मूर्ख मित्र
पण्डितोऽपि वरं शत्रुर्न मूर्खो हितकारकः
हितचिंतक मूर्ख की अपेक्षा अहितचिंतक बुद्धिमान अच्छा होता है।
किसी राजा के राजमहल में एक बंदर सेवक के रूप में रहता था। वह राजा बहुत विश्वासपात्र और भक्त था। अंतःपुर में ही वह बेरोक-टोक जा सकता था।
एक दिन राजा सो रहे थे और बंदर पंखा झेल रहा था, तो बंदर ने देखा, एक मक्खी बार-बार राजा की छाती पर बैठी तो उसने पूरे बल से मक्खी पर तलवार का हाथ छोड़ दिया। मक्खी तो उड़ गई, किंतु राजा की छाती तलवार की चोट से टुकड़े हो गई। राजा का देहांत हो गया।
कथा सुनाकर करटक ने कहा - इसीलिए मैं मूर्ख मित्र की अपेक्षा विद्वान शत्रु को अच्छा समझता हूं।
इधर दमनक करटक बातचीत कर रहे थे, उधर शेर और बैल का संग्राम चल रहा था। शेर ने थोड़ी देर बाद बैल को इतना घायल कर दिया कि वह जमीन पर गिर कर मर गया।
मित्र हत्या के बाद पिंगलक को बड़ा पश्चाताप हुआ, किंतु दमनक ने आकर पिंगलक को फिर राजनीति का उपदेश दिया। पिंगलक ने दमनक को फिर अपना प्रधानमंत्री बना लिया। दमनक की इच्छा पूरी हुई। पिंगलक दमनक की सहायता से राज कार्य करने लगा।
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अगले हफ्ते मिलते हैं द्वितीय तंत्र के साथ।
पंचतंत्र की कहानियां निःसंदेह अपने आप मे बहुत गहरे अर्थ समेटे रहती हैं। आज की कहानी भी एक उपयोगी संदेश देती है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कहानियां है पंचतंत्र में जो अपने आप में बहुत कुछ सिखाती हैं
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन कहानी 👌👌
ReplyDeleteसमझदार हो तभी मित्र बनाओ।।मूर्ख मित्र किस काम का।। बहुत खूब कहानी धन्यवाद जी
ReplyDeleteसमझदार हो तभी मित्र बनाओ।।मूर्ख मित्र किस काम का।। बहुत खूब कहानी धन्यवाद जी
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteअच्छी कहानी
ReplyDeleteVery good story
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteअच्छी कहानी
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteअच्छी कहानी, मूर्ख की मित्रता से अच्छा समझदार दुश्मन
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteThe stories of Panchatantra Treasure of India undoubtedly carry very deep meanings in themselves. Today's story also carries a useful message.
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