भगवान शिव के 19 अवतार
आज से सावन का पवित्र महीना शुरू हो रहा है और आज ही सावन का पहला सोमवार भी है। सभी श्रद्धालुओं पर भगवान भोले नाथ अपनी कृपा दृष्टि सदा बनाये रखें।
हिंदू धर्म में सावन का विशेष धार्मिक महत्व होता है। श्रावण मास को साल का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। भगवान शिव को समर्पित श्रावण का यह पवित्र महीना इस बार 22 जुलाई से शुरू होकर 19 अगस्त तक चलेगा। इस वर्ष की खास बात ये है कि श्रावण मास की शुरुआत सोमवार के दिन हो रही है। आइये जानते हैं भगवान शिव के 19 अवतारों के बारे में :-
- वीरभद्र अवतार (Veerabhadra Avatar)
- पिपलाद अवतार (Piplaad Avatar)
- नंदी अवतार (Nandi Avatar)
- भैरव अवतार (Bhairava Avatar)
- अश्वत्थामा (Ashwatthama)
- शरभ अवतार (Sharabha Avatar)
- गृहपति अवतार (Grihapati Avatar)
- दुर्वासा अवतार (Durvasa Avatar)
- भगवान हनुमान (lord Hanuman)
- वृषभ अवतार (Vrishabha Avatar)
- यतिनाथ अवतार (Yatinath Avatar)
- कृष्णदर्शन अवतार (Krishna Darshan avatar)
- अवधूत अवतार (Avadhut Avatar)
- भिक्षुवर्या अवतार (Bhikshuvarya Avatar)
- सुरेश्वर अवतार (Sureshwar Avatar)
- किरातेश्वर अवतार (Kirateshwar Avatar)
- सुनटनर्तक अवतार (Suntantarka Avatar)
- ब्रह्मचारी अवतार (Brahmachari Avatar)
- यक्षेश्वर अवतार (Yaksheshwar Avatar)
वीरभद्र अवतार
भगवान शिव के यह अवतार का जन्म दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती के देह त्यागने के बात हुआ था जब भगवान शिव को यह पता चला कि माता सती ने देह त्याग दिया है तो उन्होंने अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे एक पर्वत के ऊपर पटक दिया उस जटा के पूर्व भाग से महा भयंकर वीरभद्र पैदा हुआ शिवजी के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया और दक्ष का सिर काट कर उसे मृत्यु दंड दे दिया।
पीपलाद अवतार
भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार का मानव जीवन में बड़ा महत्व है शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद अवतार की कृपा से ही संभव हुआ पौराणिक कथाओं के अनुसार जब पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा की क्या कारण है जो मेरे पिताजी दधीचि मुनि मेरे जन्म से पहले ही मुझे छोड़ कर चले गए तब देवता पिप्पलाद से कहते हैं तुम्हारे पिता का तुम्हारे जन्म से पहले ही छोड़ जाने का कारण शनिदेव की महादशा है पिप्पलाद यह सुनकर बहुत दुखी हुए।
और पिपलाज ने शनि देव को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया। श्राप के कारण शनिदेव उसी समय आसमान से नीचे गिरने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनिदेव को इस बात पर शमा किया की शनि जन्म से लेकर 16 साल की आयु तक किसी को कष्ट नहीं देंगे शिव पुराण के अनुसार स्वयं ब्रह्मा जी ने पीपलाद के इस अवतार का नामकरण किया था
नंदी अवतार
भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करते हैं शंकर जी का नंदी अवतार भी इसी बात का प्रतीक है नंदीबैल कर्म का प्रतीक है इसका अर्थ है कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है आइए जानते हैं शिव जी ने नंदी अवतार क्यों लिया था पौराणिक कथा के अनुसार शिलाद मुनि एक ब्रह्मचारी थे अपना वंश समाप्त होता हुआ देख उनके पितरों ने शिलाद को संतान उत्पन्न करने को कहा।
तब शिलाद मुनि ने भी मृत्युहीन पुत्र की कामना करते हुए शिव जी की तपस्या की, तब भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद मुनि के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया कुछ समय बाद शिलाद मुनि को भूमि से उत्पन्न हुआ बालक मिला और शिलाद मुनि मैं उसका नाम नंदी रखा भगवान शिव ने नंदी को अपना गणाधीश बनाया इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए।
भैरव अवतार
शिव महापुराण में भैरव अवतार को शिव का पूर्ण अवतार बताया गया है एक बार शिवजी की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मा और विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे तब वहां तेज रोशनी के साथ एक पुरुष आकृति दिखाई दी उन्हें देखकर ब्रह्मा जी ने कहा चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो मेरी शरण में आओ ब्रह्मा जी की बातें सुनकर शिव जी को क्रोध आ गया उन्होंने उस पुरुष आकृति से कहा काल की भांति शोभित होने के कारण आप साक्षात्कार काल राज हैं। भीषण होने से भैरव है
शंकर भगवान के इन वरो को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी उंगली के नाखून से ही ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को काट दिया और ब्रह्मा जी का पांचवा सिर कटने के कारण काल भैरव ब्रह्म हत्या के पाप से दोषी हो गए। और फिर काशी में काल भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली। काशी वासियों के लिए भैरव की भक्ति अनिवार्य बताई गई है।
अश्वत्थामा अवतार
महाभारत के अनुसार गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा भगवान शंकर के अंशा अवतार थे गुरु द्रोणाचार्य ने भगवान शंकर को पुत्र रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की और फिर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया की वे उनके पुत्र रूप में उनके घर पर जन्म लेंगे। समय आने पर शिवजी ने अपने अंश से गुरु द्रोणाचार्य के बलशाली पुत्र अश्वत्थामा के रूप में जन्म लिया और शिव महापुराण के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित है। और वह आज भी धरती पर निवास करते हैं
शरभावतार
भगवान शिव का छठा अवतार है शरभावतार, इस अवतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग शेष शरब पक्षी का था। इस अवतार में भगवान शंकर ने नरसिंह भगवान की क्रोध अग्नि को शांत किया था। हिरण्यकश्यप के वध के पश्चात जब भगवान नरसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ तो देवता भगवान शिव के पास गए तब भगवान शिव ने शरभावतार लिया और वह इसी रूप में भगवान नरसिंह के पास पहुंचे और उनकी स्तुति की लेकिन नरसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ यह देख शरभ रूपी भगवान शिव नरसिंह को अपनी पूंछ में बांधकर ले उड़े तब जाकर भगवान नरसिंह का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने शरभावतार से क्षमा याचना कर अति विनम्र भाव से उनकी स्तुति की।
गृहपति अवतार
गृहपति अवतार शंकर जी का सातवां अवतार है पौराणिक कथा के अनुसार नर्मदा के तट पर धर्मपुर नामक एक नगर था वहां विश्वनार नामक एक मुनि तथा उनकी पत्नी सूचिस्मति रहती थी सूचिस्मती बहुत साल तक निसंतान रहने पर एक दिन अपने पति के सामने शिव के समान संतान प्राप्ति की इच्छा रखी, पत्नी की इस इच्छा को पूरा करने के लिए मुनि विश्वनार काशी आ गए वहां उन्होंने घोर तप द्वारा भगवान शिवलिंग की आराधना की और एक दिन विश्वनार मुनि को शिवलिंग के मध्य एक बालक दिखाई दिया
मुनि ने बाल रूप धारी शिवलिंग की पूजा की और उनकी पूजा से प्रसन्न होकर शिवजी ने सूचिस्मती के गर्भ से अवतार लेने का वर दिया और कुछ समय बाद सूचिस्मती गर्भवती हुई और भगवान शिव सूचिस्मती के गर्भ से पुत्र रूप में प्रकट हुए पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने उस बालक का नाम गृहपति रखा।
ऋषि दुर्वासा अवतार
ऋषि दुर्वासा को शिवजी का ही अवतार माना गया है धर्म ग्रंथों के अनुसार सती अनुसुइया के पति महर्षि अत्रि ने ब्रह्मा के निर्देश अनुसार पत्नी सहित पर्वत पर पुत्र कामना से घोर तप किया उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों उनके आश्रम पर आए और उन्होंने कहा हमारे अंश से तुम्हारे तीन पुत्र होंगे जो तीनों लोगों में विज्ञात एवं माता पिता का यश बढ़ाने वाले होंगे कुछ समय बाद ब्रह्मा जी के अंश से चंद्रमा उत्पन्न हुआ, विष्णु जी के अंश से श्रेष्ठ सन्यास पद्धति को प्रचलित करने वाले दत्तात्रेय उत्पन्न हुए और सूत्र के अंश से मुनिवर दुर्वासा ने जन्म लिया।
हनुमान अवतार
भगवान शिव का हनुमान अवतार सभी अवतारों में सबसे श्रेष्ठ माना गया है इस अवतार में भगवान शिव ने एक वानर के रूप में जन्म लिया शिव महापुराण के अनुसार देवताओं और दानवों को अमृत बांटते समय विष्णु जी के मोहिनी रूप को देखकर शिवजी ने कामातुर होकर अपना वीरपात कर दिया था ऋषियों ने उस विरे को कुछ पत्तों में संग्रहित कर लिया और समय आने पर उन्होंने भगवान शिव के विरे को वनराज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से गर्भ में स्थापित कर दिया था जिससे अत्यंत तेजस्वी और प्रबल पराक्रम श्री हनुमान जी पैदा हुए।
वृषभ अवतार
भगवान शिव ने श्री विष्णु के पुत्रों का सहार करने के लिए वृषभ अवतार लिया था धर्म ग्रंथों के अनुसार जब भगवान विष्णु दैत्यों को मारने के लिए पाताल लोक गए तब विष्णु ने उनके साथ रमन करके बहुत से पुत्र उत्पन्न किए विष्णु के इन पुत्रों ने पाताल से लेकर पृथ्वी तक बड़ा ही उवद्रव मचाया जिन से घबराकर ब्रह्मा जी सभी ऋषि-मुनियों को लेकर शिव भगवान के पास गए और रक्षा के लिए प्रार्थना की, तब भगवान शिव ने वृषभ अवतार धारण करके विष्णुजी के पुत्रों का सहार किया।
यतिनाथ अवतार
भगवान शिव ने यतिनाथ अवतार में भील दम्पत्ति की परीक्षा लेने के लिए अतिथि बनकर उनके घर गए थे जिस कारण भील दम्पत्ति को अपने प्राण गवाने पढ़े ग्रंथों के अनुसार पर्वतों के समीप शिवभक्त आहू और आहूका नामक भील दम्पत्ति रहते थे एक दिन भगवान शिव यतिनाथ के वेश में उनके घर गए और यतिनाथ ने भील दम्पत्ति के घर में रात व्यतीत करने की इच्छा जताई तब आहूका ने अपने पति को गृहस्थी की मर्यादा का स्मरण कराते हुए स्वयं धनुष बाण लेकर बाहर रात बिताने को कहा और यति को घर में विश्राम करने देने का प्रस्ताव रखा इस तरह आहू धनुष बाण लेकर बाहर चला गया
जब प्रातः काल आहूका और यति ने बाहर देखा तो वन प्राणियों ने आहू को मार डाला था इस पर यतिनाथ बहुत दुखी हुए तब आहूका ने उन्हें शांत करते हुए कहा कि आप शोक ना करें अतिथि सेवा में प्राण विसर्जित करना हमारा धर्म है और उसका पालन कर हम आज धन्य हो गए जब आहूका अपने पति की चिता अग्नि में जलने लगी तब शिवजी ने उसे दर्शन देकर अगले जन्म में उन्हें अपने पति से मिलने का वरदान दिया।
कृष्णदर्शन अवतार
इस अवतार में शिवजी ने धार्मिक कार्यों के महत्व को समझाया है इसीलिए कृष्णदर्शन अवतार को धर्म का प्रतीक भी माना गया है धर्म ग्रंथों के अनुसार इक्ष्वाकु वंशी श्राद्ध देव की नवमी पीढ़ी में राजा नभक का जन्म हुआ विद्या अध्ययन के लिए गुरुकुल गए नभक जब बहुत दिनों तक नहीं लौटे तब उनके भाइयों ने राज्य का विभाजन कर आपस में बांट लिया जब नभक को यह बात पता चली तब वह अपने पिता के पास पहुंचा उनके पिता ने उन्हें एक सुझाव दिया कि वह यज्ञ कर धन की प्राप्ति करें तब नभक यज्ञ भूमि पहुंचकर वैश्य देव सूक्ति के स्पर्श उच्चारण द्वारा यज्ञ संपन्न किया।
तब अंगारिक ब्राह्मण नभक को ढेर सारा सोना देकर स्वर्ग को चले गए और उसी समय भगवान शिव कृष्णदर्शन अवतार में सामने प्रकट हुए और बोले यज्ञ के अवशिष्ट धन पर दो मेरा अधिकार है विवाद होने पर कृष्णदर्शन अवतार धारी शिव ने उनसे उनके पिता को ही निर्णय कराने को कहा और जब नभक ने अपने पिताजी श्राद्धदेव से पूछा तो उन्होंने कहा कि वे भगवान शिव है यज्ञ में अवशिष्ट वस्तु उनकी ही है तब पिता की बात को मानकर नभक ने भगवान शिव की स्तुति की और उससे अपना राज्य वापस मिल गया।
अवधूत अवतार
शिवजी ने अवधूत अवतार लेकर इंद्र के अहंकार को चूर किया था एक दिन बृहस्पति और अन्य देवताओं को साथ लेकर इंद्र शिवजी के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत गए इंद्र की परीक्षा लेने के लिए शिव भगवान ने अवधूत रूप धारण कर लिया और उनका मार्ग रोक लिया तब इंद्र ने बार-बार अनादर पूर्वक उनसे उनका परिचय पूछा तब भी वह मौन रहे इस बात पर क्रोधित होकर जैसे ही इंद्र ने अवधूत पर प्रहार करने के लिए वज्र छोड़ना चाहा वैसे ही उनका हाथ स्थिर हो गया यह देख कर बृहस्पति ने शिवजी को पहचान लिया और अवधूत की विधिवत स्तुति की जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने इंद्र को क्षमा कर दिया।
भिक्षुवर्या अवतार
भगवान शिव का यह अवतार इस बात का संदेश देता है कि वही इस सृष्टि के रक्षक है धर्म ग्रंथों के अनुसार विदर्भ नरेशसत्यरथ को शत्रुओं ने मार डाला और उसकी गर्भवती पत्नी ने शत्रुओं से छुपकर अपनी जान बचाई कुछ समय बाद उसी पुत्र को जन्म दिया जब वह जल पीने के लिए नदी किनारे गई तब एक घड़ियाल ने उसे अपना भोजन बना लिया और वह बालक भूख प्यास से तड़पने लगा भगवान शिव की प्रेरणा से एक भिकारन वहां पहुंची।
तब शिवजी ने भिक्षुवर्या का रूप धारण कर उस भिकारन को बच्चे का परिचय दिया और कहां यह बालक विदर्भ नरेशसत्यरथ का पुत्र है और उसे बच्चे का पालन पोषण करने को कहा यह कहने के बाद भिक्षुवर्या ने उसे अपना वास्तविक रूप दिखाया और फिर बालक ने बड़े होकर शिव जी की कृपा से अपने दुश्मनों को हराकर अपना राज्य हासिल कर लिया।
सुरेश्वर अवतार
शिव भगवान का सुरेश्वर अवतार भक्तों के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है इस अवतार में शिव जी ने एक छोटे से बालक उपमन्यु की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपनी परम भक्ति और अमर पद का वरदान दिया धर्म ग्रंथों के अनुसार व्याग्रपात का पुत्र उपमन्यु हमेशा दूध पीने की इच्छा से व्याकुल रहता था उसकी मां ने उसे अपनी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए भगवान शिव की शरण में जाने को कहा उसके बाद उपमन्यु वन में जाकर “ॐ नमः शिवाय” का जाप करने लगा।
जब भगवान शिव ने यह देखा तो सुरेश्वर का रूप धारण कर उसे दर्शन दिए और शिवजी की अनेक प्रकार से निंदा करने लगे इस बात पर उपमन्यु क्रोधित हो गया और सुरेश्वर को मारने के लिए खड़ा हो गया उपमन्यु की दृढ़ शक्ति और अटल वि श्वास को देखकर शिवजी ने उसे अपने वास्तविक रूप के दर्शन दिए तथा शिवसागर के समान एक अनश्वर सागर उसे प्रदान किया उपमन्यु की प्रार्थना पर शिवजी ने उसे परम भक्ति का पद भी दिया।
किरातेश्वर अवतार
किरातेश्वर अवतार में शिवजी ने अर्जुन की वीरता की परीक्षा ली थी महाभारत के अनुसार वनवास में जब अर्जुन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या कर रहे थे तभी दुर्योधन द्वारा भेजा गया दैत्य अर्जुन को मारने के लिए सूअर का रूप धारण कर वहां पर पहुंचा अर्जुन ने सूअर पर अपने बाण से प्रहार किया भगवान शिव ने भी किरातेश्वर रूप में उपस्थित होकर उसे सूअर पर बाण चलाया।
शिव की माया के कारण अर्जुन उन्हें पहचान नहीं पाए और सूअर का वध उनके बाण से हुआ है यह कहने लगे इस बात पर दोनों में विवाद हो गया और अर्जुन ने किरातेश्वर रूपी शिव भगवान से युद्ध किया और अर्जुन की वीरता देख शिव भगवान अर्जुन से प्रसन्न हो गए और अपने वास्तविक रूप में आकर अर्जुन को कौरवो पर विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया।
सुनटनर्तक अवतार
पार्वती के पिता राजा हिमाचल से उनकी पुत्री का हाथ मांगने के लिए भगवान शिव ने सुनटनर्तक अवतार धारण किया हाथों में डमरू लेकर भगवान शिव नट के रूप में राजा हिमाचल के घर पहुंचे और नृत्य करने लगे सुनटनर्तक शिव जी का सुंदर और मनोहर नृत्य देखकर सभी प्रसन्न हो गए और राजा हिमाचल ने नटराज को भिक्षा मांगने को कहा तो नटराज ने भिक्षा में उनकी पुत्री पार्वती का हाथ मांग लिया।
इस बात पर राजा हिमाचल बहुत क्रोधित हुए और कुछ देर बाद नटराज रूपी शिवजी पार्वती को अपना असली रूप दिखा कर वहां से चले जाते हैं उनके जाने पर मैना (पार्वती की माता) और हिमाचल को दिव्यज्ञान हुआ और उन्होंने पार्वती का हाथ शिव जी के हाथ में देने का फैसला कर लिया।
ब्रह्मचारी अवतार
सतयुग में माता सती ने दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद दोबारा जन्म लिया तो शिव जी को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया पार्वती की परीक्षा लेने के लिए शिव भगवान ब्रह्मचारी के रूप में पार्वती के पास पहुंचे और पार्वती ने भी ब्रह्मचारी की विधि विधान से पूजा की, ब्रह्मचारी ने पार्वती से उनके तप का उद्देश्य पूछा और उद्देश्य जानने के बाद वह शिव की निंदा करने लगे शिवजी की निंदा सुन पार्वती को क्रोध आ गया और फिर पार्वती की भक्ति और प्रेम को देखकर ब्रह्मचारी अपने शिव रूप में आ गए और यह देख माता पार्वती अति प्रसन्न हुई।
यक्षेश्वर अवतार
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवताओं और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के दौरान जब भयंकर विष निकला था तब शिव भगवान ने उस विष को ग्रहण करके अपने कंठ में रोक लिया था उसके बाद उसमें से अमृत कलश निकला अमृत पान करने से सभी देवता अमृत हो गए और साथ ही उनमें इस बात का अभिमान भी आ गया कि वह सबसे बलशाली है फिर शिव जी ने सभी देवताओं के अभिमान तोड़ने के लिए यक्षेश्वर का रूप धारण किया
यक्षेश्वर भगवन देवताओं के आगे एक तिनका रखकर उसे काटने को कहा सभी देवताओं ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी पर फिर भी वह उस तिनके को नहीं काट पाए तभी वहां पर आकाशवाणी हुई की यक्षेश्वर सभी ग्रहों के विनाशक शिव स्वयं ही है तब सभी देवताओं ने भगवान शिव की स्तुति की और उनसे शमा मांगी और इसी कारण देवताओं का अभिमान तोड़ने के लिए उन्हें उन्नीसवा अवतार लेना पड़ा।
इस लेख में भगवान शिव के 19 अवतारों के नाम और उन्होंने अवतार क्यों धारण किए थे उसके पीछे क्या कारण था, की चर्चा की गई है।
ॐ नमः शिवाय🙏🏻
ReplyDeleteजय भोले, हर हर भोले
ReplyDeleteउत्तम जानकारी
ReplyDelete🙏🙏💐💐शुभरात्रि 🕉️
ReplyDelete🙏ॐ नमः शिवाय 🚩🚩🚩
🙏हर हर महादेव 🚩🚩🚩
🙏महादेव का आशीर्वाद आप और आपके परिवार पर हमेशा बना रहे 🙏🙏
🙏सावन के प्रथम सोमवार की आपको बहुत बहुत शुभकामनायें 💐💐
👍👍👍बहुत बढ़िया जानकारी शेयर करने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐
Very Nice Information 👌🏻
ReplyDeleteNice information
ReplyDeleteShambhu 🙏🏻🙏🏻
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