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निन्दा तू न गई मन से

निन्दा तू न गई मन से

परनिंदा में जो सुख है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। अद्भुत आनंद की अनुभूति होती है। मन को शांति मिल जाती है। स्त्रियां बहुत होशियार होती हैं। वे इसका पूरा लुत्फ़ उठती हैं। वे इसके आनंद को भली भांति समझती हैं। दिन में दो चार घंटे भी अगर आनन्द पूर्वक न बिताया तो जीवन व्यर्थ सा प्रतीत होता है। 

निन्दा तू न गई मन से

पुरुषों को तो अपने काम से ही फुरसत नहीं मिलती, बेचारे। कभी कभार कोई मौका मिलता भी है तो बोलते हैं कि पहले ही इतने लफ़ड़े हैं, जिंदगी में अब उसके पचड़े में क्यों अपनी नाक घुसेड़ूँ। फिर उनके पास एक गुप्त कार्य भी होता है, ताक झांक करने का, इनसे फुर्सत मिले तब ना।

निंदा की एक बड़ी खूबी है, जितना करो, इसकी इच्छा उतनी ही बढ़ती जाती है। आनन्द भी उतना ही बढ़ता जाता है। इसी आनन्द को हासिल करने के लिए ही तो स्त्रियां निंदा में मशगूल होती हैं।

एक महान हास्य साहित्यकार हुए हैं, नाम सुना होगा आप लोगों ने श्रीमान "हरिशंकर परसाई"। उन्होंने काफी शोध किया है इस विषय पर। उनका कहना है कि निंदा में भरपूर विटामिन और प्रोटीन होते हैं। इससे खून साफ़ होता है और पाचन क्रिया बेहतर होती है। यह बल और स्फूर्ति देती है और पायरिया का शर्तिया इलाज है।

संतों को परनिंदा की मनाही है सो वे स्वनिन्दा से काम चलाते हैं। उन्हीं के लिए गोस्वामी जी ने राह दिखाई है "मो सो कौन कुटिल खल कामी"। यह संत की विनय या आत्मग्लानि नहीं है। टॉनिक है। 

अब यह शोध का विषय हो सकता है कि स्त्रियों ने सन्तों से प्रेरणा ली या सन्तों ने स्त्रियों से।

अब स्त्रियां निन्दा न करें तो क्या करें? पड़ोसन खूबसूरत है, अच्छे वस्त्र पहनती है तो डर तो लगता है ना। करमजली उसके पति को फाँस तो नहीं रही? बदसूरत है, गन्दगी से रहती है तो अपना स्टेटस गड़बड़ाता है। फिर आपकी सोसाइटी में आजू बाजू, ऊपर नीचे न जाने कितनी ही स्त्रियां रहतीं हैं। अब बम्बई वाला कल्चर आ गया है तो लोग बगल वाले को भी नहीं पहचानते। फिर क्या करें वो, मन के गुबार को दीवारों पर या हवा में तो नहीं निकाल सकती ना। वैसे जिनको निंदा के लिए कोई पार्टनर नहीं मिल पाता उन्हें आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हवा से बातें करते हुए देखा है। यूपी बोर्ड से पढ़े हुए बन्धु इस तथ्य से भली भांति परिचित होंगे।

गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं कि "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" मुझे लगता है कि वे शायद "पर निन्दा कुशल बहुतेरे" लिखना चाहते थे। पर अपनी पत्नी से कौन नहीं डरता। परसाई जी बहुत हिम्मती थे। नर्मदा के जल का कुछ प्रभाव रहा होगा जो इतना कुछ लिख गए (वैसे नर्मदा जल का कुछ प्रभाव तो मुझ पर भी है )

आजकल इंटरनेट का ज़माना है। निन्दा भी मॉडर्न हो गई है। अब वह फेसबुक और वाट्स एप्प पर ज्यादा पाई जाती है। एक झंझट खत्म हुआ। पहले निन्दा चर्चा में मुंह दर्द होता था। अब उससे मुक्ति मिल गई है। कोई आवाज नहीं और कार्य फटाफट हो रहा है। और अब तो अड़ोस पड़ोस में कोई पार्टनर न भी मिला तो कोई गम नहीं। पार्टनर बम्बई या अहमदाबाद से भी ऑप्ट किया जा सकता है।

पर हर जगह कुछ न कुछ रिस्क तो रहता ही है। कल मिसेज सिंह मिसेज तिवारी से शिकायत कर रहीं थीं कि उन्होंने सरोज से चैटिंग में कमीनी कामिनी की पूरी पोल पट्टी खोल दी। पर सरोज तो और भी छिनाल निकली, उसने मेरे पोस्ट सब कामिनी को कॉपी पेस्ट कर दिए। अब मैंने उसकी असलियत सबको न बताई तो कहना।

कबीरदास जी भी कह गए हैं कि "निन्दक नियरे राखिए" यानी कि शादी अवश्य कीजिए। वैसे महान लोगों का अनुभव बताता है कि इसका लाभ भी शुरुआत के वर्षों में नहीं मिलता। चार छह साल बाद ही नियरे रखने का लाभ मिल पाता है।

ये पुराण सतयुग से प्रारम्भ हुआ है और अभी चल रहा है जब कि बाकी पुराणों को लोग पढ़ कर भूल भी गए। अस्तु। 

इति श्रीनिन्दा पुराण 1001 वां अध्याय।

( सभी निंदकों से क्षमा याचना सहित)

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