हमारा समाज और नारी स्वतंत्रता
हमारा समाज नारी स्वतंत्रता को लेकर बड़ी बड़ी बातें करता है, परंतु एक कटु सत्य यह है कि जब भी कोई महिला खुले हुए कम आयतन के परिधान में नज़र आती है, तो उसी समाज के 90 प्रतिशत लोग उसकी पोशाक को देखकर आनंदित होते हैं। उस समय वो यह विस्मरण कर देते हैं कि यदि वही पोशाक उनकी मां, बेटी अथवा बहन पहने तो उनकी मनःस्थिति कैसी होगी?
नारी स्वतंत्रता पर सच्चाई को समझने के लिए एक कहानी है-
एक दिन मोहल्ले में किसी ख़ास अवसर पर महिला सभा का आयोजन किया गया। सभा स्थल पर महिलाओं की संख्या अधिक और पुरुषों की कम थी। मंच पर तकरीबन पच्चीस वर्षीय खुबसूरत युवती आधुनिक वस्त्रों से सुसज्जित, माइक थामें कोस रही थी पुरुष समाज को। वही पुराना आलाप कम और छोटे कपड़ों को जायज और कुछ भी पहनने की स्वतंत्रता का बचाव करते हुए पुरुषों की गन्दी सोंच और खोटी नीयत का दोष बतला रही थी।
तभी अचानक सभा स्थल से तीस बत्तीस वर्षीय सभ्य, शालीन और आकर्षक से दिखते नवयुवक ने खड़े होकर अपने विचार व्यक्त करने की अनुमति मांगी। अनुमति स्वीकार कर माइक उसके हाथों मे सौप दिया गया। हाथों में माइक आते ही उसने बोलना शुरु किया - "माताओं, बहनों और भाइयों, मैं आप सबको नहीं जानता और आप सभी मुझे नहीं जानते कि आखिर मैं कैसा इंसान हूं? लेकिन पहनावे और शक्ल सूरत से मैं आपको कैसा लगता हूँ बदमाश या शरीफ? सभास्थल से कई आवाजें गूंज उठीं - पहनावे और बातचीत से तो आप शरीफ लग रहे हो.. शरीफ लग रहे हो.. शरीफ लग रहे हो..
बस यही सुनकर, अचानक ही उसने अजीबोगरीब हरकत कर डाली। एक एक करके उसने मंच पर ही अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। कुछ ही देर में ये देख कर पूरा सभा स्थल आक्रोश से गूंज उठा। "मारो-मारो गुंडा है, बदमाश है, बेशर्म है, शर्म नाम की चीज नहीं है इसमें, मां बहन का लिहाज नहीं है इसको, नीच इंसान है, ये छोड़ना मत इसको।" ये आक्रोशित शोर सुनकर अचानक वो माइक पर गरज उठा - "रुको! पहले मेरी बात सुन लो, फिर मार भी लेना, चाहे तो जिंदा जला भी देना मुझको।
अभी अभी तो ये बहन जी कम कपड़े, तंग और बदन नुमाया छोटे-छोटे कपड़ों की पक्ष के साथ साथ स्वतंत्रता की दुहाई देकर गुहार लगाकर "नीयत और सोच में खोट" बता रही थी। तब तो आप सभी तालियां बजा-बजाकर सहमति जता रहे थे, फिर मैंने क्या किया है? सिर्फ कपड़ों की स्वतंत्रता ही तो दिखलायी है।
"नीयत और सोच" की खोट तो नहीं ना और फिर मैंने तो, आप लोगों को मां, बहन और भाई भी कहकर ही संबोधित किया था, फिर मेरे कपड़े उतारना शुरू करते ही आप में से किसी को भी मुझमें "भाई और बेटा" क्यों नहीं नजर आया? मेरी नीयत में आप लोगों को खोट कैसे नजर आ गया? मुझमें, आपको भाई, बेटा या दोस्त क्यों नहीं नजर आया? आप में से तो किसी की "सोच और नीयत" भी खोटी नहीं थी. फिर ऐसा क्यों? "
सभा स्थल पर सन्नाटा छा गया था। किसी के मुंह से कुछ नहीं निकल रहा था। उस व्यक्ति ने बोलना जारी रखा। "सच तो यही है कि झूठ बोलते हैं लोग कि "वेशभूषा" और "पहनावे" से कोई फर्क नहीं पड़ता। हकीकत तो यही है कि मानवीय स्वभाव है कि यदि कोई पुरुष या स्त्री कम वस्त्रों में हों तो मन मे दूषित विचार उत्पन्न हो सकते हैं।हमें अपनी इन्द्रियों को वश में रखने का प्रयत्न करना चाहिए। रूप, रस, शब्द, गन्ध, स्पर्श ये बहुत प्रभावशाली कारक हैं। एक रूपवती स्त्री को देखकर “विस्वामित्र” जैसे आध्यात्मिक ऋषि के मस्तिष्क में विकार पैदा हो गया था, तो आम मनुष्यों के मन मे तो हो ही सकता है।
दुर्गा शप्तशती के देव्या कवच में श्लोक 38 में भगवती से इन्हीं कारकों से रक्षा करने की प्रार्थना की गई है -
सत्त्वं_रजस्तमश्चैव_रक्षेन्नारायणी_सदा।।”
रस, रूप, गंध, शब्द, स्पर्श इन विषयों का अनुभव करते समय योगिनी देवी रक्षा करें तथा सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण की रक्षा नारायणी देवी करें।
भारतीय हिन्दु महिलाओं को ,भारतीय संस्कृति के अनुरूप वस्त्रों का चयन करना चाहिए। महिलाओं को यह समझना होगा कि सभ्य, शालीन वस्त्र पहनने से उनकी स्वतंत्रता का हनन नहीं होगा। सोशल मीडिया पर उत्तेजक वस्त्रों में अपनी नुमाइश करती ज्यादातर महिलाओं को यह समझना होगा कि इससे वे समाज में हंसी की पात्र बनती हैं। फैशन के नाम पर "कुछभी" पहनना कहीं से भी उचित नहीं है।
अब समय सचेत होने का है, आँखे खोलने का है। अपने आप को और अपने समाज को और अधिक सशक्त बनाना है। भारतीय समाज और संस्कृति का आधार नारीशक्ति है। नारी के सम्मान में यदि कमी आयी तो समाज का पतन हो जायेगा, जिसके फलस्वरूप देश का भी पतन निश्चित है।
और धर्म विरोधी, अधर्मी, चांडाल (बॉलीवुड, वामपंथ), दुष्ट प्रकृति के लोग हमारे समाज के आधार को तोड़ने का षड्यंत्र कर रहे हैं, जिसे हमें सफल नहीं होने देना है। हमारे मनीषियों ने सच ही कहा है -
रमन्ते तत्र देवताः।"
जय माता दी
बहुत अच्छी बात कही आपने इस माध्यम से
ReplyDeleteहम नारी के लिए समान अधिकार की बात करते हैं और समय पर हमारी सोंच बदल जाती है हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी
Very Nice👌👌
ReplyDeleteBahut achi baat aapne likhi naari soch ko badalane ki jarurt hai...
ReplyDeleteबिल्कुल सही बात है । हमारे संस्कृति और सभ्यता में तो ऐसे ऐसे ड्रेस थे ही नही , यह सब अंग्रेजों की
ReplyDeleteसभ्यता है जिसका अनुसरण कर हमारे देश का आज यह हाल हो गया है । परमात्मा इन सभी को
सद्बुद्धि प्रदान करें🙏 हे गोविंद🙏
स्त्री हो या पुरुष, पोशाक गरिमामय होना चाहिए।
ReplyDeleteVery nice presentation...
ReplyDelete😊😊😊😊😊😊😊😊
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteस्त्री हो या पुरुषों सबको अपने अपने समाज की अपने परिवार की घर के बड़े बुजुर्गों की मर्यादा को ध्यान में रखकर पोशाक धारण करना चाहिए
ReplyDeleteImportant topic dear
ReplyDeleteनारी का सम्मान सबका सम्मान।
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