समुद्र मंथन कहाँ हुआ था...??
हिंदू धर्म ग्रंथों (भागवत पुराण, महाभारत तथा विष्णु पुराण) के अनुसार सृष्टि की रचना के बाद त्रिदेव अर्थात- भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के निर्देशन में क्षीरसागर को मथा गया था। यह मंथन देवताओं और दानवों द्वारा किया गया था। वासुकी नाग की सहायता से समुद्र मंथन किया गया, जिसके एक छोर पर सभी देवता गण उपस्थित थे तो वहीं दूसरी ओर दानवों थे। इस समुंद्र मंथन के दौरान 14 प्रकार के रत्न उत्पन्न हुए थे। यह समुन्द्र मंथन हुआ कहाँ था?
यदि स्थूल दृष्टि से देखें तो शायद अरब सागर में कहीं, लेकिन ऐसा नहीं है। किसी भी घटना के सही स्थान का पता करने हेतु उस समय की भौगोलिक स्थिति का पता होना भी जरूरी है। ग्रंथों में गहरे घुसेंगे तो पता चलेगा कि बिहार, बंगाल, झारखण्ड, उड़ीसा आदि समुद्र मंथन के समय जलमग्न थे। उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से भी उस समय थे नहीं।
समुद्रमंथन का समय भागीरथी के प्रादुर्भाव से भी बहुत पहले का है। उस समय हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बहुत थोड़ी ही भूमि का निर्माण कर पाई थी। नदियाँ ही भूमि का निर्माण करती हैं। इस राष्ट्र के पिता पर्वत हैं तो माताएँ नदियाँ। अभी भी सबसे प्रसिद्ध डेल्टा सुंदरवन इसी निर्माण का प्रमाण है।
कथा है कि जब समुद्रमंथन की बात उठी तो मंदार पर्वत की मथानी तो बना ली गई। कूर्मावतार ने आधार भी दे दिया, लेकिन मथानी की रस्सी कहाँ से लाएँ। उस समय सर्वसम्मति बनी कि हिमालय की कंदराओं में आराम कर रहे नागराज वासुकि से ही यह काम करवाया जा सकता है। उनसे बड़ी रस्सी जैसी कोई वस्तु तीनों लोक और चौदहों भुवन में नहीं हैं।
अब समस्या थी कि उन्हें लाए कौन? वासुकि जितने बड़े थे उनको लाने की समस्या भी उतनी ही बड़ी थी। फिर क्या था कैलाशपति वासुकि को अपनी कलाई में लपेट कर ले आये। जब मंथन प्रारम्भ हुआ तो नागराज को पीड़ा होने लगी। इधर से देवता खींचें, उधर से असुर खींचें, बीच में मंदराचल चुभे। क्षुब्ध होकर नागराज ने फुफकारना शुरू कर दिया। अब सोचिये कि जिस नाग को एक पर्वत के चारों तरफ लपेट दिया गया, वह कितना बड़ा होगा। नागराज के फुफकारने से समस्त सृष्टि में जहर फैलने लगा। हाहाकार मच गया।
यह देखकर देवता और असुर भाग खड़े हुए। सभी देवता गण परेशान थे कि आखिर इस हलाहल को कौन पियेगा?विष्णु भगवान ने भोले बाबा की तरफ देखा कि बाबा आप ही पी सकते हैं। जो भोले होते हैं, उनके हिस्से ही जहर आता है। खैर भगवान भोले नाथ ने पहले जहर पिया और फिर वासुकि का उपचार किया। तब तक तो धन्वंतरि निकले भी नहीं थे। उनसे भी पुराने वैद्य हैं वैद्यनाथ। धन्वंतरि समुंद्र मंथन से ही प्रकट हुए थे।
भगवान शिव ने हलाहल पी तो लिया, लेकिन उसका ताप असह्य हो गया। वहीँ एक स्थान देखकर बैठ गए। मंथन शुरू हो गया। मंथन से निकले चन्द्रमा के एक टुकड़े को तोड़ कर निकाला गया और उसे भगवान के सर के ठीक ऊपर स्थापित किया गया। उस टुकड़े से निरंतर शीतल जल महादेव के सिर पर गिरता रहता है।
यह क्षेत्र कहाँ है जहाँ मंथन हुआ था?
बिहार के बाँका जिले में स्थित मंदार पर्वत के आसपास का क्षेत्र ही मंथन का स्थान है। आज भी झारखण्ड, बंगाल, उड़ीसा और बिहार की भूमि में खनिजों का प्रचुर भण्डार है। सबका केंद्र मंदार पर्वत ही है। मंदार में अब भी समुद्र मंथन से निकली निधियाँ छिपी हुई हैं।
भोलेनाथ नागराज को पहुँचाने के बाद जिस स्थान पर बैठे थे, वह स्थान है वासुकीनाथ। जिस स्थान पर नागराज का उपचार करने व विष ग्रहण करने के बाद बैठे थे, वह स्थान है वैद्यनाथ धाम, देवघर में। चाँद का वह टुकड़ा जो उनके सर पर लगाया गया था, आज भी लगा है और उससे निरंतर जल टपकता रहता है। वह टुकड़ा भोलेनाथ के ठीक ऊपर मंदिर के शिखर के नीचे लगा है - चंद्रकांत मणि...
बेहतरीन जानकारी
ReplyDeleteआभार
Very Nice Information 👌🏻
ReplyDeleteBahut achi jaankaari
ReplyDeleteVery nice blog...
ReplyDeleteVery nice information
ReplyDeleteज्ञानवर्धक जानकारी
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