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रानी अवन्तीबाई लोधी || Rani Avantibai Lodhi ||

 रानी अवन्तीबाई लोधी

रानी अवन्तीबाई लोधी
(16 अगस्त 1831 - 20 मार्च 1858)
जन्मस्थल :
ग्राम मनकेड़ी, जिला सिवनी, मध्य प्रदेश
मृत्युस्थल:
देवहारगढ़, मध्य प्रदेश
आन्दोलन:भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

रानी अवन्तीबाई लोधी की जयंती पर शत शत नमन

स्वतन्त्रता संग्राम की द्वितीय शहीद वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मी बाई थीं, जिनके बारे में देश का बच्चा बच्चा अवगत है, पर 1857 की राज्यक्रान्ति की प्रथम शहीद वीरांगना "रानी अवन्ति बाई लोधी" जो क्रांति की प्रणेताओं में अग्रणीं थीं, इतिहास के पन्नों में समुचित स्थान नहीं पा सकीं।

रानी अवन्तीबाई लोधी की जयंती पर शत शत नमन

रानी अवन्तीबाई लोधी भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली प्रथम महिला शहीद वीरांगना थीं। 1857 की क्रांति में रामगढ़ की रानी अवंतीबाई रेवांचल में मुक्ति आंदोलन की सूत्रधार थी। 1857 के मुक्ति आंदोलन में इस राज्य की अहम भूमिका थी, जिससे भारत के इतिहास में एक नई क्रांति आई। 

देश को गुलामी की जंजीरों से आज़ादी दिलाने के लिए हजारों लोगों ने अपनी जान की कुर्बानी दी। रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे, नाना साहब पेशवा, शिवाजी राव जैसे कई महान राजाओं ने अंग्रेजों के दांतों तले चना चबवाया था।इन्हीं में से ही एक नाम "रानी अवन्ति बाई लोधी" का था, जिन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया था।  

रानी अवन्तीबाई लोधी का जन्म 16 अगस्त, 1831 को मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के मनकेहणी ग्राम में हुआ था। इनके पिता राव जुझार सिंह 187 गांवों के जमींदार थे। अवंतीबाई की संपूर्ण शिक्षा घर पर ही हुई। घर पर ही उन्होंने तलवारबाजी का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। कम आयु में ही वह युद्ध कौशल में पूर्णरूपेण दक्ष हो गई थीं।

रानी अवन्तीबाई लोधी (16 अगस्त 1831 - 20 मार्च 1858)

1817 से 1851 तक रामगढ़ राज्य के शासक लक्ष्मण सिंह थे। उनके निधन के बाद विक्रमाजीत सिंह ने राजगद्दी संभाली। उनका विवाह बाल्यावस्था में ही मनकेहणी के जमींदार राव जुझार सिंह की कन्या अवंतीबाई से हुआ। विक्रमाजीत सिंह बचपन से ही वीतरागी प्रवृत्ति के थे। उनका मन राजकाज की अपेक्षा धार्मिक कार्यों में अधिक लगता था। अत: राज्य संचालन का काम उनकी पत्नी रानी अवंतीबाई ही करती रहीं। उनके दो पुत्र हुए - अमान सिंह और शेर सिंह। विक्रमादित्य के पुत्र अमर सिंह एवं शेर सिंह अभी शैशवावस्था में ही थे कि राजा मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गए। कुछ समय पश्चात राजा विक्रमादित्य का स्वास्थ्य और खराब हो गया और उनका देहावसान हो गया। अब दोनों पुत्रों और रामगढ़ की संपूर्ण जिम्मेदारी रानी के कंधों पर आ गई। राजा के विक्षिप्त होने की खबर जैसे ही ब्रिटिश अधिकारियों को हुई, उन्होंने कोर्ट आफ वाड्र्स के तहत कार्यवाही करके राज्य का प्रशासन अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया और प्रतिनिधि के रूप में शेख मोहम्मद और मोहम्मद अब्दुल्ला को नियुक्त करके रामगढ़ भेज दिया। अंग्रेजों की राज्य हड़प नीति से रानी भलीभांति परिचित थीं।अंग्रेजों ने तब तक भारत के अनेक भागों में अपने पैर जमा लिए थे, जिनको उखाड़ने के लिए रानी अवंतीबाई ने क्रांति की शुरुआत की। उन्होंने अंग्रेजों के दोनों प्रतिनिधियों को राज्य से बाहर खदेड़ दिया। 

ब्रिटिश साम्राच्य कुटिल नीति के विरुद्ध मंडला के गोंड राजा शंकर शाह की अध्यक्षता में आसपास के सभी राजाओं एवं जमीदारों का एक सम्मेलन बुलाकर एकजुट होने का संदेश दिया गया। इस विराट सम्मेलन के आयोजन हेतु रानी अवंतीबाई को प्रचार-प्रसार का दायित्व मिला। रानी ने अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए पड़ोसी राज्यों के राजाओं एवं जमींदारों को पत्र के साथ कांच की चूडिय़ां भी भिजवाईं और पत्र में लिखा- देश की रक्षा के लिए या तो कमर कस लो या कांच की चूडिय़ां पहन कर बैठो, पर तुम्हें अपने धर्म-ईमान की सौगंध, जो इस कागज में लिखा पता अंग्रेजी हुकूमत को दिया। इस संदेश को जिसने भी पढ़ा वह देश के प्रति अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तत्पर हो उठा। रानी के आवाहन की गूंज दूर-दूर तक गुंजायमान हुई और तय योजना के अनुसार आसपास के सभी राजा अंग्रेजों के विरुद्ध एकजुट हो गए। वर्ष 1857 का महासमर प्रारंभ हो चुका था। 

रानी अवंतीबाई: अंग्रजों से लोहा लेने वाली वीर योद्धा

रानी अवंतीबाई के नेतृत्व में रामगढ़ के सेनापति ने भुआ बिछिया थाने पर धावा बोलकर उसे अपने अधिकार में ले लिया। साथ ही घुघरी क्षेत्र पर भी अपना कब्जा कर लिया। विद्रोह की चिंगारी मंडला और रामगढ़ के संपूर्ण क्षेत्र में फैल गई, जिसने अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन की नींद उड़ा दी। मंडला के राजा शंकर शाह की वीरगति के पश्चात यहां की रक्षा का दायित्व भी रानी अवंतीबाई ने बखूबी निभाया। 23 नवंबर, 1857 को मंडला की सीमा में स्थित खैरी नामक गांव में रानी और अंग्रेजों के मध्य भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन बुरी तरह परास्त हुआ और उसे मंडला से भागना पड़ा। अब अंग्रेजों ने रानी अवंतीबाई से प्रतिशोध लेने के लिए रीवा के राजा की सहायता से अचानक रामगढ़ पर हमला कर दिया। अंग्रेजों की विशाल सेना का रानी अवंतीबाई ने साहस के साथ मुकाबला किया, किंतु तत्कालीन परिस्थितियों का आकलन करके वह किले से प्रस्थान कर देवहारगढ़ की पहाडिय़ों में जा पहुंचीं।

इतिहास गवाह है कि देश के ही कुछ नमकहरामों ने अंग्रेजों से हाथ मिलाई है और इस तरह की क्रांति में अंग्रेजों का साथ दे कर देश से गद्दारी की है। 20 मार्च, 1858 को अंग्रेजों की विशाल सेना से रानी अवंतीबाई ने अपने कुछ सैनिकों के साथ साहस और वीरता के साथ युद्ध किया। अंग्रेजों ने रानी के पास आत्मसमर्पण का संदेश भिजवाया लेकिन रानी ने संदेश को अस्वीकार करते हुए संदेश भिजवाया कि लड़ते-लड़ते मरना पड़े वो मंजूर है, लेकिन अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कभी नहीं करूंगी। इसके बाद वडिंगटन ने चारों तरफ से रानी की सेना पर धावा बोल दिया। कई दिनों तक रानी की सेना और अंग्रेजी सेना में युद्ध चलता रहा, जिसमें रीवा नरेश की सेना अंग्रेजों का साथ दे रही थी। रानी की सेना बेशक थोड़ी थी लेकिन युद्ध में अंग्रेजी सेना की खटिया खड़ी कर दी थी, पर इस युद्ध में रानी की सेना के भी कई सैनिक हताहत हो चुके थे और रानी को बाएं हाथ में गोली लग गई और तलवार छूट कर गिर गई। अपने आपको चारों ओर से घिरता देख वीरांगना अवंती बाई लोधी ने रानी दुर्गा दुर्गावती का अनुकरण करते हुए अपने अंगरक्षक से तलवार छीन कर स्वयं ही अपने सीने में तलवार उतार दी और स्वयं के प्राण मातृभूमि के रक्षार्थ अर्पण कर दिए। 

उनका मानना था कि भारतीय स्त्री को जीते जी कोई शत्रु स्पर्श न कर सके। मृत्यु से पूर्व उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों के नाम एक पत्र छोड़ा, जिसमे लिखा था कि इस विद्रोह के लिए मैं जिम्मेदार हूं। मैंने ही सैनिकों को भड़काकर युद्ध के लिए प्रेरित किया। वे स्वयं विद्रोही नहीं बने। रानी के इस पत्र की मंशा यह थी कि उनकी मृत्यु के पश्चात अंग्रेज उनकी प्रजा को भयंकर यातनाएं न दें। धन्य है ऐसी वीरांगना, जिसने राष्ट्रहित में अपने प्राणों की आहुति दे दी साथ ही राष्ट्र की मातृशक्तियों को यह संदेश दिया कि विपरीत परिस्थितियों में भी कैसे अपने आत्मबल को जागृत करके अपनी मातृभूमि की रक्षा की जा सकती है। 

इसतरह भारत में पहली महिला क्रांतिकारी रामगढ़ की रानी अवंतीबाई ने अंग्रेजों के विरुद्ध ऐतिहासिक निर्णायक युद्ध करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी। 

2001 के एक डाक टिकट पर अवन्तीबाई का चित्र है।2001 के एक डाक टिकट पर अवन्तीबाई का चित्र है। मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में बने बरगी डैम को रानी अवंतीबाई लोधी का नाम दिया गया है। 20 मार्च, 1988 को भारत सरकार ने रानी अवंतीबाई के नाम एक 60 पैसे का डाक टिकट भी जारी किया था।

English Translate 

Rani Avantibai Lodhi

Rani Avantibai Lodhi
(16 August 1831 - 20 March 1858)
Birthplace :
Village Mankedi, District Seoni, Madhya Pradesh
Place of Death:
Deohargarh, Madhya Pradesh
Movement: Indian Freedom Struggle

Tributes to Rani Avantibai Lodhi on her birth anniversary

Rani Avantibai Lodhi (16 August 1831 - 20 March 1858)

The second martyr of the freedom struggle was Rani Laxmi Bai of Jhansi, about whom every child of the country is aware, but the first martyr of the 1857 state revolution "Rani Avanti Bai Lodhi", who was the pioneer of the revolution, is appropriate in the pages of history. Couldn't find the place.

Rani Avantibai Lodhi was the first female martyr heroine to play an important role in India's first freedom struggle. Rani Avantibai of Ramgarh was the architect of the liberation movement in Rewanchal in the revolution of 1857. This state played an important role in the liberation movement of 1857, which brought a new revolution in the history of India.

Thousands of people sacrificed their lives to liberate the country from the chains of slavery. Many great kings like Rani Lakshmi Bai, Tatya Tope, Nana Saheb Peshwa, Shivaji Rao had chewed gram under the teeth of the British. One of these was the name of "Rani Avanti Bai Lodhi", who fought the British.

Rani Avantibai Lodhi was born on August 16, 1831 in Mankehani village of Seoni district of Madhya Pradesh. His father Rao Jujhar Singh was a zamindar of 187 villages. Avantibai's entire education took place at home. He also received training in fencing at home. At an early age, she had become fully proficient in combat skills.

1857 की राज्यक्रान्ति की प्रथम शहीद वीरांगना "रानी अवन्ति बाई लोधी"

The ruler of Ramgarh State from 1817 to 1851 was Laxman Singh. After his death, Vikramajit Singh took over the throne. He was married in his childhood to Avantibai, daughter of Rao Jujhar Singh, the Zamindar of Mankehni. Vikramajit Singh was of a brave nature since childhood. His mind was more engaged in religious work than in royalty. Therefore, his wife Rani Avantibai continued to run the state. They had two sons - Aman Singh and Sher Singh. Vikramaditya's sons Amar Singh and Sher Singh were still in their infancy that the king became mentally deranged. After some time King Vikramaditya's health deteriorated further and he died. Now the entire responsibility of both the sons and Ramgarh fell on the shoulders of the queen. As soon as the news of the king's derangedness came to the notice of the British officials, they took the administration of the state under their jurisdiction by acting under the Court of Wards and sent Sheikh Mohammed and Mohammad Abdullah as their representatives and sent them to Ramgarh. The queen was well acquainted with the British's state usurp policy. By then the British had established their feet in many parts of India, to uproot them, Rani Avantibai started the revolution. He drove both the representatives of the British out of the state.

1857 की राज्यक्रान्ति की प्रथम शहीद वीरांगना "रानी अवन्ति बाई लोधी"

Against the devious policy of the British imperialist, a conference of all the nearby kings and landlords was convened under the chairmanship of Gond King Shankar Shah of Mandla and a message was given to unite. Rani Avantibai got the responsibility of publicity for organizing this great conference. The queen, while discharging her responsibility, sent glass bangles along with the letter to the kings and landlords of the neighboring states and wrote in the letter - to protect the country, either wear your waist or sit wearing glass bangles, but you should not follow your religion. The pledge of faith, which gave the address written in this paper to the British government. Whoever read this message got ready to lay down his life for the country. The echo of the queen's call resonated far and wide and according to the plan, all the nearby kings united against the British. The great season of 1857 had started.

Under the leadership of Rani Avantibai, the commander of Ramgarh raided the Bhua Bichiya police station and took it under his control. Along with this, he also occupied the Ghughri area. The spark of rebellion spread throughout the region of Mandla and Ramgarh, which stunned the British Deputy Commissioner Waddington. After the martyrdom of King Shankar Shah of Mandla, Rani Avantibai also performed the responsibility of protecting here very well. On November 23, 1857, a fierce battle took place between the queen and the British in a village named Khairi, situated in the border of Mandla. In this battle, Deputy Commissioner Waddington was badly defeated and had to flee from Mandla. Now the British suddenly attacked Ramgarh with the help of the Raja of Rewa to take vengeance from Rani Avantibai. Rani Avantibai faced the huge British army with courage, but after assessing the then circumstances, she left the fort and reached the hills of Deohargarh.

History is witness that some of the salt-crackers of the country have joined hands with the British and have betrayed the country by supporting the British in such a revolution. On March 20, 1858, Rani Avantibai along with some of her soldiers fought with courage and valor against the huge British army. The British sent a message of surrender to the queen, but the queen rejected the message and sent a message that it is acceptable to die while fighting, but will never surrender to the British. Waddington then attacked the queen's army from all sides. For several days, the war between the Queen's army and the British army continued, in which the army of Rewa King was supporting the British. The queen's army was of course small, but in the war, the British army had erected, but in this war many soldiers of the queen's army had also been killed and the queen was shot in the left hand and the sword fell. Seeing herself surrounded by her surroundings, Veerangana Avanti Bai Lodhi imitating Queen Durga Durgavati snatched the sword from her bodyguard, put the sword in her own chest and surrendered her life to protect the motherland.

He believed that no enemy could touch an Indian woman while she was alive. Before death, he left a letter to the British officials, in which it was written that I am responsible for this rebellion. I inspired the soldiers to fight by instigating them. He himself did not become a rebel. The intention of this letter of the queen was that after her death the British would not inflict terrible torture on her subjects. Blessed is such a brave woman, who sacrificed her life in the interest of the nation, as well as gave this message to the mother powers of the nation that even in adverse circumstances, by awakening her self-power, her motherland can be protected.

In this way, Rani Avanti Bai of Ramgarh, the first woman revolutionary in India, sacrificed her life while waging a historic decisive war against the British.

A 2001 postage stamp has a portrait of Avanti Bai. Bargi Dam built in Jabalpur district of Madhya Pradesh has been given the name of Rani Avantibai Lodhi. On March 20, 1988, the Government of India also issued a 60 paise postage stamp in the name of Rani Avantibai.20 मार्च, 1988 को भारत सरकार ने रानी अवंतीबाई के नाम एक 60 पैसे का जारी डाक टिकट

13 comments:

  1. मुझे भी इनके बारे में ज्ञात नही था।
    शत शत नमन।

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  2. शत शत नमन 🙏🏻 हम आज हैं तो उसके पीछे ऐसे ही वीरों और वीरांगनाओ की शक्ति है✌🏻

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  3. सच तो ये है कि ऐसे वीरांगनाओं और वीरों को एक साजिश के तहत भारतीय इतिहास से गायब कर दिया गया और कुछ गिने चुने नाम को आगे कर दिया गया। देश को आजादी दिलाने में अहम योगदान देने वाले ऐसे लोगों को हम जानते ही नहीं और इन्ही नामों में एक नाम की आज जानकारी हुई।
    उन सभी वीरों और वीरांगनाओं को कोटि कोटि नमन

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  4. Hamare desh ki bhumi aise bahut se veer veerangnaon ke khun se sinchit hai. Desh ke aise veerangnaon ko shat shat naman🙏🙏

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  5. Hamare desh ki bhumi aise bahut se veer veerangnaon ke khun se sinchit hai. Desh ke aise veerangnaon ko shat shat naman🙏🙏

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  6. Itni saari jaankari Kahan se laati hain aap?

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