इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।
निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।
- दुष्यन्त कुमार
सचमुच दुष्यंत कुमार जी की कविताएं मन को लुभाती हैं,संतोषित करती हैं और हर बार हमे बहुत कुछ सोचने को विवश करती हैं।
ReplyDeleteआप सभी के लिए रविवार शुभ हो।
अति सुन्दर शुभ रविवार 😊
ReplyDeleteअति सुंदर रचना🙏दुष्यंत कुमार की हरेक
ReplyDeleteरचनायें जीवन को रोमांचित महसूस करा
देती है🙏एक अलग आनन्द की अनुभूति
करती है।🙏
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
Happy Sunday
ReplyDeleteNice poem...
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteDivine blessing to all.
ReplyDeleteकितनी वास्तविक कविता है।
ReplyDeleteNice poem 👌👌
ReplyDeleteBeautiful.
ReplyDeleteBahut khub...
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