्चर्स के PHD करने पर कहा गया है कि

 ''आप किताबों में प्रकृति को चुनते है, 
पद्मश्री ने प्रकृति से किताबें चुनी हैं।''
जानिये पद्मश्री कवि हलधर नाग के बारे में

2021 में सोशल मिडिया पर एक पोस्ट वायरल हुई थी "साहिब - दिल्ही आने तक के पैसे नहीं हैं, कृपया पुरुस्कार डाक से भिजवा दो।"

डा. हलधर नाग को लेकर इंटरनेट मीडिया में एक गलत पोस्ट वायरल हुई थी। इस पोस्ट को लेकर नाग ने कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा था कि उनके नाम पर किया गया पोस्ट पूरी तरह झूठा और मनगढ़ंत है। ऐसे पोस्ट से वे काफी दुखी और आहत हैं। वायरल पोस्ट में कहा गया है कि पद्मश्री पुरस्कार लेने के लिए हलधर नाग के पास दिल्ली जाने के पैसे नहीं हैं और इस संबंध में सरकार को पत्र लिखकर नाग ने आग्रह किया है कि उनका पुरस्कार डाक से भेज दिया जाय।

नाग ने कहा कि शरारतपूर्ण तरीके से यह झूठी जानकारी वायरल की गई है। सच तो यह है कि उन्हें इस वर्ष नहीं बल्कि 2016 में पद्मश्री का पुरस्कार मिला था। 2016 में भी जब पद्मश्री पुरस्कार लेने के लिए उन्हें दिल्ली बुलाया गया था तब उन्होंने सरकार को अपनी गरीबी का हवाला देते हुए कोई पत्र नहीं लिखा था और न ही पदमश्री पुरस्कार को डाक से भेज देने की बात कही थी। लोककवि डा. हलधर नाग ने कहा कि पद्मश्री पुरस्कार से पहले से ही ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की ओर से उन्हें कलाकार भत्ता दिया जा रहा था। ओडिशा सरकार ने उन्हें रहने के लिए जमीन भी दी है, जिसपर बरगढ़ के एक डाक्टर ने अपने खर्च से मकान भी बनवा दिया है। वर्तमान में उन्हें सरकार की ओर से साढ़े 18 हजार रुपये का मासिक भत्ता भी मिलता है।

5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 30 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. अच्छी जानकारी

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  3. Very Nice Information 👌🏻😊

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