बिल्ली का न्याय
नीच और लोभी को पंच बनाने वाले दोनों पक्ष नष्ट हो जाते हैं।
एक जंगल के जिस वृक्ष की शाखा पर मैं रहता था उसके नीचे के तने में एक खोल के अन्दर कपिंजल नाम का तीतर भी रहता था। शाम को हम दोनों में खूब बातें होती थीं। हम एक-दूसरे को दिन-भर के अनुभव सुनाते थे और पुराणों की कथाएँ कहते थे।
एक दिन वह तीतर अपने साथियों के साथ बहुत दूर के खेत में धान की नई-नई कोपलें खाने चला गया। बहुत रात बीतने पर भी जब वह नहीं आया तो मैं बहुत चिन्तित होने लगा। मैंने सोचा- किसी वधिक ने जाल में न बाँध लिया हो, या किसी जंगली बिल्ली ने न खा लिया हो। बहुत रात बीतने के बाद उस वृक्ष के खाली पड़े खोल में शीघ्रगो नाम का खरगोश घुस आया। मैं तो तीतर के वियोग में इतना दुःखी था कि उसे रोका नहीं।
दूसरे दिन कपिंजल अचानक ही आ गया। धान की नई-नई कोपलें खाने के बाद वह खूब मोटा-ताजा हो गया था। अपनी खोल में आने पर उसने देखा कि वहाँ एक खरगोश बैठा है। उसने खरगोश को अपनी जगह खाली करने को कहा। खरगोश भी तीखे स्वभाव का था; बोला- यह घर अब तेरा नहीं है। वापी, कूप, तालाब और वृक्ष के घरों का यही नियम है कि जो भी उनमें बसेरा कर ले, उसका ही वह घर हो जाता है। घर का स्वामित्व केवल मनुष्यों के लिए होता है, पक्षियों के लिए गृह-स्वामित्व का कोई विधान नहीं है।
झगड़ा बढ़ता गया। अन्त में, कपिंजल ने किसी भी तीसरे पंच से इसके निर्णय करने की बात कही। उनकी लड़ाई और समझौते की बातचीत को एक जंगली बिल्ली सुन रही थी। उसने सोचा, मैं ही पंच बन जाऊँ तो कितना अच्छा है; दोनों को मारकर खाने का अवसर मिल जाएगा।
यह सोच, हाथ में माला लेकर सूर्य की ओर मुख करके, नदी के किनारे कुशासन बिछाकर वह आँखें मूँद बैठ गई और धर्म का उपदेश करने लगी। उसके धर्मोपदेश को सुनकर खरगोश ने कहा-यह देखो! कोई तपस्वी बैठा है, इसी को पंच बनाकर पूछ लें।-तीतर बिल्ली को देखकर डर गया; दूर से बोला- मुनिवर, तुम हमारे झगड़े का निपटारा कर दो। जिसका पक्ष धर्म-विरुद्ध होगा, उसे तुम खा लेना-यह सुन बिल्ली ने आँख खोली और कहा-राम-राम! ऐसा न कहो। मैंने हिंसा का नारकीय मार्ग छोड़ दिया है। अतः मैं धर्म-विरोधी पक्ष वाले की भी हिंसा नहीं करूंगी। हाँ, तुम्हारा निर्णय करना मुझे स्वीकार है। किन्तु मैं वृद्ध हूँ; दूर से तुम्हारी बात नहीं सुन सकती, पास आकर अपनी बात कहो-
बिल्ली की बात पर दोनों को विश्वास हो गया।
दोनों ने उसे पंच मान लिया और उसके पास आ गए। उसने भी झपट्टा मारकर दोनों को एक साथ ही पंजों में दबोच लिया।
इसी कारण मैं कहता हूँ कि नीच और व्यसनी को राजा बनाओगे तो तुम सब नष्ट हो जाओगे। इस दिवान्ध उल्लू को राजा बनाओगे तो वह भी रात के अन्धेरे में तुम्हारा नाश कर देगा।
कौवे की बात सुनकर सब पक्षी उल्लू को राजमुकुट पहनाए बिना चले गए। केवल अभिषेक की प्रतीक्षा करता हुआ उल्लू, उसकी मित्र कृकालिका और कौवा रह गए। उल्लू ने पूछा-मेरा अभिषेक क्यों हुआ ?
कृकालिका ने कहा-मित्र! एक कौवे ने आकर रंग में भंग कर दिया। शेष सब पक्षी उड़कर चले गए हैं, केवल वह कौवा ही यहाँ बैठा है। तब उल्लू ने कौवे से कहा-दुष्ट कौवे! मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था जो तूने मेरे मार्य में विघ्न डाल दिया। आज से मेरा-तेरा वंश-परम्परागत वैर रहेगा।
यह कहकर उल्लू वहाँ से चला गया। कौवा बहुत चिन्तित हुआ वहीं बैठा रहा। उसने सोचा, मैंने अकारण ही उल्लू से वैर मोल ले लिया। दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप करना और कटु सत्य कहना भी दुःखप्रद होता है।
यही सोचता-सोचता वह कौवा वहाँ से आ गयातभी से कौवों और उल्लुओं में स्वाभाविक वैर चला आता है।
कहानी सुनने के बाद मेघवर्ण ने पूछा-अब हमें क्या करना चाहिए?
स्थिरजीवी ने धीरज बँधाते हुए कहा-हमें छल द्वारा शत्रु पर विजय पानी चाहिए। छल से अत्यन्त बुद्धिमान ब्राह्मण को भी मूर्ख बनाकर धूर्ती ने जीत लिया था।
मेघवर्ण ने पूछा-कैसे?
स्थिरजीवी ने तब धूर्तों और ब्राह्मण की यह कथा सुनाई :
Shikshaprad story...aisi kahaniyon ke madhyam se samaj me koi na koi sandesh dene ka uddeshy hota tha...
ReplyDeleteज्ञानवर्धक जानकारी ✌🏻 बहुत कुछ सीख छुपी है
ReplyDeleteबेहद शानदार
ReplyDeletegood story
ReplyDeleteबढ़िया कहानी
ReplyDeleteसुंदर कहानी।
ReplyDeleteAchi Kahani👍👌
ReplyDeleteप्रेरक कहानी ।
ReplyDeleteNice story
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