बद्रीनाथ धाम, उत्तराखण्ड
उत्तराखंड के बद्रीनाथ शहर में स्थित बद्रीनाथ मंदिर जिसे बद्रीनारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, राज्य के चार धामों (चार महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों) में से एक है। यहाँ चार तीर्थस्थल हैं, यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ, जिन्हें सामूहिक रूप से चार धाम के नाम से जाना जाता है। ये तीर्थस्थल हर साल बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों को आकर्षित करते हैं, इस प्रकार ये पूरे उत्तरी भारत में धार्मिक यात्रा के सबसे महत्वपूर्ण केंद्र हैं।
नर और नारायण पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में,अलकनंदा नदी के बायीं तरफ बसे आदितीर्थ बद्रीनाथ धाम श्रद्धा व आस्था का अटूट केंद्र है। यह पवित्र स्थल भगवान विष्णु के चतुर्थ अवतार नर एवं नारायण की तपोभूमि है। इस धाम के बारे में कहावत है कि-"जो जाए बद्री,वो न आए ओदरी"यानि जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे माता के गर्भ में दोबारा नहीं आना पड़ता। प्राणी जन्म और मृत्यु के चक्र से छूट जाता है।
बद्रीनाथ लगभग 3,100 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। माना जाता है कि मंदिर की स्थापना 8वीं शताब्दी में ऋषि आदि शंकराचार्य ने की थी। भगवान विष्णु को अपना मुख्य देवता मानते हुए यह मंदिर साल में छह महीने तक खुला रहता है। सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण यह दुर्गम हो जाता है।
जब भगवान श्रीविष्णु अपनी तपस्या के लिए उचित स्थान देखते-देखते नीलकंठ पर्वत और अलकनंदा नदी के तट पर पहुंचे, तो यह स्थान उनको अपने ध्यान योग के लिए बहुत पसंद आया। पर यह जगह तो पहले से ही शिवभूमि थी तब विष्णु भगवान ने यहां बाल रूप धारण किया और रोने लगे। उनके रुदन को सुनकर स्वयं माता पार्वती और शिवजी उस बालक के समक्ष उपस्थित हो गए और बालक से पूछा, कि उसे क्या चाहिए। बालक ने ध्यान योग करने के लिए शिव से यह स्थान मांग लिया। भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती से रूप बदलकर जो स्थान प्राप्त किया वही पवित्र स्थल आज बद्रीविशाल के नाम से प्रसिद्द है।
जब भगवान विष्णु तपस्या में लीन थे तो अचानक बहुत हिमपात होने लगा। तपस्यारत श्रीहरि बर्फ से पूरी तरह ढकने लगे। उनकी इस दशा को देखकर माता लक्ष्मी ने वहीं पर एक विशालकाय बेर के वृक्ष का रूप धारण कर लिया और हिमपात को अपने ऊपर सहन करने लगीं। माता लक्ष्मी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिमपात से बचाने के लिए कठोर तपस्या करने लगीं। काफी वर्षों के बाद जब श्रीविष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि उनकी प्रिया लक्ष्मी जी तो पूरी तरह बर्फ से ढकी हुई हैं। तब श्री हरि ने माता लक्ष्मी के तप को देखकर कहा-'हे देवी! तुमने मेरे बराबर ही तप किया है इसलिए आज से इस स्थान पर मुझे तुम्हारे साथ ही पूजा जाएगा और तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है अतः आज से मुझे 'बदरी के नाथ' यानि बद्रीनाथ के नाम से जाना जाएगा।''
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Badrinath Dham, Uttarakhand
Badrinath Temple, also known as Badrinarayan Temple, located in the town of Badrinath in Uttarakhand, is one of the four Dhams (four important pilgrimage sites) of the state. There are four pilgrimage sites, Yamunotri, Gangotri, Kedarnath and Badrinath, which are collectively known as the Char Dham. These pilgrimage sites attract a large number of pilgrims every year, thus making them the most important centers of religious pilgrimage in the whole of northern India.
Aditirtha Badrinath Dham, located on the left side of the Alaknanda River, in the lap of the Nar and Narayan mountain ranges, is an unbreakable center of faith and devotion. This holy place is the Tapabhoomi of Nar and Narayan, the fourth incarnation of Lord Vishnu. There is a saying about this Dham - "Jo Jaye Badri, Wo Na Aaye Odri" i.e. the person who visits Badrinath does not have to come to the mother's womb again. The creature is freed from the cycle of birth and death.
Badrinath is situated at an altitude of about 3,100 meters. It is believed that the temple was established by sage Adi Shankaracharya in the 8th century. Considering Lord Vishnu as its main deity, this temple remains open for six months in a year. It becomes inaccessible in winter due to heavy snowfall.
When Lord Vishnu reached Neelkanth mountain and the banks of Alaknanda river while looking for a suitable place for his penance, he liked this place very much for his meditation yoga. But this place was already Shivabhoomi, then Lord Vishnu took the form of a child here and started crying. Hearing his crying, Mother Parvati and Lord Shiva themselves appeared before that child and asked the child what he wanted. The child asked for this place from Shiva to do meditation yoga. The place which Lord Vishnu got by changing form from Shiva-Parvati, the same holy place is famous today as Badrivishal.
When Lord Vishnu was engrossed in penance, suddenly heavy snowfall started. The meditating Shri Hari started getting completely covered with snow. Seeing his condition, Mother Lakshmi took the form of a huge plum tree and started tolerating the snowfall on herself. Mother Lakshmi started doing severe penance to protect Lord Vishnu from the sun, rain and snowfall. After many years, when Shri Vishnu completed his penance, he saw that his beloved Lakshmi ji was completely covered with snow. Then, seeing the penance of Mother Lakshmi, Shri Hari said- 'O Goddess! You have done penance to the same extent as me, so from today onwards I will be worshipped along with you at this place and you have protected me in the form of Badri tree, so from today onwards I will be known as 'Badri ke Nath' i.e. Badrinath.'
Very valuable information.
ReplyDeleteJai Badri vishal 🙏🏻
ReplyDelete🙏🙏💐💐
ReplyDelete🕉शुभदोपहर 🕉️
🚩🚩जय जय जय श्री बद्रीविशाल 🚩🚩
🙏ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः 🚩
🙏जय श्री हरि विष्णु 🚩
🙏आप का दिन शुभ हो 🙏
👍👍👍बहुत बढ़िया जानकारी शेयर करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐
जय बद्रीविशाल
ReplyDeleteJai Badrinath baba
ReplyDeleteजय बद्री बिशाल
ReplyDeleteJay Badrinath Baba 🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteJai ho
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