वीर सावरकर
जन्म: 28 मई 1883 ग्राम भागुर, जिला नासिक बम्बई प्रेसीडेंसी ब्रिटिश भारत
मृत्यु : फ़रवरी 26, 1966 (उम्र 82) बम्बई, भारत
विनायक दामोदर सावरकर, जिन्हें उनके अनुयायी वीर सावरकर के नाम से भी जानते हैं, एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, वकील, राजनीतिज्ञ और लेखक थे। सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को नासिक के पास एक छोटे से गांव भगूर में एक मराठी परिवार में हुआ था। विनायक के पिता का नाम दामोदर पन्त तथा माता का नाम राधाबाई था। सावरकर जी चार भाई - बहन थे।
सावरकर जी की प्रारम्भिक शिक्षा नासिक में हुई थी। वे अत्यंत कुशाग्र बुद्धि थे, उन्होंने बचपन में ही गीता के श्लोक कंठस्थ कर लिए थे। ऐसी प्रखर मेधा शक्ति वाले शिष्य के प्रति शिक्षकों का असीम स्नेह होना स्वाभाविक ही था। उन समय महाराष्ट्र में लोकमान्य तिलक के समाचार पत्र, “केसरी” की भारी धूम थी विनायक भी उसे पढ़ते थे जिसके कारण उनके मन में भी क्रांतिकारी विचार आने लगे । केसरी के लेखों से प्रभावित होकर उन्होंने भी कविताएं तथा लेख आदि लिखने प्रारम्भ कर दिये।
सावरकर जी ऐसे पहले भारतीय थे जिन्होंने वकालत की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। लेकिन उन्होंने अंग्रेज सरकार की वफादारी की शपथ लेने से इन्कार कर दिया था, जिसके कारण उन्हें वकालत की उपाधि प्रदान नहीं की गयी।
वीर सावरकर को "वीर" उपनाम 12 साल की उम्र में मिला जब उन्होंने मुसलमानों के एक समूह के खिलाफ छात्रों का नेतृत्व किया, जिन्होंने उनके गाँव पर हमला किया था। वर्ष 1899 में सावरकर ने “देश भक्तों का मेला” नामक एक दल का गठन किया, जबकि 1900 में उन्होंने “मित्र मेला” नामक संगठन बनाया। 4 वर्ष बाद यही संगठन "अभिनव भारत सोसाइटी" के नाम से सामने आया। इस संगठन का उद्देश्य भारत को पूर्ण राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त कराना था।
इसी बीच सावरकर कानून की पढ़ाई करने के लिए लंदन चले गए। वे जून 1906 में पर्शिया नामक जलपोत से लंदन के लिए रवाना हुए। लंदन प्रस्थान से पूर्व उन्होंने एक गुप्त सभा में कहा था ,"मैं शत्रु के घर जाकर भारतीयों की शक्ति का प्रदर्शन करूंगा"।
लंदन में उनकी भेंट श्याम जी कृष्ण वर्मा से हुई। लंदन का इण्डिया हाउस उनकी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था । उनकी योजना नये - नये हथियार खरीद कर भारत भेजने की थी ताकि सशस्त्र क्रांति की जा सके। वहां रहने वाले अनेक छात्रों को उन्होंने क्रांति के लिए प्रेरित किया। इंडिया हाउस में श्याम जी कृष्ण वर्मा के साथ रहने वालों में भाई परमानंद, लाला हरदयाल, ज्ञानचंद वर्मा, मदन लाल धींगरा जैसे क्रांतिकारी भी थे। उनकी गतिविधियां देखकर ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें 13 मार्च 1990 को गिरफ्तार कर लिया। अंग्रेज शासन के विरूद्ध षड्यंत्र रचने तथा शस्त्र भेजने के अपराध में आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई।
उनकी सारी सम्पत्ति भी जब्त कर ली गई। सावरकर को अंग्रेज न्यायाधीश ने एक अन्य मामले में 30 जनवरी को पुनः आजन्म कारावास की सजा सुनाई। इस प्रकार सावरकर को दो आजन्म करावासों का दण्ड दे दिया गया। सावरकर को जब अंग्रेज न्यायाधीश ने दो आजन्म कारावासों की सजा सुनाई तो उन्होनें कहा कि, "मुझे बहुत प्रसन्नता है कि ब्रिटिश सरकार ने मुझे दो जन्मों का कारावास दंड देकर हिन्दू पुनर्जन्म सिद्धान्त को मान लिया है।"
सावरकर ने ब्रिटिश अभिलेखागारों का अध्ययन करके "1857 का स्वाधीनता संग्राम" नामक महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी, फिर इसे गुप्त रूप से छपने के लिए भारत भेजा गया। ब्रिटिश शासन इस पुस्तक के लेखन एवं प्रकाशन की सूचना मात्र से ही कांप उठा। तब प्रकाशक ने इसे गुप्त रूप से पेरिस भेजा। वहां भी अंग्रेज सरकार ने इस पुस्तक का प्रकाशन नहीं होने दिया, अन्ततः इसका प्रकाशन 1909 में हालैण्ड से हुआ। यह आज भी 1857 के स्वाधीनता संग्राम का सबसे विश्वसनीय पुस्तक है। सत्य तो यह है कि यदि सावरकर ने इस पुस्तक की रचना न की होती तो भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम इतिहास की पुस्तकों में एक मामूली ग़दर बन के रह जाता।
1911 में उन्हें कालेपानी यानि अंडमान भेज दिया गया। वहां उनके बड़े भाई गणेश सावरकर भी बंद थे। जेल में सावरकर पर घोर अत्याचार किए गए गए जो कि एक क्रूर इतिहास बन गया। कोल्हू में जुतकर तेल निकालना, नारियल कूटना, कोड़ों की मार, भूखे- प्यासे रखना आदि। सावरकर जी ने जेल में दी गई यातनाओं का वर्णन अपनी पुस्तक "मेरा आजीवन कारावास" में किया है। अंडमान की काल कोठरी में उन्होंने कविताएं लिखी। उन्होंने मृत्यु को संबोधित करते हुए जो कविता लिखी वह अत्यंत मार्मिक व देशभक्ति से परिपूर्ण थी।
1921 में उन्हें अंडमान से रत्नागिरि जेल में भेज दिया गया। 1937 में वहां से भी मुक्त कर दिये गये, परन्तु वे सुभाष चंद्र बोस के साथ मिलकर योजना में लगे रहे। 1947 में उन्हें स्वतंत्रता के बाद गाँधी जी की हत्या के मुकदमें मे झूठा फंसाया गया, लेकिन वे निर्दोष सिद्ध हुए। एक सच्चाई यह भी है कि महात्मा गांधी और सावरकर-बन्धुओं का परिचय बहुत पुराना था। सावरकर-बन्धुओं के व्यक्तित्व के कई पहलुओं से प्रभावित होने वालों और उन्हें ‘वीर’ कहने और मानने वालों में गांधी जी भी थे। इस घटना के बाद वीर क्रांतिकारी सावरकर का स्वास्थ्य तेजी से बिगड़ने लगा और 26 फरवरी 1966 को भूख हड़ताल के बाद उन्होंने माँ भारती की सेवा हित पुनः जन्म लेने का स्वप्न देखते हुए देह त्याग किया।
वीर सावरकर जी को शत शत नमन
ReplyDelete🙏माँ भारती के वीर सपूत,
ReplyDeleteमहान स्वतन्त्रता सेनानी, प्रखर राष्ट्रवादी नेता दामोदर वीर सावरकर जी की जयंती पर उन्हें कोटिशः कोटिशः नमन💐💐
🙏भारत माता की जय 🇮🇳
🙏जयहिंद 🇮🇳
🙏वन्देमातरम🇮🇳
#वीर_सावरकर_जयंती🇮🇳
भारत माता के सच्चे सपूत वीर सावरकर जी को शत शत नमन 🙏🏼
ReplyDeleteNice information....
ReplyDeleteSalute 🇮🇳
ReplyDeleteNaman 🙏
ReplyDeleteNaman
ReplyDeleteNaman
ReplyDeleteअच्छी जानकारी
ReplyDeleteशत शत नमन 🙏
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