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हाजीपुर, बिहार का दिल || Haipur, Heart of Bihar ||

हाजीपुर, एक ऐतिहासिक शहर

आज का हाजीपुर शहर महाजनपद काल में गाँव मात्र होने के बावजूद महत्त्वपूर्ण था। गंगा तट पर स्थित बस्ती का पुराना नाम उच्चकला था। मध्यकाल में बंगाल के गवर्नर‍ हाजी इलियास शाह के 13 वर्षों के शासनकाल में यह कस्बाई का रूप लेने लगा। ऐसा माना जाता है कि गंडक तट पर विकसित हुए शहर का वर्तमान नाम उसी शासक के नाम पर पड़ा है। 

हाजीपुर, बिहार का दिल  || Haipur, Heart of Bihar ||

गंगा और गंडक नदी के तट पर बसे इस शहर का धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व है। हिन्दू पुराणों में गज (हाथी) और ग्राह (मगरमच्छ) की लड़ाई में प्रभु विष्णु के स्वयं यहाँ आकर गज को बचाने और ग्राह को शापमुक्त करने का वर्णन है। कौनहारा घाट के पास कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ प्रतिवर्ष मेला लगता है। ईसा पूर्व छठी शताब्दी के उत्तरी और मध्य भारत में विकसित हुए 16 महाजनपदों में वैशाली का स्थान अति महत्त्वपूर्ण था। 

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नेपाल की तराई से गंगा के बीच फैली भूमि पर वज्जिसंघ द्वारा गणतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरुआत की गयी थी। वज्जिकुल में जन्में भगवान महावीर की जन्म स्थली शहर से ३५ किलोमीटर दूर कुंडलपुर (वैशाली) में है। महात्मा बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ था। भगवान बुद्ध के सबसे प्रिय शिष्य आनंद की पवित्र अस्थियाँ इस शहर (पुराना नाम- उच्चकला) में जमींदोज है।

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गंगा और गंडक के पवित्र संगम स्थल की महिमा भागवत पुराण में वर्णित है। गज-ग्राह की लडाई में स्वयं श्रीहरि विष्णु ने यहाँ आकर अपने भक्त गजराज को जीवनदान और शापग्रस्त ग्राह को मुक्ति दी थी। इस संग्राम में कौन हारा? ऐसी चर्चा सुनते सुनाते इस स्थान का नाम 'कौनहारा (कोनहारा)' पड़ गया। बनारस के प्रसिद्ध मनिकर्णिका घाट की तरह यहाँ भी श्मशान की अग्नि हमेशा प्रज्वलित रह्ती है। ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर शरीर की अंत्येष्टि क्रिया मोक्षप्रदायनी है।

जधुआ रोड़ पर स्थित पातालेश्वर मंदिर हाजीपुर शहर के चकित कर देने वाले चमत्कारों में से एक है तथा यह देवों के देव भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर प्राचीन काल से है। ऐसा विश्वास है कि किसी समय भगवान शिव यहाँ प्रकट हुए थे तथा उन्होंने हमेशा के लिए इस स्थान पर ही एक लिंग के रूप में रहने का निश्चय किया।

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एक नेपाली सेनाधिकारी मातबर सिंह थापा द्वारा १८वीं सदी में पैगोडा शैली में निर्मित शिवमंदिर कौनहारा घाट के समीप है। यह अद्वितीय मंदिर नेपाली वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। काष्ट फलकों पर बने प्रणय दृश्य का अधिकांश भाग अब नष्टप्राय है या चोरी हो गया है। कला प्रेमियों के अलावे शिव भक्तों के बीच इस मंदिर की बड़ी प्रतिष्ठा है। काष्ठ पर उत्कीर्ण मिथुन के भित्ति चित्र के लिए यह विश्व का इकलौता पुरातात्विक धरोहर है। दुर्भाग्यवश, देखरेख एवं रखरखाव के अभाव में अद्भुत कलाकृतियों को दीमक अपना ग्रास बना रहा है।

शहर के 5 सिनेमा हॉल मनोरंजन के सबसे बड़े साधन हैं। नेशनल सिनेमा (राजेन्द्र चौक) शहर का सबसे पुराना हॉल है, जो १९४० के दशक में बना था। हिन्दी और भोजपुरी फिल्मों के अलावे कभी-कभी हॉलीवुड फिल्मों का हिन्दी रुपान्तरण सिनेमा में दिखाये जाते हैं। लोग क्रिकेट और फुटबॉल के शौकीन हैं। स्थानीय अक्षयवट राय स्टेडियम टूर्नामेंट का मुख्य केन्द्र है। टाऊन हॉल में होनेवाले नाटक के मंचन अथवा अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम कुछ लोगों के उच्चस्तरीय मनोरंजन का साधन है। हाजीपुर में सिनेमाघरों की संख्या 5 हैं .

हाजीपुर के विषय में कही- सुनी कहानियां

कहा जाता है कि शहर के उत्तर में ‘अनवार खाँ’ की सराय थी, जहाँ आज हाजीपुर रेलवे स्टेशन है, (आज भी अनवारपुर नाम से एक मोहल्ला है, जिसे आम बोलचाल में अनवरपुर कहते हैं )। हाजीपुर की बनी ‘हाथी दाँत की चटाई और काँच की चूड़ियाँ प्रसिद्ध थी। जो अब लुप्त प्रायः हो चली है हाजीपुर में दो मोहल्ले चूड़ियों के थे। एक मस्जिद के पास ‘चूड़ीहाड़ा मोहल्ला’ और दूसरा मवेशी अस्पताल के पास पश्चिम की तरफ ‘जौहरी मौहल्ला’ था। ऐसा कहा जाता है कि हाजीपुर की मिट्टी की सुराही भी प्रसिद्ध थी। जिसकी मिट्टी साल भर में तैयार की जाती थी।

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हाजीपुर अमीरों या रईसों का भी गढ़ हुआ करता था। उसी में एक रईस ‘शेख़ साहब’ भी थे जिनकी पालकी सोलह कहारों की हुआ करती थी। हाजीपुर के रईसों के कहानियों में एक कहानी यह भी है। एक कश्मीरी व्यापारी केसर के बोरों से लदे हुए दस ऊँट लेकर कश्मीर से चला और दिल ही दिल में यह ठान लिया कि यह सारा केसर किसी एक ही रईस को देंगे और कीमत में सिर्फ एक सन ई0 का रुपया लेंगे। व्यापारी कश्मीर से पटना पहुँच गया मगर दोनों शर्तों पर कोई खरीदार नहीं मिला। आख़िरकार हाजीपुर के एक रईस ‘मीर साहब’ ने उस व्यापारी के शर्तो के अनुसार सारा केसर खरीद लिया और बन रहे मकान की नींव में सारा केसर डाल दिया। इससे हाजीपुर की सम्पन्नता का अन्दाजा सहज की लगाया जा सकता है।

संगी जामा मस्जिद

गंडक नदी के तट पर स्थित एक ऐतिहासिक मस्जिद है, चुँकी यह मस्जिद पुरी तरह से पत्थर से बना हुआ है इस लिए इसे पत्थर मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है।

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वैशाली महोत्सव

विश्व की प्रथम गणतंत्र, महात्मा बुद्ध एवं भगवान महावीर की धरती वैशाली की अपनी ऐतिहासिक पहचान रही है। वैशाली एक महान बौद्ध तीर्थ है और भगवान महावीर के जन्मस्थान भी है। ऐसा कहा जाता है कि बुद्ध ने तीन बार इस जगह का दौरा किया और यहां काफी समय बिताया। बुद्ध ने वैशाली में अपना आखिरी प्रवचन भी दिया और यहां अपने निर्वाण की घोषणा की। उनकी मृत्यु के बाद, वैशाली ने दूसरी बौद्ध परिषद भी आयोजित की।

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प्रतिवर्ष वैशाली महोत्सव का आयोजन भगवान महावीर के जन्म दिवस पर मनाया जाता है। इस राजकीय उत्सव में देश भर के संगीत और कला प्रेमी भाग लेते है। “वैशाली महोत्सव” के दौरान आप अशोक स्तम्भ, अभिषेक पुष्करिणी, विश्व शांति स्तूप, मीरा साहब की मज़ार भी घूम सकते हैं इसके अलावा चौथी शताब्दी में गुप्त वंश द्वारा निर्मित,कम्मन छपरा स्थित शिव को समर्पित ‘चौहूमुखी महादेव मन्दिर’ के दर्शन का आनन्द भी ले सकते हैं।

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विशिष्ट प्रकार के केले 

हाजीपुर अपने विशिष्ट प्रकार के केलों के लिये भी जाना जाता है। ‘मालभोग’ और ‘चीनिया’ केलों का क्या ही कहना, स्वाद लेना है तो हाजीपुर पधारिए I राजेन्द्र चौक स्थित वर्षों पुरानी ‘पातालेश्वर मिष्ठान भण्डार’ के काजू बर्फी की बात ही अलग है।

हाजीपुर में क्या प्रसिद्ध है?

हाजीपुर आकर्षण
पातालेश्वर मंदिर
महात्मा गांधी सेतु
बटेश्वरनाथ मंदिर
हेलाबाज़ार में स्थित श्री महाप्रभुजी की बैठकजी
नेपाली मंदिर
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12 comments:

  1. बहुत बढ़िया जानकारी दी है आपने

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  2. 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  3. 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  4. बेहतर जानकारी।

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  5. हाजीपुर ऐतिहासिक स्थल होने के साथ साथ धार्मिक स्थल भी है।यह बिहार में गंगा तथा गंडक नदी के संगम तट पर स्थित है।

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  6. अच्छी जानकारी

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  7. Atyant moolyavaan jaanakaaree. Shukriya.

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  8. Absolutely right

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