जनवरी की एक सर्द सुबह
जनवरी मास की एक सर्द सुबह। ठंड अपने शबाब पर है। मेरी घड़ी में 5 बजकर 20मिनट हो रहे हैं। मैं यहां पार्क की एक बेंच पर बैठी सामने के वृक्षों के पत्तों से टपकती ओस की बूंदों को निहार रही हूं।इतनी जबरदस्त ठंड में भी ओस की बूंदें मुस्कुरा रही हैं और पत्तों से टपककर अपनी जिंदगी कुर्बान कर दे रही हैं। चूंकि सर्दी का सितम बहुत है, इसलिए पार्क में इक्का-दुक्का ही टहलने वाले लोग हैं। जब 5:15 पर मैं आई थी तब मात्र दो ही लोग पार्क में चहलकदमी कर रहे थे, जिसमें एक 45-46 वर्षीय अधेड़ पुरुष और एक 20-22 साल की तरुणी थी। वह तरुणी कुछ देर टहलती फिर कुछ देर अत्यंत वेग से पार्क की परिक्रमा करती है।
घड़ी अब 5.45 का समय बता रही है। सूरज भी इस ठिठुरन में मानो आलस्य की चादर ओढ़े लेटे हैं। उनके दर्शन अभी भी दुर्लभ हैं। वहीं पार्क में चहल-पहल बढ़ने लगी है। अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक कुछ लोग एक तरफ बैठ के योग कर रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ये सभी 65-70 वर्षीय बुजुर्ग हैं। अपने जोश, उत्साह, जीवन के प्रति सकारात्मक रवैया से ये युवाओं को भी मात दे रहे हैं। इन्हें देखकर सचमुच प्रतीत हो रहा है कि उम्र सिर्फ एक संख्या है और कुछ नही। ऐसी सर्द सुबह में भी इनके साथ इनकी चटाई, व्यायाम और ध्यान के प्रति इनकी दीवानगी प्रकट करती है। इनमें से दो लोगों को पैर की शायद घुटनों की समस्या है तो वो कुर्सी पर बैठ के योग कर रहे हैं। ये एक आवश्यक संदेश भी हमें दे रहे हैं कि इंसान को अपना कर्म अंतिम सांस तक करना चाहिए।
जैसे जैसे समय बढ़ रहा है वैसे वैसे पार्क में टहलने वाले बढ़ते जा रहे हैं और धीरे धीरे एक भीड़ की शक्ल लेते जा रहे हैं। मुझे यहाँ आये लगभग 30 मिनट हो गए हैं। इतनी देर में मेरे बालों पर इतनी ओस पड़ चुकी है कि वह बूंद का रूप लेकर मेरे कानों के ऊपर के केसुओं से होती हुई मेरे कांधे पर टपक रही है और मेरे कानों में हौले से मानो कह रही है कि तुम्हारी खुशी में लिए में अपनी जिंदगी कुर्बान कर रही हूँ।
यहां लगभग सभी ने अपने अपने सर को ठंड से बचाने का पूरा इंतज़ाम कर रखा है। कोई हिमाचली टोपी पहनकर मुस्कुरा रहा है तो कोई वानर टोपी लगाकर चिंंतित मुद्रा में खड़ा है। कुछ लोग सर के साथ अपनी नाक बचाने के लिए एक मफलर को सर के साथ नाक तक लपेटकर शान के साथ सर्दी को चुनौती देते हुए खड़े हैं। परंतु मुझे इन ओस की बूंदों से कुछ ज्यादा ही लगाव है। इनकी सुंदरता को देखने और इनसे बातें करने के लिए,अपने कानों से इनका मधुर संगीत सुनने के लिए कदाचित मैं टोपी नहीं लगाती।
आज यहीं विराम देती हूं, फिर मिलते हैं एक नई ओस की बूंद से, फिर एक नई सुबह।
वाह 😊 👍
ReplyDeleteवाह लाजबाब लेख 👌👌
ReplyDeleteजनवरी की कांपती, ठिठुरती सुबह का सजीव चित्रण। इस शीत लहर में केवल प्रबल इच्छा शक्ति वाले ही सुबह की सैर कर सकते हैं।
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteइतनी ठंड में सुबह सुबह 5बजे पार्क कौन जाता है, वो भी बिना टोपी मफलर, ठंड लग जायेगी।
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteI have no word about this
Nice
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteMashaAllah ❤️ Bhut hi khubsurati se tumne likha hai ...Really very very nice ....aur us par tumhari pic ne char chand laga diye ....aise hi hamesha smile karti raho...Allah always bless you.
ReplyDeleteवाह वाह क्या बात है रूपा जी क्या खूब लिखा है 👏👏👏
ReplyDeleteआपके सादगी भरे चेहरे की चमक के सामने सादा लगा
आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा
😅😅😅😝
Ye hui baat ...saandaar majedaar lajawab post ..
ReplyDeleteLijiye ab garmagaram chai pijiye ☕
कदाचित आप सर्दी से ना घबराइए
ReplyDeleteचलिए बालों से ओस की बूंदें भी टपकाइए
मौका है सर्दी को आंख दिखाइए
पर एक शर्त है कि
मेरे साथ कभी गरमागरम चाय ☕ का लुत्फ उठाइए..
Rupa ji, it is a very wrong thing to go to the park in such cold winter morning. Precisely this is not gud to u and your health. Take care your health and cover your head properly. Hope u accept and take care your self..
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeletelajwaab..
ReplyDeleteVery nice...
ReplyDeleteसर्दी भी अपनी जगह और उसकी जरूरत भी अपनी जगह , जिंदगी और मौसम दोनो ही एक दूसरे को समझने की शिक्षा देते हैं 🙏🏻
ReplyDeleteवाह क्या बात है रूपा जी अभ इसके बारे मैं क्या ही बोलूं 😊 मेरे लिये शव्द नहीं है 😊🥰🎉🎊
ReplyDelete❤सोच खूबसूरत-नाम खूबसूरत❤
ReplyDelete👸इनको तो कहते हैं सब रूपा👸
💦रुपा "ओस की एक बूंद" का💦
📝हुनर अब तक कहा था छुपा📝
💧ओस की बूंद की तरह रूपा💧
💐हरे-भरे ब्लॉग पर छा जाती है💐
🌄फिर दिन-भर की दौड़-धूप में🌄
👣रोज ओस की तरह खो जाती👣
🤔कितने जाने-अनजाने रहस्य🤔
👁अपने इस ब्लॉग पर बताती है👁
🖋क्या खूब है इनकी ये लेखनी🖋
🥰सबके दिलों पर ये छा जाती है🥰
💦ओस की बूंद की तरह ही तो💦
😍चमकती है चेहरे की मुस्कान😍
🤗क्या गजब-अपने हुनर से रूपा🤗
🐥हर ब्लॉग में डाल देती है जान🐥
💦ओस की तरह धूप-ताप सहना💦
🖋इस तरह हमेशा लिखते रहना🖋
💐हम तारीफ के फूल बिछाएंगे💐
👑आप समझना अनमोल गहना👑
🌄🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏🌄
नरेश जी, मेरी पोस्ट में चार चांद लगाती आपकी खूबसूरत पंक्तियों के लिए हार्दिक आभार। आपने इतनी तारीफ कर दी, इतनी तारीफ के काबिल तो नहीं हूं, पर मैं कोशिश करूंगी कि आपने जो तारीफ के फूल बिछाए हैं उनकी खुशबू मैं सदैव बरकरार रख सकूं❣️💦 रूपा ओस की एक बूंद 💦
Deleteजी मचल जाता है मेरा और
ReplyDeleteधड़कनें तेज गति से बढ़ती है
मन करता ओस कि बूंद को
उंगली पर रखकर चख लूं
काश वो मोती बन जाए तो
अपनी जेब में मैं उन्हें रख लूं
जितना सुकून मिलता सर्दी में
अलाव में अपने हाथ सेककर
उतना सुकून मिलता दिल को
ओस की ये नन्हीं बुंदें देखकर
🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏
जी, बिल्कुल सही कहा आपने।
Deleteसर्द की ठिठुरती ठंड में अलाव सेकने में जितना सुकून है उससे कहीं ज्यादा सुकून इन ओस की बूंदों से गुफ्तगू में है।
सर्द रातों में सो कर भोर होते
ReplyDeleteही निकलता जो घर से बाहर
धूप की चाह में बैठ जाता हूं
थोड़ी देर अपनी आंखें मूंदकर
खिल जाता है मेरा चेहरा जब
नजर पड़ती ओस की बूंद पर
चमक उठती अधखुली आंखें
जब सूरज की पहली किरण
ओस की बूंदों पर पड़ती है
जी मचल जाता है मेरा और
धड़कनें तेज गति से बढ़ती है
मन करता ओस कि बूंद को
उंगली पर रखकर चख लूं
काश वो मोती बन जाए तो
अपनी जेब में मैं उन्हें रख लूं
जितना सुकून मिलता सर्दी में
अलाव में अपने हाथ सेककर
उतना सुकून मिलता दिल को
उसकी नन्हीं बुंदों को देखकर
🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏
बहुत खूब नरेश जी, लाजवाब!!
Deleteआपकी लिखी रचना सोमवार 23 ,जनवरी 2023 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
संगीता जी, सादर अभिवादन 🙏
Deleteपांच लिंकों के आनंद पर मेरी इस प्रस्तुति को स्थान देने के लिए आपका तहे दिल से आभार।
अप्रतिम लेख👍👍👌👌❤️❤️😍😍😍
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार!!
Deleteसुंदर एवं सजीव वर्णन । सर्दियों की सुबह का सौंदर्य कुछ अलग ही होता है।
ReplyDeleteहार्दिक आभार!!
Deleteसर्दी के दृश्य का सुंदर चित्रण।
ReplyDeleteधन्यवाद सर!!
Deleteबहुत सुंदर वर्णन सर्द सुबह का ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार!!
Deleteबेहद सुंदर और जीवंत अभिव्यक्ति रूपा जी।
ReplyDeleteआपकी अभिव्यक्ति पढ़ते हुए आँखों के आगे एक चित्र सा खींच गया ।
ठूँठ पर
ठहरी नरम ओस की
अंतिम बूँद को
पीने के बाद
मतायी हवाओं के
स्नेहिल स्पर्श से
फूटती नाजुक मंजरियाँ,
वनवीथियों में भटकते
महुये की गंध से उन्मत
भँवरें फुसफुसाते हैं
मधुमास की बाट जोहती,
बाग के परिमल पुष्पों
के पराग में भीगी,
रस चूसती,
तितलियों के कानों में।
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सस्नेह।
आपकी प्रतिक्रिया ने ओस की बूंदों में चार चांद लगा दिया श्वेता जी। हार्दिक आभार!!
DeleteBahut hi sunder ❤️
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