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विश्वास: फ़क़ीर और साधु

विश्वास

तन्विक नाम के एक विद्वान साधु थे, जो दुनियादारी से दूर रहते थे। वह अपनी ईमानदारी, सेवा तथा ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे। एक बार वह पानी के जहाज से लंबी यात्रा पर निकले।

विश्वास: फ़क़ीर और साधु

उन्होंने यात्रा में खर्च के लिए पर्याप्त धन तथा एक हीरा संभाल के रख लिया। ये हीरा किसी राजा ने उन्हें उनकी ईमानदारी से प्रसन्न होकर भेंट किया था। सो वे उसे अपने पास न रखकर नयासर के राजा को देने जाने के लिए ही ये यात्रा कर रहे थे। यात्रा के दौरान साधु की पहचान दूसरे यात्रियों से हुई। वे उन्हें ज्ञान की बातें बताते गए। एक फ़क़ीर यात्री ने उन्हें नीचा दिखाने की मंशा से नजदीकियां बढ़ ली।

एक दिन बातों-बातों में साधु ने उसे विश्वासपात्र समझकर हीरे की झलक भी दिखा दी। उस फ़क़ीर को और लालच आ गया। उसने उस हीरे को हथियाने की योजना बनाई। रात को जब साधु सो गया तो उसने उसके झोले तथा उसके वस्त्रों में हीरा ढूंढा पर उसे नहीं मिला।

अगले दिन उसने दोपहर की भोजन के समय साधु से कहा कि इतना कीमती हीरा है, आपने संभाल के रखा है न। साधु ने अपने झोले से निकलकर दिखाया कि देखो ये इसमें रखा है। हीरा देखकर फ़क़ीर को बड़ी हैरानी हुई कि ये उसे कल रात को क्यों नहीं मिला। आज रात फिर प्रयास करूंगा, ये सोचकर उसने दिन काटा और सांझ होते ही तुरन्त अपने कपड़े टांगकर, समान रखकर, स्वास्थ्य ठीक नहीं है कहकर, जल्दी सोने का नाटक किया।

निश्चित समय पर सन्ध्या पूजा अर्चना के पश्चात जब साधु कमरे में आये, तो उन्होंने फ़क़ीर को सोता हुआ पाया। सोचा आज स्वास्थ ठीक नहीं है इसलिए फ़क़ीर बिना इबादत किये जल्दी सो गया होगा। उन्होंने भी अपने कपड़े तथा झोला उतारकर टांग दिया और सो गए।

आधी रात को फ़क़ीर ने उठकर फिर साधु के कपड़े तथा झोला झाड़कर झाड़कर देखा। उसे हीरा फिर नहीं मिला।अगले दिन उदास मन से फकीर ने साधु से पूछा - "इतना कीमती हीरा संभाल कर तो रखा है ना साधुबाबा, यहां बहुत से चोर हैं।"

साधु ने फिर अपनी पोटली खोल कर उसे हीरा दिखा दिया। अब हैरान परेशान फ़क़ीर के मन में जो प्रश्न था उसने साधु से खुलकर कह दिया उसने साधु से पूछा कि- "मैं पिछली दो रातों से आपकी कपड़े तथा झोले में इस हीरे को ढूंढता हूं मगर मुझे नहीं मिलता, ऐसा क्यों, रात को यह हीरा कहां चला जाता है?

साधु ने बताया - "मुझे पता है कि तुम कपटी हो, तुम्हारी नीयत इस हीरे पर खराब थी और तुम इसे हर रात अंधेरे में चोरी करने का प्रयास करते थे। इसलिए पिछले दो रातों से मैं अपना यह हीरा तुम्हारे ही कपड़ों में छुपा कर सो जाता था और प्रातः उठते ही तुम्हारे उठने से पहले इसे वापस निकाल लेता था।" मेरा ज्ञान यह कहता है कि व्यक्ति अपने भीतर नई झांकता, नहीं ढूंढता। दूसरे में ही सब अवगुण तथा दोष देखता है। तुम भी अपने कपड़े नहीं टटोलते थे।"

यह बात सुनकर फकीर के मन में और ज्यादा ईर्ष्या और द्वेष उत्पन्न हो गया। वह मन ही मन साधु से बदला लेने की सोचने लगा। उसने सारी रात जागकर एक योजना बनाई। सुबह उसने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया, 'हाय मैं मर गया। मेरा एक कीमती हीरा चोरी हो गया।' वह रोने लगा।

जहाज के कर्मचारियों ने कहा, 'तुम घबराते क्यों हो? जिसने चोरी की होगी, वह यहीं होगा। हम एक-एक की तलाशी लेते हैं। वह पकड़ा जाएगा।' यात्रियों की तलाशी शुरू हुई। जब साधु बाबा की बारी आई तो जहाज के कर्मचारियों और यात्रियों ने उनसे कहा, 'आपकी क्या तलाशी ली जाए? आप पर तो अविश्वास करना ही अधर्म है।’

यह सुन कर साधु बोले, 'नहीं, जिसका हीरा चोरी हुआ है उसके मन में शंका बनी रहेगी। इसलिए मेरी भी तलाशी ली जाए।’ बाबा की तलाशी ली गई। उनके पास से कुछ नहीं मिला। दो दिनों के बाद जब यात्रा खत्म हुई तो उसी फ़क़ीर ने उदास मन से साधु से पूछा, ‘बाबा इस बार तो मैंने अपने कपड़े भी टटोले थे, हीरा तो आपके पास था, वो कहां गया?'

साधु ने मुस्करा कर कहा, 'उसे मैंने बाहर पानी में फेंक दिया।

साधु ने पूछा - तुम जानना चाहते हो क्यों? क्योंकि मैंने जीवन में दो ही पुण्य कमाए थे - एक ईमानदारी और दूसरा लोगों का विश्वास। अगर मेरे पास से हीरा मिलता और मैं लोगों से कहता कि ये मेरा ही है, तो शायद सभी लोग साधु के पास हीरा होगा इस बात पर विश्वास नहीं करते। यदि मेरे भूतकाल के सत्कर्मो के कारण विश्वास कर भी लेते तो भी मेरी ईमानदारी और सत्यता पर कुछ लोगों का संशय बना रहता।

"मैं धन तथा हीरा तो गंवा सकता हूं, लेकिन ईमानदारी और सत्यनिष्ठा को खोना नहीं चाहता, यही मेरे पुण्यकर्म है जो मेरे साथ जाएंगे।" उस फ़क़ीर ने साधु से माफी मांगी और उनके पैर पकड़ कर रोने लगा। अंत मे फकीर उनका शिष्य बनकर उनके अच्छे कर्मों को ग्रहण करने लगा।

अच्छे कर्म करते रहिये। दूसरों के लिए मन में ईर्ष्या और द्वेष की भावना को ना पनपने दीजिये। 

20 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 10 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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    1. "पांच लिंकों के आनन्द में" इस रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 10 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  3. 🙏🙏💐💐शुभदोपहर 🕉️
    🚩🚩जय श्री हरि 🚩🚩
    🙏आप का दिन मंगलमय हो 🙏
    🚩🚩जय श्री शनिदेव 🚩🚩
    👌👌✔️✔️बहुत बढ़िया कहानी, सीख व संदेश... बिलकुल सही अच्छे कर्म करते रहो... आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐

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  4. किसी को फ़ासले चाहिए
    तो दे दीजिये,

    यहाँ हर किसी को
    ख़ुश रहने का हक़ है ❤️🧡

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  5. बहुत अच्छा

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  6. अच्छी कहानी

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  7. बहुत बहुत सुन्दर प्रेरणादायक कहानी

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  8. वाह! प्रेरक कहानी !

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  9. 🙏🏻🌷 राधे राधे जय श्री कृष्णा 🌷🙏🏻

    जिंदगी भले छोटी देना मेरे भगवान मगर देना ऐसी कि सदियों तक लोगों के दिलों में जिंदा रहो और हमेशा अच्छे कर्म कर सकूं

    🙏🏼 राधे राधे.... 🙏🏼🙏🏼

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  10. Shivangi SrivastavaMarch 17, 2024 at 7:16 PM

    Very nice

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