श्री वल्लभाचार्य जयंती
बैसाख माह में कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि जिस दिन वरूथिनी एकादशी होती है, उसी दिन श्री वल्लभाचार्य जयंती मनाई जाती है। श्रीकृष्ण के परम भक्तों में वल्लाभाचार्य जी का भी विशेष स्थान है। इस बार वल्लभाचार्य जयंती 4 मई 2024 को है। ये उनका 545वां जन्म दिवस है।
श्री वल्लभाचार्य हिंद के प्रसिद्ध विद्वान थे। श्री वल्लभाचार्य रुद्र सम्प्रदाय के लोकप्रिय आचार्य थे, जो चार पारंपरिक वैष्णव सम्प्रदायों में से एक है और यह विष्णुस्वामी से संबंधित है। वल्लभाचार्य जी को पुष्टि परंपरा का संस्थापक माना जाता है। वल्लभाचार्य को भक्ति आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
पुष्य संप्रदाय की स्थापना
श्री वल्लभाचार्य ने पुष्य संप्रदाय की स्थापना की थी। श्री वल्लभाचार्य एक भारतीय दार्शनिक थे, जिन्होंने भारत के ब्रज क्षेत्र में वैष्णववाद के कृष्ण-केंद्रित पुष्टि संप्रदाय और शुद्ध अद्वैत दर्शन की स्थापना की। आज की दुनिया में, भगवान श्री कृष्ण के कई भक्तों का मानना है कि श्री वल्लभाचार्य ने गोवर्धन पर्वत पर प्रभु के दर्शन किए थे। इसलिए उपासक वल्लभाचार्य जयंती को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। कहा जाता है अग्नि देवता का पुर्नजन्म वल्लभाचार्य जी का है । श्री वल्लभ आचार्य के जन्मदिन पर मुख्य रूप से श्रीकृष्ण की पूजा -आराधना की जाती है।
जीवन परिचय
श्री वल्लभ का जन्म 1479 ई. में वाराणसी में रहने वाले एक साधारण तेलुगु परिवार में हुआ था। उनकी मां ने छत्तीसगढ़ के चंपारण में जन्म दिया था और उस वक़्त हिंदू-मुस्लिम संघर्ष चरम पर था। जब उनके माता-पिता मुस्लिम आक्रमण के भय से दक्षिण भारत जा रहे थे, तब रास्ते में छत्तीसगढ़ के रायपुर नगर के पास चंपारण में 1478 में वल्लभाचार्य का जन्म हुआ। बाद में काशी में ही उनकी शिक्षा हुई। बालपन से ही वल्लभाचार्य जी ने वेदों और उपनिषदों का ज्ञान हासिल कर लिया था और काशी में ही उन्होंने अपने मत का उपदेश भी दिया। 52 वर्ष की आयु में उन्होंने सन 1530 में काशी में हनुमान घाट पर गंगा में प्रविष्ट होकर जल समाधि ले ली।
वल्लभाचार्य जी का श्रीनाथ जी से नाता
पौराणिक कथा के अनुसार जब वल्लभाचार्य उत्तर-पश्चिम भारत की ओर बढ़ रहे थे, तो उन्होंने गोवर्धन पर्वत के पास एक असामान्य घटना देखी। उन्होंने देखा कि एक गाय रोजाना पहाड़ पर एक विशेष स्थान पर दूध दे रही थी। एक दिन वल्लभाचार्य ने उस जगह को खोदने का विचार किया। जब वहां खुदाई की गई तो उन्हें श्रीकृष्ण की एक मूर्ति मिली। ऐसा कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने यहां श्रीनाथ जी के रूप में वल्लभाचार्य जी को दर्शन दिए। उनके समर्पण के लिए उन्हें गले लगाया। उस दिन से पुष्टि संप्रदाय के लोग भगवान कृष्ण की 'बाल' या युवा छवि की पूजा करते हैं।
सूरदास जी के लिए कृष्ण समान थे उनके गुरु
ऐसा माना जाता है कि वल्लभाचार्य के 84 शिष्य थे, जिसमें प्रमुख हैं - सूरदास, कृष्णदास, कुंभंडास और परमानंद दास। वल्लभाचार्य जी कृष्ण भक्त सूरदास जी के गुरु माने गए हैं। सूरदास जी ने एक बार कहा था कि श्रीकृष्ण और वल्लभाचार्य जी में उन्हें कोई अंतर नजर नहीं आता, "मेरे लिए दोनों एक समान हैं, मैं जब श्रीकृष्ण पर लिखता हूँ तो वल्लभाचार्य जी की छवि मेरे मन में खुद ब खुद आ जाती है।"
श्री वल्लभाचार्य की पृथ्वी परिक्रमा
श्रीकृष्ण के भक्त वल्लभाचार्य तीन भारतीय तीर्थों पर नंगे पैर चले। उन्होंने एक सादे सफेद धोती और एक उपरत्न, एक सफेद अंगवस्त्र का कपड़ा पहना था। उन्होंने प्राचीन ग्रंथों के अर्थ बताते हुए 84 स्थानों पर भागवत प्रवचन दिए। वर्तमान में, इन 84 स्थानों को चौरासी बैठक के रूप में जाना जाता है, जो तीर्थ स्थल हैं। बाद में उन्होंने लगभग चार महीने व्रज में बिताए और 52 वर्ष की आयु में सन 1530 में काशी में हनुमान घाट पर गंगा में प्रविष्ट होकर जल समाधि ले ली।
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ReplyDeleteअच्छी जानकारी
ReplyDeleteBahut badiya jaankari🙏🙏
ReplyDeleteNice information
ReplyDeleteVery Nice Information 👌🏻🙏🏻
ReplyDeletenaman 🙏
ReplyDelete🕉 सुप्रभात......वंदन🕉
ReplyDelete🙏 ॐ नमः शिवाय 🚩 🚩🚩
🙏 हर हर महादेव 🚩🚩🚩
🙏 जय भोलेनाथ 🚩🚩🚩
🙏 आप सब का दिन मंगलमय हो🙏
👍👍👍बहुत बढ़िया जानकारी 🙏
🙏आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐
Nice
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteNaman
ReplyDeleteNaman
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