प्राचीन शिक्षा व्यवस्था Vs आधुनिक शिक्षा व्यवस्था
शिक्षा किसी भी मनुष्य के जीवन की वह सबसे अनमोल वस्तु होती है, जिसे अन्य व्यक्ति उससे छीन नहीं सकता है, ना ही उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त कर सकता है और ना ही उसे खरीद सकता है। इस धरती पर शिक्षा के सिवा ज्ञान के सिवा अन्य सभी चीजें खरीदी व बेची जा सकती हैं। इसी से हम लोग अनुभव कर सकते हैं कि एक मनुष्य के जीवन में शिक्षा का क्या महत्व है।
प्राचीन काल में लोग शिक्षा प्राप्त करने के लिए अपने घर से सालों साल दूर ऋषि मुनियों के आश्रम में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे। फिर धीरे-धीरे समाज का विकास होने लगा। आश्रम के बाद गुरुकुल का चलन इस समाज में देखा जाने लगा आज। 2022 में भी हमारे देश में गुरुकुल अस्तित्व में है। आज भी बच्चे अपने घर परिवार से दूर गुरुकुल में पूर्ण शिष्टाचार के साथ सादा जीवन व्यतीत करते हुए शिक्षा ग्रहण करते हैं। गुरुकुल के पहनावे रहन - सहन को देखकर आज सभी लोगों को ऐसा प्रतीत होगा कि ना जाने यह बच्चे किस दुनिया में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसका अर्थ यह नहीं होता है कि वह बच्चे जो गुरुकुल में पढ़ रहे हैं, जो गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, आज के आधुनिक स्कूलों की तुलना में कहीं पीछे हैं।
प्राचीन काल में शिक्षा व्यवस्था
जबकि हमारी प्राचीन भारतीय शिक्षा में शुल्क प्रदान करने का कोई निश्चित नियम नहीं था प्रायर शिक्षा निशुल्क होती थी शिक्षा प्रदान करना विद्वानों एवं आचार्य का पुनीत कर्तव्य माना जाता था जो लोग शुल्क पाने की लालसा से शिक्षा प्रदान करते थे समाज में उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता था कालिदास ने ऐसे विद्वान को ज्ञान का व्यवसाय कहां है इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता था कि निर्धन का बालक शिक्षा प्राप्त करने से वंचित न रह जाए तथापि शिक्षा का कर्तव्य था कि वह ज्ञानदाता आचार्य को कुछ न कुछ धन दक्षिणा के रूप में अवश्य प्रदान करें ऐसी व्यवस्था इसलिए की गई ताकि आचार्य के सामने आर्थिक संकट उत्पन्न ना हो सके धनी व्यक्ति अपने बालकों के प्रवेश के समय ही गुरु को संपूर्ण धनराशि प्रदान कर देते थे जातक कथाओं में कुछ बातों का उल्लेख मिलता है जिसमें की श्रेष्ठी पुत्र तथा राजकुमार तक्षशिला में शिक्षा के लिए प्रवेश के समय ही संपूर्ण शिक्षण शुल्क दे देते थे महाभारत से पता चलता है कि भीष्म ने गुरु द्रोणाचार्य को कौरव राजकुमारों की शिक्षा के निमित्त प्रारंभ में ही शुल्क प्रदान कर दिया था यदि कोई व्यक्ति समर्थ होते हुए भी आचार्य को शुल्क प्रदान नहीं करता था तो समाज में उसकी निंदा की जाती थी जिन छात्रों के अभिभावक निर्धन थे वे स्वयं गुरु की सेवा द्वारा शुल्क की क्षतिपूर्ति करते थे अध्ययन समाप्ति के बाद ऐसे विद्यार्थी भिक्षा मांगकर गुरु दक्षिणा चुकाते थे ऐसे भी उदाहरण मिलते हैं जहां आचार्यों ने दक्षिणा लेने से इनकार कर दिया कर दिया। कभी-कभी गुरु शिष्य की सेवा से प्रसन्न होकर उसे यह दक्षिणा मांग लेते थे।
आधुनिक शिक्षा व्यवस्था
प्राचीन काल में शिक्षा को दान के रूप में देखा जाता था। यह दान कब व्यापार में परिवर्तित हो गया, यह बता पाना बहुत ही मुश्किल है। आज शिक्षा के नाम पर सिर्फ और सिर्फ व्यापार होता है। आज शिक्षा के नाम पर धन और संपत्ति का दोहन होता है। कहने के लिए तो हमारा समाज समानता को मान्यता देता है, परंतु प्राथमिक विद्यालय से लेकर के माध्यमिक विद्यालय तक हर जगह असमानता है और यह असमानता हमारे समाज में किस प्रकार से पनप रहा है, इसका वर्णन कर पाना अत्यंत ही कठिन है। यदि कोई गरीब का बच्चा है, तो उस विद्यालय में पढ़ने जाएगा, जहां पर नाही कोई बिल्डिंग है, ना बैठने की कोई व्यवस्था है, ना ही कोई संसाधन है। इसके अलावा इस प्रकार के विद्यालयों में अध्यापक भी अपनी मनमानी अनुसार आते जाते हैं। वहीं दूसरी ओर यदि कोई व्यापारी, अधिकारी या नेता या कोई अन्य पैसे वाले का बच्चा है, वह किसी सीबीएससी कान्वेंट स्कूल में पढेगा, जहां पर बड़ी बड़ी बिल्डिंग है, हर आधुनिक साजो सामान, शिक्षा प्रदान करने के लिए अति योग्य अध्यापक रखे जाते हैं। इससे भी मजे की बात तो यह है कि मां-बाप का मन इन सब चीजों से भी नहीं भरता है, तो वह अपने बच्चों को स्कूल के अतिरिक्त और विद्वान बनाने के लिए और ज्ञानवान बनाने के लिए ट्यूशन लगवाते हैं। यह ट्यूशन शब्द इतना भयावह है कि जो मां - बाप अपने बच्चों को अतिरिक्त शिक्षा नहीं दिला सकते हैं, उनको ऐसा प्रतीत होता है की यदि उन्होंने अपने बच्चों को ट्यूशन नहीं कराया तो कहीं उनका बच्चा पीछे न छूट जाए। ऐसी मानसिकता लेकर के आज हमारे समाज के मां-बाप सुबह से लेकर शाम तक परिश्रम करते हैं।
Very good..
ReplyDelete👌👌
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteAdhunik shiksha ko puri tarah nirarthak nahi thahra sakte..haan ye awashya hai ki jo shiksha ka vyawasaikaran ho gya hai, iske parinam awasy galat hain..aise me kuch Pratibha jo mahangi shiksha ko pay nahi kar pa rahi dab ja rahi..iske liye bhi sarkaar ki bahut sari nitiyan hain..ab ye alag baat hai ki in nitiyon ka fayda jaruratmand log utha pa rahe ya nahi
ReplyDelete👍informative
ReplyDeleteMem Sunder rachna
ReplyDeleteMem Sunder rachna
ReplyDeletePracheen vyastha he ho honi chaiye usme bachhe apna auor apno ka maan samaan zaroor karenge
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteNice nice
ReplyDeleteप्राचीन और आधुनिक शिक्षा व्यवस्था के बारे में बहुत बारीकी से समझाया है
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteअशिक्षित को शिक्षा दो, अज्ञानी को ज्ञान…
ReplyDeleteशिक्षा से ही बन सकता हैं, भारत देश महान…
शिक्षा और ज्ञान का कोई मोल नहीं, आधुनिक और प्राचीन भारतीय शिक्षा व्यवस्था में मूल अंतर शिक्षा का व्यासायीकरण ही है।
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteBahut achchhee post.
ReplyDeleteGood.
ReplyDeleteअति उत्तम विचार ।
ReplyDelete👌🏼🙋♂️👏🏼👍💐🙏